Bandh Khidkiya - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

बंद खिड़कियाँ - 5

अध्याय 5

पचास साल के बाद भी अंतर पता नहीं लग रहा है: सरोजा की आंखों में एक उत्सुकता के साथ पुराने दृश्य दिखे।

सरोजा हमेशा की तरह रसोई में थी।

इडली के आटे को सांचों में डालकर चूल्हे पर रखा और नारियल की चटनी पत्थर पर पीसना शुरू किया । उस दिन शुक्रवार था। उस दिन सुबह जल्दी सिर में तेल लगाकर सिर धोकर घुंघराले बाल उसके कंधे पर फैले हुए थे।

अगले आधे घंटे में सभी लोग सुबह के नाश्ते के लिए धड़ाधड़ आ जाएंगे। ननंद लक्ष्मी जिसकी उम्र शादी के लायक है, रसोई में मदद करने की उम्र में ही थी। परंतु वह नहीं आती। "शादी होने के बाद कहीं जाकर निश्चित रूप से काम करना ही पड़ेगा। जब तक यहां रहेगी उसे कोई काम करने की जरूरत नहीं। यहां काम करने के लिए आदमी नहीं है क्या...." एक बार सास ने ऐसी गर्जना की। जब थोड़ा नारियल घिसने के लिए लक्ष्मी को सरोजा ने कहा था तब वे बोली थी ।

सास जो कहती है वह सही है ऐसा सरोजिनी को भी लगा। सभी लड़कियों को शादी के बाद कोल्हू के बैल जैसे चलना चाहिए यही उनकी तकदीर में लिखा है तो शादी होने तक क्यों काम करें उस पर दया करना भी स्वाभाविक है। अब लक्ष्मी कभी कुछ करने को आए तो भी सरोजिनी उसे अधिकार के साथ मना कर देती है।

देवरों की शादी होएगी तो उनकी पत्नियों के आने के बाद मेरे काम में कुछ कमी आएगी ऐसा मैंने अपने आप में सोचा। 'नहीं तो मेरी बहू आने के बाद....'

अचानक उसका हाथ संकोच से रुक गया। कल रात को जंबूलिंगम आकर खड़ा हुआ उस घटना को सोचकर उसका चेहरा लाल हुआ।

अब हमेशा ही जंबूलिंगम का रात में देर से आना उसकी आदत हो गई। जब उसको नशा ज्यादा हो जाता है तो उसका दोस्त दिनकर साथ में आकर बिस्तर तक उनको पकड़ कर ला कर बिस्तर पर लेटा देता है,फिर क्षमा मांगने की आवाज में "जरा ज्यादा ही पी लिया" कहकर उसे देखे बिना ही उसका वापस चले जाना आदत सी हो गई।

कल ऐसे ही सोने के कमरे के पास आंगन में रात को बिना खाना खाए वह इंतजार कर रही थी। रात को 12:00 बजे घोड़ा गाड़ी आकर खड़ी हुई। जंबूलिंगम को पकड़कर दिनकर आए तो उसे लगा यह ही हमारे परिवार को बर्बाद कर रहा है ऐसा गुस्सा उसे आया । वह हमेशा की तरह दो शब्द बोलने के लिए मुंह खोलने लगा तो उसने अपने आप को जब्त ना कर पाने के कारण बीच में बोली "नहीं। जो मालूम है उसे आपको सफाई देने की जरूरत नहीं।"

दिनकर विस्मय से एक दृष्टि ड़ाल सिर झुका कर चला गया।

"इन्हें यह आदत डालकर आप अच्छे बनकर नाम कमा लें सोचते हो।"

वह हड़बड़ा कर उसे देखा। फिर अपने को संभालते हुए मुस्कुराया।

"मेरा और इसका कोई संबंध नहीं है। जंबूलिंगम इस आदत में कैसे गया यह जानना जरूरी नहीं। उसे ठीक करना जरूरी है। मैं जो कहता हूं वह सब उसकी समझ में नहीं आता। उसे ठीक करना आपके हाथ में है। वह पीकर पड़ा हुआ है ऐसा समाचार आते ही मेरा जाकर उसे लेकर आना ही मेरे लिए संभव है।"

इस पर विश्वास करना चाहिए या नहीं कुछ क्षण मौन खड़ी रही। वह उसे ही देखते हुए खड़े रहते देखकर कुछ संकोच से धीमी आवाज में बोली "मैं क्या बोल सकती हूं? पत्नी की बात सुनने वाला आदमी हो तब ना?"

वह जरा संकोच के साथ बोला "वह सुने इस तरह से बोलना आपके सामर्थ्य पर निर्भर है"

"कैसे?" डर कर वह बोली। "उनकी इच्छा के अनुसार ही चलती हूं। जो कहते हैं एक शब्द वापस नहीं बोलती, कोल्हू के बैल जैसे पूरे दिन काम करती हूं थकी...."

वह जल्दी से चुप हो गई। ज्यादा ना जानने वाले एक आदमी से कैसे इस तरह बात कर ली यह सोच कर उसे शर्म आई।

वह उस को किस नजर से देख रहे, दया या व्यंग्य उसे पता नहीं चला ।

वह अपने कंधों को झटका दे कर मुस्कुराया।ऐ

"आप कैसे करोगी पता नहीं। परंतु आपको ही करना है। क्योंकि उसकी यह आदत आपको ही परेशान करती है ।"

अगले ही क्षण वह वहां रुके बिना गाड़ी में बैठ कर रवाना हो गया।

वह दरवाजा बंद करके अंदर आ गई। जंबूलिंगम गहरी नींद में सोया था। उसकी बदबू दार सांस और नशे में चमकने वाले चेहरे से उसे नफरत हुई। उसके पास जाने में ही उसे शर्म आ रही थी।

'इसको ठीक करना आपके हाथ में ही है ।“

"हे भगवान इसे कैसे करूंगी?"

वह बात बहुत देर तक उसके दिमाग में घूमती रही-अचानक उस पराये आदमी ने उसे अपनत्व से देखा। भूख से पेट में चूहे कूदने लगे। उसे उठाकर खाना खिलाए सोच उठाने का प्रयत्न किया। वह लकड़ी जैसे पड़ा रहा। उसको एक तरह से आराम लगा। थके हुए इस शरीर को कुछ आराम मिलेगा सोच कर उसे शांति मिली। कभी-कभी इस समय पीकर लकड़ी जैसे गिरा पड़ा रहता है तो पड़े रहने दो ऐसा लगता है। उसकी सास ने कहा जैसे कुछ हुआ ही नहीं ऐसा सोचने से मुझे भी यह बात ठीक है ऐसा समाधान हुआ।

परंतु कितने दिन ऐसे चलेगा उसे अक्सर चिन्ता हो जाती है। उसे उसकी पत्नी होने का क्या फायदा है? इस साथ का क्या मतलब है?

'आपको ही इसे ठीक करना है। उसके पीने की आदत आपको भी परेशान करती है।"

ये शब्द उसके अंदर एक अजीब सी परेशानी पैदा करती हैं‌। शादी होकर इतने वर्षों इनके साथ रहने में उसमें रिश्ते में किस हद तक पकड़ है यह है उसे ही नहीं पता। एक बच्चा भी हुआ होता तो स्थिति दूसरी तरह की हो जाती ऐसा उसे महसूस होने लगा।

"कैसे करोगे मुझे नहीं पता। आपको ही ठीक करना है।"

"क्यों सरोजा, अभी तक नाश्ता नहीं बना?"

"बन गया अम्मा" कहती हुई जल्दी-जल्दी चटनी को बर्तन में निकालने लगी..

"भाभी, आपको भैया बुला रहे हैं?" लक्ष्मी बोली ।

यह क्या इस समय इस पसोपेश में सरोजा ने सास को देखा।

"जाकर पूछ कर जल्दी से आजा" चिड़चिड़ाते हुए सास बोली।

गीले हाथों को सिर से पोंछते हुई सरोजिनी लेटे हुए जंबूलिंगम के कमरे के अंदर गई।

कमरे के बाहर उसे देखते ही "दरवाजा बंद कर बाहर की आवाज से सिर में दर्द हो रहा है" जंबूलिंगम चीखा।

वह दरवाजे को बंद करके आई। पलंग के पास आकर, "तबीयत ठीक नहीं है क्या?"

"दूर खड़े होकर कैसे  पूछा ?" जोर से डांटा।

"सिर को दबाओ!"

पूजा की तैयारी करनी है डर के मारे सर दबाने लगी। कल ज्यादा पीने की वजह से आज सिर दर्द है सोचकर, उससे यह कैसे बोले सोच रही थी और मन में बोल कर देख रही थी।

अचानक उसने उसे खींच कर पलंग पर उठा लिया।

"अरे अभी क्या?" वह अचंभित होकर दूर जाने की कोशिश करने लगी तो उसके पीठ पर जोर से मुक्का मारा।

"बच्चे पैदा करने के लायक तो नहीं है तो कम से कम इसके लिए तो उपयोग में भी नहीं आनी चाहिए क्या?" उसको कारण भी पता ना चलने से उसकी आंखों में आंसू भर आए। जितने भी दिन थे सब अपमान में ही खराब हुए।

दस मिनट नरक की वेदना के बाद "लकड़ी है बराबर लकड़ी है।" ऐसे बड़बड़ाते हुए उसे छोड़ दिया। उसकी अतृप्ति पर ध्यान न देकर वह जल्दी से उठ कर अपने बालों को बांधकर चली गई ।

"अम्मा के लिए पूजा की तैयारी करनी है।" ऐसे बुदबुदाते हुए गई।

"नाश्ता करने आओगे ?” पूछा

उसने कोई जवाब नहीं दिया तो ना रुक कर दरवाजे को खोलकर फिर से बंद करके रसोई की तरफ भागी।

सब लोगों को नाश्ता दे रही सास एकदम से सर ऊपर करके बोली "क्यों इतनी देर?"

उसको एकदम से घबराहट हुई।

"उनके सिर में दर्द हो रहा था। दवाई लगाने के लिए बोला।" सास ने उस पर विश्वास नहीं किया उसे अच्छी तरह से पता था।

"यह देखो पूजा के कमरे में बिना दोबारा नहाए मत जाना" बोली। सरोजिनी का चेहरा लाल हो गया। लक्ष्मी के अजीब सी निगाह को देखकर।

कुछ बोले बिना कुएँ पर जाकर दोबारा नहा कर पूजा के कमरे में जाकर पूजा के सामानों को निकाल कर रखा। अंदर आई तो देखा जंबूलिंगम नाश्ता कर रहा था। अपने बेटे को मनुहार करके पास बैठकर सासु मां खिला रही थी ।

इसी रीति से ही दिन गुजर रहे थे। बिना किसी बदलाव के, जंबूलिंगम जब बिना नशे के सुबह के समय होता था तब उससे बात करने का समय ही नहीं मिलता। "आपका पीना मुझे पसंद नहीं। शरीर के लिए बुरा है: पैसों का भी नुकसान है।" ऐसे बोलने का उसने सोचा परंतु उसको समय नहीं मिला वक्त निकलता गया। नदी के पानी के साथ बहता हुआ कचरा जैसे, स्वयं भी बिना दिशा जाने हुए जा रही है ऐसा उसे भ्रम हुआ।

किसी शपथ के लिए आ रहा जैसे दिनकर का जंबूलिंगम को रात के समय लेकर आना जारी रहा। देखने से उसे उस पर दया आती।

"आपका तो यही काम हो गया" एक दिन बोली। एक दिन माफी मांगने के जैसे उसने कहा "मुझे उन्हें सुधारना नहीं आया मुझमें ही कोई दोष होगा।" वह बोली।

"आप में कोई दोष नहीं है।' वह बोला उसे घूर कर देखते हुए। "जंबूलिंगम एक मूर्ख है। अपने पास जो महंगी चीज है उसको महसूस नहीं करता।"

उसकी निगाहों में जो संकेत था उस पर उसने पहली बार ध्यान दिया।

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