हडसन तट का ऐरा गैरा - 1 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 1

हडसन नदी की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह अत्यंत तेज़ वेग से बहती थी। और तो और, इसे मौसम के साथ बदलना भी खूब आता था। जाड़ों के मौसम में जब तेज़ हिमपात होता तो यहां ठंडे पानी में बर्फ़ की बड़ी बड़ी सिल्लियां बहती हुई देखी जाती थीं। गर्मियों में तो कहना ही क्या? पानी पर थिरकती सूर्य की किरणें देखने वालों की आंखें खुशी से आंज देतीं।
देखने वाले भी कोई यूं ही नहीं थे। इनमें शामिल थे एक से बढ़ कर एक दुनिया के करामाती प्राणी जो दुनिया से दो कदम आगे चलते थे।
ऐसे ही दो प्राणियों की बात आज आपके साथ करनी है। करनी ही चाहिए। बातें बंद तो की नहीं जा सकतीं।
अब शेक्सपीयर न रहे तो क्या दुनिया में नाटक बंद हो जाएंगे? दुनिया से प्रेमचंद जा सकते हैं पर होरी और हामिद थोड़े ही चले जायेंगे।
तो हम बात कर रहे थे हडसन तट की।
इसी तट पर एक बेहद सुंदर छोटा सा बगीचा बना हुआ था। इस बगीचे को आप चाहे दूर से देखें या पास से, ये इतना खूबसूरत दिखता था कि देखने वाले दंग रह जाते थे। एक से एक दुर्लभ प्रजातियों के आकर्षक फूल और पेड़ यहां लगे थे।
इस बगीचे के बीच में मखमली बदन का एक अद्भुत मैदान था जिस पर चलने से ऐसा अहसास होता था मानो सारी दुनिया आपके कदमों तले बिछी हुई है।
ये मैदान क्या था, बस देखने वालों के लिए आंखों का भोजन था।
जब आसमान में सूरज उगता तो अपने तन की सबसे मोहक किरण चुनकर इसपर फेंका करता। जब रात में चांद नमूदार होता तो मुट्ठी भर चांदनी पहले इस बगीचे पर टपकाता तब कहीं जाकर किसी और पर नज़र डालता। तारों की तो बिसात ही क्या, अपनी झिलमिलाती जुंबिश से रात भर इसकी तस्वीरें लेते रहते।
ओहो, अब खूबसूरत चीज़ तो देखी ही जायेगी। हम अपनी बात तो शुरू करें। दुनिया की हर चीज़ आनी जानी है, रहनी तो केवल बातें ही हैं न यहां?
पर बात शुरू करने से पहले केवल इतना और जान लीजिए कि ये छोटा सा बगीचा खुशबुओं और रंगों से गुलज़ार ज़रूर रहता था पर यहां कोई आता- जाता नहीं था। इंसानों की बात करें तो बस इतना समझ लीजिए कि वो इधर का रुख कभी करते नहीं थे। इसी से इंसानी आवाज़ या आवाजाही से यह लगभग वीरान सा ही रहता था।
इंसानों की फितरत भी अजब है। बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए पसीना बहाते हैं पर नित नए गुल खिलाने वाली धरती पर आकर दो घड़ी सुस्ताने की फुरसत ही नहीं होती उनके पास।
ख़ैर, यहां बात इंसानों की नहीं, बल्कि उस खूबसूरत बगीचे की है जो सूरत और सीरत दोनों से गुलज़ार था। गुल खिलते थे और खिल कर बिखर जाते थे। वक्त दो कदम और आगे बढ़ जाता था। दुनिया चंद घड़ी और पुरानी हो जाती थी।
चलिए, इससे पहले कि बात पुरानी हो हम उस पर गौर कर लें।
एक दिन सुबह सुबह रॉकी की निगाह उस बगीचे पर पड़ गई। रॉकी मॉर्निंग वॉक के लिए हडसन नदी के किनारे पर टहल रहा था कि उसने एक तितली को पेड़ के पीछे से छिप कर उस झुरमुट में घुसते हुए देखा जिसकी पनाह में जाकर कोई भी दुनिया की निगाहों से छिप सकता था।
रॉकी के कान खड़े हो गए। उसकी निगाहों में एकाएक चमक आ गई।