आकाश को कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन सच तो यह था वो आज ज्यादा कुछ समझना भी नहीं चाह रहा था क्योंकि कभी-कभी ज्यादा समझदारी छोटी-छोटी खुशियों और मजे को खत्म कर देता है कर देती है | दोनों कुछ पल के लिए अपनी दुनिया में खो गए, उस दुनिया में जहां कोई उन्हे रोकने टोकने वाला नही था |
कुछ देर बाद संदीप ने कंपकंपाते हुए कहा- "ईईईई.....मुझे अब बहुत सर्दी लग रही है, अब हमें चलना चाहिए, क्या यार तुम तो कह रहे थे तुम्हें बारिश पसंद नहीं है और तुम्हें कोई ठंड नहीं लग रही मैं तो ठंड से जमा जा रहा हूं" |
आकाश ने न चाहते हुए संदीप को अपने से अलग किया और कहा- " हां... हां... चलो.. अब घर चलते हैं, ये नमन और पूजा भी न जाने कितने पार्टी लवर हैं अभी तक बाहर नहीं आए और अब तो बारिश भी जोरों की हो रही है, ऐसा करते हैं हम दोनों चलते हैं, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ कर निकल जाउंगा, और नमन को मैं फोन करके बता देता हूं कि मै अब जा रहा हूं "|
ये कहकर आकाश ने नमन को फोन किया और बोला कि अब वो घर जा रहा है, नमन ने उसे रुकने के लिये कहा लेकिन आकाश नही माना तो नमन ने भी हां कर दी |
आकाश ने फिर सन्दीप का हांथ पकड कर कहा “ अब चलो हम चलते हैं, मैं तुम्हे छोड दूं फिल जाऊं” |
संदीप ने हंसते हुए कहा “ हम..???? मुझ पर इतना फ्लर्ट करने की जरूरत नही, मैं खुद घर चला जाऊंगा मेरे पास बाइक है” |
आकाश ने उसको समझाते हुए कहा “ लेकिन इतनी बारिश में बाइक से जाओगे तो बीमार पड़ जाओगे, कार से चलो, बाइक सुबह आकर उठा लेना” |
संदीप ने प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ उसकी ओर देखा, सच तो यह था ना आकाश संदीप को जाने देना चाहता था और ना संदीप आकाश को लेकिन दोनों एक दूसरे से कह नहीं पाए और फिर दोनों कुछ देर बात करने के बाद अपने अपने घर चले गए |
आज पहली बार आकाश इतना खुश था, उसे अपने पूरे होने का एक एहसास हो रहा था, जो आज से पहले कभी नहीं हुआ | उसका मन मानो चंचल हिरनी की तरह किसी फूलों के बाग में इधर-उधर डोल रहा हो, उसे बार-बार संदीप का भीगा हुआ चेहरा और उसके ठंडे होंठों का स्पर्श याद आ रहा था | अब उसे यह समझ आ चुका था कि वह क्या चाहता है लेकिन उसे दुनिया और समाज का भी डर था जिसके बारे में वो सोच कर ही परेशान हो गया लेकिन संदीप की याद में फिर उसके मन में प्यार की चिंगारी जला दी, पूरी रात वह संदीप के बारे में सोचता रहा और ना जाने कब सो गया | बारिश भी लगातार पूरी रात होती रही और सुबह जाकर थमी |
सुबह उठते ही आकाश ने खिड़की से पर्दा हटाया तो कोहरे को चीरती हुई एक नन्हीं सूरज की किरण उसके कमरे तक आ गई | वह मुस्कुराते हुए उस किरण के आगे खड़ा हो गया जिससे वह कोमल धूप उसके चेहरे पर पड़ने लगी, ऐसा लग रहा था कि कोई बड़े प्यार से कोमल हाथों से उसके चेहरे को सहला रहा हो, वह आंखें बंद करके फिर से संदीप के बारे में सोचने लगा कि तभी उसके मोबाइल की मैसेज टोन बजी, जब उसने अपना फोन चेक किया तो मोबाइल पर संदीप का मैसेज था जिसमें लिखा था, "गुड मॉर्निंग.. क्या कर रहे हो, रात को नींद आई या मेरी तरह तुम भी जागते रहे" |
मैसेज को पढ़कर आकाश को एक गुदगुदाहट सी होने लगी |
वो फिर से बेड पर लेट गया और मुस्कुराते हुए उसको जवाब लिखकर भेजा, "मैं तो आकर तुरंत ही सो गया था, और मुझे तो कल बाकी दिनों से ज्यादा अच्छी नींद आई थी क्यों तुम्हें क्या हुआ आखिर तुम्हें नींद क्यों नहीं आई? कहीं बुखार तो नहीं आ गया? अगर बुखार हो तो पहले ही कोई टैबलेट खा लेना वरना ज्यादा बीमार पड़ जाओगे?”
संदीप बड़ी खामोशी से उसके मैसेज पढ़ रहा था, उसने भी आकाश को लिखकर भेजा “ हाऊ बोरिंग" |
आकाश ने जवाब में" हाउ बोरिंग एंड रूड" लिखकर भेज दिया | इस पर आकाश खूब हंसा क्योंकि वह जानता था कि संदीप उसके मुंह से क्या सुनना चाहता था लेकिन आकाश भी कम नहीं था वह चाहता था की पहल संदीप की तरफ से हो | मैसेज़ का सिलसिला यूं ही चलता रहा |
ऐसे ही ये छोटी सी प्रेम कहानी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी, आकाश और संदीप अब जल्दी-जल्दी मिलने लगे और एक दूसरे को और ज्याद समझने लगे, आकाश संदीप की कहानियां सुनता और संदीप आकाश की पेंटिंग देखकर उसकी हजारों तारीफें करता | आकाश हमेशा उसकी सारी बातें बड़ी गौर से सुनता वह चाहे कितनी भी बोरिंग और पकाऊ बातें करे और यह चीज संदीप को भी बहुत अच्छी लगती कि कोई इतने प्यार से सुनने वाला उसके पास है” |
वक़्त धीरे धीरे आगे बढ रहा था, दोनों पहले तो वीकेंड पर ही मिलते थे लेकिन मुलाकातों का सिलसिला अब वीक डेज पर भी होने लगा, दोनों दिन भर अपना काम खत्म करके शाम को जल्दी फ्री हो कर कहीं किसी पार्क में या कहीं किसी रेस्टोरेंट में मिल लेते |
अब दोनों को अपनी जिंदगी पूरी सी लगने लगी थी, जहां आकाश सीधा-साधा साधारण सोच वाला था, वहीँ संदीप बिंदास लहरों के जैसा तेज और चुलबुला लड़का था, दोनों एक दूसरे के बिल्कुल विपरीत थे लेकिन फिर भी दोनों कितने एक थे |
आकाश जल्दी-जल्दी अपना काम निपटा कर संदीप से मिलने के लिए निकल जाया करता था क्युंकि उसका काम तो खुद की मर्जी का था | वह कई घंटों तक इंतजार करता तब जाकर संदीप आता था लेकिन आकाश कभी उससे शिकायत नहीं करता |
संदीप जब आता तो अक्सर कहता कि “ वीकेंड पर मिल लिया करो इससे तुम्हारा टाइम खराब नहीं होगा क्योंकि मैं जल्दी फ्री नहीं हो पाता, तुम तो जानते हो ना ये ऑफिस के बॉस लोग, जहां ऑफिस से निकलने का टाईम हुआ कि बस इन्हे कोई ना कोई अरजेंट काम याद आ जायेगा और बस पकडा देंगे, बस इसीलिये तो गुस्सा आता है, लेकिन क्या करूं, नौकरी भी तो करना है, कहां सोचा था कि ये करूंगा..वो करूंगा और कहां ये नौकरी, खैर यार वो सब छोडो, सच कहूं तो मुझे इस तरह से तुम्हे इंतज़ार कराना अच्छा नही लगता” |