हवेली - 13 Lata Tejeswar renuka द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हवेली - 13

## 13 ##

दूर किसी मंदिर की घंटी की आवाज सुनाई दी। नाश्ता करते हुए मेंहदी इधर-उधर देखने लगी। “स्वागता तुमने सुना मंदिर की घंटी की ध्वनि आ रही है।”

"हाँ, दीदी मैंने सुना।"

"इस जंगल में भी मंदिर है, आश्चर्य की बात है न ?”

"इसमें आश्चर्य होने वाली क्या बात है? जैसे हवेली में लोग रहते थे, वैसे ही उनकी पूजापाठ के लिए मंदिर भी हो सकता है न ।” अन्वेशा ने जवाब दिया।

"लेकिन बुद्धू हवेली में जो रहते थे वे मुसलमान थे। यहाँ मुसलमान राजा रहा करते थे।" स्वागता ने अन्वेशा की बात को काटते हुए कहा।

"लेकिन गाँव के लोग भी तो रहते होंगे।" अन्वेशा ने अपनी बात को साबित करने कहा।

"हाँ, लेकिन यहाँ तो कोई गाँव का चिह्न भी नहीं है। "

"हो सकता है, कुछ दूरी पर हो ।"

"चलो चौकीदार काका से ही पूछ लेते हैं। वही बता सकते हैं।” स्वागता ने जानने की इछुक थी।

"चल अब ब्रेक खत्म हो गया है। हमें अपना काम पूरा कर लेना चाहिए, सुनील सर इंतजार करते होंगे।"

"जरूर।" सभी एक-एक कर वहाँ से चले गए।

मेंहदी ने रघु काका से उस मंदिर के बारे में जानने की इच्छा जाहिर की। रघु काका ने बताया कि यहाँ से दो किमी दूरी पर है मंदिर, “अगर कच्चे रास्ते से जाना चाहें तो आधे घंटे में पहुँच सकते हैं।"

"अगर रास्ता भूल गये तो ?"

"नहीं बेटा, इस रास्ते से चले जाना फिर वहाँ से पहाड़ी रास्ता है,सीढ़ियों से ऊपर जाना बस माता जी का मंदिर है,आशीर्वाद लेकर लौट आना। बहुत पुराना मंदिर है। कभी कोई आते हैं तो मंदिर के दर्शन अवश्य करते हैं। तब तक मैं इन्हें वर्कशॉप दिखाकर ले आता हूँ।"

"तो फिर चलिए, यहाँ इनका काम खत्म होने से पहले हम जाकर लौट आएँगे।” अजनीश ने मेंहदी की तरफ देखकर कहा। रघु काका को बताकर दोनों वहाँ से निकल गये। रघु काका बाकी सबको लेकर वर्कशॉप की तरफ निकल पड़े।

कच्चे रास्ते के दोनों तरफ बड़े-बड़े वृक्ष थे । छोटे-छोटे कंकर-पत्थर से भरा एक पतला-सा रास्ता। जगह-जगह कँटीले वृक्ष। लग रहा था उस रास्ते का इस्तेमाल अक्सर न होने की वजह से कुछ-कुछ जगह धँस गई है। उन्हें ज्यादा दूर चलना नहीं पड़ा। कुछ ही दूर बाद पत्थर की सीढ़ियाँ नजर आने लगी। मंदिर का ध्वज भी दिखने लगा।

"लगता है हम सही रास्ते पर हैं।” अजनीश।

“हाँ जल्द ही पहुँच जाएँगे।” मेंहदी । दोनों ही चुपचाप चल रहे थे। अचानक अजनीश का मोबाइल बजने लगा। अरे यहाँ सिग्नल है। कहते हुए फोन उठाकर "हैलो" कहा।

"अजनीश मैं शेखर, कैसे हो ?"

"हाँ सर, यहाँ सब ठीक है। बच्चे भी ठीक हैं। सिग्नल नहीं था इसलिए आपसे संपर्क नहीं कर पाया। आप चिंता मत कीजिए अन्वेशा बिल्कुल ठीक है। हैलो... सर आपकी आवाज़ ठीक से सुनाई नहीं दे रही है।" लाइन कट गई। अजनीश बार-बार कोशिश करता रहा लेकिन नाकामयाब रहा।

माता जी के दर्शन कर दोनों कुछ देर वहीं बैठे रहे। मंदिर पहाड़ की चोटी पर बना हुआ था। वहाँ से जिस किसी ओर भी नजर डालो सिर्फ वृक्षों से भरा जंगल ही दिखाई दे रहा था। जनशून्य उस जंगल में नीरव शांति राज कर रही थी। मेंहदी मंदिर के चारों ओर ध्यान से देख रही थी। मंदिर का कुछ अंश धँसने लगा है। जनजीवन से दूर प्रकृति के बीच इस मंदिर का ख्याल रखने वाला कोई नहीं है। मंदिर के सामने एक मंडप बना हुआ है जिसकी चारों दिशा खुली हुई है और चार कोने में चार स्तंभ बनाए हुए हैं। बिना कोई छत स्तंभ आकाश को चूमते हुए नजर आते हैं। मंदिर के चारों ओर देखने के बाद मेंहदी अजनीश से कुछ दूरी पर एक जगह बैठ गई। अजनीश ने पूछा, "कैसी लगी ये जगह ?”

“अच्छी है। ताजगी भरी हवा और प्रकृति के सौंदर्य से भरपूर और हाँ यहाँ पहाड़ के नीचे देखिए वहाँ कुछ है। लगता है मस्जिद है।"

"हवेली के लोग अक्सर यहाँ नमाज अदा करने जाया करते थे।" पीछे से आवाज आई। दोनों ने उस तरफ देखा। ८० साल की एक औरत लाल साड़ी पहने हुई है। शरीर का उर्ध्व भाग आगे की तरफ झुका हुआ है। एक लकड़ी के सहारे चलते हुए आ रही है।

"आप कौन हैं, क्या आप यहीं रहतीं हैं ? आप और क्या जानते हैं इस हवेली के बारे में।" सारे प्रश्न एक साथ कर बैठी मेंहदी। वह वृद्ध महिला गंभीर होकर कहने लगी। "अपने और अपने साथियों का भला चाहते हो तो जितना जल्दी हो सके यहाँ से वापस लौट जाओ।"

"लेकिन क्यों ? ऐसी क्या बात है हवेली में।"

"बस लौट जाओ। चले जाओ।" कहते हुए वह वृद्धा वहाँ से बड़े-बड़े कदम में चली गई। मेंहदी सोच में पड़ गई। पिछली रात का सारा किस्सा याद आया। 'अगर अजनीश को बता दें तो हो सकता है वह कुछ मदद कर सकता है और इसके लिए यही सही समय है।' तभी बिल्कुल पीछे से धड़ाम कर एक आवाज़ सुनाई दी।

पहले तो मेंहदी चौंक गई, लेकिन जब पीछे मुड़कर देखा हँसी समा न पाई। अजनीश के बूट केले के छिलके पर आ जाने से वह फिसलकर धड़ाम से गिर पड़ा। बिल्कुल उसी जगह पर जहाँ पूजा की सामग्री रखी हुई थी। पूजा में इस्तेमाल किए हुए हल्दी, कुमकुम उसके चेहरे पर आ गिरा। अजनीश का चेहरा कुमकुम से रंग गया।

मेंहदी अजनीश को इस हालत में देखकर जोर-जोर से खिलखिलाकर हँसने लगी। एक पल के लिए ऐसा लगा कि निस्तब्धता को चीरते हुए आकाश, जंगल, पेड़-पौधे, बादल खिलखिलाकर हँस रहे हैं। जंगल का माहौल हँसी की ध्वनि से गूँज उठा। अचानक ही आकाश,बादल,हवा रुककर इस बदलाव का स्वागत करने लगे। मेंहदी को हँसते हुए देख अजनीश यह भी भूल गया कि उसे जमीन से उठना है। मेंहदी ने मुश्किल से हँसी रोककर कहा, “लगता है आज आपके लिए अच्छा दिन है।”

"ऐसा क्यों ? इसलिए तो नहीं कि मैं गिर गया।"

“नहीं, नहीं कहते हैं न शादी जैसा पवित्र कार्य शुरू होने से पहले हल्दी की रस्म निभाई जाती है, इसलिए कह रही हूँ आज का शगुन अच्छा है।" हँसते हुए फिर कहा "क्या अब चलें, या आज यही सोने का इरादा है। "

अजनीश उठ खड़ा हुआ चेहरे पर लगी हल्दी को रुमाल से साफकर शरमाते हुए कहा, "हाँ, चलिए चलते हैं। "

‘‘अजनीश जी मैं आपसे कुछ कहना चाहती थी। आपकी सहायता लेना चाहती थी। लेकिन अब तो लगता है मुझसे ज्यादा आपको मेरी सहायता की जरूरत है।" कहते हुए अजनीश के सिर पर छिड़की हुई कुमकुम को अपने रुमाल से साफ किया।

"जी, थैंक्स, कहिए क्या बात है ? मैं ठीक हूँ।”

"आर यू श्योर ?”

"हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"

"कहने में मुझे कोई ऐतराज तो नहीं है, मगर डर है कहीं आप मेरी बात को हँसी में उड़ा न दें। पहले आप वादा कीजिए कि मेरी बात को ध्यान से सुनेंगे और सोच समझकर जवाब देंगे, क्योंकि मैं जो बताने जा रही हूँ वह विश्वास करने के लिए आसान नहीं है। मैं खुद भी हैरान हूँ और यह बात मेरी समझ से बाहर है।"

"कहकर तो देखिए। आपकी बात पर जरूर सोचूँगा।" उसने पिछली रात को बीती सारी घटना साफ-साफ बताई। अजनीश के लिए ये सब बातें समझना और विश्वास करना मुश्किल था। लेकिन उसने वादा जो किया है, इसलिए पूरी बात सुनने के बाद कहा, "आप जो कह रही हैं वह सब सुनने के लिए तो कहानी जैसा लग रहा है। इस पर विश्वास करना मुश्किल है। ऐसा भी हो सकता है कि नजर का धोखा हो,मेरा मतलब भ्रम हो ।” सोचते हुए कहा।

"भ्रम ?" कुछ देर चुप रहकर “मेरे लिए भी इस बात को जीर्ण करना आसान नहीं था। इस हवेली में कुछ तो है, जो विश्वास करना मुश्किल है, लेकिन यह सब सच है।"

अजनीश चुप रहा।

"अब भी आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं हो रहा है ना?" मैं समझ सकती हूँ, यही बात किसी और ने मुझसे कही होती तो शायद मैं भी विश्वास नहीं करती, लेकिन यह सब मैंने खुली आँख से देखा है।"

"आपकी बात समझने को कोशिश कर रहा हूँ। पर..."

"ठीक है, मैं आपको मेरी बात पर भरोसा करने नहीं कहूँगी। लेकिन अन्वेशा के साथ जो भी हुआ वह क्या था और अभी-अभी जो वह महिला कहकर गई क्या उसे आप नजरअंदाज कर सकते हैं।"

"हो सकता है अन्वेशा को नींद में चलने की आदत हो ?”

"हो सकता है,लेकिन वह औरत....?" कुछ देर चुप रहने के बाद वह कहने लगी, “शायद इन सब बातों की जानकारी रघु काका को जरूर होगी। क्यों न उन्हीं से पूछते हैं, सच्चाई पता चल जाएगी।"

"ये सब जानकर क्या होगा, हम तो दो दिन में जाने ही वाले हैं। "

"फिर भी अगर हम इतिहास के कुछ पन्ने को उलटकर देखना चाहें तो उसमें गलत क्या है? आगे जाकर हमें कोई नई जानकारी प्राप्त होगी, हो सकता है उससे हमें कोई मदद भी मिल सकती है। अगर इन दो दिनों में हम में किसी के साथ कुछ अनहोनी हो जाए तो....?"

" ऐसा कुछ नहीं होगा। आप निश्चिंत रहिए।"

" अभी दो दिन और हैं यहाँ, हमें यहाँ से ठीकठाक जाना होगा। इसलिए कुछ करना होगा। आपको यह नहीं लगता कि इसके तह तक पहुँचना जरूरी है। नहीं तो अगर हममें से किसी के साथ कोई अनहोनी हो जाए तो हमें पश्चाताप करने का भी मौका नहीं मिलेगा।"

"क्या-क्या सोच लेती हैं आप। ठीक है आप जैसा कहें चौकीदार से मिलना है तो जरूर मिलेंगे।" अजनीश ने ना चाहते भी कहा। ठीक उस समय बिजली कड़कने लगी।

"लगता है बारिश होने को है।" अजनीश ने आकाश की तरफ देखते हुए कहा। "चलिए चलते हैं। बादल भी नजर आ रहे हैं। बारिश शुरू हो उससे पहले हवेली पहुँचना जरूरी है।" बात को वहीं खत्म कर एक बार भगवान के सामने नतमस्तक होकर दोनों वापस चले। कुछ ही देर में वे अपनी टीम में शामिल हो गये। फिर हवेली में लौट आए।

*****

रात नौ बजे बारिश शुरू हो गयी। टिप-टिप से अचानक ही बारिश ने जोर पकड़ लिया। जंगली फूलों के साथ भीगी-भीगी मिट्टी की खुशबू चारों दिशा में फैल गई। हवेली के चारों ओर पानी की बूँदें बिखरकर मिट्टी को भिगोने लगी। सूखी हुई मिट्टी पर बारिश की बूँदें गिरने से मिट्टी की सौंधी-सौंधी खुशबू हवा में फैलने लगी।

मेंहदी हवेली के बाहर सीढ़ियों पर आ खड़ी हुई। भीगी-भीगी मिट्टी की खुशबू, ठंडी हवा और हल्की-सी बूँदे मन को आल्हादित कर रहीं थीं। माँ की याद आई पता नहीं कैसी होगी और क्या कर रही होंगी? जब से होश सँभाला है तब से माँ को कभी अकेला नहीं छोड़ा। जब भी बारिश होती थी घर में बैठकर तीनों कैरेम्स खेलते थे। माँ चाय और गरम-गरम पकौड़े बनाकर लाती थी और तीनों मिलकर चाय के साथ पकौड़े का मजा लेते खेलते थे। आज भी इस मौसम में माँ की याद तो आनी ही थी।

स्वागता ने पीछे से आकर मेंहदी के काँधे पर सिर रखकर दोनों हाथों से मेंहदी को जकड़ लिया।

“दीदी, माँ की बहुत याद आ रही है न ।”

"हूँ, पता नहीं क्या कर रही होंगी? लेकिन तू सोई नहीं अब तक ?" स्वागता का सिर को सहलाते हुए कहा।

“नींद नहीं आ रही थी। सोचा आपसे कुछ देर बात करूँ।'

"लेकिन आप यहाँ अकेली अकेली क्या कर रही हो ?"

"बस यूँ ही, इतने सुहाने मौसम में नींद कैसे आएगी भला ?"

“दीदी, सच कहिए ये जगह आपको कैसी लगी ?"

"बहुत अच्छी ।"

"है ना, मुझे भी।

"जा, बहुत रात हो गई है, जाकर सोजा, अन्वेशा भी अकेली होगी।”

"आप भी चलिए न।"

"तुम चलो, मैं थोड़ी देर में आती हूँ।"

जल्दी आइए, आपके बगैर नींद नहीं आएगी।"

"ठीक है" स्वागता चली गई।

अचानक मेंहदी के मन को एक सूनापन घेर गया। इस सूनेपन को भरने दिल को न जाने किसकी तलाश है। कुछ हलचल है जो एक साथी की कामना करता है। एक ऐसा साथी जिसके प्यार से उसकी जिंदगी खिल उठे। जो उसकी कदर करता हो, अच्छे-बुरे का ख्याल रखता हो, सही समय पर सही सुझाव देकर हर वक्त साथ होने का एहसास देता हो। ऐसी कोई बात जबान से कहने की जरूरत नहीं होती, दिल उस दिल को खुद-ब-खुद पहचान जाता है, जो उसके लिए खुशी या दर्द महसूस करता है।

एक सच्चा प्यार तब मिलता है जब कोई किसीसे दिल से चाहता हो। वीणा के तार को छेड़ने से उत्पन्न होने वाले कम्पन धमनियों में विद्युत की लहर खिला दें। उस कम्पन से उपजी धड़कन रोम रोम प्यार का एहसास जगाए, जिसका इंतज़ार इंसान को जीवन भर रहता है। क्या उसे भी कोई ऐसा साथी मिलेगा ? सोचते हुए पानी के बुलबुलों के साथ खेलने लगी।

सभी अपने-अपने कमरे में बैठे हुए थे। बारिश के कारण कोई बाहर नहीं आ रहा था। निखिल, मानव, अभिषेक, जुई, स्वागता और अन्वेशा एक साथ पत्ते खेल रहे थे। पानी के बुलबुलों के साथ खेलती हुई मेंहदी को अजनीश का आना पता नहीं चला। वह अपने आप में खोई हुई है।

"आप अकेले यहाँ ?” मेंहदी ने पीछे मुड़कर देखा अजनीश खड़ा है ।

“क्या सोच रही हैं ?

"कुछ नहीं बस ये बारिश को देख रही थी। उछलते-कूदते यह बारिश की बूँदे, टिप-टिपाते हुए कहीं दूर से आती हैं और धरती की गोद में सिर रखते ही मिट्टी में घुल जाती हैं। फिर भी इस मिट्टी से उन्हें कोई शिकायत नहीं, मिट्टी में घुलकर अपना बनाकर साथ-साथ बह जाते हैं एक अविच्छिन्न साथी की तरह। जिंदगी की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह भटकते हुए राही सी, एक औरत का जीवन भी कितना मिलता जुलता है ना इन बूँदों से।

"क्या कभी बारिश की बूँदे अपने लक्ष्य तक पहुँच पाएँगी ?" अजनीश ने पूछा।

"पता नहीं। जिंदगी की तलाश में निकला हर राही अपने लक्ष्य तक पहुँच सकेगा ये तो जरूरी नहीं है। कभी-कभी जिंदगी को तलाश करते-करते इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो जाते हैं।"

"जैसे कि आपके बाबू जी ?" अचानक ही प्रश्न कर बैठा अजनीश। मेंहदी चौंक गई, “मैं नहीं मानती, न ही कभी इस बारे में सोचने का प्रयास किया है। "

“अगर सोचा नहीं है तो सोचिए मेंहदी जी क्या मजबूरी होगी आपको जन्म देने वाले आपके बाबू जी की। आज तक वह उस लक्ष्य को ढूँढते-ढूँढते कहीं भटक तो नहीं रहे?" जिसकी तलाश में वह घर छोड़े थे। ... फिर उन आँखों के सपनों का क्या? जो आज तक उनके इंतज़ार करते-करते थक गई हैं। क्या आप नहीं चाहोगे कि आपकी माँ के चेहरे पर मुस्कान खिल उठे। कभी उनकी नज़र से देखा है, कितनी बेबस हैं वह। आपके पिताजी का घर छोड़ने का कारण कभी जानने की कोशिश की है आपने?”

“नहीं, जानना भी नहीं चाहती। मेरी माँ के सारे दर्द की जड़ वही तो हैं।"

"हाँ, ठीक कहा आपने, सारे दर्द की जड़ वही हैं। जब कोई अपनों से बिछड़ जाता है उस दर्द को भूलना आसान नहीं होता है। यह बात आपके पिताजी पर भी लागू होती है ना। क्या आपको लगता है आपके पिताजी घर छोड़कर खुश रहे होंगे, नहीं। क्या एक बेटी होने के नाते आपका यह फर्ज नहीं बनता कि अपनी माँ को यह खुशी दें जो कि बरसों पहले खो चुकी है।” मेंहदी चुपचाप सुनती रही। अजनीश की बातों में सच्चाई नजर आयी। सही कर रहा है अजनीश जो बात अब तक वह खुद सोच भी नहीं पाई, आज अजनीश ने कुछ ही शब्दों में उसे ज़िंदगी की सच्चाई को साफ-साफ आईने की तरह दिखा दिया।

आज तक वह क्यों यह सोच नहीं पाई? हमेशा वह पिताजी को दोषी मानती आई है। उसका कारण कभी जानने की कोशिश भी नहीं की। उनकी मजबूरी क्या थी, किस हाल में उन्हें घर छोड़ना पड़ा, इस बात पर कभी गौर नहीं किया। सुना था कि वह बुआ जी की बात पर माँ से रूठ कर घर छोड़कर चले गए।

“चलिए छोड़िए आप अकेले-अकेले यहाँ ?" इस गंभीर माहौल से निकलते हुए कहा।

"मेरी छोड़िए आप यहाँ कैसे ?"

"खिड़की से देखा आप यहाँ अकेली बाहर खड़ी हैं तो साथ देने मैं भी आ गया। वैसे मुझे भी बारिश को देखना बहुत अच्छा लगता है।" दोनों कुछ देर चुप रहे। अजनीश ने चुप्पी तोड़ी।

"स्वागता और अन्वेशा अच्छी सहेली हैं।"

"हाँ, एक-दूसरे को बचपन से जानती हैं। "

"बुरा नहीं मानों तो एक बात पूछूँ।”

"जी पूछिए।"

"क्या आपको समझने वाला, मेरा मतलब अब तक कोई लड़का आपको पसंद नहीं आया?"

"मतलब ?”

"आपने जो अभी तक शादी नहीं की।"

“आपने भी तो अभी तक शादी नहीं की तो क्या मैंने आपसे कोई सवाल किया?" अजनीश को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा।

"नहीं, लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि आप आगे क्या करना चाहती हैं ?"

"जानकर क्या करेंगे ?"

"बस ऐसे ही, बताना न चाहो तो कोई बात नहीं ।”

"पता नहीं, जिंदगी बहुत लंबी है, वह जहाँ ले जाए।"

"लेकिन कभी न कभी तो अपना घर बसाने के बारे में सोचना ही पड़ेगा, तो अभी क्यों नहीं?" मेंहदी ने अजनीश की ओर गौर से देखा। अजनीश ने ठीक उसी वक्त यह सवाल किया जब कि वह खुद इस बारे में सोच रही थी।

"आप मुझे ऐसे क्यों देख रही हैं ?"

"नहीं कुछ नहीं, हाँ, क्या कह रहे थे आप ?"

"ठीक है, सीधा-सीधा पूछता हूँ, क्या आपने शादी के बारे में कुछ सोचा है? "

"किसकी ?" अनजान बनते हुए कहा ।

"अवश्य आपकी और किसकी ।" सोचा

‘‘हाँ, सोचना तो पड़ेगा, जब कोई ऐसा मिल जाए तब।" कुछ क्षण चुप रहने के बाद धीरे से कहा।

“अब क्यों नहीं ?"

"मतलब ?” आड़े आँख से अजनीश की तरफ देखते हुए पूछा ।

"मतलब? आपको कैसा साथी चाहिए, पाँच फुट दस इंच होना चाहिए या लंबा, रंग गोरा हो या काला, मेरा मतलब मेरे जैसा हो तो चलेगा? कितनी कमाई होनी चाहिए? बीस या पच्चीस हजार या और ज्यादा, वगैरह वगैरह ?"

“क्यों आप ढूँढेंगे मेरे लिए जीवनसाथी ?" मुस्कुराते पूछी।

“अगर इज़ाजत हो ।"

"कोई जरूरत नहीं। जब मिलना होगा अपने आप ही मिल जाएँगे।"

“मतलब मुझे कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं है।"

"जी हाँ, ठीक समझा आपने। फिलहाल इतना सोचिए कि कल हमें रघु काका के घर जाना है।"

"जी, जैसे आपकी आज्ञा।" मुस्कराते हुए कहा।

“वैसे तो आपने सब कुछ मुझसे पता कर ही लिया। अब अपने बारे में बताइए कि आप कब शादी कर रहे हैं।" इस बार मेंहदी ने प्रश्न किया।

“मैं ? जब होगी, तब होगी।"

"क्यों अब तक कोई पसंद नहीं आई ?"

"न तो नहीं कह सकता, लेकिन एक तरफ से पसंद होना या न होना कोई मायने नहीं रखता।"

"मैं बात करूँ। बताइए कौन है वह ?"

"जाने दीजिए, देखिए बारिश भी बंद हो गई।" टॉपिक चेंज करते कहा।

"नहीं नहीं, बताइए, मैं भी देखती हूँ आपकी पसंद कैसी है?" मन में शंका थी फिर भी जानने की चाह, क्या कहेगा अजनीश।

"नहीं, अभी नहीं, समय आने पर सबसे पहले आपको ही बताऊँगा।” अजनीश ने कहा।

"वादा?"

"हाँ वादा ?"

"ठीक है, बहुत रात हो गई है। अंदर चलते हैं।" मेंहदी ने भी मुस्कराते हुए कहा।

"हाँ, चलते हैं। गुड नाईट।" कहकर पीछे मुड़ते हुए रुक गई मेंहदी

"थैंक्स..." अजनीश को देखते हुए कहा।

"..थैंक्स..... किस लिए ?” अजनीश ने मेंहदी की आँखों में आँखें डालकर हुए पूछा।

"पिताजी के बारे में मेरी गलत भावनाएँ दूर करने के लिए।” मेंहदी की आँखों में छिपे कृतज्ञता भाव को समझ गया अजनीश।

"यू आर वेलकम, ओके गुड नाईट" कहकर अजनीश आगे बढ़ गया। "गुड नाईट।" दोनों अपने-अपने अपने कमरे में चले गये।