थोड़ी देर बैठे- बैठे ज़रा सी झपकी ले लेने के बाद ऐश को याद आया कि वह यहां के स्थानीय निवासियों से इस तरह क्यों घुल- मिल गई, वह तो परदेसी है। उसे तो कुछ समय बाद यहां से उड़ ही जाना है। जब उनके दल का मुखिया उड़ने का संकेत देगा, उन्हें ये ज़मीन छोड़नी ही होगी।
लेकिन फिर भी उसका मन ये सोच कर खट्टा हो गया कि जो लोग जीवन भर कहीं आते- जाते नहीं, एक ही जगह जमे रहते हैं वो कितने खुदगर्ज हो जाते हैं। घाट- घाट का पानी पी लेने वाले तो ख़ुद बहते पानी की भांति निर्मल हो जाते हैं। उन्हें दूसरे के दुख- दर्द और विचारों का सम्मान करना भी आ जाता है।
लो, वो न जाने क्या - क्या सोचती हुई यहां बैठी थी और उधर उसके दल के परिंदों ने परवाज़ में पर तौलना भी शुरू कर दिया। सब एक - एक करके फिर उड़ चले। किसी अनजानी दुनिया की ओर।
आसमान में आते ही ऐश सोचने लगी, क्या बूढ़े चाचा को उसके गुनाह की सज़ा मिली? नहीं - नहीं, उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। आख़िर उसकी गलती ही क्या थी। कई दिनों से एकाकी जीवन जीते बूढ़े ने अंधेरी रात में ऐश जैसी सुंदर और युवा को अपने इतने क़रीब बैठे पाया तो मन मचलना ही था। कितना शर्मिंदा भी तो हुआ वो बाद में।
उसकी मौत आई तो उसे जाना पड़ा। इसमें सज़ा कैसी! चाहे जो हो, उनके दल से ऐश के एक सरपरस्त के चले जाने से एक खालीपन तो पसर ही गया।
मौसम साफ़ था। सब तरोताजा हो कर उड़े चले जा रहे थे। शायद उनका झुंड अब किसी शहर के ऊपर से गुज़र रहा था। नीचे चौड़ी सड़कों पर गाड़ियों, साइकिलों और इंसानों का रेला सा उमड़ता दिखाई दे रहा था।
दल के मुखिया ने उन्हें सब को चेताया - देखो, हम बस्ती से गुज़र रहे हैं, ध्यान रखना। आकाश में पतंगें हो सकती हैं। उनकी डोर दूर से दिखाई नहीं देती है। कोई निशानेबाज हो सकता है जो हमें देख कर निशाना ही लगा दे।
सब सहम कर तेज़ी से उड़े जा रहे थे मगर बीच- बीच में नीचे झांक कर शहर की रंगीनियां देखने से भी खुद को रोक नहीं पा रहे थे। हडसन तट से निकलने के बाद बड़ा शहर देखने का मौक़ा काफी देर बाद आया था। अधिकतर तो पर्वत, नदियां, खेत, जंगल या दरिया ही मिल रहे थे।
लेकिन ऐश को ये सोच कर थोड़ी मायूसी हो रही थी कि उसे अभी तक "प्यार" के दर्शन कहीं नहीं हुए थे, जो ढूंढने के लिए वो इस विकट यात्रा पर निकली थी। उसे अपने साथी रॉकी की याद भी रह - रह कर आ जाती थी जिसे ऐश ने अपने से दूर करके प्यार तलाश करने भेज दिया था। लेकिन सच पूछो तो मन ही मन ऐश यही चाहती थी कि उसे दूर जाकर कहीं सच में प्यार न मिल जाए। मिले तो ऐश के पास आकर ही मिले! लो, ये क्या बात हुई। जब बेचारा ऐश के पास था और रात दिन अपने प्यार का इज़हार करता था, अभिसार करता था, इकरार करता था तब तो उस पर ध्यान दिया नहीं, और अब उसके बिना ऐसी बेचैनी महसूस कर रही थी। यही तो है जिंदगी। जो कुछ मिल जाए उसकी कीमत नहीं समझते हम, जो नहीं है उसे ढूंढते रहते हैं।
लेकिन तभी ऐश चौंकी। नजदीक उड़ते हुए एक युवा परिंदे ने जाने- अनजाने अपना मुंह ऐश की गर्दन पर छुआ दिया था। वह सर्र से परे हट गया मानो कुछ कहने ही आया हो!