प्रेत आत्माओं का साया सोनू समाधिया रसिक द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेत आत्माओं का साया

"माँ कुछ दो ना खाने के लिए बहुत भूख लगी है।"
"सुनते हो जी! बच्चे सुबह से भूख से तड़प रहे हैं और आप हो कि हाथ पे हाथ रखे बैठे हैं, कुछ करते क्यूँ नहीं हो।"
"क्या करूँ मर जाऊँ क्या, कहाँ से लाऊं खाना। तुम्हें पता है कि गाँव में चार साल से वर्षा नहीं हुई है और न ही अन्न का एक भी दाना। "रमेश ने झुंझलाहट में कहा।
" हाँ भाभी भैया सही कह रहे हैं और उपर से उस दुष्ट, जमींदार ने भी पूरे गाँव में नाकाबंदी कर रखी है उसका कहना है कि कोई भी व्यक्ति उसका कर्जा चुकाये बिना गाँव से बाहर नहीं जा सकता है अगर कोई जाता भी है तो उसे गोली मार दी जायेगी। "
सब चिंचित थे मगर बेबस भी थे।
गाँव में चार साल से वर्षा न होने के कारण अकाल की स्थिति बन चुकी थी। पूरे गाँव पे जमीदार का निरंकुश शासन था और अत्याचार का दूसरा नाम। क्रूरता की हद तब पार हो गई जब उसने बेबस भूखी जनता जो खाने की तलाश में गाँव से पलायन करना चाहते थे पर उसके कर्जे मे डूबे हुए होने के कारण किसी को भी बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई। अगर कोई इस निर्णय के खिलाफ जाता तो उसे गोली मार दी जाती है।
उसी गाँव का पांच सदस्यीय परिवार जो भूख प्यास से मरने की कगार पर था।
उसी दिन सुबह..
"भैया! उस दुष्ट और भूख से तड़प तड़प कर मरने से अच्छा है कि हम इस गाँव से निकलने की कोई योजना बनाये।"
"छोटे सही कहा तूने।"
उसी दिन के ठीक दूसरे दिन रात के 1 बजे उस घर का दरवाजा 'चर चर की अवाज के साथ खुला छोटे भाई ने दरवाजे से बाहर झाँका और बाहर निकल आया ऎसे ही पांचों घर के बाहर निकल आए।
रात के समय चाँदनी बिखरी हुई थी, सब कुछ लग भग साफ़ दिखाई दे रहा था। सभी शांत मुद्रा में आगे बढ़ रहे थे। तभी उन्हें किसी आहट ने चौका दिया।
सामने कुछ दूरी पर दो अंजान व्यक्ति बंदूक से लैस खड़े थे।
दरअसल ये उसी जमीदार के लोग थे।
छोटे भाई ने सावधानी पूर्वक सभी को सचेत किया और बड़े भाई के कंधे पर हाथ रख कर उसे बैठकर छुपा दिया। सभी शांत हो कर झाडियों के पीछे छुप कर उन व्यक्तियों के जाने का इंतजार करने लगे।
तभी अचानक लड़की चीख पड़ी उसकी आवाज़ सुनकर उन लोगो ने झाडियों की ओर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। और जबाब मे उन दोनों भाइयों ने भी फायर कर दिया झाडियों में छिपे होने के कारण जमीदार के लोग उनपे सही निशाना नहीं लगा पा रहे थे लेकिन दोनों भाइयों ने दोनों को वही ढेर कर दिया था।
"भाई। जल्दी से यहां से भागों नहीं तो गोली की आवाज़ सुनकर जमीदार के और लोग आ जाएंगे।"
जब लड़की के पास गये उसके चीख़ने का कारण जानने के लिए तो पता चला कि उसे सांफ ने काट लिया है।
उसकी माँ ने उसे उठाया और भागने लगी पीछे देखा तो कई लोग हाथों में मासाल लिए उन्हें ढूंढ रहे थे।
सभी गाँव के ऊबड़ खाबड़ कच्चे और कटिली झाड़ियों से भरे रास्ते पर दौड़े जा रहे थे। अब तो जमीदार के लोग भी उनका पीछा करने लगे थे। 
उस परिवार के सदस्य पीछे देखते हुए भागे जा रहे थे और उनके पीछे जमीदार के लोग। तभी अचानक जमीदार के लोग रुक गए। उन पांचों लोगो ने रुकने का कारण जानने के लिए पीछे मुड़कर देखा तो हैरान रह गए क्यों कि वो इस वक्त गाँव के भयंकर जंगल के पास खड़े थे जो अपने प्रेत आत्माओं के साये के लिए जाना जाता था। 
इसलिए गाँव के लोग आगे जाने के लिए तैयार नहीं थे। 
"भाई! अब क्या करें उधर जमीदार के लोग हैं और इधर ये भयानक जंगल जिसमें से आज तक कोई भी व्यक्ति जिंदा नहीं लौटा है, कहा जाये अब।" 
"चल छोटे इन लोगों के हांथों से मरने से अच्छा है कि इस जंगल को ही पार करने का प्रयास करते हैं, जो होगा देखा जाएगा चलो!" 
सभी सदस्य उस जंगल के मे घूस गये। 
चारों ओर घना अंधकार था जंगल का रास्ता ऊंचे ऊंचे पहाड़ों के बीच एक संकरी गली से निकलता था। 
भयानक जंगली जानवरों की आवाजें चारो तरफ गूंज रही थी और इंसानों की आहट से पक्षी भी इधर उधर उडने लगते हैं। 
सभी अपने हथियारों से लैस थे और चौकन्ने थे। 
आगे जाकर उन्हें पता चला कि रास्ता आगे बंद है और आसपास की चट्टानें काफी ऊंची है अब कहाँ जाये। सब हैरान थे वापस भी नहीं जा सकते थे। 
सभी घबराकर इधर उधर रास्ता खोजने लगे और वो सफल भी हुए। सभी चट्टान पर ढलान पर चड़ने लगे पहले बड़ा भाई फिर छोटे लड़का और लड़की, फिर औरत और छोटा भाई। 
सभी चट्टान पर चढ़ गए मगर छोटा भाई राजू अभी चड़ रहा था। 
तभी बड़ा भाई बोला - "छोटे जल्दी कर तेरे पीछे कोई चड़ रहा है।" 
असल में कोई प्रेत जो काले लिवास में था वो राजू का पीछा करते हुए चड़ रहा था जिससे उसे गिराया जा सके। 
सभी घबराए हुए थे बड़ा भाई रमेश चिल्लाये जा रहा था, 2_3 फुट का फासला रह गया था रमेश ने झुक कर अपना हाथ राजू की सहायता के लिए बड़ाया, 
जैसे ही राजू का हाथ रमेश के हाथ में आया तो सहसा एक झटका लगा और राजू का हाथ रमेश से छूट गया और राजू चीख के साथ नीचे चला गया। 
इधर रमेश इस हादसे से सिहर उठा वह भी धक्के से चट्टान पर गिर पड़ा और रोने लगा। 
रमेश अपने हाथ सर से लगाकर सिसक सिसक कर रो दिया। 
सहसा नीचे से एक अवाज आई जिसने सभी को विस्मय में डाल दिया वह आवाज छोटे भाई की ही थी। 
"भाई! मैं ठीक हुँ और मै जल्दी ही ऊपर आ रहा हूँ!" 
"हांहाहा जल्दी कर छोटे।" 
ऊपर आने पर बड़े भाई ने कारण पूछा तो पता चला कि उस भूत के धक्के के बाद भूत तो गायब हो गया था मगर छोटा भाई नीचे गिरते हुए चट्टान के नुकीले सिरे पर अटक गया था जिससे वो बच गया था। 
"भाई! हमसब को अब यहां से जल्दी से निकलना चाहिए क्योंकि अब इस जंगल के शैतानों को हमारी मौजूदगी का एहसास हो गया है।" 
"हाँ! छोटे चल।" 
सभी वहां से निकलने लगे तो देखा कि छोटी बच्ची का शरीर निढाल सा हो गया था और उसके मुँह से झाग निकल रहा था वो इस दुनिया को छोड़ चुकी थी क्योंकि सांप का विष अपना काम कर चुका था। 
उसकी माँ उसको गले से लगा कर रोने लगी। 
तभी उसके पति ने उसके कंधे पर हाथ रखा जिससे वह मुड़ कर देखा तो सात्वना भरी नजरें उसको आगे बढ़ाने के लिए संकेत कर रही थी। सभी के चहरे पर दुख के साथ डर भी था। 
उसी क्षण सभी को उस जंगल में एक अजीब प्रकार की हँसी और खनकती बेड़ियों की आवाज ने सभी को भय ग्रस्त कर दिया।
 "भागो वो वापस लौट आया है।" 
"कौन लौट आया है पिताजी!" 
"वही जिसका मुझे डर था।जो लोग कहते थे वो सच होने वाला है। इस जंगल मे एक शापित प्रेत रहता था जो किसी शाप के कारण बेड़ियों में जकड़ा हुआ है इस जंगल के नियमअनुसार जिस किसी इंसान की मौत किसी भी तरह से हो जाती है तो उस जंगल का राजा प्रेत आजाद होने लगता है और अगर किसी भी इंसान ने जीते जी इसे पार कर गया तो यह प्रेत फिर से बेड़ियों में जकड़ कर कब्र में दफन हो जाएगा। "
" तो चलो इसे जल्दी से पार कर लेते हैं। "
" ये जितना सरल काम लगता है उतना ही कठिन है यहां एक नहीं कई प्रेत है जो ये नहीं करने देते हैं, आज तक किसी ने भी इस जंगल की सीमा को पार नहीं कर पाया है।"
सभी जिधर भी रास्ता दिखता उधर भागने लगे थे। सभी को भागते हुए ऊपर उड़ते हुए किसी की परछाई दिखी तो सब रुक कर ऊपर देखा तो सबकी रूह कांप उठी सब इक्कठे होकर खड़े हो गए। और वो परछाइ सामने उतर आयी दरअसल वो एक प्रेत आत्मा थी। वो भयानक आवाज निकालते हुए उनकी और बङने लगी। 
मरता क्या नहीं करता 
रमेश ने उस पे पिस्टल से फ़ायर किया उससे कोई असर नहीं हुआ। 
एक झटके के साथ रमेश का गला उस प्रेत आत्मा के खूनी पंजों में था गुस्सा उसकी आँखों में साफ दिखा रहा था वो रमेश को मारती उससे पहले ही राजू ने उस पर कुल्हाड़ी से वार कर दिया था जिससे वो गायब हो गई। 
सभी भयअक्रांत हो वहां से भाग गए। 
कुछ समय बाद सभी के कदम सहसा ठिठक गए गौर करने पर पता चला कि जमीन हिल रही है और अचानक एक जोरदार आवाज के साथ जमीन फटी और उसमें से एक खौफनाक चेहरे वाला भूत निकला। 
सभी चीख कर इधर उधर बिछड़ कर भगाने लगे। 
राजू भागता हुआ एक बड़े से पेड़ के नीचे जा पहुँचा। 
वो पेड़ की टहनी को पकड़ कर हाफने लगा तभी उस पर बेठे प्रेत ने उसका सर पकड़ कर ऊपर खिंच लिया। 
वो चीखा तो उस प्रेत ने उसकी जीभ उखाड़ ली और उसकी दोनों आँख फोड़ कर नीचे फेंक दिया राजू दर्द से तड़पने लगा और इधर उधर भागने लगा और कुछ क्षण बाद उसने दम तोड़ दिया था। 
सभी एक दूसरे को आवाज देकर बुला रहे थे सभी भटक चुके थे। 
तभी औरत जिसका नाम लक्ष्मी था उसे किसी की रोने की आवाज़ सुनाई दी उसे लगा कि उसका बेटा रो रहा है वो उसी आवाज की दिशा में बढ़ गई। 
जैसे ही वो आवाज के पास पहुची तो देखा कि सामने एक पेड़ के नीचे एक छोटी बच्ची बेठी है जो अपने सर को घुटनों से छिपाए हुए हैं। 
लक्ष्मी ने उसे पुकारा तो वो शांत हो गई और जब उस औरत ने गौर किया तो पता चला कि वह उसकी अपनी बेटी है जो कुछ देर पहले मर चुकी थी। 
बेटी को ज़िंदा देख लक्ष्मी का खुशी का ठिकाना नहीं रहा वो बिना सोचे समझे उसकी तरफ दौड़परी और उसे गले लगा लिया। 
तभी लक्ष्मी ने महसूस किया कि उसकी बेटी के कोमल हाथ कठोर और उसकी सिस्‍कियां एक भयंकर जंगली जानवर की आवाज में बदल गई थी। 
जब उसने अपनी बेटी को खुद से अलग करते हुए देखा तो चीख पड़ी उसकी बेटी एक भयानक प्रेत आत्मा मे तब्दील हो चुकी थी। 
वो कुछ करती तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसका सर उस ? प्रेत आत्मा के हाथों में था और दूसरे पल उसने उसकी गर्दन मरोड़ कर तोड़ दी। 
उधर बाप और बेटा साथ मिलकर दौड़ रहे थे। 
भयंकर चीख सुनकर वो दोनों रुक गये। 
"ये चीख तो माँ की है।" 
"हाँ। चलो माँ को साथ में लेकर चलते हैं लेकिन सावधानी से ठीक है।" 
"जी।" 
जैसे ही वो वापस जाने के लिए मुड़े तो भय की कोई सीमा नहीं रही क्यों कि सामने था जंगल का राजा वही शापित प्रेत जिसकी टूटी बेड़ियाँ इसका सबूत थी। 
वो भीभत्स चेहरा जिसमें से नाक और आंखों का नामोनिशान नहीं था उसकी जगह से रक्त मिश्रित सफेद रंग का गाड़ा दुर्गन्ध युक्त द्रव बह रहा था। 
उसके आने से पूरे जंगल में शांति छा गई थी और जंगली जानवर भी मोन हो चुके थे और हवा भी मानो थम सी गई थी और इधर बाप और बेटे की धड़कने कुछ पल के लिए रुक सी गई थी। 
जैसे ही वो दोनों ने भागना चाहा तो उस प्रेत ने रमेश का गला दबोच लिया। 
तभी रमेश ने अपने हाथ में पकड़ी हुई कुल्हाड़ी उस प्रेत के सर में दे मारी तो वो उसके चंगुल से मुक्त हो जाता है और बेटे से वहा से भाग जाने को कहता है। 
लेकिन बेटा अपने बाप को मौत के मुंह में अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता। 
"जा मेरे बेटे अगर तू मुझे और खुद को जिंदा देखना चाहता है तो यहां से भाग जा, अगर अपनी बहन, चाचा और माँ की जान का बदला लेना चाहता है तो भाग जा और इस जंगल की सीमा पार करके इस शैतान को सजा दे यही एक तरीका है अपने पास नहीं तो हम इस शैतान का सामना नहीं कर सकते हैं। "
और तभी वह शैतान रमेश को पैर पकड़ कर जंगल में ले जाने लगा। 
रमेश का लड़का फुट फुट के रोता हुआ उसके पीछे जाने लगा। 
लेकिन रमेश ने उसे अपनी कसम देकर उसे वापस कर दिया सीमा पार करने के लिए। 
वो लड़का रोता हुआ एक नजर अपने बाप को देखा जिसे वो शैतान घसीटता हुआ ले जा रहा था। 
उसने दूसरी ओर मुह करके आंसू पोंछे और दौड पड़ा सीमा की और। 
कुछ क्षण बाद उस लड़के की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्यो कि सामने उस जंगल की सीमा दिख रही थी। 
उसने दौड़ना तेज़ कर दिया और अखिरकार उसने छलांग लगाकर उस जंगल की सीमा पार कर ली। 
मगर ये क्या उसे एक भयंकर चीख सुनाई दी। 
वो लड़का बेसुध हो कर औंधे मुँह गिर गया और बेहोश हो गया। 
लड़के ने अपनी आंखें खोली तो खुद को भीड़ में पाया उस भीड़ में उसके पिता भी थे जो उसके होश में आने का इंतजार कर रहे थे। 
उसने तुरंत खड़े होकर अपने पिता को गले लगा कर फुट फ़ुट के रोने लगा। 
"मुझे लगा मेने आपको खो दिया पिताजी।" 
"नहीं मेरे बेटे तू था ना मेरा बहादुर जीगर का टुकड़ा फिर क्या होता मुझे।" 
"तो वो आवाज किसकी थी?" 
"वो आवाज उस शैतान की थी उसने जैसे ही मुझे मारना चाहा तभी उसे एक जोरदार झटका लगा और वह फिर से बेड़ियों में जकड़ गया और दूर चला गया चीखते हुआ। "
  " अब तो नहीं आयगा न वो हमारी ज़िंदगी में। "
" नहीं मेरे बेटे अब कोई नहीं आएगा ना वो शैतान और न ही वो जमीदार।" रमेश ने बेटे के सर को सहलाते हुए कहा। 
" और हाँ पता है तुम्हें यह गाँव पूरी तरह से समृद्ध है और इस गाँव के मुखिया ने हमें अपना लिया है। "
बेटे और रमेश ने हाथ जोड़कर सभी गाँव वालों का धन्यवाद ?? किया। 
         ?समाप्त ?
??जै श्री राधे ?? 
       आपका ✍️सोनू समाधिया