दाई अम्मा S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दाई अम्मा

                                        

                                      कहानी - दाई अम्मा  

 

अरुण की नयी नयी शादी हुई थी  .  उस दिन  रांची से बारात  लौट कर आने वाली थी   . आजकल तो औरतें भी बारात में जाने लगीं हैं   . अरुण की दोनों बड़ी बहनें भी बारात गयी थीं   . अरुण के पापा वर्माजी अपनी नयी बहू को ले कर धनबाद लौट रहे थे   . दुर्भाग्यवश  वर्माजी की पत्नी का देहांत शादी के चंद वर्षों के बाद हो गया  था पर तब तक वे तीन बच्चों के पिता बन गए थे  . दो बसों और तीन कार से बारात गयी थी और अब लौटते समय एक और नयी  कार भी  हो गई  थी  . अरुण को ससुराल से मारुती स्विफ्ट डिजायर कार  मिली थी   . वहां धनबाद में  सिर्फ कुछ बूढ़े रिश्तेदार और  बूढी औरतें रह गयीं थीं जो स्वास्थ्य कारणों से बारात नहीं जा सकती थीं   . 


रांची से लौटते समय अरुण ने बहनों से कहा  “ दीदी  , आप दोनों नयी कार में मेरे और बहू के साथ बैठना    . “ 


अरुण की सबसे बड़ी बहन मीरा  ने कहा “ नहीं , हम दोनों बहनें  तुमलोगों से काफी पहले अपनी कार में जाएंगे    . तुम्हारी बिदाई में अभी कुछ समय लगेगा   . मैंने तुम्हारे सास ससुर से जाने की इजाजत ले ली है ताकि पहले पहुँच कर नयी बहू के स्वागत  की तैयारी ठीक से कर सकें   . वैसे तुम्हारी बुआ और मौसी लोगों ने सब तैयारी  कर रखा होगा फिर भी हमें वहाँ होना चाहिए   . “ 


मीरा  और उस से छोटी बहन माला दोनों अपनी छोटी भाभी के  स्वागत की तैयारी देख कर संतुष्ट थीं और बारात के लौटने का इंतजार कर रही थीं , तभी अरुण के पापा  का फोन आया “ मीरा , हमलोग बैंक मोड़ तक आ गए हैं   . रोड थोड़ा जाम है फिर भी आधे घंटे में पहुंचने की उम्मीद है    . सब तैयारी कर ली हो न   . “ 


“ जी , हमलोग काफी देर से आपलोगों के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं   . “ 


बस से लौटने वाले लोकल बाराती जगह जगह अपने अपने घर के निकट उतरने लगे थे   . बस में गिने चुने बाराती बचे थे  .  सभी नजदीकी रिश्तेदार कार से लौट रहे थे उन्हें वर्माजी के घर तक जाना ही था   . 


अरुण की कार  घर के सामने रुकती इसके पहले ही औरतों ने परिछावन के गीत गाना शुरू कर दिया    . अरुण अपनी नयी नवेली पत्नी सुधा के साथ कार से उतरा   . कुछ देर में दरवाजे पर पारिवारिक रीति रिवाज से बहू के गृहप्रवेश की  रस्में पूरी हुईं और वर वधू दोनों अंदर गए   . 


सुधा और अरुण दोनों को घर के सभी बड़े सदस्यों को चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना था   . दोनों ने बड़ी बुआ और मौसी को प्रणाम कर उन से आशीर्वाद लिया   . इसके बाद मीरा ने  एक औरत को आवाज दे कर बुलाते हुआ कहा “ दाई अम्मा , आप आगे आईये और दोनों को आशीर्वाद दीजिये   . “ 


दाई अम्मा सुन कर सुधा ने उस औरत की तरफ देखा   . वह एक साधारण सांवली विधवा औरत थी   . दाई अम्मा ने अरुण के कुछ रिश्तेदारों की तरफ इशारा किया तब मीरा ने कहा “ हाँ ठीक है वे भी आएँगी  आप आगे आ कर इन्हें आशीर्वाद दें     . “ 


सुधा को यह कुछ अजीब सा लगा   . वो औरत साधारण भेष में देखने से दाई ही लग रही थी और उसकी ननदें  इसे इतना तवज्जो क्यों दे रही  हैं   . उसने सोचा खैर उसे क्या लेना देना दाई से , इनके कहने पर एक बार इसके  पैर छू लेती हूँ   . सुधा ने औपचारिकता निभाते हुए दाई अम्मा के पैरों पर थोड़ा झुक कर उन्हें छूने का उपक्रम भर किया  . दाई अम्मा भी उसकी मंशा समझती थीं , सुधा पैर छुए इसके पहले ही उन्होंने उसके सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया “ दूधो नहाओ पूतो फलो दुल्हन  . “ 


वर्माजी के यहाँ का चलन था कि सुबह में उठने के बाद छोटे सदस्य बड़ों के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लेते थे  . अगले दिन भी सुधा को यही  करने के लिए कहा गया तब सुधा  ने अरुण से पूछा “ क्या रोज रोज ऐसा करना जरूरी है  . “ 


“ बड़ों के प्रति सम्मान की यह  प्रथा हमारे घर में पीढ़ियों  से चली आ रही है  . हम इसे अपना संस्कार मानते हैं और जरूरी समझते हैं  . इसमें बुरा क्या है ? “  अरुण ने कहा 


“ मैंने अपने यहाँ ऐसा कभी नहीं देखा है इसलिए कुछ अटपटा सा लगता है  . और ऊपर से दाई के पैर छूना तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता है  . “ 


“ सुधा , वे दाई नहीं हैं  . उन्होंने मुझे जन्म नहीं दिया है पर  वे हमारी माँ है या माँ से भी बढ़ कर  . तुम्हें अच्छा लगे या न लगे मैं तो ऐसा करता रहूँगा जब तक मैं जिन्दा हूँ या फिर जब तक दाई अम्मा जिन्दा हैं  .  “ 


“ हमारी माँ से बढ़ कर क्या मतलब ? सुधा ने पूछा 


“ हमारी मतलब हम तीनों भाई बहनों का  . “ 


“ वो कैसे ? “


“ यह एक बड़ी कहानी है  . तुम्हें बताऊँगा पर मेहमानों के जाने के बाद  . क्या कम से कम तब तक तुम इस रस्म को निभा सकती हो ? “ 


“ 


दो तीन दिनों में परिवार के बाकी रस्मों को निभाने के बाद सभी गेस्ट विदा हो गए थे  . घर में अरुण उसकी पत्नी सुधा , वर्माजी और दाई अम्मा रह गयी थीं  . 


अरुण  अपने पापा के बनाये घर में ही उनके साथ रहता था  . वह पापा को अकेले नहीं छोड़ना चाहता था  और वर्माजी अपने बनाये मकान में ही रहना चाहते थे  . उनका एक डुप्लेक्स घर था ,नीचे एक बेड  रूम , एक सर्वेंट रूम और  एक गेस्ट रूम के अलावा किचेन , डाइनिंग , ड्राइंग रूम और बाथ रूम थे  .  वर्माजी खुद तो ग्राउंड फ्लोर पर रहते थे और अरुण अपनी पत्नी के साथ ऊपर रहता था  . वैसे ऊपर तीन कमरे थे  . बाकी के दो कमरे अरुण की बहनों के लिए थे  . दाई अम्मा डुप्लेक्स से सटे एक सर्वेंट रूम में रहती थीं  . सर्वेंट रूम सिर्फ नाम के लिए था वह भी करीब करीब उतना ही फर्निश्ड था जितना वर्माजी का कमरा  . 


 अरुण एक सरकारी नवरत्न कम्पनी के आईटी विभाग में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था हालांकि मुंबई और बेंगलुरु की मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में उसे बेहतर ऑफर मिल रहे थे पर वह पापा के साथ ही रहना चाहता था   . यह बात  सुधा को पसंद नहीं थी  . दूसरी बात जो सुधा को पसंद नहीं थी वह था प्रतिदिन दाई अम्मा के पैर छूना  . इसको लेकर उसने अपनी नाराजगी जताई थी पर अरुण ने साफ़ साफ़ कह दिया था कि जो भी हो वह पापा के साथ ही रहेगा  .इतना ही नहीं , वह दाई अम्मा को भी बुढ़ापे में अकेला नहीं छोड़ सकता है  . एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा   . सुधा को दाई अम्मा को आजीवन झेलना मंजूर नहीं था  . वह दाई अम्मा से छुटकारा पाने का अवसर खोज रही थी , पर अरुण और उसके पापा दोनों इसके विरुद्ध थे  . 


दो तीन दिनों के बाद जब सभी मेहमान लौट गए तब सुधा ने अरुण से कहा “ क्या  हमारा दाई अम्मा के साथ रहना जरूरी है ? तुम्हें तो कम्पनी से फ्लैट भी मिलता है  . “ 


“ हाँ , मैंने कहा न दाई अम्मा को हमलोग अकेले नहीं छोड़ सकते हैं  . “  अरुण ने कहा 


“ ऐसी कौन सी मजबूरी है या कितना बड़ा कर्ज खाया है उनका कि उन्हें साथ रखना तुम्हारी मजबूरी है  ? “ 


“ क्यों एक ही बात बार बार छेड़ती हो तुम ? “ 


“ अच्छा मान लो नहीं छेड़ती , पर तुमने कहा था कि सभी गेस्ट चले जायेंगे तब तुम दाई अम्मा की कहानी विस्तार से सुनाओगे  . अब तो सभी गेस्ट चले गए हैं , तुम बता सकते हो  . “ 


“ ओके , आज रात डिनर के बाद इस विषय पर बात करेंगे हमलोग  . ठीक , अब तो खुश ? “ 


“ हाँ  . “ 


 उस दिन रात्रि में डिनर के बाद जब सुधा ने अरुण से पूछा “ अब तो बताओ कि दाई अम्मा को तुम्हारे परिवार में इतनी तवज्जो क्यों दी जाती है ? “ 


“ ठीक है लो सुनो , सुनाता हूँ  पर जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ हूँ बहुत कुछ मैंने बड़े लोगों से सुना है  . फिर बाद में जब मुझे भी होश हुआ तब मैंने भी बहुत कुछ  देखा है और महसूस किया है  . शादी के सात वर्षों के  बाद मम्मी हमलोगों को छोड़ चल बसीं पर तब तक वे तीन बच्चों को जन्म दे  चुकी थीं   . मुझे कहा गया कि मेरे जन्म के  दो  महीने के अंदर ही माँ का निधन हो गया था   . हम तीनों भाई बहनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं है  .हालांकि  मीरा दी ही सबसे बड़ी हैं और कम उम्र से ही उन्होंने अपने छोटे भाई बहनों को बहुत प्यार किया  है  फिर भी वे इतनी बड़ी नहीं थीं कि  पूरे घर का ख्याल रख सकें  . 


“ मम्मी की डेथ के बाद कुछ दिनों तक हम तीनों भाई बहन दादा दादी के पास रहे थे पर एक साल के अंदर ही दादी भी चल बसीं  . दादी की मौत के बाद हम लोग वापस पापा के साथ रहने लगे   . उन दिनों हमारे  घर के सामने ही एक घर में एक बालविधवा औरत रहती थी  . उसका अपना कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं था  . उसका एक भतीजा था वही कभी कभी उस से मिलने आता था  . हमें बाद में पता चला कि शायद वही भतीजा उस औरत के मकान का वारिश होगा  .उसने मकान का एक हिस्सा किराए पर दे रखा था  . जब मम्मी जिन्दा थी उन्हीं दिनों से दाई अम्मा हमारे यहाँ आया करती थी  .  हमारी और मम्मी की देखभाल करती और घर के कुछ अन्य कामों में भी मदद करती थी  . बदले में वह कोई रकम नहीं लेती थी बल्कि अक्सर उसका खाना पीना हमारे ही घर होता था  . बाद में मम्मी पापा के कहने पर हमलोग उसे दाई अम्मा कहने लगे और घर के बड़े सदस्य जैसा सम्मान देने लगे  . मम्मी के गुजर जाने के बाद पापा ने दाई अम्मा को हमारे आउट हाउस में शिफ्ट करने को कहा और तभी से लगातार वे हमलोगों के साथ ही रहने लगीं  . इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने हम तीनों भाई बहनों को अपनी सगी संतान की तरह पालपोस कर बड़ा किया है  . पापा ने दूसरी शादी इसलिए नहीं की कि न जाने सौतेली माँ हमारे साथ कैसा व्यवहार करती और शायद हमलोग भी दिल से सौतेली माँ को स्वीकार नहीं करते और न ही उतना सम्मान देते जितना कि हम दाई अम्मा को दे रहे हैं  .  उनके बिना हम अपने परिवार के वजूद की कल्पना नहीं कर सकते हैं   . “ 


“ यहाँ तक तो ठीक है , पर कोई जरूरी नहीं है कि पीढ़ी दर पीढ़ी सभी आने वालों को  उनका सम्मान करने के लिए फ़ोर्स किया जाए  . सम्मान दिल से किया जाता है फ़ोर्स कर सम्मान नहीं लिया जाता है  . न जाने क्यों मुझे रोज रोज उनके पैर  छूना अच्छा नहीं लगता है  . “  सुधा ने बीच में टोका 


अरुण बोला “ कोई बात नहीं , तुम्हें अच्छा नहीं लगता तो तुम  उनके पैर न छूना पर दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते तो कर सकती हो  . अगर वह भी नहीं मंजूर तब अगर उनका आदर नहीं कर सकती हो तो कम से कम अनादर या तिरस्कार तो नहीं करना  . “ 


सुधा कोई जवाब न दे कर खामोश रही  . अरुण ने समझ लिया कि सुधा को अब और कुछ कहना ठीक नहीं होगा  . पर इसके बाद से सुधा  रोज सुबह सुबह दाई अम्मा  के पैर न छू कर बदले में उन्हें नमस्ते ऑन्टी जरूर कहती  . अरुण भी इतने से संतुष्ट था  . इस   तरह से उनके दिन महीने और वर्ष गुजरते गए  . अरुण भी एक बच्चे का पिता बन गया था   . उसका बेटा बंटी भी दाई अम्मा की देखभाल में बड़ा हो रहा था   . 


 इसी बीच वर्माजी भी चल बसे   .उनके अंतिम संस्कार  पर परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे   . सभी लोग दुखी थे पर लोगों ने महसूस किया और खास कर सुधा ने कि दाई अम्मा उनके पार्थिव शरीर पर फूट फूट कर रो रहीं थीं   . सुधा ने गौर किया कि दाई अम्मा ने वर्माजी के चरण स्पर्श किया    . यह बात सुधा को अच्छी नहीं लगी पर फिलहाल वह खामोश रही थी   . वर्माजी के श्राद्ध आदि अंतिम संस्कार तक के सभी रस्मों पर  दाई अम्मा वे सभी रीति रिवाज निभाती जो परिवार के अन्य सदस्य करते  . इन सब बातों को सुधा बड़े गौर और आश्चर्य से देख रही थी  . 


कुछ दिनों के बाद अब घर में अरुण , सुधा , बंटी और दाई अम्मा रह गए थे   . सुधा ने एक और नयी बात देखी , दाई अम्मा रोज सवेरे वर्माजी के फोटो के सामने खड़े हो कर उन्हें प्रणाम करती   . यह सब देख कर उस से रहा नहीं गया और वह अरुण से पूछ बैठी “ तुम्हारी दाई अम्मा सिर्फ दाई अम्मा ही थीं या और कुछ ? “ 


“ क्या मतलब ? “  अरुण चौंक कर पूछा 


“ देखो अरुण , मैं पिछले कुछ  दिनों से जो कुछ देख रही हूँ उस से मैं यह मानने को तैयार नहीं हूँ कि वे सिर्फ दाई अम्मा हैं   . मुझे शक है उनका पापा के साथ कुछ रिश्ता रहा है   . “  बोल कर सुधा ने दाई अम्मा के बारें में उन सभी बातों का जिक्र किया जो उसने देखा था  और फिर कहा “ मुझे तो लगता है  वो सिर्फ तुम्हारी दाई अम्मा नहीं हैं बल्कि मुझे तो तुम्हारी दूसरी अम्मा लगती हैं   . “ 


“ तुम्हारा शक निराधार नहीं है सुधा ? “ 


“  मतलब तुम यह पहले  से जानते थे    . क्या दीदी लोग भी  इसके बारे में जानती ? “ 


“  हाँ , वे दोनों हमसे बड़ी हैं मेरे से पहले से वे जानती हैं   . इसके अलावा औरतें ऐसी बातें बड़ी बारीकी से भाप लेती हैं जैसे तुमने सब समझ  लिया था   . “   अरुण  ने चुटकी लेते हुए कहा 


“ पर तुम तीनों भाई बहनों ने  कोई एतराज नहीं किया    . “  


“ इसमें दाई अम्मा का कोई दोष नहीं है   . पापा ने अपनी संतानों की ख़ुशी के लिए दूसरी शादी नहीं की   . हालांकि मैं इस तर्क से कुछ भी जस्टिफाई करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ   . हमें भी माँ की जरूरत थी और  माँ का सभी फ़र्ज़ दाई अम्मा ने निःस्वार्थ निभाया है   . उनके साथ जो रिश्ता पापा ने बनाया वो पापा के कारण हुआ   . मैं तो जब दो महीने का तभी से उनकी गोद में पलने लगा   . दोनों दीदियाँ भी कम उम्र से ही उन्हीं की देखरेख में बड़ी हुई हैं   . “


सुधा और अरुण का बेटा करीब छः वर्ष का हो चुका था   . इसी बीच अरुण को मुंबई के  मल्टीनेशनल कंपनी  से काफी अच्छा जॉब ऑफर मिला   . अरुण और सुधा दोनों बहुत खुश हुए   .  अरुण दाई अम्मा के भविष्य के बारे में  सोचने लगा और सुधा से बोला “ क्यों न हमलोग दाई अम्मा को भी अपने साथ मुंबई ले चलें ? “ 


सुधा ने गुस्से में कहा “ एक  तो संयोगवश अच्छा मौका मिला है दाई अम्मा से छुटकारा पाने का और तुम उल्टा  सोचने लगे   . “ 


“ नहीं वे रहेंगी तो बंटी की देखभाल करेंगी   . “ 


“ इसकी कोई जरूरत नहीं है , बंटी अब बड़ा हो गया है और जल्द ही हम उसे बोर्डिंग स्कूल में भेज देंगे   . उसके बाद  मैं भी कोई न कोई जॉब ढूंढ लूँगी   . “ 


“ ऐसे में  दाई अम्मा को क्या कहा जाय ? “ 


“ वह  तुम मुझ पर छोड़  दो   . “ 


अगले दिन सुबह सुबह स्नानादि के बाद सुधा ने काफी दिनों के बाद दाई अम्मा के पैर छू कर प्रणाम किया  .  दाई अम्मा ने उसे आशीर्वाद देते हुए पूछा “ आज कोई खास दिन है क्या ? “ 


“ हाँ आंटी  , आज अरुण के लिए और हमारे लिए भी बहुत ख़ुशी का दिन है  .  अरुण को मुंबई की  बहुत  बड़ी कम्पनी से अच्छी नौकरी  का खत मिला है  . कम्पनी  पगार भी बहुत ज्यादा दे रही  है  . उम्मीद है अरुण की तरक्की पर आप भी खुश होंगी  .  “ 


“ क्यों नहीं खुश होऊंगी ? तुम्हें शक है क्या ? “


“  नहीं , पर आंटी अरुण आपको ले कर चिंतित है कि इस उम्र में आपको अकेला नहीं छोड़ सकते हैं  . आप जानती ही हैं मुंबई में मकान कितना महंगा होता है  .  और इतनी जल्दी हम बड़े घर की नहीं सोच सकते हैं  .   “


“ तुमलोग मेरी चिंता छोड़ो और मुंबई जाने की तैयारी करो  .  “ 


“ और आप ? “ 


“ मुझे यहीं आउट हाउस में रहने दो  .  अगर तुमलोगों को नहीं मंजूर तो  मैं किसी वृद्धाश्रम या विधवा आश्रम में चली जाऊंगी  .  “ 


तब तक अरुण भी वहीँ आ गया  .  उसने कहा “ नहीं दाई अम्मा ऐसी बात नहीं है  .  आप इस घर  में कहीं भी रह सकती हैं और आप किसी आश्रम में नहीं जाएँगी  .  हमलोग आपको इस उम्र में अकेला   नहीं छोड़ना चाहते हैं  .   हम आपको एक अच्छे सीनियर होम में शिफ्ट कर देंगे  .  वहां आपको अपनी उम्र के लोगों का साथ भी मिल जायेगा  .  वहां आप बिलकुल अपने घर से भी ज्यादा आराम से रहेंगी  .  आपके लिए फर्निश्ड कमरा होगा , खानेपीने की बेहतरीन व्यवस्था होगी और आपके स्वास्थ्य की देखभाल भी वे  करेंगे  .  “ 


“ नहीं , मुझे तुम सभी से और इस घर से काफी लगाव है  .  अगर सम्भव हुआ तो मुझे उसी आउट हाउस में रहने दो  .  “ 


अरुण और सुधा दोनों कुछ देर सोच में डूब गए और दोनों एक कोने में जा कर आपस में बात करने लगे   .  कुछ देर बार अरुण बोला “ दाई अम्मा ,फिलहाल  मैं अकेले मुंबई जा रहा हूँ  .  वहां ज्वाइन कर कम्पनी के गेस्ट हाउस में कुछ दिन रहूंगा फिर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर यहाँ आऊंगा  .  इस बीच सुधा और बंटी यहीं रहेंगे और हमलोग आपके इसी घर में रहने का पक्का इंतजाम  कर देंगे  .  “ 


“ मेरी एक और इच्छा है  . “ 


“ वो क्या ? “  अरुण  ने पूछा 


“ आज नहीं तो कल मरना ही है  . मैं चाहती हूँ मुझे मुखग्नि तुम ही देना  . “ 


“ दाई अम्मा , हमलोग  आपके अंतिम संस्कार पर जरूर मौजूद रहेंगे  . जहाँ तक मुखग्नि का सवाल है पहला हक़  आपके भतीजे का  है  . “ 


“ काहे का भतीजा और कैसा  भतीजा ? वो तो बहुत कमीना निकला  . मेरा घर अपने नाम लिखवा लिया और फिर उसे बेच कर न जाने किस बिल में जा छुपा बैठा है  . उस से अब मुझे कुछ नहीं लेना देना है   . तुम्हें मुखाग्नि देने में कोई समस्या  तो नहीं है ? “ 


“ नहीं , आप ऐसा मत सोचिये  . आप जैसा चाहेंगी वैसा ही होगा  . “ 


दो महीने के अंदर अरुण ने अपने पैतृक घर को पेड सीनियर होम बना दिया और दाई अम्मा को उसका मैनेजर  . सीनियर होम के ऑफिस में अपने पिता वर्माजी का बड़ा सा फोटो लगवा दिया  .वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ मुंबई चला गया  .  उनकी बरसी पर अरुण अपनी पत्नी और बेटे  के साथ आ कर उन्हें श्रद्धांजलि देता  . दाई अम्मा भी उन्हें श्रद्धांजलि देती  . यह सिलसिला दाई अम्मा के जीवन तक चलता रहा  . 

                                                                             xxxxx समाप्त xxxxxx