अंतर्मन ANKIT YADAV द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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अंतर्मन

मुझसे कही अच्छी जिंदगी तो इन मक्का बेचने वालो की है। कम से कम इन्हें इज्जत, प्यार तो अपने घर मिलता है। दिनभर कड़ी धूप में यहां मक्का भुनते रहते हैं, पर घर जाकर जो दुलार इन्हें मिलता होगा, उससे सारी थकान यु खत्म हो जाती होगी। अपना क्या है वहीं घर आकर डांट खानी है, ट्यूशन से लेट क्यों हो गई, पढ़ाई में इतनी कमजोर क्यो हो, कुछ घर का काम भी कर लो। समय में जिंदगी गुजारनी है।
अरे-अरे डार्लिंग, कहां जा रहे हो। बाजार में लड़कियां ताड़ने का समय हो गया होगा तुम्हारा, वहां क्यु समय खपाना, यही मुझे देखलो, वैसे ही जितनी दूसरों को देखने की आजादी मैंने तुम्हें दे रखी, उतनी किसी गर्लफ्रेंड ने नहीं दी होगी। अब चलो भी वापिस।
नैना ये सब सोचते, बातें करते हुए घर पहुंचती है। सामने उसके पापा खड़े हैं, डंडा लेकर तैयार। नैना स्कूल परीक्षा में फेल जो हो गई है। फेल हो भी क्यों न बेचारी, सारा दिन घर के कामों में जो चला जाता है। घर में सुबह बर्तन, खाना बनाना, भाई को स्कूल के लिए तैयार करना आदि कार्यों को निपटा कर ही बेचारी स्कूल को पहुंचती है। और स्कूल में वही अकेलापन, दोस्त कहने को एक लड़की तक नहीं। पुरी दिनचर्या नैना की रूचियों के विपरीत जो है।
आज पानी सर पार कर गया है। नैना ने बर्तन धोने से मना तो क्या किया और ले चौकड़ी नैना के सर पर आ पड़ी है। सिर से खून बह रहा है। नैना बेतहाशा दर्द में कराह रही है। मलहम लगाने तक सुध किसी को नहीं। लेकिन नैना चोट से नहीं इतनी असहिष्णुता जो उसके प्रति दूसरों में है,उससे वह चोटिल है।
आज बस, अंतिम समय आ गया है। ऐसे जीवन का भी क्या मर्म जहां कोई आस ही ना हो। रोज-रोज के ताने सुनने से अच्छा है आज ट्रेन के आगे अपनी जान दे दूंगी। किसी को फर्क तो पड़ना दूर, कहीं कोई ढूंढ ही ना, ले अपने एकमात्र दोस्त को तो बता देती हूं। नहीं-नहीं उसे बताया तो क्या वो मुझे सुसाइड करने देगा। पक्का नहीं ही।
तक थैया थैया तक तक तक, धनन, धनन। नैना मन ही मन गाते हुए ट्रेन के ट्रैक पर चल दी है। ट्रेन आने में अभी कुछ समय है। नैना का मन विचारों से भरा हुआ है।
क्या सब लोगों की जिंदगी ऐसी ही होती है क्या, या फिर लड़कियों की जिंदगी ही ऐसी होती है। नहीं-नहीं, शर्मा जी की बेटी को देखो, तो सुबह से शाम पलकों पर उठाकर रखते हैं शर्मा जी, खाना ना खाए तो घर में कोई खाना नहीं खाता उनके। और एक मेरे परिवार, कहने को बस परिवार है, दो घंटो से ट्रेन के ट्रैक पर हूं कोई पुछ तक नहीं। इस जिंदगी खत्म हो, तो क्या पता दूसरी में शर्मा जी जैसा परिवार मिले।
नैना ये सब सोच ही रही थी कि अचानक सामने उसी 8
आठ वर्षीय लड़का कागज चुगते देखा। बड़ी प्यास से हाफ रहा था। बेचारा, नैना ने बोतल थमाते हुए कहा "कौन हो, यहां कैसे।
घर में कोई है नहीं, अकेला हूं, पेट भरने के लिए भीख मांग कर काम चलाता हूं। तुम यहां कैसे, ट्रेन आ रही है होगी, ध्यान से, कहकर लड़का चला गया।
नैना के मन में अब एक नई ऊर्जा का संचार हुआ, ये गरीब जिसके पास खाने तक को कुछ नहीं, वह भी इतनी सकारात्मकता से भरा है। और एक मैं हूं जो इतना सब होने के बावजूद अपनी जान देने जा रही थी। मेरे पास तो मेरा परिवार भी है, बस अब मैं सब ठीक कर दूंगी। जो भी मेरे रिश्तो में अनबन है आज सब सुलझा कर रहूंगी। और वैसे भी जिंदगी में जा मिलता है,जो होता है। उसके पीछे एक प्रयोजन तो होता ही है। मुझे भी अब अपनी जिंदगी का प्रयोजन मिल गया। इसी प्रयोजन के सहारे सारी चीजें ठीक कर दूंगी। हां बस अब सब सही होगा।
सात बज गए हैं। पापा और शोर्य भूखे होंगे, दोपहर में खाना भी नहीं बना था, दोनों के लिए बर्गर ले चलती हूं। आज पूरा परिवार साथ में पार्टी करेगा। भैया गरम है ना बस।
नैना बर्गर के साथ-साथ एक नई ऊर्जा से घर पहुंची है। एक ऐसी ऊर्जा से सारा अंधकार को मिटा दिया हो। एक नए जीवन की आशा उसके मन में है। एक उम्मीद है कि जीवन अब हर्ष, उल्लास, खुशहाली भरपूर होगा।