नीलम कुलश्रेष्ठ
शिक्षा क्षेत्र की एक घटना ने देश को चौंका दिया। शांति निकेतन के छात्रों ने नारकोटिक्स व साइकोट्रौपिक ड्रग्स का इस्तेमाल कर अश्लील सीडी बनाई थी । जाहिर है, ऐसी सीडी का निर्माण किसी को ब्लैकमेल किये जाने के लिये या विदेशों में ऊँचे दामों पर बेचे जाने के लिये किया जाता है ।
शांति निकेतन भारतीय संस्कृति व साहित्य की आत्मा है। शिक्षा व संस्कारों की तपोभूमि में ऐसी घिनौनी हरकत? विश्वास करना मुश्किल हो रहा था। नशे के लिये शराब का अनेक तरह से इस्तेमाल प्रचलित है। अफीम, गांजा व चरस का इस्तेमाल तो युगों से होता आया है लेकिन इधर साइकोट्रौपिक ड्रग्स का उपयोग अपराधों की दुनिया में जिस तेज़ी से बढ़ रहा है, उसे देखकर आश्चर्य होता है।
शांतिनिकेतन ही क्यों दूरदर्शन पर देखी कितनी घटनाओं के फ़्लैशबैक आँखों में चमक जाते हैं-
1. शहर में फ़ार्म हाउस में ‘रेन पार्टी’ पर छापा । अनेक युवक-युवतियाँ ड्रग्स के नशे में चूर मिले।
2. मिस आगरा का 3 युवकों ने अपहरण कर लिया और पुलिस की मदद से जब उसे मुक्त कराया गया तो उसके पिता ने बताया इसे कोई तंत्रमंत्र का सफ़ेद पाउडर खिलाया जाता था, जिससे वह वही बोलती थी जो इसे बोलने के लिये कहा जाए, वही करती थी जो करने के लिये कहा जाये ।
3. एक युवक को उसके कुछ समलैंगिक दोस्त जबरन नशीली दवाएं खिला कर इसलिये अपने समूह में शामिल करना चाहते थे क्योंकि उस लड़के पर किसी मंत्री का दिल आ गया था । वह मंत्री उस लड़के को प्राप्त करने के लिये कितना भी पैसा देने को तैयार था । जब वह लड़का किसी तरह काबू में नहीं आया तो उस के हाथपैर तोड़ दिये ।
4. कुछ लड़कियाँ दुबई में बेची गईं। जब पुलिस ने उन्हें मुक्त कराया तो उन्होंने बताया कि गुंडे उन्हें जबरन सफ़ेद पाउडर खाने के लिये देते थे। उसे खाने के बाद वह वही बोलती व करती थीं, जो उनसे कहा जाता था ।
5. एक तांत्रिक ने बीमार व्यक्ति की बीमारी दूर करने के लिए उसके घर यज्ञ करना शुरू किया। पूजा के बाद वह उसकी पत्नी को विशेष प्रसाद खिलाता था । वह स्त्री उस तांत्रिक के प्रेम में इतनी दीवानी हो गई कि शादी के 7 वर्ष बाद वह ‘तलाक’-‘तलाक’ की रट लगाने लगी । तांत्रिक इस चक्कर में रहता था कि वह व्यक्ति अपना मकान उसके नाम कर दे। दरअसल वह उसकी पत्नी को नशीली दवा खिलाता था फिर उसे नशे में प्यार व सेक्स की बातें करके मानसिक ढंग से तैयार करता था।
ये घटनाएं या इनसे मिलती-जुलती घटनाएं, आज के समाज का बेहद कड़वा सच हैं। इनके जाल में कब कौन कहाँ फँस जाए, पता नहीं। वे कौन-सी नशीली गोलियाँ या पाउडर हैं जिनसे अच्छा खासा आदमी रोबोट बन जाता है और अपराधी उसे अपनी उँगली पर ऐसे नचाता है कि जैसे वह कठपुतली हो ?
इन नशीली दवाओं की उत्तेजना में कुछ लोग शारीरिक सहारा ढूँढ़ते हैं, तो कुछ नशे में इतने डूब जाते हैं कि जानवर व इनमें अंतर नहीं रहता। जब इनको नशे की पूर्ति नहीं होती तो उसके लिये ये अपराध भी कर सकते हैं ।
आज जबकि देह व्यापार जोर पकड़ता जा रहा है तो ऐसी भयानक ड्रग्स के बारे में जानना लाज़िमी हो गया है जिन्हें धोखे से देने या स्वयं खाने पर आदमी सामान्य व्यवहार करता है । कोई यह भाँप नहीं पाता कि इसने ड्रग ली है ।
ड्रग्स की दुनिया कितनी खौफ़नाक है और इसमें किस तरह सफ़ेदपोश लोग जुड़े हैं, इसकी कुछ झलक ‘जिस्म’, ‘जहर’, ‘शीशा’, ‘वजह’ आदि फिल्मों में देखी जा सकती है। दूरदर्शन के एक धारावाहिक ‘घर घर की कहानी’ में ऋषिका के चरित्र को दिखाया गया है कि वह ओम को ‘साइकोट्रौपिक ड्रग्स’ देकर उसकी पिछली जिंदगी को किस तरह भुलवा देती है ।
वडोदरा के एक चिकित्सक योगेश पटेल ने एक एन.जी.ओ. की स्थापना करके लोगों को नशा मुक्ति दिलाने का जेहाद छेड़ रखा है । कभी-कभी आश्चर्य होता है कि समाज में ऐसे हैवान भी हैं, जो लालच की पराकाष्टा में इनसान को नशीली दुनिया के अँधेरे में धकेल देते हैं और कुछ लोग निष्ठा से उन्हें अँधेरे से बाहर निकाल कर उजाले से उनका परिचय करवाते हैं । अब तो सरकार ने भी इसे मान्यता दे दी है ।
डॉ. योगेश पटेल बताते हैं, “शराब, तंबाकू व सिगरेट से होने वाले नुकसान के बारे में सब जानते हैं लेकिन नशीली दवाओं के दुष्प्रभाव की विस्तृत जानकारी कम लोगों को है । इससे हृदयगति तेज होती है । सही समय पर निर्णय लेने की क्षमता व ध्यान कमजोर होता है। चरस व गांजा भी दिमाग में उन्माद पैदा करता है। चरस में तंबाकू की अपेक्षा अधिक कैंसर एजेंट होते हैं।”
यह पूछने पर कि बहुत से लोगों को कोकीन की लत होती है। अक्सर पुलिस जब नशीली दवा बरामद करती है तो कोकीन ही बरामद होती है । इसके बारे में जानकारी दें तो वह कहते हैं, “कोकीन केंद्रीय स्नायु तंत्र पर बुरा प्रभाव डालती है । ब्लडप्रेशर, हृदयगति, सांस की गति और शरीर के ताप को बढ़ाता है। आँख का प्यूपिल भी फैलने लगता है। इसकी अधिक मात्रा से हृदयगति रुक सकती है, सांसें थम सकती हैं।”
कुछ लोग कोकीन के इंजेक्शन के आदी होते हैं। यह किस तरह नुकसानदायक है? इस सवाल पर डॉ. योगेश कहते हैं, “इंजेक्शन की सिरिंज में कोई इन्फैक्शन हो तो लेने वाले को पीलिया, एड्स या दूसरी बीमारी हो सकती है। यदि इसे किसी तरल पदार्थ में पकाया जा रहा हो तो विस्फोट होने की या आग लगने की आशंका भी होती है । कोकीन की तरह क्रेक भी नुकसानदायक है । यह 10 सेकंड के अंदर प्रभाव दिखा सकता है।”
``डिप्रेशन के मरीजों को भी हल्की नशीली दवाएँ देकर ठीक किया जाता है। इस बारे में आप क्या कहते हैं ?``
“ये दवाएँ ‘डिप्रेसेंट’ कहलाती हैं, लेकिन इनका भी अधिक उपयोग करने से सांस लेने में अवरोध पैदा होता है, यहाँ तक कि मृत्यु भी हो सकती है। बहुत से अपराधी इन्हें शराब में मिलाकर और भी खतरनाक बना देते हैं।”
अक्सर खिलाड़ी खेल के दौरान स्टेरॉइड लेते पकड़े जाते हैं ? इस सवाल पर वह कहते हैं, “इनसे शरीर का भार बढ़ता है व मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं इसलिये खिलाड़ी इन्हें लेना पसंद करते हैं लेकिन पकड़े जाने पर खेल से बाहर कर दिये जाते हैं । इन्हें अपनी इस बुरी आदत के कारण ही अपमानित भी होना पड़ता है। आज चिकित्सक इन्हें लेने की सलाह बहुत कम देते हैं क्योंकि इनके कई साइड इफ़ेक्ट्स होते हैँ।”
आपराधिक मामलों के वकील दीपक व्यास नारकोटिक व साइकोट्रौपिक ड्रग्स का अंतर कुछ इस तरह समझाते हैं-
“कुछ नशीली चीजें जैसे चरस, गांजा व अफ़ीम जिनकी खेती की जाती है और इनसे जो नशीले पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं, वे नारकोटिक्स ड्रग्स कहलाती हैं। रसायनों से जो नशीली ड्रग्स बनाई जाती हैं वे साइकोट्रौपिक ड्रग्स कहलाती हैं ।”
“साइकोट्रौपिक ड्रग्स लेने वाले व्यक्ति के मस्तिष्क की सोच, उसका व्यवहार बदल जाता है। वह भावनात्मक रूप से बिल्कुल अलग व्यक्ति बन जाता है। अपराधी इसी तरह उनके कमजोर दिमाग का फायदा उठाकर उनसे मनचाहा करवाते हैं।”
मनोवैज्ञानिक काउंसलर सुनील मेनन साइकोट्रौपिक ड्रग्स के बारे में विस्तार से बताते हैं कि यह बेहद खतरनाक होती है । अफ़ीम, चरस, गांजा खानने वाले व्यक्ति के हावभाव या लाल आँखें देखकर पता लग सकता है कि उसने कोई नशीली चीज ली है, लेकिन साइकोट्रौपिक ड्रग्स लेने वाला व्यक्ति लगभग सहज व्यवहार करता है । वह ऑफ़िस में अपने बॉस से, अपने साथियों से या समाज में सामान्य व्यवहार करता है। महीनों क्या सालों किसी को पता नहीं लगेगा कि वह ऐसी ड्रग्स ले रहा है या उसे धोखे से ड्रग्स दी जा रही है।इसका पता तब चलता है जब उसकी किसी कमजोर नब्ज को छेड़ा जाये तो वह सामान्य से अधिक गुस्सा करेगा । मारधाड़ करेगा। यदि ड्रग्स की मात्रा अधिक हो तो वह कोई अपराध भी कर सकता है ।
महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान की रीडर डॉ. नलिनी पुरोहित बताती हैं, “सारे विश्व में ज्यादातर वैज्ञानिक दवाओं के शोध में लगे रहते हैं ताकि व्यक्ति को रोगों में राहत पहुँचा सकें। एक दवाई को बनाने में 5 से लेकर 30 साल तक शोध करना पड़ता है। पहले चूहे व दूसरे जानवरों पर बाद में इनसानों पर प्रयोग करने के बाद दवा बाजार में लाई जाती है।
जिस तरह वैज्ञानिक ‘टारगेट’ व ‘सिलेक्टिविटी’ पर जोर देते हैं, उसी तरह दरिंदे अपराधी अपने अपराध का लक्ष्य निर्धारित कर अपना शिकार चुनते हैं और फिर उसे धोखे से किसी बहाने ड्रग देते हैं। एक दो बार ड्रग लेने के बाद उसे चस्का लगता है और वह खुद शिकारी के पास दौड़ा चला आता है।
आजकल मैं ड्रग डिज़ाइनिंग ही पढ़ा रही हूँ। जब किसी अपराध में साइकोट्रौपिक ड्रग्स का उपयोग देखती हूँ तो बेहद क्षोभ होता है। विश्व का एक बड़ा हिस्सा चिकित्सा व दवाओं से रोगियों को भरसक राहत पहुँचा रहा है दूसरी तरफ इनसानियत के दुश्मन इन दवाओं के नशीले असर का उपयोग कर अपराध कर रहे हैं व अपराध करवा रहे हैं।
ये दवाएँ व्यक्ति के स्नायु तंत्र को बीमार करती हैं व दिमाग को कमजोर कर उसे विकृत बनाती हैं। इसीलिए नशीली दवाओं का उपयोग करने वाले अपराधियों के लिये कड़े कानून बनाए गए हैं। मैं तो कहती हूँ कि इन कानूनों को और कड़ा करना चाहिए।”
“डिज़ाइनर ड्रग्स क्या होती है ?”
इस सवाल का जवाब देते हुए योगेश पटेल कहते हैं,“अपराधी सोच के केमिस्ट कुछ दवाइयों की संरचना से खिलवाड़ कर गैरकानूनी दवाओं का उत्पादन करते हैं। ये ‘डिज़ाइनर ड्रग्स’ कहलाती हैं। ये दवाएँ असली दवा से कई सौ गुना शक्तिशाली होती हैं। इन दवाओं का यदि नशा किया जाए तो अधिक सेवन से हाथ-पैर काँपने लगते हैं, कभी शरीर में झटके लगते हैं, बोलने में लड़खड़ाहट आ जाती है। पक्षाघात का तो डर रहता ही है। कभी दिमाग की इतनी क्षति हो जाती है कि उसे ठीक नहीं किया जा सकता।”
इन दवाओं से और सावधान कर रहे हैं आपराधिक मामलों के वकील महेन्द्र व्यास, “अक्सर नशीली दवाओं को बेचने वाले एजेंट अपने पैकेट्स यात्रा के दौरान किसी भी यात्री के सामान में छिपा देते हैं इसलिये हर समय अपने सामान को सँभाल कर रखना चाहिए।”
महेन्द्र व्यास आगे नारकोटिक कानून के बारे में बताते हैं, “यह कानून 1985 में अफीम, गांजा व चरस के खिलाफ़ बनाया गया था। 1995 में इसमें कुछ सुधार किया गया था। सुधार में कहा गया कि कुछ लोग नशीले पदार्थ शौकिया तौर पर लेते हैं। कुछ इसका व्यापार करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के घर की तलाशी सर्च वारंट द्वारा ली जाती है और उसको पता होना चाहिए कि यह तलाशी क्यों ली जा रही है। इसमें सजा बरामद ड्रग्स की मात्रा के आधार पर होती है। यगि गिरफ्तार व्यक्ति ड्रग्स का व्यापारी है तो मात्रा अधिक होगी। वैसे आरोप साबित होने पर सजा 6 महिने से 30 साल की होती है। जुर्माना भी 3 लाख रुपये तक हो सकता है।”
“यदि कोई व्यक्ति नशीली दवा लेने, किसी को देने या अपने पास रखने व बेचने के अपराध में पकड़ा जाता है तो उसे जमानत पर छुड़ाया जा सकता। वह गैरजमानती वारंट द्वारा गिरफ्तार किया जाता है।राहुल महाजन जैसे ड्रग्स के मामले अदालतों में कम आते हैं।” यह कहना है सरकारी वकील रवि शुक्ला का,`` अक्सर कोर्ट में ड्रग रखने या बेचने के मुकद्दमे चलते रहते हैं। यदि फ़ोरेंसि रिपोर्ट में यह लिखा हो कि नशीला द्रव्य है तो आरोपी को सजा हो सकती है।``
-------------------------------------------------
llll
नीलम कुलश्रेष्ठ
E-mail-kneeli@rediffmail.com