हमने दिल दे दिया - अंक ४० VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक ४०

अंक ४०. सुहानी सुबह ?

   दुसरे दिन सुबह | सुबह के लगभग लगभग ७ बज रहे थे | अंश हमेशा की तरह अपने घर की छत पर सोता है लेकिन आज वो घर ही नहीं आया हुआ था क्योकी वो हवेली पे दिव्या के साथ ही रुक गया था और दिव्या और अंश दोनों हवेली की छत पर सोए हुए थे | दोनों एक दुसरे की बाहोमे बड़े प्यार से सोए हुए थे | आसमान शिर चढ़ चूका था फिर भी दोनों गहेरी नींद में थे और शायद बड़े दिनों बाद आज दिव्या को चेन की नींद आई होगी और बड़े दिनों बाद अगर इंसान को एसी चेन की नींद आती है तो इंसान एसी नींद कभी भी खोना नहीं चाहता पर वक्त है आप जितना भी इसको पकड़कर रखो यह फिसलता ही जाता है |

   अंश और दिव्या अभी भी गहेरी नींद में ही होते अगर अंश के पिता यानी विश्वराम केशवा का फोन नहीं आता तो | विश्वराम केशवा का फोन अंश के फोन पर आता है और अंश और दिव्या की नींद खुल जाती है और अंश सबसे पहेले बिस्तर के आस-पास अपना फोन ढूढता है और फोन उठाता है |

   हल्लो हा पापा बोलिए ना ...अंश ने विश्वराम केशवा से कहा |

   कहा है तु रातभर नहीं आया और ना ही तेरा फोन भी आया तु है कहा बेटा ...विश्वराम केशवा ने अंश से कहा |

   जी में पापा वो ... दोस्त के वहा जिसकी बहन को कैंसर है वहा उसके साथ ही रुक गया था ...अंश ने अपने पिता से झूठ बोलते हुए कहा |

   अच्छा ठीक है घर कब आ रहा है ...विश्वराम केशवा ने कहा |

   हा वो अभी आज कुछ रिपोर्ट करवाने है तो वो सब करवाकर देखते है कितना जल्दी काम पुरा होता है उसके बाद तुरंत आ जाऊँगा ...अंश ने अपने पिता से कहा |

   अंश अपने पिता को बाबा या पापा बुलाता था और कभी कभी बापु या बापुजी |

   ठीक है कोई बात नहीं ...विश्वराम केशवा ने अपना फोन काटते हुए कहा |

   अंश अपना फोन बाजु पर रखता है और फिर दिव्या की और देखता है | दिव्या अभी भी सोई हुई थी | अंश को सो रही दिव्या बहुत ही मासूम और खुबशुरत लग रही थी | अंश दिव्या के शिर पे आखो से थोड़ी उपर एक चुंबन करता है और उस वजह से दिव्या की आखे खुल जाती है | दोनों प्यार भरी आखो से एक दुसरे की तरफ देख रहे थे और मुस्कुराये जा रहे थे |

   बहुत खुबशुरत लग रही हो मेरी जान ...अंश ने दिव्या से कहा |

   तुम्हारे जितनी नहीं ...बिलकुल धीमी आवाज में दिव्या ने कहा |

   चल झूठी ...अंश ने दिव्या से कहा |

   दिव्या और अंश बातो बातो में फिर से एक दुसरे को गले लगा लेते है |

   काश हर सुबह एसी ही हो तो कितना मजा आ जाये ...दिव्या ने अंश से कहा |

   होगी होगी जरुर होगी बस मुझ पर भरोसा रखो तुम में हम दोनों के लिए हर सुबह खास बनाऊंगा ...अंश ने दिव्या से कहा |

   सच में ...दिव्या ने अंश से कहा |

   बिलकुल सच ...अंश ने कहा |

   चलो सबसे पहेले नहा लो बाद में बाते करेंगे क्योकी आज अस्पताल के काम में और भी देरी होने वाली है क्योकी आज तुम्हारे कई सारे रिपोर्ट करवाने है ...अंश ने दिव्या से कहा |

   नहीं अभी डोक्टर से कह दो की मुझे प्यार नाम का इलाज मिल चुका है तो अब मुझे किसी और इलाज की जरुरत नहीं है ...दिव्या ने अपने बिस्तर से उठकर अपनी आलस को भगाते हुए कहा |

   लेकिन मुझे नहीं चलेगा इसलिए जो भी सारवार बाकी है उसे पुरी तो करनी ही होगी इसलिए तुम तुम्हे जो भी ड्रेस पहेनना है वो पहेन लो और फटाफट से तैयार हो जाओ तब तक में अशोक को फोन लगाकर बता दु की अभी तुम्हारी कार मेरे पास रहेगी ...अंश ने दिव्या से कहा |

   ठीक है में तैयार हो जाती हु बाद में तुम भी तैयार हो जाओ ...दिव्या ने अंश से कहा |

   हा मगर मुझे घर तो जाना ही होगा क्योकी मेरे पास पहनने के लिए कोई कपडे नहीं है और बिना सोचे पापा को भी मना कर दिया अब उनसे फिर एक झूठ बोलना पड़ेगा ...अंश ने दिव्या से कहा |

   अरे हां वो भी तो है नंगे तो आ नहीं सकते...दिव्या ने अंश की तरफ देखते हुए मजाक के साथ कहा |

   अभी तु मजाक भी करने लगी है अच्छा है अभी ज्यादा बोले बिना तैयार होने के लिए जा वरना सच में में नंगा होकर तेरे साथ आऊंगा ...अंशने भी मजाक के स्वर में कहा |

  जा अबे जा नहीं डरती तुम्हारी खोखली धमकियो से ठीक है ...नखरे करते हुए दिव्या ने कहा |

  रुक अभी रुक तु ...अंश ने अपने पेंट को उतारने की एक्टिंग करते हुए कहा |

   अरे नहीं नहीं नहीं रहेने दो ...अपने हाथो से अपनी आखे ढकते हुए और फटाक से निचे अपने कक्ष की और जाते हुए दिव्या ने कहा |

   दिव्या और अंश आज बहुत खुश थे उनकी ख़ुशी का आज कोई पता या अंत नहीं था इतने  दोनों खुश थे | अंश अशोक को फोन लगाता है | अशोक अभी अपने घर पर ही था | जैसे ही अशोक के फोन की घंटी बजती है अशोक अपना फोन उठाता है |

   हा अंश बोल ...अंश ने अशोक से कहा |

   हा में वो कल तेरी गाड़ी लौटा नहीं पाया इसलिए ही फोन किया था ...अंश ने अशोक से कहा |

   अरे कोई बात नहीं पर शायद कल गाड़ी की जरुरत पड़ शक्ति है और हा तेरी भी क्योकी कल में उस लड़की से मिलने जा रहा हु और हा तुझे भी वहा आना होगा ...अशोक ने अंश से कहा |

   अरे वाह क्या बात है तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले भाई ...अंश ने अशोक से कहा |

   इस में छुपे रुस्तम वाली क्या बात है हमारे परिवार वालो ने ही यह आयोजन किया है ...अशोक ने अंश से कहा |

   हमारे यहाँ एसा करने वाले भी परिवार है अच्छी बात है ...अंश ने कहा |

   है कुछ कुछ परिवार पर ज्यादा लोग इनकी सोच को समझ नहीं पाते इस वजह से एसे लोग अपनी अच्छी सोच को बहार ही नहीं आने देते है ...अशोक ने अंश से कहा |

   सही है यार मिलके आ ...अंश ने कहा |

   मिलके आ मतलब तुम्हे भी आना होगा ठीक है में ना नहीं सुनने वाला ठीक है ...अशोक ने अंश से कहा |

   में आता मुझे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मुझे उसी वक्त दिव्या को लेकर अस्पताल जाना होता है तुझे तो पता है ...अंश ने अशोक से कहा |

   वो में कुछ नहीं जानता तु अपनी और से कुछ भी प्लानिंग कर और मेरे साथ चल ठीक है इसलिए अभी कल तु ही मेरी कार लेकर मुझे लेने आएगा ठीक है ...अशोक ने अंश से कहा |

   ठीक है में कुछ करूँगा तु मुझे समय बता देना ठीक है ...अंश ने अशोक से कहा |

   ठीक है रखता हु ...अशोक ने कहा |

   हा बाय ...अंश ने भी फोन रखते हुए कहा |

   अब हर तरफ माहोल धीरे धीरे करके अंश और दिव्या के लिए अभी जितना सुहाना था उतना ही संगीन बन रहा था क्योकी एक तरफ अंश और दिव्या प्यार भरे एक दुसरे के लिए कई सारे सपने देख रहे थे वैसे ही इस तरफ ख़ुशी और ख़ुशी के लिए उसके बड़े भाई और भाभी यानी सुरवीर और मधु भी अंश और ख़ुशी के खुशखुशाल जीवन के कई सारे सपने सजो रहे थे |

   मधु और सुरवीर अभी अपने कमरे में ही थे | मधु अपना बिस्तर ठीक कर रही थी और सुरवीर कपडे पहनकर तैयार हो रहा था | दोनों के बिच ख़ुशी की लेकर कुछ संवाद चल रहा था |

   आप ने बापुजी से बात की ख़ुशी और अंश के बारे में ...मधु ने बिस्तर को ठीक करते हुए अपने पति सुरवीर से कहा |

   नहीं कहा अभी कोई एसा मौका ही नहीं मिला की में उनसे बात कर शकु थोडा अगर मूड उनका अच्छा हो तो कुछ बात करुना ख़राब मूड में बात करने जाऊंगा तो गुस्से में वो इस बात को स्वीकार ही नहीं करेंगे | एक बार मौका मिल जाये तो तुरंत बात कर दूंगा ...सुरवीर ने अपनी घड़ी पहनते हुए कहा |

   हा पर कब तक बात करेंगे जवान लड़के लड़की है इनका जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी अगर फेसला हो जाए वही सही है ...मधु ने कहा |

   क्यों तुम्हे ख़ुशी पर भरोषा नहीं है ...सुरवीर ने मधु से कहा |

   भरोषा बिलकुल है पर मुझे डर है की कहि अगर किसी ने उन लोगो को साथ में देख लिया और बापूजी तक यह खबर पहुच गई तो हम जो सोच रहे है वैसा बिलकुल नहीं होगा और साथ ही साथ बात बिगड़ेगी वो अलग क्योकी अगर अंश और ख़ुशी के बारे में बापूजी को पता लगा तो हमारा और विश्वाकाका का संबंध भी बिगड़ सकता है आप तो जानते हो ...मधु ने सुरवीर को समझाते हुए कहा |

   नहीं नहीं बिलकुल बात तो तुम्हारी सही है | तुम एसा करो ख़ुशी को कहो की दो चार दिन के लिए अंश से ना मिले तब तक में कुछ भी करके बापूजी से बात कर लुंगा और अगर बात बनती है तो ख़ुशी के जन्मदिन का सबसे बड़ा तोहफा हम ख़ुशी को दे देंगे ...सुरवीर ने मधु से कहा |

   मैंने वो बात पहेले ही ख़ुशी से कर ली है की तुम कुछ दिन अंश से ना मिलो और दुसरा हम जो शादी के लिए बात करने वाले है वो भी बात मत करना जब तक में नहीं बताती तब तक ...मधु ने सुरवीर से कहा |

   यह अच्छा किया में आज कल में देखता हु की मुझे मौका कैसे मिलता है उस हिसाब से में बापूजी से बात कर लुंगा ...सुरवीर ने मानसिंह जादवा से कहा |

   मधु और सुरवीर के बिच बातचीत चल ही रही थी उतने में बहार से सुरवीर के पिता यानी मानसिंह जादवा की आवाज आती है |

   सुरवीर जल्दी करो हमें आज एक जरुरी काम से जाना है ...मानसिंह जादवा ने सदन के आँगन में से चिल्लाते हुए कहा |

   आया बापुजी पाच मिनट में आया ...सुरवीर ने कहा |

   चल में चलता हु जय माताजी ...सुरवीर ने मधु से कहा |

   हा चले जाओ जय माताजी जाओ निकलो ...मधु ने किसी वजह से नाराज होते हुए कहा |

   ok बाबा i love you और जय माताजी ...मधु के गालो पर चुंबन करते हुए सुरवीर जादवा ने कहा |

   सुरवीर जल्दी से तैयार होकर बहार अपने पिता के पास जाता है और उनके पैर पड़ता है |

   चलो आज हमें अस्पताल एक काम से जाना है ...मानसिंह जादवा ने सदन से बहार निकलते हुए कहा |

    जादवा सदन के बहार ड्राईवर ने कार तैयार खड़ी रखी थी | मानसिंह जादवा और सुरवीर दोनों उस कार में बैठकर अस्पताल जाने के लिए निकल जाते है |

    अस्पताल क्या काम है बापुजी ...सुरवीर ने कहा |

    हा वो मै तुझे बताना भुल गया | कल में जब जनमावत से वापस आ रहा था तो बिच में मैंने एक अकस्मात देखा तो मैंने अपनी कार बाजु में रखकर वहा जाकर देखने की कोशिश की की किसका अकस्मात हुआ है तो वहा और कोई नहीं जो अकस्मात में घायल हुआ था वो शुभनाथ सिंहजी थे ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    क्या शुभनाथ सिंह जी का अकस्मात हुआ है ...सुरवीर ने अपने पिता से कहा |

    हा तो फिर में उन्हें अपनी कार में बिठाकर अस्पताल ले गया और कल उनका ओपरेशन हुआ तो कल वो होश में नहीं थे इस वजह से उनकी मुलाकात नहीं हुई तो उसी वजह से आज उनकी मुलाकात लेनी है ...मानसिंह जादवा ने सुरवीर से कहा |

    सही है ...सुरवीर ने कहा |

    इस तरफ मानसिंह जादवा और सुरवीर जादवा अस्पताल जाने के लिए निकल चुके थे और दुसरी तरफ शांतिलाल झा अस्पताल पहुच चुके थे क्योकी शांतिलाल झा को पता था की अगर हर एक गाव में से ज्यादा से ज्यादा वोट चाहिए तो उस हर एक गाव के सरपंच को अपनी और करना होगा और इसी वजह से भिड़ा गाव के सरपंच यानी शुभनाथ जी की तबियत कैसी है यह जानने के लिए शांतिलाल झा वहा पर पहुच चुके थे और कुछ ही देर में शुभनाथ जी का ड्रेसिंग होने के बाद उन्हें मिलने वाले थे और शायद तब तक तो मानसिंह जादवा भी वहा पहुच जाएंगे और पहेली बार शांतिलाल झा का और मानसिंह जादवा का आमना-सामना होने वाला है आज और हा इतना ही नहीं पर आज अस्पताल एक रंगमंच बनने वाला है क्योकी अस्पताल सिर्फ शांतिलाल झा और मानसिंह जादवा ही नहीं आने वाले है अस्पताल जाने के लिए अंश और दिव्या भी इसी समय पर निकलने वाले है |

    शांतिलाल झा, मानसिंह जादवा, अंश और दिव्या जब होंगे एक ही जगह तो मौसम सामान्य तो नहीं ही हो सकता यह तो तय था |

    इस तरफ अंश अपने घर जाकर तैयार होकर वापस हवेली पहुच जाता है और दिव्या के कक्ष में पहुचता है | जैसे ही अंश दिव्या के कक्ष में पहुचता है और दिव्या को देखता है तो उसकी आखे फटी की फटी रहे जाती है |

    दिव्या आज दुनिया का डर भुलकर सिर्फ और सिर्फ अंश के लिए तैयार हुई थी और वो भी उस सारी को पहेनकर जो अंश के कहेने पर ख़ुशी ने दिव्या को दी थी | दिव्या के शिर पे भले ही एक भी बाल ना हो पर दिव्या बहुत खुबशुरत लग रही थी और उसकी एक वजह थी दिव्या के चहेरे का नुर | आज दिव्या बहुत खुश थी जो साफ़ साफ़ दिख रहा था |

    वाह वाह वाह क्या तारीफ़ करू तुम्हारी मेरी जान इस लाल सारी में तुम घायल कर देने वाली खुबशुरत महिला लग रही हो यार तुम आज ही और अभी यह सारी निकाल दो ...अंश ने दिव्या से कहा |

    अंश की इस बात से दिव्या के चहेरे की हसी कुछ देर के लिए गायब सी हो जाती है |

    क्यों नहीं अच्छी लगी | खास तुम्हारे लिए ही तो पहेनी थी बड़ी महेनत से वरना मुझे सारी पहेनना आता भी कहा है ...दिव्या ने अपना मु बिगाड़ते हुए कहा |

    अरे अरे नहीं मेरे कहेने का मतलब यह नहीं है में इसलिए कहे रहा हु की अगर तुमने यह सारी पहेन रखी तो में घायल तो हो ही जाऊंगा लेकिन मेरी जगह तुम्हे कोई और भी पटा सकता है और यह रिश्क में नहीं ले सकता इसलिए में तुम्हे सारी निकालने की बात कर रहा हु ...अंश ने दिव्या से कहा |

    दिव्या अंश की इस बात को सुनकर फिर से खुश हो जाती है और उसकी गायब हुई ख़ुशी वापस से उसके चहेरे पर आ जाती है |

    सच में ना तो आज में यही पहेनुंगी ...दिव्या ने अंश से कहा |

    अरे नहीं आज नहीं क्योकी कल तुम्हे शायद इस सारी की जरुरत पड़ेगी इसलिए कल रखो ...अंश ने दिव्या से कहा |

    क्यों ...दिव्या ने कहा |

    क्योकी कल अशोक उस लड़की को मिलने जाने वाला है जो तुम्हारे गाव की है तो हमें भी साथ में जाना है तब इसकी बहुत जरुरत होगी और आज आते वक्त कुछ खरीदारी भी करनी है तो वो भी करते आयेंगे ...अंश ने दिव्या से कहा |

    अच्छा ठीक है मै निकाल देती हु पर अंश मेरी एक इच्छा है तुम पुरी करोगे ...दिव्या ने अंश से कहा |

    हा बोलो ना क्या बात है जरुर ...अंश ने ख़ुशी से कहा |

    मुझे अभी तुम से शादी करनी है ...दिव्या ने अंश से कहा |

    क्या मतलब में कुछ समझा नहीं ...चौकते हुए अंश ने कहाँ|

    मतलब यही की मुझे अभी तुम्हारे साथ यही पर सातो फेरे लेने है और विधि से तो पता नहीं पर दिल से तुम्हारे साथ विवाहित होना है और पुरीं तरह तुम्हारी होना चाहती हु मै फिर पता नहीं कल क्या हो मेरे साथ ...आखो में आशुओ के साथ दिव्या ने कहा |

    दिव्या एकदम से भावुक हो जाती है और रोने लगती है क्योकी दिव्या जानती थी की आगे जाकर उसका और अंश का एक होना बहुत ही मुश्किल है इसी वजह से दिव्या आज ही अंश को अपना बना लेना चाहती है |

    अरे तुम रोने क्यों लगी हो कर लेते है शादी इस में क्या है पर मुझे बस अपने पिता को बताये बिना जिंदगी का इतना बड़ा फेसला लेने में थोडा अजीब लग रहा है बाकी कोई दिक्कत नहीं है मुझे ...अंश ने दिव्या से कहा |

    यह भी सही है माफ कर दे मै थोड़ी स्वार्थी बन गई थी चलो में कपडे बदल लेती हु फिर हम लोग चलते है ...अपने आशु पोछते हुए दिव्या ने कहा |

    अंश दिव्या के पास आता है और उसे अपने गले लगा लेता है |

    ठीक है हम हम दोनों की तसल्ली के लिए शादी कर लेते है और आगे भी चिंता ना करो हमारे साथ सब सही ही होगा | वैसे भी पापा ने ही कहा है की अगर आपको कोई बात सही लगती है तो उस पर तुरंत अमल कर देना चाहिए चलो करते है शादी ...अंश ने अपना फेसला लेते हुए कहा |

    नहीं अंश तुम्हारी भी बात सही है बिना तुम्हारे पापा के बिना हम एसा निर्णय कैसे ले सकते है | हम आज शादी नहीं करेंगे माँ जरुर हमें मौका देगी तब कर लेंगे शादी अब आगे जीद मत करना तुम्हे मेरी कसम है ...दिव्या ने अंश को मनाते हुए कहा |

    ठीक है पर आज में तुम्हे वचन देता हु की यह अंश हमेशा से तुम्हारा ही है और तुम्हारा ही रहेगा अब यह आशु पोछो और जल्दी से कपडे बदलकर आओ हम लोग अस्पताल जाने के लिए निकलते है ...अंश ने दिव्या से कहा |

    हा में कपडे बदल लेती हु ...दिव्या ने अंश से कहा |

    इस तरफ मानसिंह जादवा अस्पताल पहुच चुके थे | मानसिंह जादवा जैसे ही अपनी कार से निचे उतरते है उनकी नजर शांतिलाल झा की कार पर पड़ती है जिसके पीछे प्लेट लगी थी जिस पर लिखा था प्रदेश अध्यक्ष श्री विकास दल | मानसिंह जादवा उस प्लेट की वजह से शांतिलाल झा की कार को पहेचान जाते है और उनके यहाँ होने का अंदाजा लगा लेते है |

    यह यहाँ पर क्या कर रहा है ...शांतिलाल झा की कार की तरफ देखते हुए मानसिंह जादवा ने कहा |

    कौन बापूजी ...सुरवीर जादवा ने कहा |

    देख इस तरफ ...शांतिलाल झा की कार की तरफ अपना इशारा करते हुए मानसिंह जादवा ने कहा |

    मानसिंह जादवा सुरवीर जादवा को शांतिलाल झा की कार की तरफ इशारा करके कार दिखाते है |

    यह तो उस शांतिलाल झा की ही कार है ना लेकिन यह यहाँ पर क्या कर रहा है ...सुरवीन ने कहा |

    अख़बार या किसी और समाचार से पता चला होगा की भिड़ा गाव के सरपंच का अकस्मात हुआ है ...मानसिंह जादवा ने अनुमान लगाते हुए कहा |

    चलो अंदर चलते है वहा जाकर ही पता चलेगा की बात क्या है ...सुरवीर ने अपने पिता से कहा |

   मानसिंह जादवा और सुरवीर दोनों अस्पताल के अंदर जाते है और वहा जाकर उन्हें वही दीखता है जो वो अंदर आते वक्त सोच रहे थे | शांतिलाल झा समेट उसके कई लोग शुभनाथ जी के आस-पास बैठे हुए थे और उनसे बाते कर रहे थे | मानसिंह जादवा और सुरवीर दोनों शुभनाथ जी के पास जाते है | मानसिंह जादवा और सुरवीर को देखकर बेड में लेटे हुए शुभनाथ जी उठकर बैठ जाते है |

    अरे आईए आईए जादवा साहब आईए ...शुभनाथ जी ने कहा |

    शांतिलाल झा और उनका PA दोनों मानसिंह जादवा को देखकर थोडा सतर्क हो जाते है और फिर सब के बिच जो भी बातचीत होती है वो राजनैतिक टोन में ही होती है |

    आईए आईए जादवा साहब आईए तहे दिल से नमस्कार आपको ...शांतिलाल झा ने अपनी जगह से जानबुझकर मानसिंह जादवा के लिए इज्जत दिखाने के लिए खड़े होते हुए कहा |

    नमस्कार झा जी बैठिये आप जैसे बड़े लोग हमारे लिए खड़े होते हुए अच्छे नहीं लगते है ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    मानसिंह जादवा और शांतिलाल झा दोनों राजनैतिक टोन में एक दुसरे से बाते कर रहे थे |

    अरे हम कहा बड़े बड़े लोग तो आप है यहाँ पर चारो जगह आपका ही राज है हमको तो यहाँ पे कोई पहेचानता भी नहीं है ठीक से ...शांतिलाल झा ने कहा |

    चलिए अच्छा है आपको पता है की यहाँ पर आपको ज्यादा लोग पहेचानते नहीं है आगे जाकर आपको यह माहिती काम आएगी ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    हा काम तो आएगी क्योकी हमें पता तो चलता है की यहाँ पर हमारी इतनी ज्यादा पहेचान और चाहना नहीं है तो लोगो में प्यार और साथ बाटकर जरुर बनायेंगे ...शांतिलाल झा ने कहा |

    इसकी क्या जरुरत है झा साहब जहा भी जाईयेगा बस बोल दीजियेगा मानसिंह जादवा के दोस्त है आपकी पहेचान बिना महेनत बन जायेगी ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    बात तो सही है इसी वजह से आपके लोग बनकर आपके लोगो के साथ उठ-बैठ रहे है जल्द ही आपके सहारे हम अपनी पहेचान बना लेंगे आप निश्चिंत रहिये ...शांतिलाल झा ने फिर से राजनैतिक उत्तर देते हुए कहा |

    ठीक है आपको इस कार्य के लिए हमारी और से शुभकामनाएं की आप जल्द ही अपनी पहेचान यहाँ पर बना लोगे ...मानसिंह जादवा ने कहा |

    जी आभार आपका ...शांतिलाल झा ने कहा |

    अगर आपकी इजाजत हो तो अकेले ही मिल ले सुभनाथ जी को ...मानसिंह जादवा ने शांतिलाल झा से कहा |

    जी बिलकुल बिलकुल आपको अभी से हमारी मंजुरी लेने की जरुरत नहीं है ...कटाक्ष में बोलकर शांतिलाल झा वहा से चले जाते है |

    इस साले की जबान बहुत चलने लगी है पिताजी इसका कुछ करना होगा ...सुरवीर ने शांतिलाल झा के लिए अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा |

   कोई बात नहीं बोलने दे हम भी देखते है क्या कर लेता है ...मानसिंह जादवा ने कहा |

   देखते है ...सुरवीर जादवा ने कहा |

   शांतिलाल झा वहा से चले जाते है और फिर मानसिंह जादवा और सुरवीर जादवा शुभनाथ जी के पास बैठते है और उनकी तबियत के बारे में पूछते है |

   कैसी तबियत है अब शुभनाथ जी आपकी ...मानसिंह जादवा ने शुभनाथ जी से कहा |

   बस जादवा साहब अच्छी तबियत है और दिक्कत यह है की यह पैरो में लगी पट्टी अब कुछ महीनो के लिए साथ रहेने वाली है ...शुभनाथजी ने कहा |

   अरे निकल जायेगी जब उसका समय होगा तब आप चिंता क्यों कर रहे हो ...मानसिंह जादवा ने कहा |

   जय माताजी काका ...सुरवीर जादवा ने कहा |

   अरे सुरवीर बेटा तुम्हारे पिता को देखने में तुम्हारे उपर नजर नहीं गई जय माताजी ...शुभनाथ जी ने कहा |

   भगवान का लाख लाख सुखरिया की आपको अकस्मात में कुछ हुआ नहीं ...सुरवीर जादवा ने कहा |

   हा वो तो है ...शुभनाथ जी ने कहा |

   लेकिन वो अकस्मात वाला था कौन उसे पकड़ा ...मानसिंह जादवा ने कहा |

   अरे नहीं जादवा साहब इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी वो हुआ एसा था की वो गाड़ी तेज रफ़्तार से चला रहे थे और अचानक उन्हें हार्ट-अटेक आ गया और वो वही पे मर गया और इस वजह से अकस्मात हो गया ...शुभनाथ जी ने घटना के बारे में बया करते हुए कहा |

   सही है उसमे तो उसकी कोई गलती नहीं है | यह यहाँ पर क्यों आया था शुभनाथ जी ... मानसिंह जादवा ने शांतिलाल झा के बारे में बोलते हुए कहा |

   हा उसके तो आते ही में समझ गया था जादवा साहब की राजनैतिक इरादों से ही आया है और मुझे अपनी और करने की लाख कोशिशे कर रहा था पर आप चिंता ना करे पहेले ही आप मेरी बेटी के अभाग के कारण अपना बेटा खो चुके है अब आप मेरे कारण अपना चुनाव नहीं हारेंगे में आपके साथ था और रहूँगा आप चिंता ना करे ...शुभनाथ जी ने कहा |

   अरे उसकी कोई चिंता नहीं है शुभनाथ जी हमको आप पर पुरा भरोसा है और आज हम आपसे राजनैतिक बात करने के लिए नहीं आए हुए है तो और बताईए ...मानसिंह जादवा ने कहा |

   शुभनाथ सिंह की भी सोच मानसिंह जादवा की तरह घटिया ही थी वो अपने रिवाजो, इज्जत और अभिमान के लिए किसी की भी बली चढ़ा सकता था | उसे अपनी बेटी की जरा सी भी चिंता नहीं थी क्योकी वो हमेशा से लड़की को बोज ही मानता था |

   एक तरफ मानसिंह जादवा और शुभनाथ जी यानी दिव्या के पिता के बिच बातचित चल रही थी और दुसरी और मानसिंह जादवा और दिव्या के पिता दोनों उसी अस्पताल मै है इस बात से अंजान दिव्या और अंश अस्पताल पहुच चुके थे जिनका ध्यान मानसिंह जादवा की कार की तरफ बिलकुल भी नहीं गया था लेकिन दिव्या का ध्यान चला जाता है और उसको थोडा सा शक होता है और वो अंश से सवाल करने लगती है |

   अंश इतनी सारी गाड़िया आज कही कोई बड़ा आदमी तो नहीं आया हुआ ना ...दिव्या ने अंश से कहा |

   कहा ...अंश ने कहा |

   अंश कार के काफिले की तरफ देखता है |

   मर गए दिव्या मर गए यह तो मान काका की कार है ...अंश ने दिव्या से कहा |

   क्या बात कर रहा है जल्दी से पहेले किसी कोने में चलो अंश ...दिव्या ने अंश को पार्किंग के कोने में एसी जगह ले जाते हुए कहा जहा कोई उन्हें देख ना ले |

   अभी क्या करे एक मिनट में डोक्टर को फोन लगाता हु की हम थोड़ी देर से आए तो चलेगा ...अंश ने बिच वाला रास्ता निकालने की कोशिश में कहा |

   हा हा लगाओ लगाओ ...दिव्या ने अंश से कहा |

   अंश डोक्टर को फ़ोन लगाता है लेकिन डोक्टर अंश का फोन किसी वजह से उठा नहीं रहे थे |

   फोन लगा क्या ...दिव्या ने अंश से कहा |

   लगा पर डोक्टर उठा नहीं रहे है ...अंश ने दिव्या से कहा |

   अभी क्या करे ...दिव्या ने सोचते हुए कहा |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY