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दहेज़ के बदले


अमन कुमार त्यागी

समीर मेहनती युवक था। एमए करने के बाद उसने नौकरी तलाशने में समय बर्बाद नहीं किया। बिना किसी शर्म और दिखावे के उसे जो भी काम मिला, करता गया। वह निम्न मध्यम वर्गीय माँ-बाप का इकलौता पुत्र था। जब विवाह योग्य हुआ तो अनेकानेक रिश्ते आने लगे। समीर शिक्षित लड़की को अपना जीवनसाथी बनाना चाहता था। ताकि दोनों मिलकर अपना भविष्य संवार सकें। एक लड़की को उसने पसंद भी कर लिया। लड़की का नाम सारिका था। सारिका ने भी एमए किया था। उसके पिता सरकारी कर्मचारी थे। उनका प्रयास था कि सारिका का विवाह किसी सरकारी अधिकारी अथवा कर्मचारी के साथ हो। उन्होंने बेमन से समीर से बात कीं। समीर उन्हें अच्छा भी लगा किंतु सरकारी नौकरी और अपना घर न होना उसके लिए अभिशाप बन गया। समीर और सारिका के विवाह की बात परवान नहीं चढ़ सकी।
इसी शहर में एक और युवक था। जिसका नाम था सुनील। सुनील, समीर का सहपाठी भी रह चुका था। पढ़ाई पूरी करने के बाद सुनील ने विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए परीक्षाएं दीं। उसके पिता ने बेटे को स्थापित करने के लिए रात-दिन एक कर दिया। कई जगह पैसा भी फंसा किंतु सुनील और उसके पिता को पूर्ण विश्वास था कि उसे एक दिन सरकारी नौकरी मिलकर ही रहेगी। अबकी बार बैंक क्लर्क के लिए दाँव खेला गया था। जब सारिका के पिता को पता लगा तो उन्होंने अपनी पत्नी से विचार विमर्श किया।
-‘जानती हो सुनील की नौकरी बस यूँ समझो कि लगने ही वाली है।’ सुनकर सारिका की माँ ने गंभीर मुद्रा बनाई और फिर कुछ सोचकर बोली -चलो अच्छा है लग जाए तो, भाई साहब ने भी पैसा पानी की तरह बहाया है।’
-‘अरे भाग्यवान मेरा मतलब है, क्यों न हम सारिका के विवाह की बात चलाएं। नौकरी लगने के बाद हो सकता है दहेज़ की भी माँग बढ़ जाए। भई फिर तो बिरादरी के न जाने कितने ही रिश्ते आने लगेंगे।’ सारिका के पिता जी ने समझाते हुए कहा तो सारिका की माँ को भी समझते देर नहीं लगी। उन्होंने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा-‘ठीक कह रहे हो जी! नौकरी तो सुनील की लगनी ही है। देर मत करो। मैं तो कहती हूँ कि आज ही जाकर बात पक्की कर आओ। विवाह जब करेंगे देखा जाएगा।’
सारिका के पिता जी उचित अवसर देख सुनील के घर पहुँच गए। वहाँ उन्हें सभी जानते ही थे। इधर-उधर की बातों के बाद मुख्य बिंदु पर आ गए।
-‘आज मैं आपसे एक ख़ास बात करना चाहता हूँ।’ सारिका के पिता ने कहा तो सुनील के पिता और माँ आपस में एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। उन्हें लगा कि कोई ग़लती हो गई है। मौके की नज़ाकत भाँपकर सारिका के पिता ने कहा -‘आप परेशान न हों, कोई परेशानी वाली बात नहीं बल्कि ख़ुशी की ही बात है।’ सुनकर दोनों की जान में जान आई। सुनील के पिता ने मुस्कुराते हुए कहा -‘हम तो डर ही गए थे, भाई साहब! अब जल्दी कहिए क्या बात कहना चाहते हैं?’
-‘आप इतने अच्छे हैं कि आपको समधी बनाने को मन करता है। अगर भाभी जी इजाज़त दें तो?’
सुनकर सुनील के माता-पिता अजीब सी पशोपेश में फंस गए। वे एक दूसरे का मुँह ताकते रहे। काफ़ी देर तक बैठक में सन्नाटा पसरा रहा इतना सन्नाटा कि सुई भी गिरे तो आवाज़ हो। आख़िर इस सन्नाटे को भी सारिका के पिता ने ही तोड़ा - ‘क्या मेरी बेटी में कोई खोट है?’ उन्होंने पूछा तो सुनील के माता-पिता लगभग एक साथ बोले -‘नहीं भाई साहब, ऐसी बात नहीं है।’
-‘फिर क्या परेशानी है? मुझे खुलकर बताएँ।’ सारिका के पिता ने आग्रहपूर्वक कहा।
-‘सारिका से हमें कोई परेशानी नहीं है, वो तो बहुत अच्छी लड़की है। लेकिन हमारा सुनील अभी बेरोज़गार है।’ सुनील के पिता के शब्दों में विवशता थी।
सारिका के पिता कुछ सोचने के बाद बोले -‘यह चिंता की बात नहीं है। मैं जानता हूँ सुनील को। उसकी नौकरी न लगे, ऐसा हो ही नहीं सकता। कोई और बात हो तो बताएँ, संकोच न करें।’
-‘अब क्या बताएँ? सुनील से भी विचार कर लेते तो अच्छा रहता।’ सुनील के पिता ने कहा तो सारिका के पिता झट बोल पड़े -‘अजी कैसी बातें करते हो। मैं आपके संस्कारों को जानता हूँ। धरती इधर से उधर हो सकती है मगर सुनील आपसे बाहर नहीं जा सकता और फिर आप जानते हैं, सारिका मेरी इकलौती संतान है। मेरे पास जो कुछ भी है वो सब सुनील का ही तो होगा। विवाह धूमधाम से किया जाएगा।’
-‘क्यों भाग्यवान! बोलो क्या इरादा है?’ सुनील के पिता ने जैसे पूरा ज़ोर लगाकर होंठ खोले हों।
-‘लड़की तो अच्छी है। पढ़ी-लिखी भी है और परिवार भी अच्छा है। जी तो नहीं चाहता ऐसे रिश्ते को छोड़ने का, मगर अभी सुनील कैरियर के प्रति चिंतित है। अभी यह भी नहीं पता कि उसकी नौकरी के लिए कितने पैसों की ज़रूरत पड़े।’
-‘आप इतनी फ़िक्र क्यों करती हैं। क्या आपको अपने बेटे पर भरोसा नहीं है। रही बात पैसे की तो हम कहाँ जा रहे हैं। मैं पहले ही कह चुका हूँ। मेरा सबकुछ सुनील का ही तो है।’
-‘ठीक है। जैसी आपकी मर्ज़ी। मगर अब आपको ही सारिका और सुनील का ख़याल रखना है।’ कहते हुए सुनील की माँ ने सहमति की मोहर लगा दी।
सारिका के पिता के पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। ख़ुशी-ख़ुशी घर पहुँचे। पत्नी को शुभ समाचार सुनाया।
यह समाचार सुनकर सारिका की माँ की ख़ुशी का ठिकाना न रहा, उन्होंने पड़ोस में रहने वाली एक-दो महिलाओं से भी जिक्र कर दिया। बात दूर तक फैल गई। सारिका के पड़ोस में उन्हीं की बिरादरी का एक और परिवार रहता था। यह परिवार निम्न मध्यम वर्गीय ही था। इस परिवार में एक लड़की थी, जिसका नाम था अर्चना। अर्चना भी विवाह योग्य थी। सारिका के यहाँ उनका जाना-आना काफ़ी था। जब अर्चना की माँ को पता लगा कि सारिका के विवाह की बात पक्की हो गई है तब उन्हें भी ख़ुशी हुई। एक दिन सारिका की माँ के पास बैठी थीं। बातें चल पड़ीं -‘चलो अच्छा हुआ, बहन जी! आपकी सारिका के लिए अच्छा लड़का मिल गया।’
-‘आजकल अच्छे लड़कों की वास्तव में कमी है। यूँ समझो अर्चना की मम्मी कि सारिका की किस्मत अच्छी थी, जो सुनील के घरवाले मान गए। वरना इतना अच्छा लड़का कहाँ मिलता है?’
-‘ठीक कहती हो बहन जी। अब हमें ही देख लो, अर्चना की फ़िक्र सताए जा रही है।’
-‘एक लड़का मैं बता सकती हूँ, मगर बेचारा ग़रीब है।’ सारिका की माँ ने प्रस्ताव रखा।
-‘ग़रीब की कोई बात नहीं, लेकिन शरीफ़ और मेहनती होना चाहिए, बहन जी! हम पर भी देने को कुछ नहीं है।’ अर्चना की माँ की आवाज़ में दर्द था।
-‘आप समीर को देख सकती हैं। हमने सारिका के लिए देखा था। लेकिन उसका अपना मकान और सरकारी नौकरी न होने के कारण सारिका के पिता उसे फेल कर आए थे।’ सारिका की माँ ने गर्व के साथ कहा।
-‘कोई बात नहीं बहन जी। मैं आज ही अर्चना के पिता से बात करती हूँ।’ कहती हुई अर्चना की माँ उठ खड़ी हुई। बेचैनी उनके चेहरे पर स्पष्ट झलक रही थी। जब शाम को अर्चना के पिता घर वापिस आए तो उन्होंने उन्हें सभी बातें बता दीं।
अर्चना के पिता कुछ ही दिन बाद समीर के घर पहुँचे। समीर के पिता से काफ़ी देर तक बातें होती रहीं। जब बात पक्की हो गई तो ख़ुश हो अपने घर पहुँचे। सबसे अधिक ख़ुशी उन्हें इस बात पर हो रही थी कि समीर के पिता ने स्पष्ट कहा था-‘हम ग़रीब हैं, लेकिन भूखे नहीं हैं। दहेज़ के नाम पर हमें एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए।’ यही बात उन्होंने जब अर्चना की माँ को बताई तो उन्होंने आकाश की ओर मुँह करके दोनों हाथ जोड़े। जैसे भगवान को साक्षात् देख उन्हें धन्यवाद कह रही हों। बेटी के ब्याह की अब उन्हें लेशमात्र भी चिंता नहीं रही।
अर्चना की माँ ने यह ख़ुशख़बरी सारिका की माँ को भी सुनायी। सारिका की माँ सुनकर ख़ुश तो हुई लेकिन अपनी बेचैनी को छिपा न सकीं। अर्चना की माँ उनकी बेचैनी भाँप गई और उन्होंने डरते-डरते पूछा-‘कुछ परेशान लग रही हैं, बहन जी।’
-‘हाँ, बहन! बात परेशानी वाली ही है। अजीब सी स्थिति में फंस गए हैं, समझ नहीं पा रहे क्या करें? सारिका के पिता जी का तो ब्लडप्रेशर भी बढ़ गया है।’
-‘मुझे बताइए, बहन जी! शायद कुछ हल निकल सके।’ अर्चना की माँ ने हमदर्दी जताते हुए कहा।
बार-बार आग्रह करने पर सारिका की माँ ने बताया- ‘समीर अब विदेश जाना चाहता है। उसने पासपोर्ट भी बनवा लिया है। रुपयों की सख़्त ज़रूरत है। जो सारिका के विवाह के लिए जोड़े थे। उनकी ख़रीददारी कर चुके हैं। अगले माह कारज भी है ही, अब समझ में नहीं आ रहा क्या करें?’
सुनकर अर्चना की माँ भी चिंतित हो उठीं। उन्होंने बस इतना ही कहा -‘मैं अर्चना के पिता से बात करूँगी। शायद कुछ समाधान निकल आए।’
अगले माह सारिका का विवाह संपन्न हो गया। विवाह में बड़ी धूमधाम थी। नगर के तमाम बड़े लोग मौजूद थे। महंगे होटल की सजावट देखते ही बनती थी। लगभग सभी मेहमान एक ही बात कह रहे थे -‘सारिका के पिता ने दिल खोलकर ख़र्च किया है। कोई कमी नहीं छोड़ी।’ कुछ लोगों ने तो प्रतिक्रियास्वरूप कहा-‘भई, लड़का भी तो होनहार है। हीरा है हीरा। लाखों में एक सुनील जैसा लड़का मिलता है।’
सारिका और सुनील के परिवारों की ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। सभी ने महंगे से महंगे कपड़े बनवाए थे। खाने में भी मजा आ रहा था। एक से बढ़कर एक आईटम था। खाने के इतने स्टाॅल लगे थे कि गिनना भी मुश्किल हो रहा था। हंसी-ख़ुशी सारिका का विवाह संपन्न हो गया।
ठीक पंद्रह दिन बाद अर्चना और समीर का विवाह भी हो गया। थोड़े से मेहमान। यहाँ कोई तड़क-भड़क नहीं थी। खाने में भी सीमित से किंतु स्वादिष्ट आईटम थे। कपड़ों और सजावट पर भी अधिक ख़र्च नहीं किया गया था। सभी ख़ुश और संतुष्ट थे। अर्चना ससुराल पहुँच गई।
पाँच दिन बाद अर्चना का गोना होना था। अर्चना के पिता ने बेटी और दामाद को लेने के लिए किराए की गाड़ी भेज दी। समीर अपने माता-पिता और अर्चना के साथ विवाह के बाद पहली बार ससुराल जा रहा था। एक मकान के सामने गाड़ी रुकी। अर्चना की माँ और पिता जी दरवाज़ा खोलकर बाहर आए।
समीर के पिता भौचक्क थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस मकान में क्या कर रहे हैं। तभी अर्चना के पिता उनके नज़दीक पहुँचे और बाहें फैला दीं। -‘आपका दिल से स्वागत करते हैं समधी जी!’
-‘वो तो ठीक है, लेकिन ये मकान तो..।’ समीर के पिता ने कुछ कहना चाहा मगर उनकी बात पूरी होने से पहले ही अर्चना के पिता बोले -‘आप ठीक सोच रहे हैं समधी जी! ये मकान सारिका के पिता का ही था लेकिन सारिका के विवाह में अधिक ख़र्च करने के कारण उन्हें बेचना पड़ा और आप की महानता के कारण हमने अर्चना के दहेज़ के लिए जोड़े गए पैसे से यह मकान ख़रीद लिया है।’

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