भूतिया खजाना सोनू समाधिया रसिक द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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भूतिया खजाना


भूतिया खजाना...

लेखक :- सोनू समाधिया रसिक


एक तांत्रिक पुराने खंडहर किले में खजाने के लिए यज्ञ कर रहा था।
तभी वहां आते हुए घोड़े की टापें सुनाई देती हैं। जिससे वह तांत्रिक डर जाता है। लेकिन वहाँ न कोई घोड़ा दिख रहा था और न ही कोई शख्स दिख रहा था।


उस अदृश्य और अनजान शक्ति के वहाँ आ जाने से यज्ञ की आग बुझ जाती है।
तभी वह अंजान शक्ति तलवार लेकर उस तांत्रिक की ओर बढ़ती है और उस पर कई जानलेवा हमला करती है। जिससे उस तांत्रिक की मौत हो जाती है।


अभी तक खजाने के लालच में हजारों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।
आज की इस कहानी में एक ऎसी ही सच्ची घटना के बारे में बताएंगे।


आज भी दुनिया और हमारे देश भारत में ऎसे कई खजाने हैं जो अभी तक जमीन के अंदर दफ़न हैं।
लेकिन माना जाता है कि ऎसे खजाने शापित होते हैं। जो अपने साथ अतीत के काले रहस्य और बुरी आत्माओं को भी अपने साथ दफ़न किए रहतें हैं।


जब कोई इंसान ऎसे खजानों के साथ छेड़छाड़ करता है तो वह इन शापित खजानों के साथ दफ़न बुरी आत्माओं का शिकार हो जाता है।


ये कहानी है रत्नागिरी के मल्हार किले की और वहाँ के रहने वाले चार आवारा दोस्तों की।
जो उस किले के खजाने को पाना चाहते थे।


एक बार तीनों दोस्त अशलम, दुर्गेश और अनुराग उसी किले के पास अपने दोस्त नाज़ीम के साथ जुआ खेल रहे थे।
लेकिन ये तीनों दोस्त हर बार की तरह अपने दोस्त नाजिम के साथ जुआ हार जातें हैं।



जिससे अशलम पर नाजिम का 15 हजार रुपये का कर्ज हो जाता है।
नाजिम उसे जल्द पैसे चुकाने को बोलता है।
इस पर अशलम उससे वादा करता है कि वह उसका पैसा 15 दिन बाद पूर्णिमा की रात को बापस कर देगा। क्योंकि उसे उस रात खजाना मिलने वाला था।
खजाने को ढूढने में उनकी मदद एक बाबा करने वाला था। वह बाबा चलते हुए खजाने का सही और सटीक पता लगा लेता था।



तीनों दोस्तों को पता था कि वह किला शाम हो जाने के बाद बहुत खतरनाक और डरावना हो जाता है। शाम के बाद किसी को भी उस किले में जाने की परमिशन नहीं थी।


नाजिम, अशलम, दुर्गेश और अनुराग का अच्छा दोस्त नहीं था। लेकिन सभी की आदतें एक जैसी होने की वजह से चारों मिले थे।

नाज़ीम कहता है कि मुझे खजाने के चक्कर में नहीं पड़ना। तुम बस मेरे 15 हजार रुपये ही दे देना।

बाद में तीनों के कहने पर नाजिम उस किले में जाने को तैयार हो गया।


अगले दिन चारों दोस्त एक बाबा के साथ मल्हार किले के लिए निकल पड़े। चारों को इस बात का पता नहीं था कि इसकी सभी कितनी कीमत चुकानी पड़ सकती है।


सभी मल्हार किले के पास पहुंच जाते हैं। जहां पर 14वीं शताब्दी का खजाना दफ़न था।
खजाने का पता उस बाबा को एक सोने के सिक्के से चलता है। वह सिक्का बाबा को सपने में दिखा था।
बाबा को वह सिक्का ठीक उसी जगह मिला जो जगह उसने अपने सपने में देखी थी।



सभी उस खजाने को उस वक्त नहीं निकाल सकते थे। क्योंकि खजाने को निकालने के लिए सही और अनुकूलित समय और मुहूर्त की जरूरत थी।
बाबा ने खजाने को निकालने का सही समय पूर्णिमा की रात को तय किया।



सभी लोग बापस लौटने लगते हैं। तभी अचानक से पीछे से एक लड़के पर तलवार से हमला होता है।
पीछे देखने पर कोई भी नहीं दिख रहा था। वह लड़का बच जाता है।
वह काफी घबरा जाता है।


जाते जाते बाबा सभी को उस किले के खजाने के बारे में बताता है।कि
14वीं शताब्दी का दुनिया का सबसे बड़ा खजाना चुनार नाम के किले में था। जो दिल्ली के आसपास ही कहीं था।
जब वहां के राजा की मौत हुई तो खजाना और किला दोनों जमीन के नीचे दफन हो गए।



बाबा आगे बताता है कि जब कोई चीज या फिर कोई खजाना अगर 500 साल तक नीचे दबा रहे तो वह एक जगह से दूसरी जगह खिसकने लगती है।


ऎसा ही चुनार के किले के खजाने के साथ हुआ है। वह खजाना वहां से इस मल्हार के किले में पहुंच चुका है।


बाबा कहता है कि हम अगली पूर्णमासी की रात को यहां आएंगे खजाना निकालने के लिए।


सभी को पता था कि रात को जो भी मल्हार के किले के अंदर जाता है, वो कभी बापस नहीं आता है।
लेकिन बाबा उनसे कहता है कि मेरे होते हुए तुम सबको डरने की कोई जरूरत नहीं है। मेरे होते हुए कोई भी तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।


लेकिन यह बात सही थी कि रात को जो भी उस किले में गया वो कभी बापस नहीं आया।


अगली पूर्णमासी की रात बाबा उन चार लड़को के साथ उस किले में पहुंच जाता है।
उसी वक़्त सभी को चुनार किले का बोर्ड वहाँ पड़ा दिखता है। लेकिन कोई भी उस बोर्ड पर ध्यान नहीं देता है कि चुनार किले का बोर्ड मल्हार किले में कैसे पहुंच गया।


इसके बाद बाबा खजाने के लिए यज्ञ शुरू करता है। तभी बाबा को खजाने का पता चलता है जो वहां से 1किलोमीटर के अंदर था।


बाबा सभी को खजाना ढूढने के दो तरीके बताता है।
अगर लाल रोशनी दिखे तो समझ जाना कि खजाना वहीं है या फिर कहीं सिक्कों की खनक सुनाई दे तो समझ जाना कि खजाना वहीं।


इसके बाद चारों खजाने की तलाश में किले में चारों ओर फैल जाते हैं।
तभी जाते - जाते बाबा अनुराग को रोक लेता है और उसे लौटा देते हुए कहता है कि तुम्हें पश्चिम दिशा में जाने पर एक प्याऊ मिलेगी वहाँ से पानी लाना है। जिसकी जरूरत पूजा में पड़ेगी।


इस तरह चारों अपने अपने काम में लग जातें हैं।


तभी नाजिम को एक कमरे से लाल रोशनी आती हुई दिखी। नाजिम के मन में लालच आ गया और वह किसी को बिना बुलाए उस लाल रोशनी की ओर बढ़ गया।
तभी नाजिम को वहां एक कंकाल दिखाई देता है जिससे उसकी चीख निकल पड़ी।



इधर अनुराग जब पानी लेने जा रहा था। तभी पीछे से एक शैतान तलवार से उस पर हमला करता है। कैसे भी करके अनुराग उस हमले से बच जाता है।


खजाने की तलाश कर रहे धर्मेश को एक पुराना बक्सा दिखाई देता है। धर्मेश उस बक्से पर अपना कान लगाकर सिक्के की खनक सुनता है तो उसे सिक्कों के खनक सुनाई देती है लेकिन तभी उसका कान उस बक्से से चिपक जाता है।
बहुत कोशिश और ताकत लगाने के बाद धर्मेश छूट जाता है लेकिन उसका कान उसी बक्से से चिपका रह जाता है। उसकी चीख सुनकर अशलम और नाजिम वहां आ जाते हैं और ये सब देखकर खजाने को छोड़कर वहाँ से जाने की बात कहते हैं।


इसी दौरान अनुराग को एक प्याऊ दिखती है वह पानी भरकर बापस लौटता है तो शैतान फिर से उस पर हमला करता है। अनुराग पूरी तरह से उस शैतान के चंगुल में फंस चुका था।


भागते हुए अशलम को एक सुराख से लाल रोशनी आती हुई दिखाई देती है तो अशलम खजाने के लालच में अपना हाथ उस सुराख में डाल देता है। उसके हाथ में सिक्के भी आ जाते हैं लेकिन उसका हाथ अंदर किसी ने पकड़ लिया था। वह अपना हाथ बाहर नहीं निकाल पा रहा था।
तभी शैतान उसे मारने के लिए आगे बढ़ता है।
तो अशलम की चीख निकल पड़ी।



चीख सुनकर धर्मेश अशलम के पास पहुंच जाता है। लेकिन वह भी उसका हाथ बाहर निकालने में असफल हो जाता है।


धर्मेश भाग कर बाबा के पास जाता है और उससे सहायता मांगता लेकिन वह बाबा अपनी साधना में लीन था। उसने धर्मेश की एक बात न सुनी।



तभी अनुराग भी वहां पहुंच जाता है और धर्मेश और अनुराग जबर्दस्ती अशलम का हाथ बाहर निकाल लेते हैं। जिससे हाथ बहुत जख्मी हो जाता है। हाथ से ढेर सारा खून निकल रहा था।

तीनों भाग कर किले के गेट की तरफ़ बढ़े।

तभी बाबा उन्हे रोक लेता है। उन्हे सारी सच्चाई बताता है -

“ मैंने तुम सबका इस्तेमाल किया है। मैंने तुम्हें इस खजाने का रहस्य तो बताया ही नही था। इस खजाने की रक्षा कई सालों से चुनार के राजा का एक वफादार सैनिक कर रहा है। वह बहुत ही खतरनाक प्रेत है।
अगर मैं ये बात तुम्हें बता देता तो तुम सब मेरा साथ नहीं देते।

जानते हो,

मैंने तुम्हें खजाने का पाने का सही तरीका नहीं बताया कि लाल रोशनी में सिक्का डाल डालने पर सारा खजाना वहां आ जाएगा।
और मैंने उस सिपाही के प्रेत को खुश करने के लिए उसे तुम सबका खून दिया है।
अब मुझे उस खजाने को पाने से कोई भी नहीं रोक सकता। जहाँ तक उस खजाने का प्रेत तक नहीं।”


तीनों घायल होने की वजह से धोखा देने वाले उस बाबा का कुछ नहीं कर सकते थे।
तीनों अपनी जान बचाने के लिए किले के गेट की तरफ जाते हैं तो उनके पहुचने से पहले गेट खुद व खुद बंद हो जाता है।
अब तीनों बुरी तरह से उस किले में फंस चुके थे।

तभी तीनों को मारने के लिए प्रेत आगे बढ़ता है।
उसी वक़्त बाबा अपनी साधना से उस सिक्के को हासिल कर लेता है और उसे लाल रोशनी में रख देता है। जिससे सारा खजाना बाबा के पास पहुंच जाता है।


तभी खजाने से एक तेज़ रोशनी निकलती है जिससे बाबा की आंखों की रोशनी चली जाती है और उसकी पूजा में बाधा उत्पन्न हो जाती है। जिससे प्रेत वहां आ जाता है और बाबा को कैद कर लेता है।
और बाबा को मारने लगता है।


बाबा की चीख तीनों को सुनाई देती है। जो उन तीनों से मदद मांग रहे थे।

तीनों अब उस धोखेबाज बाबा की बातों में नहीं आने वाले थे। तीनों बाबा की बातों को अनसुना करके किले की दीवार से उस पार जाने का फैसला करते हैं। क्योंकि किले का दरवाजा तो पहले ही बंद हो गया था।


तीनों एक दूसरे की मदद से किले से बाहर निकल आते हैं लेकिन सैनिक का प्रेत अभी भी उनका पीछा कर रहा था।

तीनो भाग भाग कर इतना थक चुके थे कि उनकी हिम्मत जबाब दे चुकी थी।
तीनों थक कर वहीं गिर पड़े।


तभी उन तीनों को सामने एक पुराना खंडहर जैसा कामरा दिखा। वहां जाकर तीनों छिप गए और सबेरा होने का इंतजार करने लगे।
उनके पास कुछ सिक्के थे। जो उसी खजाने के थे।

अनुराग, अशलम को डांटता है कि अगर हम खजाने के लालच में नहीं पड़ते तो वो आत्मा हमारे पीछे नहीं पड़ती।
उन्हे लगा कि आत्मा वहां उनका पीछा नहीं करेगी।


तभी तीनों को घोड़े की टापें सुनाई देती हैं। वह प्रेत आत्मा उन्हे अभी तक ढूंढ रही थी।
कुछ देर बाद घोड़े की टापें सुनाई देना बंद हो गईं तो तीनों को लगा कि खतरा टल गया है।


तभी अशलम, धर्मेश को फोन पर किसी से चुपके से बात करते हुए सुन लेता है। जब अशलम धर्मेश से पूछता है तो धर्मेश उसे कुछ नहीं बताता। इस पर दोनों लड़ जाते हैं। तभी अनुराग वहां पहुंच जाता है और लड़ाई शांत करवाता है।


अनुराग को आधी रात को होश आता है तो वह अशलम और धर्मेश को वहां न पाकर उन्हे बाहर जाकर ढूढने लगा।

तभी धर्मेश घायल हालत में एक पेड़ से नीचे गिरता है। अनुराग उससे कुछ पूछता कि तभी अशलम पीछे से उसके चाकू मार देता है।कुछ सिक्कों के लिए अशलम की नीयत खराब हो गई थी।


तभी सैनिक का प्रेत वहां आ जाता है। जिसे देख अशलम वहाँ से भाग खड़ा हुआ।
प्रेत भी उसका पीछा करते हुए वहाँ से चला गया।
तभी वहां नाजिम आ जाता है क्योंकि धर्मेश ने उसी को कॉल किया था। सिक्कों से उसका कर्ज चुकाने के लिए। लेकिन अब देर हो चुकी थी।

तभी नाजिम को अशलम की चीख सुनाई देती है। अशलम को सैनिक का प्रेत मार चुका था।
प्रेत उसकी लाश को धर्मेश और अनुराग की लाश के पास ला रहा था।
नाजिम भागकर एक पेड़ के पीछे छिप गया।

वह प्रेत खजाने के सिक्के लेकर बापस चला गया। सारा खजाना अपनी जगह बापस पहुंच गया था। जो अभी तक वहीं पर है।

दुनिया के सामने उस बाबा के साथ तीनों दोस्तों की मौत अभी तक रहस्य बनी हुई है।
सिर्फ़ नाजिम को छोड़ कर......

✝️समाप्त✝️

कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏
Radhe radhe 🙏 🌼