अध्याय एक 👉
उन व्यक्तियों का मन अधिक कमजोर होता है, जिनकी दिनचर्या अस्त व्यस्त रहती है, जो लोग अपनी पूरे दिन की कार्य योजना नहीं बनाते, जो अनुशासन में अपने आपको नहीं ढालते । ऐसे लोगों का संकल्प बहुत ही कमजोर होता है,ये दृढ़ निश्चयी नहीं होते । इनका मन बदलता रहता है । जो कहते है वह करते नहीं । इस वजह से ऐसे लोग परिवार में, समाज में, अपने कार्य क्षेत्र में, सम्मान नहीं पाते ।
01 शुरूआत कहां से करें – सबसे पहले अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करना होगा । सुबह से शाम तक जो भी कार्य करते है, उसको एक डायरी में नोट करना होगा । जो भी कार्य करते है अच्छे बुरे उन्हें लिखना होगा । इसके बाद उनमें क्या क्या जरूरी है उसे प्राथमिकता से करना ।
शाम को विचार करें, और जांच करें
कितना प्रतिशत कार्य योजना के अनुसार कार्य हुआ । अब आने वाले दिन की कार्य योजना बनाना है । आगामी दिनों के विशेष कार्यों को डायरी में पहले ही लिख ले, ताकि उसके अनुसार प्रतिदिन की कार्य योजना बना सके ।
02 गलत आदतें सुधारना – जो भी काम करते है उसमें नकारात्मक आदत वाला काम हटाने का प्रयास करें ।
03 खुशी का अनुभव – जब कार्य की बांट कर काम करेंगे और जब वह समयानुसार हो जायेगा तो अत्यंत खुशी का अनुभव होगा । आपका मन अनुशासित होने लगेगा । संकल्प शक्ति मजबूत होने लगेगी । परिवार एवं समाज में और खुद के कार्यक्षेत्र में सम्मान से लोग देखने लगेंगे ।
साधना-
साधना में हम बात करेंगे मन की मन को कैसे मजबूत किया जा सकता है। मन की ऊर्जा क्षीण न हो इसका प्रयास भी ज़रूरी है जिन जिन कार्यों से हमारी ऊर्जा का क्षय होता है ।
जैसे हाथ पांव हिलाना, अंगुलियाँ चटकाना,बेवजह अधिक बोलना, नकारात्मक बातें सोचना , निंदा करना, ईर्ष्या करना, चुगली करना, दूसरों की कमियां निकालना, इन सभी कार्यों से ऊर्जा का क्षय होता है। यदि हम ऊर्जा का क्षय नहीं रोकेंगे तो साधना के जरिए इकट्ठा की गयी ऊर्जा कब तक रुकेगी। उसका भी क्षरण हो ही जायेगा इसे आप ऐसे समझ सकते हैं जैसे पानी की टंकी में रिसाव होता रहे तो हमारे द्वारा भरा गया पानी कुछ समय बाद निकल जाएगा ऐसे ही हमारे द्वारा साधना के जरिये इकट्ठा की गयी ऊर्जा हमारी गलत आदतों के कारण कम हो जाएगी।
साधना में खानपान –
हमारे द्वारा लिया गया भोजन भी हमारे मन पर प्रभाव डालता है कहा गया है “जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन” यह है बात अक्षरशः सही है। हमें गरिष्ठ भोजन से व मिर्च खटाई से बचना चाहिए क्योंकि भोजन के पाचन में ऊर्जा का क्षय अधिक होगा अतः हमें सुपाच्य भोजन करना चाहिए।
त्राटक विधि – त्राटक दो प्रकार का होता है एक बाह्य त्राटक दूसरा अन्तर त्राटक बाह्य त्राटक के अभ्यास से बाह्य मन मजबूत होता है । बाह्य मन का दायरा सीमित है यह वर्तमान में व सामने ही काम करता है ।
बालि का बाह्य मन इतना बलवान था कि उससे नजर मिलाते ही आधा बल वह अपने में खींच लेता था ।
क्रमश -