हडसन तट का ऐरा गैरा - 28 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

हडसन तट का ऐरा गैरा - 28

अच्छा!!! ऐश को अब जाकर समझ में आया कि ये क्या था।
असल में बहुत सारे सैलानी इंसान दूर - दूर से यहां घूमने के लिए आए हुए थे। इन्हें सागर के बीच में एक बहुत ही मनोरम दृश्य दिखाने के लिए लाया गया था।
समुद्र के बीचों- बीच जहां पानी बहुत गहरा होता है, जल का सबसे विशाल प्राणी व्हेल यहीं आकर रहता है। व्हेल क्योंकि एक मछली है इसलिए इसे मादा के नाम से ही संबोधन दिया जाता है। ये विशालकाय व्हेल मछली किनारों पर नहीं पाई जाती इसलिए ज्यादातर लोग इसे देख नहीं पाते। यहां गहरे पानी और चारों ओर के नीरव सन्नाटे में ये उन्मुक्त होकर पानी की सतह पर खिलवाड़ करती हुई चली आती है। अतः कुछ जहाज पर्यटक लोगों को व्हेल दर्शन के लिए यहां ले आते थे।
जैसे ही उन उड़ते पंछियों को ये पता चला कि जहाज में सवार ये सब इंसान व्हेल मछली देखने के लिए अपनी- अपनी दूरबीन थामे इंतज़ार कर रहे हैं उनका दिल भी दुनिया के इस सबसे बड़े प्राणी को देखने के लिए मचलने लगा।
उन सबने मछलियां तो कई देखी थीं लेकिन इतनी बड़ी मछली देखने का मौक़ा उनमें से किसी को भी कभी नहीं मिला था। वैसे तो छोटी- छोटी मछलियां उनका रोज़ का भोजन ही था। पर इतनी बड़ी मछली जिसे देखने के लिए सैंकड़ों लोग समुद्र के बीच में आए हों उसे देखने का तो अपना एक अलग ही रोमांच होगा, ऐश ने सोचा।
लेकिन एक दिक्कत थी। ये सब परिंदे व्हेल को देखना तो चाहते थे पर आसमान में उड़ते- उड़ते उसे दूर से देखने में भला क्या आनंद आता।
उनके मुखिया ने तत्काल ये फ़ैसला किया कि थोड़ा जोखिम उठाकर भी वो सब इस जहाज पर उतर ही जाएं। डेक पर इंसानों का जमावड़ा होने पर भी जहाज के मस्तूल और पाल पर इतनी जगह तो थी ही कि उनका दल वहां धावा बोल सके।
वहां कोई बाधा नहीं थी। जहाज के सारे प्राणी तो खुद ही पर्यटक थे। वो जब इतनी दूर से एक महाप्राणी की अठखेलियां देखने ही आए थे तो वो किसी दूसरे प्राणी को कोई नुकसान क्यों पहुंचाएंगे? इस तरह वहां थोड़ी देर ठहर कर पानी में व्हेल को देखने में कोई खतरा नहीं था। यही सोच कर मुखिया ने सभी को जहाज पर उतर जाने का संकेत दे दिया।
सब अपने पंखों को ढीला छोड़ कर फड़फड़ाते हुए इधर- उधर उतरने की जगह चुन कर नीचे उतरने लगे।
थोड़ी ही देर में ऐश का पूरा दल जहाज पर झूलता- थिरकता हुआ कब्ज़ा जमा बैठा।
जहाज पर सवार बच्चे इतने पक्षियों को एक साथ वहां देख कर अल्हादित हो गए। कुछ तो अपनी दूरबीन घुमा कर उन पंछियों के कार्यकलाप देखने लगे।
उनकी चहचहाहट से कुछ पर्यटकों का ध्यान भी उनकी ओर चला गया और वो अपने बैगों, जेबों तथा पैकेटों में बचा - खुचा कुछ खाने का सामान उछाल- उछाल कर पंछियों की ओर फेंकने लगे। थके - मांदे पक्षियों ने उनके इस प्रेम को अपना सम्मान समझा और वे फेंके गए दानों को चोंच में पकड़ने के लिए इधर- उधर फुदकने लगे। एक हलचल सी मच गई।
लेकिन तभी पर्यटकों के साथ आए गाइड ने सबको शांत करते हुए अपना हाथ बढ़ा कर एक ओर इशारा किया। सब उधर ही देखने लगे।
सचमुच एक विशालकाय व्हेल पानी में से निकल कर ज़ोर से उछलती हुई दिखाई दी। व्हेल ने किसी जहाज की तरह पानी की लहरों को काटते हुए अपना मुंह पानी से बाहर निकाला और एक ज़ोरदार जंप मारकर मानो पानी के भीतर ही करवट बदली। उछल कर वापस पानी पर गिरने से "छपाक" की एक तेज़ आवाज़ आई और ऊंची - ऊंची लहरें उठने लगीं। इतनी बड़ी पहाड़ सी मछली उनमें से किसी ने पहले कभी नहीं देखी थी।
ऐश ने देखा कि उसके साथी सभी परिंदे इतने मनोरम दृश्य को देखकर अपने ऊपर काबू नहीं रख सके और व्हेल के एकदम नज़दीक आकर मंडराने लगे। मज़ेदार बात ये हुई कि पानी में व्हेल के उछलने से जब लहरों का पानी छलका तो उसमें उलझ कर कई नन्ही - नन्ही मछलियां संतुलन बनाए न रख सकीं और छींटों के साथ ही हवा में उछल गईं।
वाह! मज़ा आ गया। उन सब परिंदों ने भी अपनी- अपनी चोंच में एक- एक मछली को झपट लिया और दबा कर पेट पूजा शुरू कर दी।
मानो महारानी व्हेल मछली ने उन सबको अपने दर्शन का प्रसाद बांटा हो! परिंदों को भी शानदार दावत मिल गई। जहाज पर सवार लोग खुशी से किलकारियां भर रहे थे।