अध्याय 11
एक क्षण धक से रह गई फिर सरोजिनी अपने आप को संभाल कर मुस्कुराई।
"अंदर आओ बेटी" प्रेम से बोली तो श्यामला संकोच से अंदर आई। बैठने को बोले तो बड़े संकोच से सोफे के किनारे पर बैठी।
उसका संकोच उसका स्वभाव है ऐसा सरोजिनी ने सोचा। बड़े घर वालों से छोटे घर वालों को होने वाला संकोच उसने सोचा।
खाने के हॉल से उसने रसोई की तरफ देखा। मुरुगन अपने रोज के काम में लगा हुआ था। उन्हें देखते ही तुरंत खड़ा हो गया।
"क्या चाहिए बड़ी अम्मा?" पूछा।
"एक के लिए थोड़ा कॉफी और नाश्ता लेकर आओ" बोली।
"ठीक है" मुरूगन बोलकर फिर पूछा "कोई आया है क्या ?"
"हां" मुस्कुराते हुए संकोच से बोली।
"तुम्हें याद है कि नहीं ? अपने गांव में दिनकर के नाम के एक आदमी रहते थे। उनकी पोती आई है।"
"आपने ऐसे कैसे बोला ? बहुत पुरानी बात होने पर भी मुझे अच्छी तरह याद है । मैं नाश्ता लेकर आ रहा हूं आप जाइए!" वह उत्सुकता से बोला।
होठों में मुस्कान लिए वह श्यामला के करीब आकर बैठी।
"मैं दिनकर जी की एकमात्र दोहेती हूं।" श्यामला बोली।
"उनके सिर्फ एक ही लड़की है?" सरोजिनी ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं, मेरा एक मामा भी था। जब वह छोटे थे तभी मर गए ।"
उनके भौंहें थोड़ी फड़फड़ाई फिर अपने सिर को झुका लिया। एक अजीब सा दुख उनको हुआ।
"गांव में इलाज की सुविधा नहीं है। नाना को देखने के लिए वहां कोई आदमी भी नहीं है इसीलिए मैंने उन्हें यहाँ आने को कहा।"
"क्या बीमारी हुई ?"
"उम्र का तकाजा है" कह कर श्यामला हंसी। "80 साल के हो रहें है ना ?" हां मुझे ही 75 साल हो गए।"
"इस उम्र में नाना अच्छे ही हैं। उनकी निगाहें तेज है।"
उनकी निगाहें तो हमेशा ही तेज थी ऐसा सरोजिनी ने सोचा
वह लड़की अपने भोलेपन में बोलती चली गई।
"कुछ दिनों से उन्हें सांस लेने की दिक्कत थी। यहां दिखाएंगे कह कर मैंने आने को कहा। लड़की की बेटी हूं तो क्या हुआ, मेरे पास रह नहीं सकते क्या ! जबरदस्ती लेकर आई।"
सरोजिनी उसके कंधे को पकड़ वात्सल्य के साथ बोली "बहुत अच्छा काम किया तुमने" ।
"उनको यहां आए कितने दिन हो गए ?"
"एक महीना हो गया !"
"अरे बाप रे एक महीना ? क्यों इतने दिन नहीं बताया?"
"इतने दिनों वे इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती थे। अभी घर आए हैं। अभी और एक हफ्ते में गांव वापस चला जाऊंगा ऐसा जिद्द कर रहे हैं। आज सुबह ही उन्होंने आपका पता दिया।"
सरोजिनी का दिल धड़कने लगा। अपने चेहरे पर बिना कुछ दिखाएं सरोजिनी अपनी मुस्कुराहट को बनाकर ही पूछी।
"मेरे बारे में क्या बोला।"
श्यामला अपनत्व से हंसी।
"आपके बारे में बहुत बड़ी बात कही। अपने गांव के जमींदार की पत्नी हैं। परंतु जमींदारनी जैसे नहीं रहती। खाना बनाने से लेकर सब काम वे स्वयं ही करती हैं। एक समय में 30 लोगों का खाना खाने वाला कुटुंब था "
सरोजिनी हंसी।
"इतने बडें मकान में खाना बनाने के लिए कोई आदमी नहीं था...."
"उन्होंने यह भी बोला, आपकी सास बहुत ही कंजूस थी। आपको बहुत परेशान कर आप से काम लेती रहती थी। आप सब बातों को सहन करती थी...."
कोई कहानी सुन रही है जैसे सरोजिनी बड़े उत्सुकता से सुन रही थी।
"और क्या बोला ?"
"आप महालक्ष्मी जैसे सुंदर थी।"
दिनकर की निगाहें अभी उसके ऊपर पड़ रही जैसे सरोजिनी का चेहरा लाल हुआ।
"चालीस साल हो गए उनसे संपर्क छूटे।"
"उन्हें सब अच्छी तरह याद है, आपको नहीं है क्या ?"
सरोजिनी हंसी।
"यादों के सिवाय बुजुर्ग लोगों का और कोई संपत्ति नहीं है बेटी।"
"इसका मतलब नाना की आपको याद है....?"
"अच्छी तरह से !"
"नाना बहुत खुश होंगे। आपका एक बेटा है ऐसा उन्होंने बोला था।"
"हां बेटा और बहू के साथ ही रहती हूं । एक पोती भी है तुम्हारी जैसी। बहू से तुम्हारा परिचय कराती हूं। पोती और बेटा काम पर गए हैं।"
"मुरूगन नाश्ते की प्लेट रखकर श्यामला को उत्सुकता से देखा।
"यह भी तुम्हारे गांव का ही है। छोटी उम्र में तुम्हारे नाना को इसने देखा है।" सरोजिनी बोली।
"भाई साहब कैसे हैं बेटी?" मुरूगन ने पूछा।
"मुझे उनसे मिलना है। आप अपना पता देकर जाइए। बड़ी अम्मा जब समय मिलेगा देखने आएंगी। मैं भी एक बार उन्हें देखने आऊंगा।" मुरूगन बोला।
"ओ! जरूर आइए" तुरंत श्यामला ने एक चिट में पता लिख कर दिया।
"नलिनी को बुलाओ मरुगन !" सरोजिनी के कहते ही मुरुगन वहां से चला गया। नलिनी के आते ही सरोजिनी ने उससे परिचय कराया।
"इनके नाना तुम्हारे ससुर के बहुत अच्छे दोस्त थे वह बोली। "उनकी तबीयत ठीक नहीं है। यहां पर चिकित्सा के लिए आए हैं।"
"तुम लोगों को देखने की उनकी इच्छा है" बोली।
"उन्हें देखने जरूर आएंगे " नलिनी बोली।
श्यामला धन्यवाद देकर रवाना हो गई तो नलिनी ने पूछा "उस लड़की को देखें तो बहुत साधारण घर की है ऐसा लगता है?"
"हो सकता है, उस समय दिनकर की खेती-बाड़ी थी। फिर सब को बेचकर दूसरे गांव चले गए। हमसे संपर्क टूटे 40 साल हो गया।"
"अरे बाप रे, इतने सालों के बाद उस आदमी को अपनी याद आई। आश्चर्य हो रहा है। कोई रुपए की मदद की आशा कर रहे हैं क्या ?"
तुरंत सरोजिनी ने नलिनी को घूर के देखा।
"पक्का ऐसा नहीं होगा। दिनकर बहुत मान सम्मान वाला आदमी है। ऐसे अपेक्षा करने वाला आदमी नहीं है। हम अपने आप भी देंगे तो भी वह नहीं लेंगे ।"
"वे ऐसा ना सोचे तो भी दोहेती सोच सकती है।"
यह क्या बेकार की बातें कर रही है सरोजिनी को चिड़चिड़ाहट हुई।
"ऐसी सोचने वाली जैसे नहीं लग रही थी । अस्पताल से स्वस्थ्य होकर दिनकर घर आ गये हैं।" कहकर फिर से बगीचे में जाकर बैठ गई।
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