अमन कुमार त्यागी
आसपास के सभी लोग उसे गुलाबों के बादशाह के रूप में ही जानते थे। उसका असल नाम क्या है? अब तो स्वयं उसे भी स्मरण नहीं रहा। मुश्किल से तीन वर्ष का रहा होगा, जब उसके माँ-बाप ने उससे सदा के लिए विदा ले ली थी। इस भरी दुनिया में वह नितांत अकेला था। उसकी उम्र लगभग पैंसठ वर्ष हो चुकी है। विवाह के अनेक प्रस्तावों के बावजूद उसने कुँवारा ही रहना उचित समझा। मन लगाने के लिए उसके पास बड़ा सा गुलाबों का बगीचा है। कहा जाता है कि जब उसके माता-पिता ने उससे विदा ली थी, तब वह इसी बगीचे में था। यह बगीचा उस वक़्त उतना ख़ूबसूरत नहीं था, जितना कि आज है। तब व्याधियां भी अधिक थीं और उसके माता-पिता इस बगीचे की देखभाल भी उचित प्रकार से नहीं कर सके थे। पड़ोसियों के जानवर इस बगीचे में आते। जहाँ अच्छा लगता मुँह मारते और जहाँ मन करता गोबर करते और फिर चले जाते। हद तो ये हो गई कि बाद में एक दो सांडों ने इस सुंदर बगीचे को अपना आशियाना ही बना लिया। गुलाबों के बादशाह के माता-पिता इन सांडों से मरते दम तक अपने बगीचे को आज़ाद नहीं करा सके। आज गुलाबों का बादशाह अपने बगीचे को साफ़-सुथरा रखता है। क्या मजाल एक भी पड़ोसी जानवर उसके बगीचे में घुस आए। उसके बगीचे में आज तरह-तरह के गुलाब हैं, जो दूर तक अपनी ख़ुशबू बिखेरते हैं। गुलाबों का बादशाह कहता है- ‘मैं अपने बगीचे में किसी को घुसने नहीं देता, और मेरे गुलाबों की ख़ुशबू को कोई रोक नहीं पाता।’
यह कहते हुए वह कभी-कभी गंभीर भी हो जाता है। स्मृति में खोया वह कहता है- ‘मेरे माँ-बाप के जाने के बाद यहाँ बहुत लोगों में आपसी झगड़े हुए। कोई इस बगीचे में अपने घर का कूड़ा डालना चाहता था, तो कोई उपले पाथने के लिए पथवारा ही बनाना चाहता था। सब अपने-अपने तरीके से कब्ज़ाने का प्रयास कर रहे थे।’ बताते-बताते वह एकाएक मुस्करा उठता है। वह अपने आप से सवाल करता है -‘परंतु हुआ क्या?’ फिर अपने आप ही जवाब भी देता है- ‘बर्बाद हो गए सब। आपसी झगड़ों में कई मारे गए, जो बचे वो अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं।’
गुलाबों का यह बादशाह आपसे बातें करते-करते अचानक उठता है और जब वापिस आता है तो उसके हाथ में गुलाब के दो चार पत्तों के सिवा कुछ नहीं होता। आप उससे प्रश्न भी नहीं कर पाएंगे कि वह स्वयं ही उत्तर दे देता है- ‘बुरा नहीं मानिए साहब, मैं लापरवाह नहीं हूँ और न ही मुझे अपने बगीचे में किसी प्रकार की गंदगी ही पसंद है।
गुलाबों का यह बादशाह बड़ा ही विचित्र जीव है। वह गुलाबों की कटाई-छँटाई नहीं करता और एक पत्ते को भी ज़मीन पर नहीं गिरे रहने देता। पत्तों को वह एक गड्ढे में डालता जाता है। जिसमें ये पत्ते सड़कर खाद बन जाते हैं। वह बताता है- ‘बगीचे में जो पत्ते बेकार हो जाते हैं, मैं उनसे भी काम लेता हूँ।’
गुलाबों के इस बादशाह की विचित्रता तो देखिए कि इसके शरीर का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं है, जहाँ कोई निशान न हो। हर तरफ़ से कटा-फटा। अभी भी कई अंगों से ख़ून टपक रहा है। वह धरती से कुछ मिट्टी उठाता है और ख़ून निकलने वाली जगहों पर मलते हुए मुस्कुराता है -‘क्या बताऊँ साहब? जगह-जगह कांटे चुभ जाते हैं।’ बताते हुए वह गंभीर हो जाता है और पूछता है- ‘आपको तो यहाँ के कांटे नहीं चुभे साहब?’
आप जवाब भी नहीं दे पाते कि उससे पहले ही वह बोल उठेगा- ‘आप यहाँ की ख़ुशबू लीजिए जनाब, यहाँ के कांटे आपको नहीं चुभेंगे।’
गुलाब का फूल होता ही प्यारा है। उसे देखकर भला किसका जी नहीं ललचाता। बहुत से व्यक्ति होते हैं, जो गुलाब के ताजे फूल को अपने कोट में लगाने को अपनी शान समझते हैं। बहुत सी यौवनाएं होती हैं, जो गुलाब के फूल को अपने केशों में लगाकर प्रफुल्लित हो उठती हैं। बच्चों को नहीं पता, गुलाब क्या होता है? मगर उन्हें भी गुलाब का फूल सबसे अधिक प्रिय होता है। आज कल तो हाल ये है कि हर कोई गुलाब सा दिखने के लिए ब्यूटिपार्लर के धंधे में चार चाँद लगा रहा है। यहाँ तक कि सारा संसार गुलाबी हो जाने को तत्पर है।
इस गुलाबी बगीचे को देखकर जो आनंद आता है। वह अद्वितीय है। बाहरी लोग इस बगीचे की तुलना में अनेक बगीचे लगा रहे हैं। यहाँ तक कि ख़ूबसूरत रात को गुलाबी रात और ख़ूबसूरत मौसम को गुलाबी मौसम भी कहा जाने लगा है। अंग्रेजों ने इसकी ख़ूबसूरती को देखते हुए ‘पिंक’ शब्द दिया है। पिंक नाइट, पिंक कलर, पिंक वल्र्ड और न जाने क्या-क्या?
गुलाबों के बादशाह के इसी बगीचे में विभिन्न प्रकार के गुलाब हैं। गुलाबों का बादशाह बातों-बातों में बताता है- ‘इस बगीचे का हर गुलाब आपको एक से बढ़कर एक लगेगा। मगर...।’ कहते-कहते गुलाबों के बादशाह की जुबान लड़खड़ाने लगती है। वह चंद पलों के बाद नियंत्रित हो जाता है और फिर किसी भयानक दर्द को छिपाते हुए मुस्कुराने का प्रयास करता हुआ कहता है- ‘ठीक है, अब आप जाइए, मुझे बहुत काम करने हैं।’
-‘मैं इस बगीचे में घूमकर गुलाबों को देखना चाहता हूँ।’ यह बात सुनते ही वह जमकर खड़ा हो जाता है और दृढ़ता के साथ कहता है- ‘बस दूर से ही देखना, कोई मेरे गुलाबों को छूकर देखे, ये मैं सहन नहीं कर पाऊँगा।’
‘जी अच्छा, मैं दूर से ही देखूँगा।’ सहमति के साथ ही वह भी अपनी सहमति दे देता है।
अब उसके साथ उसके ख़ूबसूरत बगीचे में घूम रहे हैं। वह जिस पथ पर चल रहा है, उसे राजपथ कहता है। वह बताता है, यहाँ का हर पथ मेरे राजमहल तक जाता है। गुलाबों का बादशाह बगीचे के बीचो-बीच एक झोपड़ी में रहता है, जिसे वह अपना राजमहल कहता है।
वह अपने गुलाबों की तारीफ़ करते हुए थकता नहीं। उसके इस बगीचे में संपूर्ण भारत में पाए जाने वाले गुलाब मौजूद हैं। अभी पिछले दिनों उसने एक गुलाब विदेश से भी मंगवाया है। इसके बारे में वह कहता है- मेरा यह गुलाब इतना सोहणा है कि सभी के मन को मोह लेता है।’
एक और गुलाब की ओर इशारा करते हुए वह बताता है- ‘यह गुलाब देखो, मोटा है, मगर इसकी माया निराली है, जो भी इसे एक बार देख ले, वो इसे बार-बार देखना पसंद करता है। इसी के बराबर में एक और नरम-मुलायम सा गुलाब दिख रहा है, मगर यह उतना मुलायम भी नहीं है, जितना कि देखने में लगता है और उससे आगे... वो पीछे वाला, देखो, उस गुलाब की सदा जय-जय होती है, और उसके बाये, वो सफेद वाला गुलाब बड़ा ही ममतामयी है।
वह अपने गुलाबों की तारीफ़ें करता जाता है और देखने वाला हैरत से देखता है। वह प्रसन्नचित्त हो कहता है-‘वह देख रहे हैं आप, काला गुलाब, मैं उसकी जड़ में प्रतिदिन मांड डालता हूँ। उसका वृक्ष बड़ा है। इतना बड़ा कि उसके नीचे दो-चार बालक भी आराम से खेल सकते हैं। और उसी के बराबर में वह लंबा सा गुलाब, इसे मैं राजा कहता हूँ। यह किसी मोबाइल टावर की तरह लंबा लगता है। राजा के पीछे वाला गुलाब बड़ा प्यारा है। यह बड़ा सुख देता है। इतना सुख जो रामराज में ही मिला हो सकता है।’
एकाएक गुलाबों का बादशाह पीछे मुड़ता है और एक पौधों की ओर इशारा करते हुए कहता है-‘यह गुलाब कमाल का है, कहा जाता है कि ये दिग्दिगंत विजयी है।’ बताते हुए वह अपनी झोंपड़ी की ओर बढ़ता है। जहाँ अनेक छोटे-छोटे गुलाबों के पौधे उग रहे थे। जिन्हें देखकर गुलाबों का बादशाह गर्व के साथ कहता है-‘ये मेरे बगीचे का भविष्य हैं।’
बात करते हुए वह झोंपड़ी में घुस जाता है। बाहर से ख़ूबसूरत लगने वाली झोंपड़ी अंदर से बड़ी ही अस्तव्यस्त लग रही थी। सभी सामान दाएँ-बाएँ बिखरा पड़ा था। प्रतीत हो रहा था कि यहाँ कोई दंगा-फसाद हुआ है। गुलाबों का बादशाह मुस्कुराता हुआ बताता है-‘यही मेरा महल है, जहाँ बैठकर मैं अपने बगीचे को संवारने की योजनाएँ बनाता हूँ।’
आप गुलाबों के बादशाह की बातें सुनकर आश्चर्य में पड़ सकते हैं। कभी वह आम आदमी नजर आता है और कभी बड़ा दार्शनिक।
झोंपड़ी की विशेषता बताते-बताते गुलाबों के बादशाह के हलक से चीख़ निकल पड़ती है और वह वहीं ज़मीन पर बैठ जाता है। उसके दोनों हाथ अपने दाए पैर के तलवे की ओर बढ़ते हैं। उसके तलवे में एक काँटा चुभा था। काँटा बड़ा ही कसैला था। वह उस कांटे को निकालता है और एक तरफ़ फेंक देता है। उस स्थान पर काँटों का ढेर है। वह पुनः मुस्कुराने का प्रयत्न करते हुए कहता है-‘आप तो गुलाबों की ख़ुशबू लीजिए साहब! काँटे इस झोंपड़ी को मुबारक।’