Bandh Khidkiya - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

बंद खिड़कियाँ - 3

अध्याय 3

‘किसी ने जगाया हो ऐसे सरोजिनी की आंखें खुली। खिड़की के कांच के द्वारा सूर्य का प्रकाश अंदर आया। कितनी देर सो गई यह सोच कर उसे आश्चर्य हुआ। थोड़ी देर तो उसे समझ नहीं आया कि मैं कहां हूं। यह वर्तमान काल है या बीता काल? नीला वेलवेट वाला गद्दा नहीं था । ऊपर लटकने वाले झूमर वाली लाइटें भी नहीं थी ।

यह वर्तमान समय है। कई युगों के बाद मैंने दूसरा जन्म लिया है। उस समय की सरोजा में और इस जीवन के तरीके में कोई संबंध नहीं है।

मन बदला नहीं?’

सरोजिनी अपने मन ही मन हंसने लगी। मन तो वही है। करीब-करीब सभी लड़कियों का मन एक सा ही होता है। प्रेम के लिए तरसने वाले को यदि वह ना मिले तो दुखी होना, गुस्सा होना.... वातावरण के अनुसार उसका रूप बदलता है वरना सब एक ही है। पढ़ा-लिखा होना स्वयं के पैरों पर खड़े होने की स्थिति होने पर, "अरे जा रे तेरी दया की मुझे जरूरत नहीं" ऐसा अरुणा के आने के बावजूद उसके पति का प्यार उसे नहीं मिला तो उसके लिए वह कितना तरसेगी यह मुझे भी पता है। वह बेवकूफ यदि थोड़ा ठीक रहता इस पर प्रेम दिखाता तो यह उसके पास शरणागति कह कर रह जाती। बेचारी...

खुद खराब था और इसके बावजूद इस पर उसने इल्जाम लगाया कि यह चरित्रहीन है ! पापी कहीं का....

सरोजिनी का शरीर एक बार पूरा हिल गया। कई सालों की वेदना मिली जैसे उसका मन भारी हुआ।

कोई कमरे के दरवाजे को खटखटा कर अंदर आया।

"बड़ी अम्मा, उठी नहीं?" मुरूगन बोला। उसकी आवाज में एक अपनत्व था।

"उठ रही हूं" कहकर सरोजिनी आंखों को बंद करके लेटी रही।

"खिड़की के परदो को खोल दूं ?" मुरूगन बोला।

"ठीक"

"कमरे के अंदर तेज धूप की रोशनी आई तो सरोजिनी ने अपने हाथों से आंखों को ढंक लिया।

मुरूगन के चले जाने के बाद उसे उठने में आलस आ रहा था। जल्दी उठना है ऐसा जो एक बंधन था उसे गए बहुत दिन हो गए। आज मन में एक थकावट आ गई। पिछली जिंदगी को झांककर जब बाहर आती हूं तब मुझमें थकावट आ जाती है‌। एक जन्म बेकार ही चला गया जैसे "मनुष्य, मनुष्य जैसे नहीं चले तो कितनी ही चीजें गलत हो जाती हैं?" वह अपने आप ही बोल रही थी। अरुणा के दुखी होने का यही कारण है। वह लड़का कल तक जो उसका पति था वह प्रभाकर मेरे सामने आए तो मैं यही बोलूंगी "उसके ऊपर तुम जो भी दोषारोपण कर रहे हो उन सब का कारण तुम ही हो...."

"क्या बात है अम्मा तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है क्या...…"

आंखों पर से अपने हाथों को हटा कर सरोजिनी ने देखा।

"नहीं। तबीयत को कुछ नहीं हुआ।" कहकर सरोजिनी उठ कर बैठी।

"रात को ठीक से नींद नहीं आई। अब उठ कर भी मैं क्या करने वाली हूं ऐसा सोच कर ही पड़ी हुई थी।"

"और थोड़ा सोने की इच्छा है तो लेट जाइएगा।" नलिनी बोली।

"नहीं वो सब कुछ नहीं। इतनी देर सोए ?" कहती हुई सरोजिनी पलंग से उतरी।

"हमें भी कल रात को नींद नहीं आई..…अरुणा के साथ ऐसा हो गया" धीमी आवाज में कार्तिकेय बोले।

इस विषय में यह लोग कुछ ज्यादा ही संकोच कर रहे हैं ऐसा सरोजिनी को लगा।

"जो हो गया उसके बारे में दुख मनाने से कोई फायदा नहीं। वह अलग होकर आ गई यह उसके लिए बहुत अच्छा है। कुछ दुर्घटनाएँ घट नहीं जाती हैं क्या ? उसी तरह इस शादी के बारे में भी दोनों सोचो"

"आप जो कह रही हैं वह ठीक है" कार्तिकेय बोले।

नलिनी बिना कुछ बोले सिर झुका कर खड़ी रही।

"नलिनी, मुंह को लटका के मत खड़ी रहो। जो नहीं होना चाहिए वह नहीं हुआ। जो होना चाहिए वही हुआ। अब जो काम होना है उसकी तरफ ध्यान दो। नहीं तो इस बच्ची के मन का घाव भरने में बहुत दिन लगेंगे!"

"वह तो धैर्य से ही रह रही है, जैसे कुछ भी नहीं हुआ ‌। मुझे ही सहन नहीं हो रहा है" नलिनी बोली। उसकी आवाज में दर्द और आंखों में आंसू थे।

यह क्यों ऐसी अंधी है? सरोजिनी को आश्चर्य हुआ।

"आंखों को अच्छी तरह से खोल कर देखो नलिनी। तुम्हारी समस्या यह है कि तुम्हारी आंखों पर गौरव का पर्दा पड़ा है..."

तौलिया  लिए हुए स्नानाघर को जाते समय हल्के से  मुस्कुराते हुए बोली:

"इस तलाक ने अपने परिवार के गौरव को बचाया है इस बात को तुम्हें समझना चाहिए।"

स्नानाघर में जाकर दरवाजे को बंद करते समय "तुम्हें समझ में नहीं आएगा" अपने आप से बोली।

दांत को साफ कर चेहरा धोकर आईने में देखकर पोंछने लगी तब, "अच्छा आदमी मिल जाए फिर आराम से जीवन जीने वाली औरतों को निश्चित रूप से समझ में नहीं आएगा" स्वयं से कहने लगी।

कार्तिकेय एक अच्छा लड़का है। अपनी पत्नी को आंखों पर बैठा कर रखता है। "पुरुष हो तो वह जैसा चाहता है वैसा रह सकता है। उन सब बातों पर बिना ध्यान दिए रहना चाहिए" वह इन सब बातों से दूर रहने वाला आदमी है। एक पति को जैसा होना चाहिए वह वैसा ही है। नलिनी को उसने कोई कमी नहीं रखी। सभी आदमी लोग ऐसे ही अच्छे होते हैं ऐसी एक सोच नलिनी की है। इसीलिए वह इस आघात को सहन नहीं कर पा रही.....

सरोजिनी खाना खाने के कमरे में आई तो कार्तिकेय ऑफिस रवाना होने के लिए नाश्ता कर रहा था। मुरूगन परोसने में उसकी मदद कर रहा था। सरोजिनी को देखते ही, "बैठिए" कहकर कुर्सी को सरकाया।

"अम्मा के लिए कॉफी लेकर आओ मुरूगन!" कार्तिकेय ये बोल कर चुप हुआ उसके पहले ही मुरूगन  कॉफी रखकर हंसा।

"अम्मा को बाथरूम में घुसते देखा था" उसने अपनी सफाई दी।

मुस्कुराते हुए सरोजिनी कॉफी पीने लगी ‌यह उसकी तीस साल की आदत है । कई वर्षों से इसी घर में रहने वाली मरगथम का लड़का है वह ‌। वह जहां भी खेल रहा होता उसे ढूंढ कर उसके हाथ में कॉफी देने वाली बात उसे अब तक याद है।

"अरुणा उठ गई क्या? उसे कॉफी दे दी ?" धीरे से पूछा ।

"उठ गई हैं पर नीचे उतर के नहीं आई।"

"क्यों ?" सरोजिनी ने नलिनी को देखकर पूछा।

नलिनी के चेहरे पर तनाव साफ दिखाई दिया । सीधे ना देख कर कहीं देखते हुए जवाब दिया।

"आधे घंटे से फोन पर किसी से बात कर रही है ।"

सरोजिनी कुछ सोचते हुए अपनी कॉफी को पीने लगी। कार्तिकेय बातों में शामिल हुए बिना खाना खा रहा था।

अरुणा धड़ाधड़ सीढ़ियों से उतर कर आ रही थी।

"गुड मॉर्निंग !" उत्साह के साथ बोलती हुई वह आई। कार्तिकेय बे मन से "गुड मॉर्निंग" बोले। ‌नालिनी ने कुछ भी नहीं बोला।

सरोजिनी आगे आकर प्रेम से बोली "आओ अरुणा, यहां आकर बैठो" ।

अरुणा का चेहरा उदास था। उसकी नाक की कोर लाल थी। थोड़ी देर पहले तक वह रोई जैसे, जल्दी से पाउडर लगाकर आई हो जैसे दिख रही थी। उसकी आंखें सूजी हुई थी।

"कल पूरी रात यह लड़की सोई नहीं होगी" सोचकर सरोजिनी को दया आई।

कार्तिकेय और नलिनी ने उसे  देखकर अपने चेहरे को घुमा लिया।

"कॉफी लेकर आ रही हूं" बड़बड़ा कर नलिनी अंदर चली गई।

सरोजिनी ने मुस्कुराते हुए अरुणा के कंधों को पकड़ा।

"बोलो, आज क्या करने वाली हो ? आज तुम्हारा कुछ प्रोग्राम है क्या?"

तनाव कुछ दूर हुआ हो जैसे अरुणा प्यार से मुस्कुराई।

"हाँ दादी, बाहर जाने वाली हूं।"

"खाने पर आ जाओगी ना ?"

"नहीं, आने में 4:00 बज जाएंगे।"

"उसके बाद ?"

"फिर कुछ नहीं है। क्यों ?"

सरोजिनी धीरे से हंसी।

"मुझे सिनेमा जाना है ऐसा लग रहा है।"

विश्वास नहीं कर सकते ऐसे आंखों को चौड़ा करके अरुणा जोर से हंसी। "अरे वाह! मैं तैयार हूं दादी! अम्मा आएगी क्या पूछ लो।"

"मैं नहीं आऊंगी !" नालिनी चिड़चिड़ाते हुए "घर में वीडियो डालें तो भी मेरा देखने का मूड नहीं है..."

"क्यों ? तुम्हारे मूड को अभी क्या हो गया ?" अरुणा थोड़ी जोर से बोली।

"कुछ नहीं हुआ!" नालिनी निष्ठुरता से बोली। "सिनेमा देखने जैसा नहीं... बस इतना ही"

"आपकी इच्छा नहीं है तो हम आपको मजबूर नहीं करेंगे" अरुणा थोड़ी झल्लाते हुए बोली "मैं और दादी जा रहे हैं। दादी हिंदी या तमिल "

"अंग्रेजी फिल्म जाएंगे!" आश्चर्य से अरुणा जोर से मुंह खोल के हंसी।

"क्यों आपको तो अंग्रेजी समझ में नहीं आती !"

"फिर भी अच्छा है" कहकर सरोजिनी हंसी। "अपने आचरण संस्कार आदि की बेकार की बातें नहीं होगी।"

पीने के लिए उठाए गये कॉफी के मग को नीचे ठक से रखकर अरुणा उठ कर दादी के गले लगी।

"आपकी सोचने की जो शक्ति है वह मेरी सहेलियों में भी नहीं है।"

"तुम्हारी इन बातों से मेरा कोई संबंध नहीं है" इस तरह के भाव से कार्तिकेय उठ गए। नलिनी के चेहरे में प्रसन्नता नहीं थी।

"बाहर जाना है कह रही है ना, कार चाहिए ना अरुणा, ऑफिस से भिजवा दूं ?" कार्तिकेय बोले।

"नहीं"

"कैसे जाओगी ?"

"शंकर के साथ जाऊंगी। अमेरिकी एंबेसी में उनके पहचान वाले हैं। वे उनसे मेरी पहचान कराएंगें।"

नलिनी ने तुरंत मुड़ कर देखा।

"उसके लिए आने में 4:00 क्यों बजेंगे ?"

"कुछ काम है अम्मा" चिड़चिड़ाते हुए अरुण बोली "मुझे क्या छोटी बच्ची समझ रही हो ? खोद-खोद कर क्यों पूछ रही हो?"

दूसरे ही क्षण अरुणा बिना वहां खड़े हुए सीधे ऊपर चली गई।

"थोड़ा छोड़ो नलिनी" धीमी आवाज में कार्तिकेय बोले।

नलिनी सिर झुकाए धीमी आवाज में "इन सब परेशानियों का कारण ही शंकर है। उसी से तो फोन पर इतनी देर बात की, उसी के साथ यह घूम रही है यह देखकर दुनिया इसी की गलती  कहेगी ।“

"दुनिया के बारे में भूल जाओ नलिनी" धीमी आवाज में सरोजिनी बोली।

"तुम क्या सोचती हो यह ही जरूरी है।"

"अम्मा आप क्या कह रही हो ?"

"यह दुनिया जो चाहे बात बनाएगी। सच को झूठ और झूठ को सच कहेगी।"

बाहर गाड़ी आकर खड़ी होने की आवाज आई।

"आ गया साला" नलिनी बड़बड़ाने लगी। कार में से शंकर की आकृति दिखाई दे रही थी।

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