The Author सोनू समाधिया रसिक फॉलो Current Read भूतहा पुल By सोनू समाधिया रसिक हिंदी डरावनी कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books मनस्वी - भाग 3 अनुच्छेद- तीन दुनिया को ठीक से चलाओ ... यादों की अशर्फियाँ - 22 - गार्डन की सैर गार्डन की सैर बोर्ड की एक्जाम खत्म हो गई थी। 10th क... My Passionate Hubby - 6 ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –अगले... इंटरनेट वाला लव - 92 सुनो समीर बेटा ठीक दो दिन बाद शादी है. तो हमे ना अभी से तैया... किताब - एक अनमोल खज़ाना पुस्तक या मोबाइल "मित्र! तुम दिन भर पढ़ते रहते हो! आज रविवार... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे भूतहा पुल (119) 2.9k 10.1k 12 शंकरपुर गाँव में एक घर में शादी का माहौल था |शादी का दूसरा दिन था शाम हो चुकी थी |दुल्हन की बिदाई की रस्म पूरी हो चुकी थी,सभी की आँखे नम हो गईं थीं! सभी मेहमान रात का खाना खाने के बाद अपने अपने कमरे में चले गए |बरसात का मौसम था आसमान में बादल छाए हुए थे और थोड़ी देर बाद बरसात भी प्रारंभ हो चुकी थी |बारिस कई घंटों तक चली |रात को 2बजे के समय सब शांति से सो रहे थे कि एक कमरे में मोबाइल फोन बज उठा सभी मेहमान लगभग जाग चुके थे |"हेलो, हाँ मैं राकेश ही बोल रहा हूँ |आप कौन?""हाँ डॉक्टर मेरी माँ की तबीयत केसी है अब""क्या उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई है और मुझे अभी वहां पहुंचना है, मैं अभी आया"|"" कौन था राकेश "राकेश के फूफा ने चिंतित मुद्रा में पूछा |" वो फूफा जी डॉक्टर का फोन था कह रहा था कि माँ की तबीयत खराब हो गई है और मुझे अभी बुलाया है और मै जा रहा हूँ""पर बेटा इतनी रात को और ऎसे मोसम में कल चले जाते में भी तुम्हारे साथ चलता""नहीं फूफा जी मुझे चले जाने दीजिये न प्लीज आप कल आ जाना उन्हें इस वक़्त मेरी जरूरत है |"" पर वो पुल जो शापित है.... "" अरे! फूफा जी छोड़िए ना आप भी ना पड़े लिखे होकर भी ऎसी बात करते हो आप जानते हैं कि मैं इन सब बातों को नहीं मानता| "राकेश अपने फूफा की बात को बीच में ही काटते हुए कहा |दरअसल राकेश की माँ का इलाज एक डॉक्टर कर रहा था |राकेश ने अपना नंबर उसके पास छोड़ रखा था ताकि वो उसे माँ की हालत की सूचना उसे देता रहे |राकेश अपनी बाइक लेकर अपने घर को निकाल पड़ता है |भादों की रात थी और आसमान में काले बादल रात को और भी अंधकारमय बना रहे थे |राकेश को तो दिलो दिमाग में अपनी माँ की तस्वीर घूम रही थी उसे कुछ भी ख्याल ना था कि वो उस पुराने शापित पुल के पास पहुंच चुका था |जिसका जिक्र कुछ समय पहले राकेश के फूफा ने किया था |बिजली के एक जोरदार कड़क ने राकेश को ख्याली दुनिया से निकालकार वास्तविकता से रूबरू करा दिया |बाइक की रोशनी से पुल की रैलिंग साफ दिखने लगी थी इससे ही जाहिर होता है कि वह पुल के पास हैपुल के पास में ही जंगल था जिनसे जंगली जानवरों की आवाज सुनाई दे रही थीवेसे तो राकेश भूत प्रेत मे विश्वास नहीं करता था इसका कारण उसका विज्ञान का छात्र होना था |मगर ऎसे डरावने माहौल से राकेश के पसीने छूट रहे थे |वर्षा भी होने लगी थी बरसा की बूंदे एसी भयानक रात में जंगल के पेड़ो की पत्तियों पर गिरकर अकर्णप्रिय ध्वनि उत्पन्न कर रही थी |जिसमे कीड़े मकोड़ों की ध्वनि भी मिश्रित थी |हल्की बारिश की बूंधो की वजह से से राकेश को बाइक चलाते समय आँखो से देखने में परेशानी हो रही थी.,तभी अचानक एक हवा का तेज झोंका आया और वह राकेश को झकझोरता हुआ निकल गया, मानो वो भी राकेश को आगे बढ़ने से रोक रहा हो।हवा से राकेश का बाइक से नियंत्रण खो गया और बाइक झटके के साथ पुल पर बंद हो गयी।राकेश ने तुरंत ही बाइक स्टार्ट की पर वह काफी प्रयास करने के वाबजूद भी असफल रहा।तभी बिजली का एक और जोरदार कड़क सुनाई दी ऎसा लगा जैसे उसने जंगल के किसी हिस्से को जला दिया हो इस आवाज से राकेश का दिल दहल उठा था अब उसके चेहरे पर दुख की जगह डर की लकीरें साफ नजर आ रही थी। भय से उसका शरीर पसीने से लथपथ था गला भी सूखा जा रहा था उसे अब इतनी प्यास लग रही थी कि मानो अगर वो कुछ देर और रुक गया तो मर जाएगा। उसने बाइक को वही छोड़ा और पुल के नीचे बह रही नदी को देखा पुल की स्थिति काफी जर्जर हो चुकी थी जिससे वह काफी डरावना लग रहा था।राकेश ने पुल से उतर कर पानी के पास पहुंच और पानी पीने के लिए ज्यों ही हाथ बड़ाया तो पानी की जगह हाथो में खून था, राकेश के मुह से चीख बुलंद हो गयी।तभी फिर से बिजली की कड़क गूंजी राकेश ने अपने दोनों कान बंद कर लिये और गुटनो के बल बेठ गया।इसके साथ ही एक और घटना घटी जिससे राकेश की रूह काँप उठी पुल के ऊपर रखी बाइक जो कुछ देर पहले स्टार्ट नहीं हो रही थी वो खुद वा खुद स्टार्ट हो गयी राकेश कुछ सोच पाता तब तक वो चलकर नदी में गिर चुकी थी।राकेश की आंखे फटी की फटी रह गई थी।वह अपना चेहरा अपने हाथो से छुपाकर रोने लगा। उसने हाथ हटाकर बिजली की चमक मे उसे किसी इंसान जेसे पेरो के निशान दिखे जो राकेश द्वारा सूंघने पर पता चला कि वो खून से बने हुए थे। ऎसा लगता था कि कोई उसके पास आया था मगर गया नहीं हो क्योंकि निसान आने के थे जाने के नहीं, राकेश घबराकर इधर उधर देखने लगा।उसे सामने कुछ दूरी पर एक परछाइ जेसा कुछ दिखा राकेश ने बिना देरी किए अपनी गन निकाली और उसपे फायर कर दिया वो परछाइ गायब हो गई थी।राकेश को लगा कि उसकी गोली उसके लग गई है और वह वहां गिर गया है वो भागकर पहुच गया और तभी राकेश के सामने एक ऎसा मंजर था जिससे उसकी आँखे खौफ और आश्चर्य से फटी रह गई थी।सामने उस परछाइ की जगह एक गड्ढा था जिसमें एक आधी सी लाश पड़ी थी जिससे दुर्गंध आ रही थी। राकेश को अब गाँव वालों की कही गई बातों पर विश्वास हो गया था सायद ये लाश उसी इन्सान की ही होगी जो यहां पुल के निर्माण के लिए आये श्रमिक की बेटी रूपा की जो अपनी माँ के साथ काम करने के लिए आई थी। जिसने हवशी ठेकेदार की हवस से बचने के लिए पुल से नीचे छलांग लगा दी थी। उसकी मौत लोहे की रॉड के पीठ में गुस जाने से होती है उस लड़की ने मरते वक्त कहा था कि "जो भी इस पुल को पार करने की कोशिश करेगा उसकी मौत हो जाएगी।" ऎसा सुनकर ठेकेदार ने एक बड़ा पत्थर उसके सर पर दे मारा और उसे चोरी से वही दफना दिया था। कुछ समय बाद ही ठेकेदार की मौत भी रहस्यमय तरीके से हो गई थी।राकेश ने उसे मुक्त करने के लिए उसका कंकाल को जलाने की सोची तब तक बहुत देर हो चुकी थी।वो कंकाल उठकर राकेश की तरफ मुड़ा,राकेश उठकर पुल की तरफ भगा डर से उसका शरीर काँप रहा था। जिससे वो पुल से फिसल कर गिर पड़ा और सामने देखता है अपनी मौत को। अब राकेश के पास दो रास्ते थे एक था कि वो इन आत्माओं की मुक्ति कर दे या खुद को उन भटकती आत्माओं को खुद को हवाले कर दे।मरता क्या नहीं करता राकेश ने अपनी गन से उस चुड़ैल पर फायर करना चालू कर दिया पर सब बेकार हो गया रूपा लगातार अपने टूटे पेरो से लङखङाती हुई आगे बढ़ रही थी।राकेश भी पीछे की तरफ अपने पेरो को खींच रहा था तभीपीछे से किसी ने लोहे जेसी गिरफ्त ने उसकी गर्दन दबोच ली थी।राकेश के दर्द से आंशु निकल पड़े असहनीय दर्द से चीखे बुलंद हो गई।उस नुकीली cheez से खुद की गर्दन छुड़ाने मे सफल हो ने के बाद राकेश पीछे की ओर मुड़कर गिर गया तभी उसने देखा कि वो नुकीली चीज़ रूपा के जेसी एक और चुड़ैल का हाथ था।वो चुड़ैल कोई और नहीं रूपा की माँ ही थी जो वही पर भटक रही थी। तभी राकेश के मुह से एक खून का फबबारा निकलता है और फिर भी राकेश हार नहीं मानता वो घिसटते हुए उस जगह पहुँच जाता है जहा पर उसकी बाइक गिरी हुई थी अब वो पागलों की तरह बाइक को पानी में टटोलने लगा अभी भी उसकी नजर उन आत्माओं की तरफ थी जो धीरे धीरे उसकी तरफ बढ़ रही थी।आखिरकार राकेश को अपनी बाइक मिल ही जाती है।राकेश अब दुगनी गति से अपनी गन के बट से बाइक की फ्युल टैंक को तोड़ने की कोशिश करने लगा।और वो इसमें कामयाब हुआ तभी रूपा ने फिर से राकेश पर हमला किया इसी वक़्त राकेश ने बाइक की फ्युल टैंक को रूपा के सर पर दे मारा वह लड़ खड़ाती वही गिर जाती है और राकेश ने बिना समय गंवाये पेट्रोल मे भीगी हुई रूपा के मृत शरीर पर अपना लाइटर जलाकर फेंक दिया।रूपा की आत्मा की मुक्ति हो चुकी थी और राकेश का खून बह जाने के कारण उसकी आंखो के सामने अंधेरा छाने लगा था अब वो गिरने ही वाला था ही तब तक रूपा की माँ की आत्मा उस पर छलांग लगा देती है जो चूक से राकेश के ऊपर ना गिरी बल्कि राकेश के सामने जल रही आग मे गिर जाती है और सारा जंगल उसकी चीखो से गूंज उठा।तब राकेश ने बेहोश होते हुए एक बात सुनी।'' हे! मुसाफिर हम दोनों कबसे भटक रहे थे, हमारे साथ गलत हुआ तो हम सब को गलत समझ बेठे एक इंसान की वजह से हम सब मर्दों से नफ़रत करने लगे थे और कई मर्दों को एसी सोच से मारते जा रहे थे मगर हम भूल गए थे कि अछे इंसान भी इस दुनिया में है। तेरी जान लेकर सायद हम कभी भी मुक्त हो पाते।मुझे माफ कर देना मेरे भाई... ''.।इतना सुनकर राकेश बेहोश हो गया था। सुबह हुई तब एक ग्रामीण ने राकेश को नदी के किनारे पड़ा देखा और उसे उठाकर उसके फूफा जी के पास ले गए जहा उसका इलाज हुआ।होश आने पर राकेश ने सबको बताया कि जिनसे गाँव का पुल शापित था उन आत्माओं की मुक्ति हो चुकी है और अब यह पुल उपयोग मे लाया जा सकता है।सभी मे खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। राकेश के साहस की सभी प्रशंसा करने से नहीं थक रहे थे।राकेश की खुशी का ठिकाना तब नहीं रहा जब उसे फोन पर पता चला कि उसकी माँ पूर्ण रूप से ठीक हो चुकी है।और उसका इंतज़ार कर रही हैं।राकेश फूफा और अन्य सदस्यों के साथ उसी पुल से गुजर कर अपने घर पहुच चुका था उसकी माँ दरवाजे पर खड़ी थी जेसे ही उसने राकेश को देखा तो उसे गले से लगा लिया।शायद आज राकेश उसी माँ के प्यार और आशीर्वाद से ही जिंदा था।?समाप्त ?कहानी केसी लगी बताना मत भूलिएगा. ?जै श्री राधे ?✍️?आपका सोनू समाधिया'रसिक' Download Our App