मेरी प्यारी बिटिया... सूर्याशीं सोनू समाधिया रसिक द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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मेरी प्यारी बिटिया... सूर्याशीं

रामकेश एक अनपढ़, रूढ़िवादी था वह तीन सदस्यीय परिवार का भरण पोषण मजदूरी से करता था।
उसके कोई संतान नहीं थी, लेकिन वह और उसकी मां बेटी को संतान के रूप में नहीं चाहतीं थी।
बेटे की कामना ने बेटा और माँ को अन्धा बना दिया था।
बेटे के लिए वो ओझा, हकीमों और कई चमत्कारी मंदिरों के चक्कर लगा आए थे।
उसकी पत्नी रामा गर्ववती थी।
उसी रात...
रामा के अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हो गई ।
रामकेश की माँ ने तुरंत रामकेश को जगा दिया।
"बेटा उठ! तेरी बहू के दर्द हो रहे हैं, तू बाप बनने वाला है।"
रामा की सास दौड़कर रामा के पास पहुच गई।
रामकेश बहुत खुस हो रहा था, वह आंगन में पड़ी चारपाई पर बैठ गया।
उसे खुसी के मारे बैठा नहीं जा रहा था। तभी उसे एक आशंका ने घेर लिया कही संतान बेटी न हो जाए उसकी सारी खुसी अब एक अनजाने दुख में बदलने लगी थी।
वह खुद को समझा रहा था उसे अपने भगवान और ओझा हकीम पर पूरा भरोसा था।
भादों की रात थी।
हल्की हवा बह रही थी, कमरे से रामा के कराहने की आवाजें आ रही थी।
बिजली के बल्ब की हल्की रोशनी से अनमना सा चारपाई पर बैठा रामकेश दिख रहा था।
कुछ देर बाद कमरा बच्चे के रोने की आवाज से गूंज उठा।
रामकेश जिज्ञासावस चारपाई से खड़ा हो गया,
कमरे में कुछ क्षण के लिए सब शांत हो गया
फिर
कमरे में से रामकेश की माँ हङवङाती हुई निकली।
"हाय मेरे लाल अपने तो करम फूट गए, सब कुछ बर्बाद कर दिया तेरी बहू डायन ने मनहूस बेटी जन्मी है, अब क्या होगा।" - रामा की सास अपना सर पीटते हुए बोली।
इतना सुनते ही रामकेश के पेरों तले जमीन खिसक गई उसका सारा शरीर कांप उठा।
उसका भरोसा टूट चुका था। 
उसकी आँखे सुर्ख लाल हो गई।
ये बेटे की कामना रखने वाले रामकेश का हैवानियत का रूप था।
वह सीधा तेज चाल से रामा के कमरे की तरफ बड़ा और रामा के हाथों से बेटी को छीन लिया।
"क्या हुआ जी! बेटी को कहा ले जा रहे हैं?" - रामा असमंजस में पड़ गई थी।
"ये मनहूस है हमें बेटी नहीं बेटा चाहिए।
आज ये मेरे हाथों से जिंदा नहीं बचेगी।"
रामा सोच कर चिल्ला पड़ी और रोती हुई उसके पीछे पीछे चली आई वो ठीक से चल नहीं पा रही थी कि तभी उसकी सास ने धक्का देकर उसे वही गिरा दिया।
वह सास के पेरों में पड़ी अपनी बेटी की जिंदगी की भीख मांगने लगी पर उसकी सास का दिल नहीं पसीजा और न ही रामकेश का।
क्योकि रामकेश के जन्मके लिए उसकी मां ने उसकी तीन बहनों की हत्या की थी।
नवजात बच्ची का गला अब रामकेश के हाथो में था।
और रामकेश के हाथ कड़े होते चले गए जिससे उस बच्ची का गला रुक गया और वह नन्ही कली खिलने से पहले ही मुरझा गई।
और रामकेश ने ऊपर से ही उसे छोड़ दिया, और उस बच्ची का बेजान शरीर जमीन पर गिर पड़ा ।
रामा रो रोकर अपना होश खो चुकी थी।
सुबह जब रामा के चेहरे पर धूप पड़ी तब जाकर उसे होश आया।
वो रात वाली हालत में पड़ी थी।
वहां कोई न था।
वह पागलों की तरह अपनी बेटी को ढूंढने लगी मगर उसे कुछ भी हासिल नहीं हुआ।
उसे मारपीट और अमानवीय व्यवहारों का सामना करना पड़ा।
कुछ दिनो में सबकुछ सामान्य हो गया था...

लगभग 15 महीनों के बाद...
रामकेश और उसकी माँ एक पड़ोसन की सलाह से रामा को एक डॉक्टर के पास ले गए उसके भ्रूण की जाँच के लिए
वहां डॉक्टर ने जांच करके उन्हे अस्वासान दिया कि रामा के पेट में लड़का है।
सब ख़ुश थे।
सब घर को निकलने लगे तो रामा वापस डॉक्टर के पास गई और उसके सामने हाथ जोड़ लिए और रोती हुई डॉक्टर के कदमों में गिर पड़ी। डॉक्टर ने उसके आस्वासान दिया और उसे खुश रहने के लिए कहा क्यों कि इसका असर उसके बच्चे पे पड़ सकता है।
दरअसल रामा डॉक्टर से पहले ही मिल चुकी थी और उसने अपनी सारी घटना डॉक्टर को बता दी थी।
इसलिए डॉक्टर ने उनके अनुरूप अपनी बात रखी।
रामकेश और उसकी मां रामा की देखभाल में जुट गए।
रामा को हर वक़्त यही डर लगा रहता था कि कहीं किसी तरह घर वालों को पता न चल जाए।
अब उसने सबसे मिलना जुलना बंद कर दिया। 
फ़िर एक शाम को रामकेश बाहर मजदूरी पर गया था, रामा और उसकी सास घर में अकेली थी तभी रामा के प्रसव पीड़ा हुई तो रामा की सास उसे अंदर ले गई। 
कुछ देर में रामा ने अपनी दूसरी बेटी को जन्म दिया। 
ये देख रामा की सास अपना सर पीट कर रो पड़ी। 
"हाय रे अब क्या होगा इस कलमुही ने एक और नागिन जन्म दी। सत्यानाश हो तेरा। मेरे बेटा का क्या होगा अब।" 
तभी रामकेश आ गया और असमंजस में पड़कर अपनी माँ से पूछा कि 
"क्या हुआ माँ। क्यूँ रो रही हो?" 
"बेटा! तेरी बहू ने हमको बर्बाद कर दिया उसने फिर से बेटी को जन्म दिया है। "
" क्या? "
" हाँ, बेटा। "
रामकेश बेसे भी हरा थका हुआ था उसे बेटी की सुनते ही उसकी आंखो में खून उतर आया। 
वह लकड़ियों का गट्ठर वही पटक सीधा रामा के पास जा पहुंचा। 
जैसे ही वह रामा की बेटी को उठाने को झपटा तो रामा ने तुरंत अपनी बेटी को उठाकर अपने सीने से लगाकर छुपा लिया और दूसरी तरफ़ मुड़ गई। 
"मैं अपनी बेटी को कुछ नहीं होने दूंगी किसी भी हालत में इसके लिए चाहे मेरे प्राण क्यूँ न चले जाय, मैं पहले भी अपनी बेटी को खो चुकी हूँ, ये मेरे जिगर का टुकड़ा है।" - रामा ने रामकेश की तरफ सर मोड़कर कहा। 
रामा की आवाज हिम्मत और दर्द से पूर्ण थी। उसके आँखो से आँसू छलक रहे थे और उसके होंठ कांप रहे थे। 
इतना सुनकर रामकेश का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। 
" अच्छा ऎसा है, तो ले इस मनहुश के साथ तुझे भी इस दुनिया से विदा कर देता हूँ। रुक.... ।" 
रामकेश का पूरा शरीर गुस्से से कांप रहा था। उसने हड़ बड़ा हट में इधर उधर देखा तो सामने एक लकड़ी की छड़ी पड़ी हुई थी। 
उससे वह रामा को मारने लगा रामा असहनीय दर्द से कराह उठी। पर उसने अपनी बेटी को अपने सीने से अलग नहीं किया। 
रामा कमजोर भी थी और ऊपर से छड़ी की चोट से रामा बेहोशी की हालत में पहुंच चुकी थी लेकिन रामा को भली भांति पता था कि अगर वो बेहोश हो गई तो वो अपनी बेटी को खो देगी। 
रामा की हीम्मत और सहन शक्ति जबाब दे चुकी थी लेकिन रामकेश की अमानवीय व्यवहार में कोई भी परिवर्तन नहीं आया वो माँ बेटी को जान से मारने की कोशिश में था। 
तभी रामा अचेत होकर मुँह के बल बैड पर गिर गई। 
उसकी बेटी अभी भी उसके सीने के नीचे रोय जा रही थी। 
रामकेश पागल सा अभी तक उसको मारे जा रहा था। 
तभी उसकी माँ आई और उसने रामकेश का हाथ पकड़ लिया। 
"पागल हो गया है क्या तु? जान से ही मार डालेगा क्या बहू को।"
"हाँ, माँ आज इन दोनों को मुझसे कोई नहीं बचा सकता। छोड़ो मुझे.... ।" 
"पगला मत अगर इसे मार डालेगा तो बेटा कहा से लाएगा तु हाँ बेसे भी मुस्किल से शादी हुई है तेरी।" 
रामकेश गुस्से से छड़ी वही पटक वहां से चला जाता है। 
रामा की सास भी रामा को उसी हालत में छोड़ कर चली गई। 
कुछ क्षण बाद.. 
बेटी के रोने की आवाज से रामा को होश आया वह घबराकर इधर-उधर देखती है और खुस होकर बेटी को चूम लेती है बेटी को अपने पास देख कर वो सब दुख दर्द भूल गई। 
लेकिन उसके शरीर पर नीले चोट के निशान, रिसता हुआ खून उसके साथ किए गए अमानवीय व्यवहार को दर्शा रहे थे। 
आखिरकार माँ तो माँ होती है। 
रामा ने अपनी बेटी का नाम सूर्यान्शी रखा वो उसे प्यार से सूर्या बुलाती थी। 
वह अपनी बेटी के साथ परछाइ की तरह लगी रहती थी क्योंकि जिस तरह से भेड़िया की नजर अपने शिकार पे रहती है उसी तरह रामकेश की नजर सूर्या पर रहती। 
एक बार रामा खेत में फसल काटने को गई साथ में वह सूर्या को ले गई अब सूर्या आठ महीने की हो गई थी। 
रामा ने पेड़ के नीचे एक कपड़ा बिछाकर उसपे सूर्या को लिटा दिया जो अभी सो रही थी। 
रामा अपने काम करने लगी। 
कुछ समय बाद रामा की नजर सूर्या पर पड़ी तो दंग रह गईं। सूर्या अपनी जगह 
पर नहीं थी अनहोनी की आशंका से रामा के हाथ पांव फूल ने लगे। वह तुरंत खड़े होकर उसको ढूंढने लगी। अचानक उसके दिमाग में कुछ आया और उसने रामकेश की तरफ देखा तो वह फसल काटने मे व्यस्त था तब रामा को थोड़ी सी राहत आई। 
उसने देखा पास के खेत में मेढ़ की ओट में बच्चे के खेलने की आवाज आ रही है वह वहां गई तो सूर्या अपने खेल में मग्न थी। रामा ने उसे उठाकर सीने से लगा लिया और चूमने लगी। 
भय से अनजान वो बच्ची अपनी माँ के प्यार से खिलखिलाकर हंसे जा रही थी। 
कुछ वर्षों बाद.. 
रामा सूर्या को खुद की मेहनत मजदूरी करके पढ़ा रही थी। उसे घरवालों और गाँव वालों के तानों की कोई परवाह नहीं थी। क्योंकि उस गाँव में लड़की को पढ़ाना वर्जित था। 
समय बीतता गया सब कुछ सामान्य होता गया और सूर्या के घर एक नया मेहमान आने की तैयारी में था। सूर्या अब कक्षा 12th में आ गई थी और वह 15 साल की हो चुकी थी वो देखने मे जितनी खूबसूरत थी उतनी ही पड़ने में होशियार थी। 
पिछली बार की तरह रामा की सास ने भ्रूण जांच करवाया तो बेटे की पुष्टि हुई। सब ख़ुश थे। 
सूर्या भी खुश थी क्योंकि उसका भाई आने वाला था। 
घर का सारा काम सूर्या करती थी। 
दोपहर का समय था रामा, सूर्या की दादी और रामकेश ने देखा कि सूर्या रोती हुई चली आ रही है। 
रामा ने रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसको रास्ते में गाँव के कुछ लड़के छेड़ रहे थे। 
"मैंने पहले ही कहा था कि बेटियों को पढ़ाना ठीक नहीं है पर मेरी कोई सुने तब ना, जबान बेटी को घर में ही रखना चाहिए।" - रामा की सास ने अपनी बात को सत्य ठहराते हुए कहा। 
तभी रामकेश सारी फसाद की जड़ सूर्या को मानते हुए उसे मारने को दौड़ा तभी रामा बीच में आ गई। उसने कहा कि -" मेरी बेटी को हाथ भी लगाया तो मैं जान दे दूंगी। "
गुस्से में आकर रामकेश ने रामा को धक्का दे दिया जिससे रामा पास ही मे रखे स्टूल पर जा गिरी स्टूल रामा के पेट में जाकर लगा जिससे रामा तुरंत बेहोश हो गई। और ढेर सारा खून गिरने लगा। 
ये सब देखकर सब लोग डर गए और जल्दी से रामा को हॉस्पिटल ले जाने लगे, लेकिन दुर्भाग्यवस रामा का रास्ते में ही गर्भपात हो गया। 
डॉक्टर ने रामा की जान मुस्किल से बचा पाई, और कहा कि रामा अब कभी भी माँ नहीं बन सकती इस दुखद सूचना ने सबके अरमानों पर पानी फेर दिया, अंदर से तोड़ कर रख दिया था सबको। 
रामकेश की माँ इस सदमा को बर्दाश्त नहीं कर सकीं और इस दुनिया को छोड़कर चली गई। 
रामकेश भी इस सदमे से काफी विचलित हो गया था। 
गाँव वाले इन सब का जिम्मेदार सूर्या को मान रहे थे उन्हे लगता था कि यह कोई शाप या मनहुश लड़की है। 
इससे सूर्या बहुत दुखी थी। लेकिन उसकी माँ ने उसे समझा दिया। 
1 माह बाद.... 
सूर्या ख़ुशी से दौड़ती हुई अपनी माँ के गले लग गई। 
"देखो! माँ मैं स्कूल में टॉप पर आई हूँ। और ये देखो मुझे सरकार द्वारा छात्रवृत्ति भी मिली है जिसमे मुझे कॉलेज पड़ने के लिए हॉस्टल भी मिला है माँ।" - सूर्या रामा को अपनी बाहों में भरकर झुलाते हुए बोली। 
"लेकिन बेटा गाँव वाले ?" 
"क्या गाँव वाले माँ आपको अपनी प्यारी बिटिया पे भरोसा है ना। "
" हाँ तू मेरी जान है, जिगर का टुकड़ा है। "-रामा ने सूर्या के माथे को चूमते हुए कहा। 
तभी रामकेश वहां आ गया। सूर्या ने खुसी से वो सर्टिफिकेट उसे दिखाया तो उसने उसे फेंक दिया।
"बस यही और रह गया था नाक कटवाने के लिए गाँव वाले क्या सोचेंगे कि जबान बेटी संभली नहीं तो उसे अकेली बाहर भेज दिया। "
" लेकिन बापू...." 
"बस्स.... 
चैन से दो वक़्त की रोटी भी नहीं खाने देते..।" - रामकेश बढ़ बढ़ाता हुआ अंदर चला गया। 
सूर्या रोकर अपनी माँ के गले लग गई। 
" तू चिंता मत कर तेरा हर सपना पूरा करने में, मैं तेरा साथ दूंगी ठीक है मत रो तु मेरी बहादुर बेटी है ना।" 
4महीने बाद... 
सूर्या को कॉल लैटर आया, उसने सारी बात अपनी माँ को बतायी तो माँ ने अपनी मेहनत, मजदूरी से कमाई हुई रकम सूर्या को दे दी। 
दोपहर का समय था गाँव वाले अपने काम में व्यस्त थे। 
रामा, सूर्या को लेकर गाँव के बस स्टॉप पर पहुंची और उसे हॉस्टल के लिए रवाना कर दिया। 
बाद में गाँव में खबर फैल गई कि रामकेश की जवान बेटी मुंह काला करके भाग गई माँ बाप का। 
ये सारी जिल्लतें एक माँ ने अपनी बेटी के लिए खुसी खुसी सह ली। 
उधर कुछ दिन तक तो सूर्या को अपनी माँ की बहुत परवाह हुई बहुत याद आई, लेकिन उसने कुछ बनने की ठान ली थी उसे साबित करना था कि बेटियाँ भी किसी से कम नहीं है। 
सूर्या दिन रात किताबों में खोई रहती थी। सब हैरान थे उसकी सहेलियां और हॉस्टल का स्टाप। 
3 साल बाद.... 
सूर्या आज बहुत ही एक्साइटेड थी उसका IAS का रिज़ल्ट आने वाला था। 
सूर्या ने लिस्ट देखी तो उसको गहरा सदमा पहुंचा क्यो कि वह सिर्फ 5अँको से IAS बनने से चूक गई थी। 
अब माँ को क्या जबाब देगी गाँव वालों से क्या कहेगी क्यूँ आई थी वो यहा भागकर ऎसे कई सवाल उसके दिमाग में घूमने लगे सूर्या कई मिनिट तक जिंदा लाश की तरह खड़ी रही। 
वह सारा दिन रोती रही 2,3 दिन तक उसने कुछ खाया तक नहीं उसकी फ्रेंड ने समझा कर उसे खाना खिलाया और उसे अगली टेस्ट के लिए रेडी होने के लिए कहा। 
रात के 2 बजे अचानक सूर्या की आँख खुल गई वह आहिस्ता आहिस्ता उठी और अपने रूम से निकल कर बालकनी में पहुंच गई।सूर्या की आंखों से आंसू बहे जा रहे थे। वहा उसने स्टूल पर चढकर अपने स्कार्फ से खुद को फांसी लगाना चाहती थी कि तभी उसकी आंखो के सामने उसकी माँ की तस्वीर उभर आई। जिसकी जान को आज सूर्या ख़त्म करना चाहती है, उसकी मां ने उसके लिए कितने सितम झेले थे ये उसके शरीर में पड़े घाव बयां कर रहे थे क्या उसकी माँ ने ये सब ये दिन देखने के लिए किए थे। गाँव के ताने, भरी दुपहरी में अपनी बिटिया के लिए मेहनत, मजदूरी, इसी लिए की थी कि एक दिन उसकी बेटी जो उसकी जान से भी ज्यादा प्यारी है वो जरा सी कठिन परिस्थिति में जान देकर सब कुछ खत्म कर दे। 
ऎसे ख्यालों से सूर्या सिहिर उठी और उसके मुह से माँ नाम की चीख निकल पड़ी जिससे उसकी फ्रेंड जागकर उसके पास पहुंची और उसे डांटकर, समझा कर उसे कमरे में ले गई। 
सूर्या सब कुछ समझ चुकी थी अब वह दुगनी मेहनत करने लगी थी। 
और वह अगली साल UPSC टेस्ट में टॉप टेन में 6 वीं रैंक हासिल की। 
2 साल बाद.. 
गाँव में खबर फैली की कोई महिला DM गाँव में आ रही हैं। 
कुछ समय बाद भीड़ से घिरी कार में से एक महिला निकली उसका चेहरा देख कर गाँव वालों की आँखे आश्चर्य से खुली रह गईं क्यों कि वो DM महिला कोई और नहीं रामकेश की लड़की सूर्यान्शी थी। भीड़ में खड़ी एक बूढ़ी औरत जो गंदे और फटे हुए कपड़े पहने हुए और हाथ में लकड़ी के सहारे खड़ी हुई थी उसके दांत नहीं थे और कमर काम के बोझ से झुक गई थी। 
उसको देखकर सूर्या रोती हुई दौड़ते हुए माँ कहकर उसके गले लगाकर फूट फूट कर रोने लगी वो कोई और नहीं इसकी माँ रामा थी। 
पास में ही उसी हालत में एक बूढ़ा आदमी खड़ा था जो रामकेश था वो सूर्या को देखकर मुँह फेरकर खड़ा हो गया। 
"बापू मैं आपकी बेटी सूर्या देखिए ना मेरी तरफ मैंने आपका नाम रोशन कर दिया है मुझे माफ कर दीजिए ना बापू प्लीज 
मेरा यही कसूर है ना कि मैं एक लड़की हूँ 
अब आप समझ जाओ ना जो बेटा कर सकता है वो बेटी भी कर सकती है"! - सूर्या रोती हुई रामकेश के पेरों में गिर पड़ती है तभी रामकेश उसे उठाकर अपने गले लगाकर रोने लगता है। 
" बेटी तू हीमेरा बेटा मेरा सबकुछ है मैं किस मुँह से मांगू तुझसे माफी मे बहुत नीच गिरा इंसान हूँ मैंने तुमपे कोई कसर नहीं छोड़ी जुल्म ढाने में। "
और तीनो माँ, बाप बेटी गले लगकर रोने लगे। 
ये दृश्य देखकर वहां पर खड़े सभी लोगों की आँखो में आंसू आ गए। 
DM सूर्यान्शी सिंह ने सभी गाँव वालों को संबोधित करते हुए कहा कि मेरे प्यारे गाँव वासियों आप लोग बेटियों को मार डालते हैं बेटों के लिए तो आज तक कोई भी आप सब का बेटा कुछ बना है सिवाय लड़कियों को छेड़ने वाले के अलावा। लड़का छेङ दे किसी लड़की को तो उसने सिर्फ लड़की की गलती है लड़के की क्यों नहीं है। 
हाँ आपको या आपके लड़को को क्यूँ समझ में आएगी उनके बहन हो तब ना जिंदा ही नहीं छोड़ी होंगी। 
मेरा आप लोगों से अनुरोध है कि आप सब पुरानी सोच से निकलिये आज सब बेटा बेटी समान है। बेटी कोई शाप नहीं बरदान है। बेटियाँ आज नयी ऊंचाई को छू रहीं हैं। बेटों के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं हर क्षेत्र में। 
मुझे ही देख लीजिए कल को आप सब मुझे कलमुही, मनहुश न जाने क्या क्या बोल रहे थे, लेकिन अब मुझसे नजरें मिलाने से कतरा रहे हैं क्योंकि की आप लोगों की सोच घटिया और नीच है न कि किसी धर्म के अनुसार है। 
इस लिए आप सब से निवेदन है कि अपनी बेटियों को जन्म लेने दीजिए उन्हे आजादी दीजिए पढ़ने की आगे बढ़ने की। 
धन्यवाद ??। "
सूर्या अपनी माँ और पिता को अपने साथ बिठाकर DM आवास पर ले गईं। 
            ??समाप्त ??

" बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। "
" Please ?? save girl ? child ?" 
जै श्री राधे ?? ? 
❤️ सोनू समाधिया 'रसिक'