अब इस समुद्री यात्रा के तीन दिन बीत जाने के बाद उस विशालकाय शिप के यात्रियों में दुर्लभ प्रजाति के इस पक्षी जोड़े के लिए कोई ख़ास आकर्षण नहीं रह गया था। अब तो कॉरिडोर से गुजरते हुए इक्का- दुक्का लोग ही कभी- कभी उस रेलिंग के पास खड़े होकर इन परिंदों को देख लेते थे। उनके केयर- टेकर के ऊपर भी उनकी सुरक्षा- संरक्षा का पहले जैसा ज़्यादा दबाव नहीं रहता था क्योंकि उन्होंने भी अब सामान्य होकर समय पर अपना दाना पानी लेना शुरू कर दिया था। वो खूबसूरत पंछी शायद परिस्थिति को समझ गए थे और उन्होंने मन ही मन नियति से समझौता कर लिया था। यही क्या कम था कि दोनों साथ में तो थे। ऐश और रॉकी!
केयर- टेकर लड़का कभी - कभी प्राकृतिक हवा या धूप के लिए उनके केज से एक तरफ़ का परदा हटा देता था तो उनकी गतिविधियां और अठखेलियां देखने के लिए कुछ लोग कौतूहल वश वहां खड़े हो जाते। लेकिन ऐसे में पक्षी बेहद सतर्क हो जाते और वो सहज नहीं रह पाते थे। यहां तक कि अगर वो एक दूसरे के आलिंगन या चुंबन में होते तो भी छिटक कर अलग हो जाते।
लोगों को ये देखने में मज़ा आता कि ये किस तरह भोजन करते हैं। बंद कक्ष में एक दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं। क्या कभी उनके बीच में प्रेमालाप भी होता है। शायद उन्हें भी अपना नैसर्गिक एकांत याद आता ही होगा।
इन विचित्र पक्षियों का कमर से नीचे का भाग मनुष्यों के समान था। अतः जब कभी वो एक दूसरे के नज़दीक आते या एक दूसरे से प्रेम जताते तो केयर- टेकर खुद ही पर्दा कर देता ताकि आते- जाते लोग वहां बेवजह जमघट न लगाएं।
कभी- कभी कोई इन परिंदों की तस्वीर लेने की कोशिश भी करता तो उसे रोक दिया जाता। इसकी अनुमति नहीं थी।
ये दुर्लभ पक्षी भारी रकम खर्च करके एक संस्था द्वारा न्यूयॉर्क ले जाए जा रहे थे जहां इन्हें संस्था के मशहूर म्यूज़ियम में जनता के बड़े आकर्षण के रूप में रखा जाना था। ऐसे में उनके शरीर और विचित्रता की गोपनीयता बने रहना तो ज़रूरी था ही। उनकी तस्वीरें मीडिया के हाथ न लगें, इसलिए ऐसा कदम उठाया गया था।
इतनी लंबी यात्रा में दिन रात साथ रहते- रहते ऐश ने बंदर महाराज से हुई अकस्मात भेंट और उनकी कहानी के बारे में रॉकी को भी बता दिया था। शुरू में रॉकी को कुछ भी समझ में नहीं आया कि ऐश क्या कह रही है। क्योंकि उसे तूफ़ान, समुद्री यात्रा, बूढ़े नाविक और मानव - मस्तिष्क के बारे में कुछ भी याद नहीं था। लेकिन ऐश के बताने पर धीरे- धीरे उसे सब याद आ गया। वैसे भी स्त्रियां बीती बातें याद रखने में ज़्यादा समर्थ होती हैं जबकि पुरुष अतीत भूल कर वर्तमान में ही जीना पसंद करते हैं।
सब कुछ याद आ जाने के बाद रॉकी ने भी अपनी कहानी ऐश को सुना डाली थी कि उसे अपनी यात्रा में कौन - कौन मिला और कैसे अनुभवों के साथ वो एक दिन उसी जंगल में पहुंच गया जहां ऐश से उसकी अचानक मुलाकात हो गई।
ऐश को मन ही मन इस बात का भारी संतोष और रोमांच था कि उससे बिछड़ने के बाद रॉकी भी अब तक कुंवारा ही रहा। उसने किसी अन्य पखेरू से संबंध नहीं बनाए। अब उस पर शक- शुबहा करने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी क्योंकि बंदर महाराज के कथन के अनुसार ऐश से संपर्क में आने के बाद रॉकी के शरीर में भी कुछ वैसे ही परिवर्तन आने शुरू हुए थे जैसे परिवर्तन से ख़ुद ऐश गुजरी थी।
एक दूसरे को पुनः पाकर वो दोनों बेहद खुश थे और एक दलदल के किनारे बसे घने जंगल में आराम से समय बिता रहे थे कि तभी कुछ खोजी युवकों की नज़र उन पर पड़ गई। उन दोनों ने इन मानव बहेलियों से बचने की भरसक कोशिश की किंतु वो उनकी गिरफ्त में आ ही गए। बहेलिए भी तो कई दिन से ताक लगा कर उनका पीछा कर ही रहे थे।
ऐश को क्या मालूम था कि इंसान की नस्ल भी इतने अलग- अलग किस्म के वाशिंदों से भरी हुई है। उन्होंने तो एक बूढ़े नाविक को अपने घर पर ठहरा कर तूफान के बाद राहत दी थी, मेहमान ने भी बदले में उन्हें जायकेदार मांस खाने को दिया था और यहां इंसानों ने ही उनके उड़ते सपनों को कैद करके उन्हें बंदी बना लिया था।
न सारे इंसान एक से होते हैं और न ही वक्त हमेशा एक सा रहता है।
यही सोच रहे थे ऐश और रॉकी!