केयर- टेकर बाल - बाल बचा। बेचारा बचा भी क्या, यूं समझो कि उसकी जिंदगी बच गई। उसके पेट के कुछ ऊपर पसली के पास बहुत गहरा ज़ख्म हुआ। जैसे किसी ने तेज़ चाकू से सीना चीरने की कोशिश की हो। खून की नाली सी बह निकली। चमड़ी इस तरह कटी थी कि हड्डियों के बीच से लीवर का छोटा सा हिस्सा किसी भुनी शकरकंदी की तरह लटक कर झांकने लगा। तुरंत उपचार मिल जाने से जान बच गई। कई टांके लगे।
गनीमत थी कि आंख नहीं फूटी। उसके अनुसार पहला हमला तो आंख पर ही हुआ।
लेकिन केयर- टेकर का बचना भी कोई बचना था? उसकी नौकरी तो गई समझो।
ऑपरेशन के बाद पट्टियों से बंधे, बिस्तर पर पड़े लड़के ने विस्तार से डॉक्टर को सब बताया कि हुआ क्या था? हां, एक बात वो भी छिपा गया। कैसे बताता? सारा मामला ही उलट जाता।
सुबह- सुबह बहुत भिनसारे का समय था। रात के गर्भ से उजाला निकलने को कसमसा ही रहा था। सब लोग सोए पड़े थे। वैसे भी समुद्री यात्रा में लोग सोने में ज़्यादा से ज़्यादा वक्त बिताते थे, वरना समय कैसे कटे?
आज यात्रा का अंतिम दिन था। दोपहर बाद जहाज को न्यूयॉर्क शहर पहुंच कर हडसन तट पर लग ही जाना था।
इस नीम अंधेरे में पौ- फटने से भी पहले ही ये हादसा हो गया।
बात ये थी कि सुबह का भोजन देने गए केयर- टेकर पर दुर्लभ प्रजाति के उन विचित्र परिंदों ने सहसा आक्रमण कर डाला, जिन्हें इस जहाज से पूरी हिफाज़त के साथ ले जाया जा रहा था। वह नीचे झुका हुआ उनके पंखों को सहलाता हुआ खाने के लिए मछलियों के टुकड़ों को ज़मीन पर फ़ैला ही रहा था कि अपनी लंबी चोंच से चिड़िया उसकी एक आंख पर हमला कर बैठी। उसकी आंख तो बच गई पर आक्रामक परिंदे ने चोंच के भीषण वार से लड़के का सीना चीर डाला। किसी कटार के घाव की तरह ही ऊपर से नीचे तक चमड़ी दो भागों में बंट गई। सुबह- सुबह का समय होने से लड़का लगभग नंगे बदन ही था, बस सिर्फ़ एक छोटे से अंडरवियर के अलावा कोई कपड़ा उसके बदन पर नहीं था जिसका सपोर्ट इस अचानक हुए प्रहार को रोकने में मददगार साबित होता। वह तो मांस के टुकड़े डाल कर नहाने ही जाने वाला था कि इससे पहले ही उसके शरीर के लिए खून का स्नान हो गया।
सबसे बड़ा अनर्थ तो ये हुआ कि केज का दरवाज़ा खुला हुआ होने के कारण उसे घायल कर के परिंदे एक - एक करके बाहर निकल गए। बिजली की सी गति से फड़फड़ाते हुए दोनों ने एक के पीछे एक सागर में छलांग लगा दी और लहरों में न जाने कहां विलीन हो गए।
उनकी तीमारदारी के लिए रखा गया लड़का लगभग बीस मिनट तक उसी बेहोशी की अवस्था में घायल होकर वहां पड़ा रहा तब कहीं जाकर एक कर्मचारी की निगाह उस पर पड़ी। देखते ही उसके भी होश फाख्ता हो गए क्यों कि पिंजरा खुला पड़ा था और कीमती बहुमूल्य वो दोनों परिंदे उड़न- छू हो चुके थे।
इस समय परिंदों की तलाश करना तो बहुत दूर की कौड़ी थी, स्टाफ के कर्मचारी ने पहले दौड़ कर मुख्य जमादार को दुर्घटना की खबर दी। दिन अभी तक पूरा उगा नहीं था पर शोर- शराबे से माहौल जाग गया। चारों ओर अफरा- तफरी मच गई।
इलाज करने वाले डॉक्टर ने लड़के से पूरा ब्यौरा पूछा और एक संदेह में घिर कर इलाज शुरू कर दिया।
उसे संदेह इस बात का था कि दुर्लभ प्रजाति के प्राणियों का ये मामला बाद में कहीं बीमा की भारी- भरकम राशि के हेर- फेर से जुड़ा कोई षड्यंत्र न निकले।
यदि ऐसा कुछ होता तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर पर ही ये दारोमदार आने वाला था कि वह घायल कर्मचारी की स्थिति को देख कर उसी के आधार पर अपना फ़ैसला दे और ये बताए कि हमला झूठा, काल्पनिक, षडयंत्र कारी था या स्वाभाविक रूप से परिंदों ने आक्रमण करके अपने केयर- टेकर को घायल कर डाला था। इसी सोच ने जहाज के प्रशासन को अमानवीयता की हद तक चौकन्ना कर रखा था।
वैसे अधिकांश लोगों का ख्याल था कि ये कोई षड्यंत्र नहीं बल्कि स्टाफ की सामान्य सी लापरवाही का नतीजा था।
जो भी था, अब बात बिगड़ चुकी थी और तीर कमान से निकल चुका था। पिंजरा तोड़ कर भागे समुद्री पांखियों को समंदर में से ढूंढ निकालना कठिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन था।
न्यूयॉर्क पहुंचते ही गुत्थी के और उलझ जाने का अंदेशा था क्योंकि पक्षी विलक्षण थे और उनके बाबत पर्याप्त प्रचार किया जा चुका था।
दोपहर बाद निश्चय ही गाज गिरनी थी।