हमने दिल दे दिया - अंक ३४ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक ३४

अंक ३४. डायरी का रहस्य ?

    क्या बात कर रहा है अंश इसमें मानसिंह जादवा यानी मेरे ससुर कहा से बिच में आ गए में कुछ समझ नहीं पा रही हु ...दिव्या ने अपनी उलझन की बात करते हुए अंश से कहा |

     में तुम्हारी सारी उलझन का उत्तर दूंगा लेकिन सबसे पहले तुम मेरी पुरी दास्तान जान लो ताकि तुम्हे सबकुछ समझने में आसानी हो ...अंश ने दिव्या से कहा |

     ठीक है अंश अब में बिच में नहीं बोलूंगी तुम मुझे सारी कहानी जहा से हम अटके थे वहा से सुनाओ ...दिव्या ने अंश से कहा |

     हा तो दुसरे दिन सुबह में जल्दी स्कूल पहुच गया और जाकर वहा गोपी का इंतजार करने लगा | १ घंटा बिता फिर दुसरा और फिर तीसरा घंटा बीत गया में उस जगह से लेकर क्लास तक हर जगह उसका इंतजार करता रहा पर वो स्कूल आई ही नहीं | दुसरे दिन भी वही घटना घटी गोपी स्कूल में दिखाई ही नहीं दी फिर मुझ से रहा नहीं गया और मैंने अपने दोस्त पराग, चिराग और अशोक से कहेकर दुसरे दिन दुपहर के बाद स्कूल बंक की और में वहा से निकलकर गोपी के घर के पास पहुच गया | ओह सॉरी में बताना भुल ही गया गोपी आपके भिड़ा गाव के पास अलक करके गाव है वहा की रहेने वाली थी तो में मेरी उलझन लेके वही पर पहुच गया | अब वहा जाकर दिक्कत यह थी की गोपी का घर ढूढा कैसे जाए अगर वहा किसी से गोपी का नाम देकर पुछता तो गाव वाले पता बाद में बता ते सबसे पहले मेरा पत्ता साफ़ कर देते | कुछ देर गाव के चौक में ही बैठा रहा जहा एक दूकान थी उसके बिलकुल सामने | कुछ देर वहा बैठा तो गोपी खुद वहा पर आई और दूकान से उसने कुछ ख़रीदा और फिर घर की और जाने लगी तो फिर मै भी उसके पीछे पीछे जाने लगा क्योकी गाव के बिच तो में उसे बुला नहीं सकता क्योकी अगर किसीने देख लिया होता तो मै और दिव्या दोनों ही मुसीबत में आ जाते इसलिए में उसके पीछे पीछे उसके घर तक गया लेकिन उसको यह बात पता नहीं थी | वो अपने घर के अंदर चली गई |

     पुरे रास्ते मैंने उसे देखा तो मुझे लगा जैसे वो बीमार है पता नहीं क्या हुआ था | अब उसका घर तो मिल गया था लेकिन उसका घर भी जादवा सदन जितना बड़ा था अभी उस घर में घुसु कैसे और अगर घुस भी जाऊ तो गोपी कहा पर मिलेगी उस बात का कुछ पता नहीं था | फिर मेरा एक घंटा यही सोचने में निकल गया की गोपी से बात कैसे करू और बात करने के लिए घर मै कैसे घुसु ...अंश ने अपनी कहानी बताते हुए कहा |

     बाप रे गजब मर्द हो अंश हमारे यहाँ लड़की का पीछा करते हुए उसके घर पहुचना बहुत ही जिगरे की बात होती है फिर क्या हुआ उसके घर में कैसे घुसे तुम ...दिव्या ने सवाल करते हुए अंश ने कहा |

     घर में घुसने का सबसे पहला नियम है जो हर कोई घर में घुसने वाला अपनाता है की घर के पीछे चले जाओ आपको वहा पर कोई ना कोई तो रास्ता जरुर मिल जाएगा यह सोचकर में घर के पीछे गया और फिर जो हुआ वो बहुत ही गजब हुआ ...अंश ने कहा |

     ग़जब क्या हुआ होगा शायद कोई रास्ता मिला होगा ना ...दिव्या ने अंश से कहा |

     रास्ता नहीं मुझे गोपी ही मिल गई ...अंश ने दिव्या से कहा |      

     गोपी मतलब वो कैसे ...दिव्या ने अंश से कहा |

     वो एसे की मै रास्ता ढूढ़ रहा था घर के अंदर जाने का और वो रास्ता बना रही थी घर के बहार जाने का और जब में पीछे गया तो मै कोई रास्ता खोजु उससे पहले वो अपने घर के पीछे के दरवाजे से बहार आकर घर के पीछे की दीवार लांघते हुए मुझे दिख गई और फिर क्या था अपना तो काम हो गया | मैंने उसको देख लिया और उसने मुझ को ...अंश ने दिव्या से कहा |

     अरे वाह जनाब आपकी प्रेम कथा तो काफी निराली है ...दिव्या ने अंश से कहा |

     अरे नहीं एसा कुछ नहीं है और तुम ज्यादा सवाल ना करो देखो तुम्हारे सवाल के कारण अस्पताल आ गया और फिर हमारी कहानी आधी रहे गई ...अंश ने कार को अस्पताल में लाते हुए कहा |

     अरे कोई बात नहीं यार अंदर भी हमको कोनसा काम करना है समय तो निकालना है ना और क्या ...दिव्या ने अंश से कहा |

     हा वो तो ठीक है लेकिन चलो सबसे पहेले तुम मास्क लगा लो ...अंश ने कार को पार्क करते हुए कहा |

     अंश और दिव्या दोनों अपने अपने चहरे पर मास्क लगाकर अस्पताल में जाते है और डोक्टर से मिलते है और इस बार अंश डोक्टर को दिव्या को किसी खानगी कमरे में रखने की बिनती करता है जिससे पहले दिन जो हुआ था एसा दुबारा ना हो |

     दिव्या को अलग ही खानगी रूम में रखा जाता है और वहा उसे दवाई की बोटल और जो भी सारवार की कार्यवाही होती है उसकी शुरुआत की जाती है |

     चलो राजाजी करो अपनी दास्तान की शुरुआत अभी हमें १ घंटे तक कोई काम नहीं करना है ...दिव्या अंश से कहा |

     अरे यार बताता हु पर इस बार बिच में मत बोलना वो सारा ध्यान भटक जाता है ना इसलिए ...अंश ने दिव्या से कहा |

     ध्यान भटक जाता है मतलब कहा से गोपी के उपर से या कहानी से ...दिव्या ने अंश को चिड़ाते हुए कहा |

     अरे नहीं यार उस बात को अभी सालो बीत चुके है तो उतना अब इन बातो में नहीं खोता मै ...अंश ने दिव्या से कहा |

     ठीक है चलो में बिच में नहीं बोलूंगी तुम बोलना शुरू करो चलो ...दिव्या ने अंश से कहा |

     हा तो सुनो फिर माहोल कुछ एसा बना की वो जैसे ही दीवार के उपर चढ़कर उसे लांघने के लिए गई वैसे ही उसने मुझे देख लिया | में उसे देखता रहा और वो मुझे देखती रही | हम दोनों को लगा जैसे वक्त थम सा गया हो | कुछ देर एसा ही चला फिर वो दीवार से गिर गई और हम दोनों की नजर तब हटी जब दुर्घटना घटी... अंश ने दिव्या से कहा |

     ओय होय क्या प्रेम कहानी है आप दोनों की जब नजर हटी तो दुर्घटना नहीं घटी पर जब दुर्घटना घटी तो नजर हटी ...दिव्या ने फिर से बिच में बोलकर अंश की मजाक बनाते हुए कहा |

     देखो फिर से जा मै नहीं बताता तुझे अपनी प्रेम कहानी ...अंश ने कहा |

     अरे यार माफ़ कर दे चल अब पक्का कोशिश करुँगी की में ना बोलू ...दिव्या ने अंश से कहा |

     कोशिश करुँगी मतलब ...अंश ने दिव्या से कहा |

     अरे मतलब पक्का नहीं बोलूंगी एसा बस ...दिव्या ने अंश से कहा |

     हा तो वो निचे गिरी इसलिए मैंने सबसे पहले आस-पास में नजर की और फिर बाद में उसकी मदद के लिए आगे बढ़ा क्योकी गाव है यहाँ पर आपको अगर किसी ने लड़की के साथ देख लिया ना तो आप भले ही उसकी मदद कर रहे हो लेकिन उसके बाद आपके जो हाल होते है उससे आपको किसी और की मदद की जरुरत होने लगती है |

     में गोपी के पास गया और उसे अपना हाथ देकर खड़ा किया | कुछ देर हम दोनों एक दुसरे से शर्मा रहे थे फिर मैंने बात की शुरुआत की |

     हेल्लो गोपी ...अंश ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा |

     जी कहिए यहाँ पर कैसे ...गोपी ने अंश से कहा |

     अंश ने अपना हाथ आगे बढाया लेकिन गोपी ने अपना हाथ आगे नहीं बढाया इसलिए अंश भी अपना हाथ पीछे कर लेता है |

     जी मै तुम से ही मिलने आया था ...अंश ने गोपी से कहा |

     मुझ से क्या काम था ...गोपी ने अंश से कहा |

     अंश कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है की गोपी से क्या बात करू कोई शब्द ही नहीं सूझ रहे है बात करने के लिए |

     अरे हा वो तुम दो दिनों से स्कूल नहीं आई इसलिए में यहाँ चला आया की तुम स्कूल क्यों नहीं आई ...अंश ने गोपी से कहा |

     तुम्हे कोई छोटा काम हो तो यही पर बोल दो और बाते लंबी चलने वाली है तो फिर हमें फिर से इस दीवार को लांघकर अंदर जाना होगा जहा हमें कोई देखना ले ऐसे बाते कर सके क्योकी यहाँ पर कभी भी कोई भी आ सकता है ...गोपी ने अंश से कहा |

     गोपी का स्वभाव भी अंश जैसा ही था | वो दुनिया से बहुत अलग ही सोचती थी जिसे लडको के साथ बाते करना शरमजनक नहीं लगता था |

     चलो अंदर ही चलते है ...अंश ने गोपी से कहा |

     फिर हम दोनों उसी दीवार को लांघकर अंदर गए जहा से गोपी बहार आई थी | हम घर में छुपकर गए और फिर गोपी के कमरे में गए और वहा हमारे बोच पहेली बार बातो का सिलसिला शुरू हुआ |

     बोलो अब क्यों आए हो यहाँ पर ...अपना मु और नजर दोनों जमीन की और थी और गोपी ने कहा |

     में यहाँ वो तुम स्कूल क्यों नहीं आ रही दो दिनों से ...अंश ने फिर से सवाल करते हुए गोपी से कहा |

     सवाल करते करते अंश की नजर वहा गोपी के रूम में पड़ी उस डायरी पे जाती है जो इस कहानी की जड़ है |

     मेरे पीरियड चल रहे है और गाव में तुम्हे पता तो है की जब औरतो के पीरियड चल रहे होते है तो पहेले जो अछुत वाला रिवाज था वैसा ही सुलूक औरतो के साथ ४ दिन होता है | हम लोगो को चार दिन तक कोई ना छूता है और हमें ना कुछ भी छुने दिया जाता है तो इसी वजह से मुझे चार दिन तक स्कूल नहीं जाने दिया जाता | कभी कभी एसा लगता है की पढाई का मतलब ही क्या जब इस सब बेफ़ालतु रिवाजो का हमें बार बार शिकार होना है तो ...गोपी ने अंश से अपनी पीड़ा बताते हुए कहा |

     हा यार क्या करे हमारे यहाँ की औरतो की तो तक़दीर ही रिवाज है उनको यहाँ पे भेजा ही इसलिए जाता है ताकि इनके रिवाज का शिकार बन सके औरते | मुझे इसलिए पढ़ लिखकर यहाँ से बहार चले जाना है ताकि यहाँ की औरतो की तरह कभी भी मेरे घर की औरतो को यह सजा काटनी ना पड़े ...अंश ने गोपी से कहा |

     क्या करे यही तो हमारी किस्मत है ...गोपी ने अंश से कहा |

     नहीं किस्मत नहीं है पर तुम सब औरतो को साथ मिलकर यह सब बदलना होगा ...अंश ने गोपी से कहा |

     छोडो अंश जो हमारे बस की है उसकी बात करते है ना ...गोपी ने अंश से कहा |

     हा वो में ... में वो ...अंश बात करते हुए अटक रहा था |

     अंश जो भी कहेना चाहते हो बोल दो एसे गभराओ नहीं ...गोपी ने अंश से कहा |

     हा वो में कहे रहा था की वो तुम्हारी डायरी में जो लिखा हुआ है वो सारा मैंने पढ़ लिया है सबकुछ वो भी की तुम मुझे प्रपोझ करना चाहती थी और फिर तुम ने किया नहीं वो अलग बात है पर यही सवाल मुझे यहाँ तुम्हारे पीछे पीछे खीचकर लाया है की तुम मुझे इतना प्यार करती हो तो फिर प्रपोझ क्यों नहीं किया और प्रपोझ ना किया तो कोई नहीं पर बात भी नहीं कर पाई क्यों ? जहा तक मै जानता हु वहा तक तुम शरमाने वाली तो लड़की नहीं हो ...अंश ने गोपी से कहा |

     अंश की बाते सुनकर गोपी कुछ देर के लिए अंश को देखकर हसने लगती है |

     गोपी क्या हुआ तुम इतना हस क्यों रही हो मुझे जहा तक लगता है वहा तक मैंने कोई जोक तो नहीं मारा है है ना ...अंश ने गोपी की और देखते हुए कहा |

     गोपी पेट पकड़कर इतना हस रही थी की वो बोलने की हालत में नहीं थी जिस वजह से वो अपने हाथो के इशारो से अंश को मना करती है की नहीं तुमने कोई जोक नहीं मारा है |

     अरे यार हसना बंद करो और कुछ बोलो हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है यार ...अंश ने गोपी से कहा |

     अच्छा अच्छा सॉरी बाबा सॉरी मुझे माफ़ कर देना तुम को कोई ग़लतफहमी हो गई है यह डायरी और इस डायरी में लिखी हुई सारी बाते मेरी नहीं है किसी और की है जैसे यह तुमको मिली थी वैसे ही तुम्हारे पहले मुझे | पढ़ा मैंने सब इस डायरी में जो लिखा है वो बहुत प्यार करती है तुम से और जैसा तुम्हारे बारे में लिखा है अगर तुम वैसे ही हो तो मुझे भी तुम से प्यार हो जाएगा यार सच में तुम एसे इंसान हो ...गोपी ने डायरी का सच बताते हुए कहा |

     क्या मतलब यह डायरी तुम्हारी नहीं है बाप रे बाप मै यह समझकर तुम्हारे पीछे यहाँ तक आ गया और साला दो रात से सोया नहीं यह समझकर की तुम मुझ से प्यार करती हो और इस चक्कर में शायद में भी करने लगा तुम से यार ...अपने शिर पर दोनों हाथ रखते हुए अंश ने कहा |

     कमाल है यह डायरी अंश इसने हम दोनों को लटका दिया पर अब सवाल यह उठता है की यह डायरी है किसकी उसको ढूढना होगा और उसे यह लौटानी होगी क्योकी इसमें उसकी पर्सनल बाते लिखी हुई है यार ...गोपी ने अंश से कहा |

      हा यार सही बात है और हा सब से पहले तो सॉरी में तुम्हारे पीछे यहाँ तक आ गया और दुसरा तुम सही कहे रही हो हमें इस डायरी वाली को ढूढना ही होगा क्योकी उसने ना तो इस में अपना नाम लिखा है और ना ही पता ...अंश ने गोपी से कहा |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY