आठ साल पहले….
एक सुबह ….
"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर,
जय कपीस तिहुं लोक उजागर,
राम दूत अतुलित बल धामा,
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा"
महावीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुंचित केसा
इसी कमरे में हनुमान चालीसा के मधुर शब्द सुनाई पड रहे थे, अगरबत्ती की भीनी भीनी खुशबू पूरे कमरे को सुगंधित कर रही थी कि तभी हनुमान चालीसा पूरी करके आकाश ने घड़ी पर नजर डाली तो वह खुद से ही बोल पडा “ ओ माय गॉड, नौ तो यहीं बज गये, हे भगवान..... अब ब्रेकफास्ट छोड़ो और जल्दी से यहां से निकलो वरना यह मौका तो हाथ से गया” |
यह कहकर आकाश ने अपने गीले बाल तौलिए से पोछे और तौलिया सोफे पर फेंककर फटाफट तैयार होने लगा, और बिना नाश्ता करे ही फटाफट बाहर आया कि तभी फिर उसने अपने आप से ही कहा “ ओह शिट यार, यह हो क्या रहा है, आज तो लगता है कुछ ना कुछ होकर ही रहेगा, अपना बैग तो यही भूले जा रहा हूं” |
यह कहकर उसने फटाफट अपने बैग में अपने कलर्स, पेंटिंग ब्रश और जरूरी सामान रखकर बाहर आया और अपनी कार से बाहर के लिए रवाना हो गया |
चौबीस साल का आकाश दिल्ली में चार साल से अकेला रह रहा था, तरह तरह की तस्वीरें बनाना ही उसका शौक था और यही शौक अब उसका पेशा बन चुका था वो अपनी पेंटिंग से ही अच्छा खासा कमा लेता था, ऐसा नहीं था कि उसने पेंटिंग्स बनाने के अलावा कोई और नौकरी नहीं करी, कुछ सालों तक उसने प्राइवेट नौकरी करी लेकिन वो कहते हैं ना जब मन में कुछ और हो तो किसी दूसरे काम में मन नहीं लगता और यही हाल उसका भी था इसलिए उसने एक कड़ा फैसला लेते हुए वह प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और अपनी रचनात्मकता को ही अपनी नौकरी बना लिया और यह कड़ा फैसला उसके लिए गलत साबित नहीं हुआ क्योंकि कुछ ही दिनों में उसे अच्छे खासे पैसे मिलने लगे, आखिरकार वह तस्वीरें इतनी सुंदर बनाता था |
वह तेजी से घर से कुछ दूर आया ही था कि उसने देखा सड़क पर गाड़ियों की लंबी कतार लगी हुई थी और आकाश को हर हाल में आज अपनी पेंटिंग प्रतियोगिता के लिए टाइम से पहुंचना था | पहले से ही उसके दिमाग में इतना शोर और टेंशन थी उस पर चारों ओर बस, गाड़ियों के हॉर्न का शोर सुन सुनकर उसका दिमाग और भी खराब हो रहा था, कुछ देर इंत्ज़ार करने के बाद उसने सोचा कि वह किसी और रास्ते से चला जाए उसने फटाफट गाड़ी मोड़ने के लिए जैसे ही पीछे देखा तो गाड़ी मोड़ना तो दूर उस जगह से थोड़ी सी भी बैक करना भी मुश्किल था इसलिए उसने गाड़ी की सीट पर एक जोरदार हाथ मारा और कहा “ मैने कहा था कि घर से कम से कम चालीस मिनट पहले निकलना, लेकिन नही महाराजा को नींद के आगे कुछ दिखता नही है” |
यह कहते हुए उसने अपनी गाड़ी के शीशे बंद किए और अंदर बैठ कर ट्रैफिक हटने का इंतजार करने लगा | दिल्ली की सड़कों पर अक्सर ट्रैफिक जाम लगा रहता है, यह कोई नई बात नहीं थी उसके लिए लेकिन आज, आज उसको एक एक पल भारी लग रहा था | उसका मन इतना बेचैन था कि वह एक मिनट में दस बार अपनी घड़ी देखता और अपने पैरों को जोर जोर से हिला रहा था तभी उसने टेंशन को कम करने के लिए उसने कार के रेडियो का स्विच ऑन किया जिसमें गाना बज रहा था
“ मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू....
आई रुत मस्तानी कब आएगी तू....
बीती जाए जिंदगानी
कब आएगी तू ......
चली आ ....आ...तु चली आ.....
मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू”
गाना सुनते सुनते आकाश थोड़ा सा कूल डाउन हुआ और वैसे भी यह गाना उसे कुछ ज्यादा पसंद भी था इसलिए सीट पर आराम से बैठकर उसने अपनी आंखें बंद कर ली कि तभी किसी ने गाड़ी के शीशे को जोर से खटखटाया, आकाश एकदम से चौंक गया और उसने बिना गाना बंद किए ही गाड़ी का शीशा नीचे किया |
वो कुछ बोलता कि इससे पहले ही सामने खड़े एक लड़के ने चिल्लाना शुरू कर दिया,
"आपको सुनाई नहीं देता, आपके पीछे वाली गाड़ी कब से हॉर्न पर हॉर्न दिए चली जा रही है, और इसके पीछे ऑटो कब से इंतजार कर रहा है कि आप जैसे महानुभाव गाड़ी आगे बढ़ाएं तो हम भी आगे बढ़े लेकिन भैया हम आगे बढ़ेंगे कैसे हम तो मिडिल क्लास हैं, आगे बढ़ना का सारा हक तो आप जैसे पैसों वालों को है, एक बड़ी सी गाड़ी ले ली सड़क पर आ गए, उस बड़ी सी गाड़ी में सिर्फ एक बंदा बैठ गया पूरी रोड घेर कर और रोड का राजा बन गया और हम जैसे चार पाँच लोग ऑटो में भरे हुए हैं और वह भी इंतजार कर रहे हैं कि आप जैसे बड़े लोग कब हटे.... कब हटे....,अरे अगर नींद ही आ रही है तो घर जाकर सोते, गाड़ी के अंदर क्यों सोते हैं? बेकार का जाम लगा रखा है"|
आकाश ने कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोलना चाहा लेकिन तभी फिर उस लड़के ने कहा "अरे माना इतना लंबा जाम है लेकिन जब गाड़ी धीरे धीरे आगे खिसक रही है तो आप भी तो थोड़ी गाड़ी खिसका सकते हैं, और अगर नहीं खिसका सकते तो थोड़ा गाड़ी साइड में खड़ी तो कर सकते हो, कम से कम पीछे वाला ही साइड से निकाल ले लेकिन नहीं भैया..... यह तो राजसी ठाठ हैं, और महाशय दोनों शीशे बंद करके मस्त बैठे हुए हैं, आपके जैसे और भी लोग हो जाएं तो रोड की तो लग गई लंका, आप ही के जैसे लोगों की वजह से दिल्ली की सड़कें बदनाम है जाम लगने के लिए और यह देखो हम वहां ऑटो से बाहर निकल कर जाम हटवा रहे हैं, लोगों की मदद कर रहे हैं लेकिन मजाल है ये युवराज जी एसी से बाहर निकल जाए अरे ऐसी से बाहर निकलना तो दूर, इन्हें कहीं गर्म हवा गाड़ी के शीशे से इस पार जाकर छू ना ले, हद होती है लापरवाही की गैर जिम्मेदारी की, अच्छे नागरिकों के कोई लक्षण नहीं है आपके अंदर और तो और और इन्हें सपनों की रानी का इंतजार है, अरे कम से कम अपना नहीं तो दूसरों का ही ख्याल कर लिया करो, बडे आए..... पता नहीं सुबह सुबह कैसे-कैसे लोगों से पाला पड़ जाता है" |
तभी रोड पर गाड़ियों के हॉर्न और भी तेज तेज से बोलने लगे और गाड़ियां धीरे-धीरे और तेजी से आगे बढ़ने लगीं|
यह सब कहकर वो उन्नीस - बीस साल का लड़का न जाने क्या क्या बडबडाते हुए चला गया |
आकाश मूर्ति सा बैठा सोच ही नहीं पा रहा था कि क्या है ये, कोई एफ एम या शिकायत का पिटारा, वो तो कुछ बोल ही नहीं पाया और उसको देखता ही रह गया, वो अंदर हो अंदर खिसियाहट में बाहर निकला की इस लड़के को तो सबक सिखा कर ही रहूंगा इसलिए वह चिल्ला कर कुछ कहने को हुआ कि तभी बाकी लोगों ने उस पर चिल्लाना शुरू कर दिया और तभी धीरे-धीरे गाड़ियां चलने लगी और देखते देखते जाम हट गया |