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कोकाकोला

जरा ये सामान देना
मैं कुछ सामान लेने के लिए किराना स्टोर गया था।किराना स्टोर हमारी कॉलोनी के सामने वाली कॉलोनी में है।होने को तो हमारी कॉलोनी में भी कई दुकानें है।पर वहा पर सब सामान मिल जाता है।उस दुकान के पास में ही सिंधी समाज का आश्रम भी है।सत्संग प्रवचन तो वहाँ रोज होते रहते है।लेकिन उस दिन उनके गुरु का शायद जन्म दिन था।इसलिए बहुत बड़ा आयोजन था।आश्रम के बाहर कालोनी की सड़क पर भी टेंट लगे थे।कुर्सियां लगी थी।माइक लगे थे।और जगह जगह खाने पिनेजे स्टाल लगे थे।जश्न का माहौल था।मैं दुकान पर खड़ा सामान ले रहा था।तभी एक सरदारजी आकर बोले,"दो कोकाकोला भी देना।"
दुकानदार ने सामान देने के बाद दो कोकाकोला की बोतल भी निकाल दी थी।सरदारजी एक बोतल उठाकर पीने लगे। कुछ देर बाद उनकी बीबी आयी थी।सरदारजी बोले,"बोतल ले लो।"
"कोकोकोला लिया है।"
दो घुट पीने के बाद वह बोली,"बहुत तेज है।"
"अरे पियो।"
"नही पी पाऊंगी।"और सरदारनी ने बोतल रख दी।
"नही पी रही।"
सरदारजी ने अपनी बोतल खत्म करने के बाद पत्नी की बोतल उठायी और वह पीने लगे।पत्नी की झूठी कोकोकोला पीते हुए देखकर मुझे अपना अतीत याद आ गया।
अतीत जीवन का हिस्सा होता है।अतीत हर आदमी का होता है।अतीत कुछ खट्टी कुछ मीठी यादों का गुलदस्ता होता है.
मेरी शादी सगाई के डेढ़ साल बाद हुई थी।उसकी वजह थी शुभ मुहूर्त न निकलना।उन दिनों मेरे श्वसुर एक छोटे से स्टेशन खान भांकरी पर स्टेशन मास्टर थे।यह स्टेशन अब नही है।पहले दिल्ली अहमदाबाद मीटर गेज थी।बाद में गेज परिवर्तन होने पर इस स्टेशन को खत्म कर दिया गया।
बहुत छोटा स्टेशन था।उस समय वहां लाइट भी नही थी।केवल पैसेंजर ट्रेन ही उस स्टेशन पर रुकती थी।मुश्किल से दस या पन्द्रह आदमी ट्रेनों में चढ़ते या उतरते थे।लेकिन मेरे श्वसुर ने उस छोटे से स्टेशन पर शादी धूमधाम से की थी।लाइट व सारे प्रबन्ध किये थे।टेंट, क्रॉकरी,फोटोग्राफी सब कुछ।
शादी के बाद पत्नी आयी और दो दिन रहकर विदा हो गयी।और मैं भी साथ गया था और दूसरे दिन वापस ले आया।ऐसा जल्दी जल्दी देव सोने की वजह से किया जा रहा था।
खैर उसके कुछ दिन बाद मैं पत्नी के साथ ससुराल गया था।जैसा मैंने बताया उन दिनों मेरे श्वसुर छोटे से स्टेशन पर पोस्टेड थे।जहाँ पर न बाजार था,न बस्ती।वस स्टेशन और कुछ स्टाफ क्वाटर
उन दिनों मनोरंजन का सस्ता साधन पिक्चर थी।ये भी सिर्फ शहरों में क्योकि सिनेमा हॉल वहीं होतेथे।
मेरी सास अपने बेटे विमल से बोली,"इन्हें जयपुर घुमा लाओ।
और अगले दिन हम यानी मेरा दो,तीन,और चार नम्बर का साला,मैं और मेरी पत्नी सुबह की पैसेंजर ट्रेन से जयपुर गए।और हम दस बजे जयपुर पहुच गए थे।
पिक्चर का पहला शो बारह बजे शुरू होता था।उससे पहले हम घूमे और खाना खाया था।उसके बाद हम 12 बजे वाला शो देखने के लिए पहुँच गए।बीबी के साथ पहली पिक्चर देखी वो थी,अमिताभ और जया भादुड़ी की जंजीर।और यह पिक्चर खत्म होने पर हम दूसरी पिक्चर तीन बजे की धर्मेंद्र और मुमताज की लोफर देखने पहुच गए थे।
पिक्चर खत्म होने पर स्टेशन आ गए।ट्रेन रात8 बजे थी।हम खाना खाने के लिए आर आर में आ गए थे।आते ही मेरे बड़े साले ने 5 कोकाकोला मंगा ली थी।हम पीने लगे।मेरी पत्नी ने कुछ घुट पीकर रख दी।मैं बोला,"क्या हुआ?
"तेज है नही पी पाऊंगी।"
"अरे पियो
नही
और मैं अपनी बोतल खाली करके बोला,"नही पी रही।"
और मैने कोकाकोला की बोतल उठायी और मैं पीने लगा

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