बंद खिड़कियाँ - 2 S Bhagyam Sharma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

बंद खिड़कियाँ - 2

अध्याय 2

अरुणा की नज़र में एक आधारहीन बच्ची का वात्सल्य दिखाई दिया ।

'ओह मेरे लिए यह बच्ची दुखी हुई' ऐसी बात सोच कर सरोजा को थोड़ा संकोच हुआ।

"एक दिन आप अपनी कहानी को मुझे आदि से अंत तक बताना दादी!"

सरोजिनी हंसी।

"मेरी कहानी में क्या दिलचस्पी है? तुम बोली जैसे दूसरों को परेशान ना करके, मुंह से बात ना कहना ही तो मेरे जीवन की कहानी है?"

अरुणा ने सरोजिनी के कंधे को प्रेम से दबाया।

"दूसरों को पता न होने वाली आपकी कहानी होगी। उस कहानी को आपने अपने अंदर जब्त किया हुआ है!"

सरोजिनी एकदम से हड़बड़ा गई। फिर अपने को संभाल कर हंस दी।

"मुझे क्यों घसीट रही है । मैं तो पढ़ी-लिखी नहीं हूं | किसी भी बात को बहुत सोचकर बोलने की आदत भी नहीं है। बड़े लोगों जैसे रहना चाहिए बोला, वैसे ही मैं रही। इसके अलावा मेरी कहानी में क्या रखा है?"

अरुणा थोड़ी देर बिना बोले रही। बाद में धीमी आवाज में बोली:

"एक बात बताइए दादी। मेरी स्थिति में यदि आप इस जमाने में रही होती तो पति से तलाक ले लेती?"

उसका प्रश्न उसे सुई की नोक जैसे चुभा। उसकी मन की खिड़की धीरे से खुली, सब बातों के लिए सिर झुका कर चुपचाप खड़े होने वाली अपनी स्थिति को भी देखा।

सरोजिनी का शरीर थोड़ा फैला।

"कर सकती थी बेटी" धीरे से बोली। "वही सही होता।"

अरुणा ने झुककर फिर अपनी दादी को चूम लिया। "थैंक्यू दादी, आप ही मेरी सच्ची सहेली हो,अम्मा में इस तरह सोचने की शक्ति नहीं है।"

"संवादों के लिए स्वयं के अनुभव की जरूरत होती है अरुणा!"

"राइट्!"

अरुणा हंसते हुए उठ गई।

25 साल की यह लड़की कितनी सुंदर और होशियार है, यही बात उस बेवकूफ आदमी को सहन नहीं हुई। भले ही वह हंसती हुई खड़ी है परंतु इसके घाव भरने में अभी समय लगेगा.... बेचारी।

"पुरानी सब बातों को भूल जा बेटी!" धीरे से बोली।

"आज से भूल गई!" कहकर अरुणा हंसी। अगले महीने आगे पढ़ने के लिए दादी, मैं अमेरिका जा रही हूं । नई जिंदगी शुरू करने वाली हूं!"

"वही ठीक है। तुम्हारी अम्मा और अप्पा भी ठीक हो जाएंगे। फिक्र मत करो, अभी जाकर सो जाओ।"

अरुणा धन्यवाद कहती हुई उनके कंधे को थपथपा कर, "गुड नाइट दादी" कहकर दरवाजे को थोड़ा सा उढका कर बाहर चली गई।

उनकी नाड़ी को किसी ने बुरी तरह से झकझोर दिया सरोजिनी को ऐसा महसूस हुआ । उनकी नींद उड़ गई।

"आप पति को तलाक दे देती?" 

उनके माथे और हथेली पर पसीना आ गया। खिड़की के बाहर अंधेरा था उसे सरोजिनी घूर कर देखने लगी।

मैंने जो अरुणा को जवाब दिया उसे नलिनी और कार्तिकेय ने सुना होता तो क्या सोचते? अरुणा को समाधान करने के लिए मैंने ऐसे कहा वे सोचते। वही सत्य है यह वे समझेंगे क्या ? पढ़ाई ने कितना अंतर उत्पन्न किया है! मेरे साथ जो कुछ हुआ वह उस समय की परिस्थितियों के कारण हुआ। उन परिस्थितियों के जैसे ही मुझे रहना पड़ा। मैं गलत थी या सही थी मेरी समझ में जो आया उसी तरह मैंने उसका सामना भी करके दिखाया। परंतु मैंने जो करके दिखाया वह लोगों को पता नहीं है।

‘आज मुझे उसके लिए कोई दुख भी नहीं है, ना ही मैं अपने को अपमानित महसूस करती हूं। इस पागल दुनिया के बारे में सोच, मुझे हंसी आती है....’

सरोजिनी की निगाहें अब भी आकाश की ओर थी।

उसकी मन की खिड़कियां धीरे से खुली..... उसने एक तीसरे मनुष्य जैसे अपने को 60 साल पहले की उस छोटी सरोजिनी को देखा।

वह एक बहुत बड़ा मकान था, चार मंजिली इमारत। कई चौक थे। उसकी बारहसाल की उम्र में शादी हो गई पहली बार जब इस घर में कदम रखा उस समय पहले चौक को देखा। बड़े-बड़े गद्दे पड़े हुए थे। दरवाजे के हैंडल पर सोने की परत चढ़ी हुई थी । दीवारों पर बड़े-बड़े आईने लगे हुए थे, उसने उसमेंअपने चेहरे को एक बार देखा बस।

"पहली मंजिल मे लड़कियों को जाने की इजाजत नहीं है" ऐसा सासू मां ने कह दिया तो वह भी उनकी बात को रखते हुए कभी वहाँ नहीं गई। यही नहीं और भी कई नियम इस घर में थे।

किसी भी बात के लिए ‘क्यों?’ ऐसा नहीं पूछ सकते थे। "क्योंकि यह इस घर का रिवाज था!"

सरोजिनी की आंखें चौड़ी हुई 55 साल तक उसने इन कठिनाइयों को झेला।

“उस लड़की सरोजिनी की उम्र 16 साल की होगी। परंतु उस घर में आकर चार साल होने के बाद उसके चेहरे पर एक प्रौढ़ता नजर आ गई थी। "साक्षात लक्ष्मी है"जब सांस खुश होती तब यह बात कहतीं और कई बार मेरी नजर भी उतारती। मेरे घुंघराले बालों को कैस्ट्रॉइल लगा लगा कर कंघी करती ‌और कहती "घुंघराले-घुंघराले बाल वेश्याओं के मुंह पर ही लटकते हैं।"

अभी तक अंधेरा दूर नहीं हुआ। पिछवाड़े में मुर्गे के बांग देने से सरोजिनी की आंखें खुली। रेशमी गद्दे बिछे उस डबल बेड पर जम्मू लिंगम का विशाल शरीर गहरी नींद में था। सास और अम्मा के बताए हुए आदत के अनुसार सरोजिनी अपने मंगलसूत्र को आंखों में लगाया । सोए हुए पति के पैरों को छूकर नमस्कार किया। पिछली रात में जो दूध का बर्तन पीने के लिए लेकर आई थी उसे लेकर बिना आवाज किए पिछवाड़े की तरफ चल दी। उसके शरीर का अंग-अंग दुख रहा था। पिछली रात जंबूलिंगम ने उसके शरीर को बुरी तरह से रौंद डाला था। यह क्या उसका दीवानापन उसमें इतनी शक्ति उसे देखकर उसे आश्चर्य होता था। सोने के लिए कितनी भी देर से जाओ वह झपटने के लिए तैयार रहता। दिन पर दिन उसकी शक्ति बढ़ती जा रही थी और स्वयं की शक्ति कम होती जा रही थी ऐसा उसे लगता। रात 1:00 बजे तक उसके ज्यादतियों को सहकर सुबह मुर्गी के बांग देने के पहले उसे उठना पड़ता। क्या सभी महिलाओं पर ऐसा अत्याचार होता है ? उसे पता नहीं। एक बार बड़े संकोच से अपनी अम्मा से बोली।

"पूरी रात मुझे वे परेशान करते हैं। मुझसे सहन नहीं होता। पूरे शरीर में दर्द होता है!"

मेरी अम्मा बड़ी जोर से हंसी।

"अरे लड़की! तुम्हारे ऊपर उसे इतना प्रेम है। उसके लिए तुम्हें खुश होना चाहिए? तुम्हारे शरीर में शक्ति नहीं है। तुम्हारी सास दही-दूध तुम्हारी आंखों में भी नहीं दिखाती ऐसा लगता है।"

"अरे वह सब नहीं" घबराहट में बोली "बढ़िया ही खाना देते हैं।"

अम्मा कहीं उसकी सास से कुछ कह दे तो कई महीनों तक उस घर में सिर उठा नहीं सकेगी।

सास अभी तक उठी नहीं। सरोजिनी ने कुएं में से पानी खींचकर अपने सिर के ऊपर डाला। गीली साड़ी को पहने हुए पूजा के कमरे में जाकर कमरे को झाड़ कर पोंछा लगा रंगोली बना फिर कमरे में जाकर दूसरी साड़ी पहनकर रसोई में जाती।

घर में ननद-देवर और सब लोग मिलकर 20 जने थे। उन लोगों के उठने से पहले नाश्ता तैयार करना पड़ेगा। बने हुए नाश्ते को सास अपने हाथों से सबको देती। आराम से राजा जैसे उठ कर आते जंबूलिंगम मेज कुर्सी पर खाने के कमरे में बैठते उन्हें सास पास में बैठ कर अपने हाथों से परोसती तभी उन्हें तृप्ति होती। उस समय वह वहां नहीं जा सकती।

"यहां क्या डांस कर रही हो? अंदर जाकर काम करो!" उस घर में काम की कोई कमी नहीं थी। खाना खाते-खाते शाम हो जाती। फिर से रात का खाना बना कर थोड़ी देर हवा में बैठने तक शरीर टूट जाता था। सभी इतने कामों को बिना बोले बिना आवाज उठाए चेहरे पर बिना कोई शिकन लाए.....

इन सबकी उसे आदत हो गई। यह उसके स्वभाव में ही आ गया। कोल्हू के बैल जैसे काम करके रात को सब का खाना देकर सोने के लिए गई। जंबूलिंगम अभी तक आया नहीं। उसे भूख लगने लगी। उसकी आंखें नींद से बंद होने लगी। पति के पहले खाना खा लो तो छत ऊपर गिर जाएगी। उसने ठंडे पानी को पीकर उनके कमरे के पास नीचे कपड़ा बिछाकर सो रही थी तो कोई गाड़ी आने की आवाज सुनकर वह जागी ।

आंगन के पास में ही एक घोड़ा गाड़ी खड़ी हुई । उसमें से कोई युवा कूदकर उतरा। उसके बाद वह गाड़ी के अंदर से जंबूलिंगम को हाथों से पकड़ कर उतारा और बिस्तर तक लेकर आया।

"इनको क्या हुआ?" उसने घबराहट में पूछा।

उसने निगाहें उठाकर देखा।

"कुछ नहीं, थोड़ा ज्यादा पी लिया: सुबह तक होश में आ जाएगा।"

उसने आगे आकर जंबूलिंगम को बिस्तर पर लिटाने में मदद की। वह युवा फिर से उसे देखकर "दरवाजा बंद कर लीजिए। कहकर बिना मुड़े बाहर चला गया।

कुछ भी ना समझ आने के कारण वह डर के मारे पूरी रात रोई। सुबह हमेशा की तरह नमस्कार करके उठी। शाम तक काम करके फिर सासू मां से अपने पति के नए आदत के बारे में बोलने पर सास ने बडी ही लापरवाही से बोली "आदमी है तो सब कुछ होगा। इन सब पर ध्यान ना देना ही होशियारी है।"

*******