"अरे तुम
घण्टी की आवाज सुनकर सन्ध्या ने जल्दी से अपने बदन पर तौलिया लपेटा और दरवाजा खोलने के लिए चली आयी,
"कब लौटे नेपाल से?"
"अभी"अंदर आकर सोफे पर बैठने के बाद सन्ध्या के शरीर पर नजर डालते हुए बोला,"क्या इस जालिम जवानी से किसी का खून करने का इरादा है।"
"अगर कोई खुद ही कत्ल होना चाहे तो इसमें मेरा क्या दोष है?"संन्ध्या,संदीप के बगल में आकर बैठ गयी।
"दीपेन कहां गया?"संदीप बोला।
"तुम्हारे आने से पहले ही कलकत्ता के लिए निकला है।निकलने से पहले मुझे जबरदस्ती बिस्तर में पटक लिया।साला बुड्ढा नामर्द।कुछ होता जाता नही।वैसे ही शरीर गन्दा कर दिया।"
"है तो तुम्हारा पति।मैं क्या कर सकता हूं,"संदीप बोला,"कब लौटेगा?"
"दो दिन बाद"
संन्ध्या का जन्म मध्यम परिवार में हुआ था।उसके पिता रामलाल दीपेन की फैक्ट्री में मुनीम थे।सन्ध्या को रामलाल ने बी ए तक पढ़ाया था।बी ए पास करने के बाद रामलाल ने बेटी के लिए वर की तलाश शुरू कर दी।लेकिन दहेज की मांग इतनी थी कि बात कही नही बनी।
दीपेन की पत्नी का देहांत हो चुका था।वह दूसरी शादी करना चाहता था।वह किसी जीवनसाथी की तलाश में था।तभी एक दिन उसकी नज़र सन्ध्या पर पड़ी।उसे पहली नजर में ही सन्ध्या पसन्द आ गयी।परन्तु दीपेन और सन्ध्या की उम्र में दुगना अंतर था।अगर दीपेन रामलाल से सीधे बात करता तो शायद वह तैयार नही होता।इसलिए उसने एक चाल चली।
रामलाल ने दीपेन से पांच लाख रु उधार ले रखे थे।उसने अपने पैसे वापस मांगे।रामलाल देने में असमरथ था।तब दीपेन ने सन्ध्या से शादी का प्रस्ताव रखा।रामलाल दहेज के अभाव में बेटी का रिश्ता नही कर पा रहा था।इसलिए न चाहते हुए भी उसे रिश्ते के लिए तैयार होना पड़ा।
पति के यहां सन्ध्या को सब सुख था।कार, बंगला और सभी ऐशोआराम के साधन और भरपूर पैसा।लेकिन जवान पत्नी को जो सुख चाहिए वह नही था।इसलिए वह संदीप की तरफ झुकी थी।
संदीप,दीपेन का दोस्त था।वह दीपेन के यहां आता रहता और दोनों ताश,शतरंज,टेनिस खेलते।दीपेन ने ही सन्ध्या का उससे परिचय कराया था।
सन्ध्या के रूप यौवन ने संदीप को मोह लिया इसलिय वह दीपेन के घर पर न रहने पर भी घर आने लगा।दोनो घण्टो बैठकर बाते करते।और समय गुज़रने पर वे काफी करीब आ गए।
एक दिन दीपेन घर पर नही था।सन्ध्या नहा रही थी।संदीप ने दरवाजा खटखटाया।सन्ध्या बदन पर तौलिया लपेट कर चली आयी।पानी मे भीगा उसका गोरा बदन बेहद सेक्सी लग रहा था।संदीप उसे इस रूप में देखकर अपने आप पर काबू नही रख सका और उसने उसके बदन से तौलिया खींच लिया।
और उस दिन पहली बार सन्ध्या को पुरुष सुख की अनुभूति हुई।उसकी वासना शांत हुई।उस दिन के बाद संदीप और सन्ध्या के बीच वासना का खेल शरु हो गया।
दीपेन को आज कलकत्ता जाना था।वह एयर पोर्ट पहुंचा तब उसे एक आदमी मिला वह दीपेन से बोला,"आप कलकत्ता जा रहे हैं?"
"हां।क्यो?"
"मेरे बेटे का एक्सीडेंट हो गया है।मुझे जाना है।कोई सीट खाली नही है।अगर आप अपना टिकट मुझे दे दे तो
उस आदमी की बात सुनकर दीपेन ने अपना टिकट उसे दे दिया।और वापस घर लौट आया।घण्टी बजने पर सन्ध्या ने दरवाजा खोला।दीपेन को देखकर वह चोंक गयी।दीपेन,संदीप को अपने यहां देखकर सब समझ गया।दोस्त की गद्दारी पर उसे इतना गुस्सा आया कि वह पिस्तौल निकाल लाया।लेकिन वह गोली चला पाता उससे पहले सन्ध्या ने उसका हाथ पकड़ लिया।संदीप भी आ गया।हाथापाई में गोली चली और दीपेन के लगी।दीपेन मर गया।रात को दोनो ने दीपेन की लाश बंगले के कम्पाउंड में गाड़ दी।
कलकत्ता जाने वाला जहाज एक्सीडेंट में दुर्घटनाग्रस्त हो गया।सब यात्री मारे गए थे।उनमें दीपेन भी था।
सारी दुनिया की नजरों में दीपेन हवाई दुर्घटना में मारा गया था लेकिन सन्ध्या और संदीप ही जानते थे उसकी हत्या हुई थी।