हमने दिल दे दिया - अंक २३ VARUN S. PATEL द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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हमने दिल दे दिया - अंक २३

  अंक २३. अस्पताल जाने की तैयारी    

    सुबह के करीब १० बज चुके थे और अंश और उसके दोस्त दिव्या को अस्पताल ले जाने के लिए तैयार थे | अंश अभी तक अपने घर पर ही था | अंश अपने फ़ोन से अशोक को फोन लगाता है | अशोक के फोन की घंटी बजते ही अशोक फोन उठाता है |

    हा अंश बोल ...अशोक ने फोन उठाते ही कहा |

    कितनी देर अशोक तुम्हे पता तो है जितना हो सके उतना जल्दी आना था ...अंश ने घर में इधर उधर चक्कर लगाते हुए कहा |

    सॉरी सॉरी १० मिनट में पंहुचा यह पापा निकल नहीं रहे थे इसलिए | बस में आ ही रहा हु तु अपने घर के बहार खड़ा रे चल ...अशोक ने कहा |

    जितनी देर में अशोक अंश के घर अपनी कार लेकर पहुचता उतनी देर में अंश बाकी के दोस्तों को भी फ़ोन कर लेता है | सबसे पहले अंश चिराग और पराग को फोन लगाता है |

    कहा हो तुम दोनों अब तक तो आ जाने की बात थी हवेली के पास में ...अंश ने कहा |

    मेरे भाई क्यों परेशान हो रहा है तुझे पता है ना चिराग हमेशा अपने सही वक्त पे पहुच ही जाता है में और पराग हम हवेली के पीछे की और पहुचकर बैठे है और तुम लोगो का आने का इंतजार कर रहे है ...चिराग ने कहा |

    साबास चलो हम भी वहा पर पहुच रहे है ...अंश ने कहा |   

    चिराग को फोन लगाने के बाद अंश ख़ुशी को फोन लगाता है | ख़ुशी के फोन में अंश का फोन आते ही फोन के डिस्प्ले पर अंश की जगह अब नाम love करके दिखा रहा था जिसका सीधा मतलब आपको पता ही है | ख़ुशी अपना फोन उठाती है |

    हा अंश बोलो शुभ प्रभात ...ख़ुशी ने कहा |

   शुभ प्रभात ख़ुशी अभी यह बताओ की वहा का हाल चाल क्या है कोई खतरा तो नहीं है ना ...अंश ने ख़ुशी से सवाल करते हुए कहा |

   अभी तक तो कोई खतरा नझर नहीं आ रहा है अगर आगे से कुछ होता है तो में फ़ोन करके बताउंगी ...ख़ुशी ने कहा |

   ठीक है तो हम निकलते है ...अंश ने ख़ुशी से कहा |

   हा कोई बात नहीं ...और अच्छा सुनो अंश ...ख़ुशी ने कहा |

   हा ख़ुशी बोल ना ...अंश ने ख़ुशी से कहा |

   संभालकर जाना और सब अपना ख्याल रखना ...ख़ुशी ने कहा |

   अब धीरे धीरे ख़ुशी के हाव भाव अंश के लिए बदल रहे थे जिसका अंश को जरा सा भी अंदाजा नहीं था |

   हा ठीक है में फोन रखता हु ...अंश ने फोन रखते हुए कहा |

   अशोक अपने पिता की काले शीशे वाली कार लेकर अंश के घर के बहार पहुचता है जहा अंश घर के बहार उसका इंतजार कर रहा था | अंश के हाथ में एक बेग थी जिसमे कुछ सामान था | अंश सामान को कार के पीछे की और रखकर आगे बैठ जाता है और दोनों हवेली की और जाने के लिए निकल जाते है |

   अशोक और अंश दोनों हवेली की पीछे की और पहुचते है जहा पर चिराग और पराग उनका इंतजार कर रहे थे | चारो हवेली के पीछे की और इकठ्ठा होते है |

   चलो अब बिना समय गवाए में अंदर जाता हु तुम में से कोई एक यहाँ पर रहेगा और एक आगे और एक गाव में बैठेगा मेरे और दिव्या के यहाँ से निकलने के बाद ठीक है ...अंश ने अपने सारे दोस्तों को समझाते हुए कहा |

   ठीक है अंश तु अंदर जा हम लोग यही पर खड़े है तुम दोनों जब यहाँ से निकलो तब हम लोग अपनी अपनी पोजीसन ले लेंगे ...चिराग ने कहा |

   अंश कार में से अपनी बेग निकालता है और पराग को देता है |

   यह ले मेरे उपर चढ़ ने के बाद तु मुझे दे देना ठीक है और चिराग अपनी मोटर-साईकल लगा इस तरफ ...अंश ने कहा |

   अंश हर बार की तरह इस बार भी दीवार चढ़ जाता है और फिर पराग उसे वो बेग दे देता है और फिर जैसे हर बार अंश दिव्या के रूम पर पहुचता है वैसे ही इस बार भी अंश दिव्या के रूम पर पहुचता है | कक्ष का दरवाजा खुला पड़ा था और दिव्या खिड़की से बहार की और देख रही थी |

    हेल्लो नमस्ते ...अंश ने अंदर जाते हुए कहा |

    ओह हेल्लो नमस्ते अंश ...दिव्या ने पीछे मुड़कर अंश को देखते हुए कहा |

    अस्पताल जाना है की नहीं ...अंश ने दिव्या से कहा |

    जीवन में पहली बार अस्पताल जाने की इतनी जल्दी है | में अभी खिड़की से वही देखने की कोशिश कर रही थी की बहार कैसा होगा | भले ही यहाँ पे मुझे केद हुए कुछ ही दिन हुए हो पर लगता है यहाँ पर केद हुए साल बीत गया हो ...दिव्या ने कहा |

    कभी केद में तो नहीं रहा पर हा जब माँ के जाने के बाद एक महिना उसके बिना गुजरा तब महिना ही गुजरा था पर लग रहा था माँ को हमें छोड़कर जा चुके सालो बीत चुके हो ...अंश ने दिव्या से कहा |

    बहुत कठिन समय होता है यह अंश जब बिना कोई वजह सपने अपना जीवन आप निकाल रहे हो ...दिव्या ने कहा |

    हा पर तुम्हारे जीवन मी वजह को वापस में लेकर आऊंगा तुम बस अभी यह सब छोडो और तैयार हो जाओ अस्पताल जाने के लिए और आज हम खाना भी बहार ही खायेंगे ...अंश ने दिव्या से कहा |

    यह ठीक है अंश thank you ...दिव्या ने खुश होकर कहा |

    तुम्हे डर नहीं लगा दिव्या ...अंश ने ख़ुशी से कहा |

    नहीं क्यों ...दिव्या ने अंश से कहा |

    मुझे लगा तुम भी दुसरी टिपिकल महिलाओ के जैसे डर जाओगी की नहीं नहीं किसी ने देख लिया तो ...अंश ने हस्ते हस्ते दिव्या से कहा |

    अभी तुम्हे कहा पता है में कितनी पागल हु कभी ख़ुशी से जानना मेरे पुराने दिनों की बाते ...दिव्या ने कहा |

    अरे ख़ुशी से क्यों जाने आप ही से जानेंगे आप ही बताना लेकिन अभी जल्दी से यह ड्रेस पहेनकर तैयार हो जाओ हमें निकलना है ...अंश ने अपनी बेग में से अपनी बहन का ड्रेस निकालते हुआ कहा |

    अंश की बहन का ड्रेस देखकर दिव्या अपना हाल देखती है सफ़ेद सारी में और रोने लगती है | ड्रेस को देखने के बाद दिव्या को अपने पुराने दिन याद आने लगते है और रोने लगती है |

    बस अब रोना बंद करो और जीना शुरू करो और यह ड्रेस पहेन लो ...अंश ने दिव्या के पास आकर उसकी आखो के आशु पोछते हुए कहा |

    यार कैसा जीवन हो गया है जो ड्रेस में हर दम पहनती थी आज वही पहनने में मुझे हिचकिचाहट होने लगी है ...दिव्या ने अंश से कहा |

    सिम्पल है तुम इस ड्रेस को दुबारा से पहेनकर हिचकिचाहट को दुर कर दो ...अंश ने कहा |

    तुम्हारा यह अच्छा है की तुम हर एक चीज को बहुत ही सिम्पल बना देते हो ...दिव्या ने अंश से कहा |

   अभी तो में भी शुरू हुआ हु तुम आगे आगे देखो में क्या क्या करता हु ...अंश ने कहा |

   ठीक है तो तुम थोड़ी देर के लिए बहार चले जाओ तो में यह कपडे बदल लु ...दिव्या ने अंश से कहा |

   अरे हा में जाता हु ...बहार जाते हुए अंश ने कहा |

   अंश कुछ देर के लिए बहार खड़ा रहेता है और दिव्या कक्ष में अंदर अपने कपडे बदल लेती है फिर कक्ष का दरवाजा वापस से खोलकर अंश को वापस बुला लेती है | अंश अंदर जाता है और पहेली बार दिव्या को ड्रेस में देखता है | नीले कलर का ड्रेस दिव्या पर खूब जच रहा था लेकिन उसने अपने गंजे शिर को ड्रेस के दुपट्टे से ढक लिया था क्योकी उससे शायद एसे अंश के सामने जाने से शर्म हो रही थी और यह दिव्या के सामने खड़ा अंश बहुत अच्छे से समझता था | अंश दिव्या के पास जाता है और उसका दुपट्टा उसके माथे से हटा देता है |

    लोगो का मत सोचो तुम जैसी हो और तुम्हे जैसा रहेना है वैसे ही रहो बाल होना ना होना इसका तुम्हारी सुंदरता से कोई लेना देना नहीं है तुम अच्छी ही लगती हो | लोगो का सोचोगे तो उनकी संतुष्टि के लिए तुम जान भी दे दोगी तब भी उनका कुछ ना कुछ तो अधुरा रहे ही जाएगा इसलिए हटा दो यह दुपट्टा और जैसी हो वैसे ही अपने आप को स्वीकार कर लो ...अंश ने दिव्या से कहा |

   अंश की इतनी अच्छी सोच को देखकर दिव्या अंश से और भी प्रभावित हो जाती है और धीरे धीरे उसे अब अंश से प्यार होने लगा था | प्यार एसी भावना है जो जब आपके अंदर पनपती है ना तो आप को आपके आसपास की किसी भी परिस्थिति का कोई होश नहीं रहेता आपको बस सिर्फ और सिर्फ प्यार ही नझर आता है और उस वक्त आपके हर एक निर्णय प्यार की और ही झुके रहेते है |

   तुम्हारी सोच कितनी अच्छी है अंश मेरे जीवन में तुम्हारे जैसा लड़का क्यों नहीं था या क्यों नहीं है ... अंश के सामने प्यार भरी नजरो से देखते हुए दिव्या ने कहा |

   दिव्या पता नहीं की यह लकीरे क्या चाहती है पर मेरा बस जिस दिन चला ना तो में तुम्हे जरुर अपने दिल में बसा लुंगा और पुरा जीवन तुम्हे खुश रखुंगा क्योकी मुझे लगता है अब मुझे पक्का तुम से प्यार हो गया है ...अंश ने भी प्यार भरी नजरो से दिव्या के सामने देखते हुए कहा |

   दोनों एक दुसरे की नजरो में डूब से गए थे जैसे लग रहा था की दोनों प्यार भरे समंदर में तैर रहे हो जिन्हें किनारों का कोई होश ही नहीं था | दोनों एक दुसरे के प्रेम भरे समंदर में डूबे ही थे उतने में अशोक का फोन आता है और दोनों अपनी अपनी भावनाओ में से बहार आ जाते है और कुछ देर के लिए एक दुसरे से नजरे चुराने लगते है | अंश जल्द से अपनी जेब से अपना फोन निकालता है और उठाकर अशोक के साथ बाते करने लगता है |

   हा अशोक बोल ...अंश ने फोन उठाते हुए कहा |

   कहा रहे गए तुम लोग जल्दी करो यहाँ से निकलो फिर वहा जाके जितना समय निकालना है निकाल लो पर अभी जल्दी से यहाँ से निकलो ...अशोक ने कहा |

   हा हा पाच मिनट में बहार पहुचे तुम लोग तैयार रहो ...अंश ने फोन काटते हुए कहा |

   चलो जल्दी से गाव से निकल जाते है कही कोई देख ना ले ...दिव्या ने अंश से कहा |

   सारे दोस्त मिलकर गाव के रिवाज की बार बार धजिया उड़ा रहे थे जिसकी सजा बहुत हु भयानक थी | अगर कभी भी इस कार्य के साथ अंश और उसके दोस्त पकड़े गए तो अंजाम बहुत बुरा होने वाला है |

TO BE CONTINUED NEXT PART ...

|| जय श्री कृष्णा ||

|| जय कष्टभंजन दादा ||

A VARUN S PATEL STORY