हडसन तट का ऐरा गैरा - 25 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 25

दोपहर होते - होते ज्यादातर परिंदे घने पेड़ों पर विश्राम के लिए जा चढ़े। धूप तेज़ थी। धूप का चिलका पानी की लहरों पर पड़ता तो ऐसा लगता था मानो चमक के मोती- माणिक बिखरे हुए हों।
ऐश ने एक बार पानी में ही अपने पैरों को झाड़ कर पंखों को फड़फड़ाया और गर्दन उठा कर नज़दीक के एक पेड़ का जायज़ा लेने लगी, जैसे उड़ान भरने वाली हो।
तभी उसने पास से आती हुई एक आहट सुनी। आवाज़ ऐसी थी जैसे सूखे पत्तों के ढेर पर कोई चल रहा हो। ऐश ने गर्दन उठा कर देखा। एक विशालकाय भैंस घास पत्तों के बीच चलती चली आ रही थी। ऐश जल्दी से भैंस के लिए जगह बनाने के लिए पानी के एक किनारे किसी बजरे की तरह खिसकने लगी। पर तभी उसने देखा कि भैंस की पीठ पर तो एक सफ़ेद झक्क बगुला बैठा ठुमकता हुआ चला आ रहा है।
ओह, मतलब ये तो हम पंछियों की दोस्त ही है, इससे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।
इतना ही नहीं बल्कि भैंस के साथ - साथ और उससे कुछ पीछे- पीछे एक - दो बगुले घास में फुदकते हुए भी चले आ रहे थे।
ऐश ने सोचा, ये कोई रानी- महारानी दिखाई देती है जो इसके साथ सुरक्षा- गार्ड की तरह इतने पंछी चल रहे हैं। उसने अपना मुंह पानी में छिपाने की कोशिश की। कहीं भैंस उसे वहां देख कर कोई आपत्ति न करे। ऐश तो बाहर से आए प्रवासी दल की सदस्या ठहरी। वो कोई स्थानीय तो थी नहीं।
लेकिन तभी एक मैली सी मटमैली मछली ने उसे बताया कि वो बगुले कोई इस भैंस के पहरेदार या नौकर नहीं हैं। ये भैंस घास में चलते हुए अपने थूथन से हवा उड़ाते हुए गुजरती है जिससे आसपास के मच्छर और कीड़े घास से निकल कर भुनभुनाते हैं। बस, इन्हीं मच्छरों को झपट कर चट कर जाने के लिए ये लालची परिंदे इसके पीछे लगे हैं।
- अच्छा, मुझे क्या? कह कर ऐश उछल कर पंख फड़फड़ाती हुई एक नीची सी डाल पर जा बैठी। उसे मछली का अपने सजातीय मित्रों को लालची कहना ज़रा भी पसंद नहीं आया था।
ऐश की आंखों में इस समय नींद नहीं थी। वह पेड़ की हरियाली में छिपी बैठी हुई भैंस और बगुलों के क्रिया- कलाप देखने लगी।
बगुले पानी के किनारे ही ठहर गए थे और भैंस पानी के बीच में पहुंच कर तैरने का आनंद ले रही थी।
ऐश को पेड़ की फुनगी पर बैठी हुई एक छोटी सी नीली चिड़िया दिखाई दी। उससे कुछ बात करके समय बिताने के लिए ही ऐश उससे बोली - देखो हमारे सजातीय इन बगुलों को इस मोटी- ताज़ी भैंस से कितना प्यार है। ये यहां नहाने आई है तो ये बेचारे इसकी चौकसी कर रहे हैं खड़े होकर।
चिड़िया ज़ोर से हंसी। फिर चहचहाते हुए बोली - ओ मेमसाब, ये बगुले भैंस की चौकसी नहीं कर रहे बल्कि पानी में खड़े होकर ख़ुद मछलियों का शिकार कर रहे हैं। और वैसे भी मर्दों का किसी नहाती हुई जनानी को इस तरह देखना कोई अच्छी बात है क्या?
ऐश चुप हो गई। उसे लगा कि ये चिड़िया कहती तो ठीक है, इसका मतलब ये प्यार - व्यार कुछ नहीं है। लेकिन ऐश को वो चिड़िया अच्छी नहीं लगी। वह सोचने लगी - देखो तो ये चिड़िया कितने पुराने खयालात की है, एकदम दकियानूसी। आजकल ऐसी बातें भला कौन सोचता है? अब महिला और पुरुष में कोई भेद है क्या? अरे नर मादा का खुला शरीर क्यों नहीं देख सकता? ख़ुद वो पैदा भी तो उसी शरीर में से होता है। लगता है ये चिड़िया किसी पिछड़े इलाक़े से आती है इसीलिए इसके विचार इतने घिसे- पिटे हैं।
तभी ऐश ने देखा कि भैंस ने पानी के किनारे पर खड़े होकर गोबर कर दिया। चिड़िया भी हैरान होकर उधर ही देखने लगी।
ऐश परदेस से आई थी इसलिए चिड़िया के मुंह नहीं लगना चाहती थी। लेकिन वह गलत बात पर चुप भी नहीं रहना चाहती थी। बोल पड़ी - देखा तूने? भैंस ने जो गोबर किया है न उससे कोई किसान खाद बनाएगा। फिर उस खाद से खेत में अन्न पैदा होगा। उस अन्न को सब खायेंगे। मैं भी, तू भी। तो भैंस को देखने में क्या बुराई है री?
ऐश के तेवर देख कर चिड़िया सहम गई और फुर्र से उड़ गई।