वेदव्यास जी अपने आश्रम मे अपने शिष्यों के साथ बैठे हुए थे । सभी शिष्य वेदव्यास जी को बड़े ध्यान से सुन रहे थे । एकाएक वेदव्यास जी ने अपने पास बैठे एक शिष्य से कहा – हे वत्स ! आप अपने आश्रम के द्वार पर जाइए वहां से गंगा पुत्र भीष्म को आदर के साथ ले आइए । यह सुन किसी भी शिष्य को आश्चर्य नही हुआ, अपितु सभी उत्सुकता से गंगापुत्र की प्रतीक्षा करने लगे । वेदव्यास जी ने वहां बैठे ही जान लिया कि गंगापुत्र मिलने आरहे हैं । यह कैसे संभव हुआ ? यह सब रूपसाधना का प्रभाव था । इस साधना से दूर का भी प्रत्यक्ष देखा जा सकता है । अतः आज रूप साधना के बारे में चर्चा करेंगे ।
अग्नि तत्व की ज्ञानेन्द्री नेत्र होते हैं इनकी तन्मात्रा रूप है । इसकी साधना के बारे में शुरू में चर्चा कर चुके हैं । इसके लिए त्राटक महत्वपूर्ण है । बिन्दु त्राटक अभ्यास की पहली सीढी है केवल बिन्दु त्राटक के अभ्यास से ही अग्नि तत्व का तेज आंखों में दिखाई देने लगता है । आंखों में चुम्बकीय शक्ति विकसित हो जाती है ।
इसके अतिरिक्त भी कुछ सरल साधनाएं हैं जिन्हें करने से कुछ समय पश्चात ही परिणाम दिखाई देने लगते हैं । बिन्दु त्राटक स्थिर साध्य था अर्थात किसी ऐसे लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना जो स्थिर हो ।
अपने त्राटक को अस्थिर साध्य पर जब तक केन्द्रित नही कर लेते तब तक आगे की सीढी पर नही चढ़ पायेंगे । अस्थिर साध्य से तात्पर्य चलायमान वस्तु पर ध्यान अर्थात त्राटक करना है फिर आंखे बंद कर अन्तर्त्राटक करना है । इसे उदाहरण से समझते हैं –
चलती हुई घड़ी की सूई पर ध्यान करना फिर आंख बंद कर उसे देखना अर्थात ध्यान करना । आंख खोले और घड़ी की सूई को देखे वह कहां पर है ? यदि आंख बंद करने बाद ध्यान किया और जब आंख खोली तो वह सूई जहां होनी चाहिए वहां यदि मिलने लगे तो साधना सही चल रही है । इसे भी पांच मिनट से आधा घंटे तक करना है ।
अगला ध्यान पक्षियों को दाना डाले जब पक्षी दाना चुग रहे हो और निर्भीक विचरण करते हुए दाना खाने लगे तब किसी एक पक्षी पर ध्यान करना है । पक्षी ऐसा हो जिसे आप आसानी से पहचान सकते हो । उन्हे चिन्हित भी किया जा सकता है । यदि कबूतर है तो उनमे एक सफेद हो सकता है उसका चयन करे । वही प्रक्रिया अपनानी है । पहले उस पक्षी पर खुली आंखो से ध्यान करना । एक दो बार आंख बंद करना, देखना फिर बंद करना ऐसा कर सकते हैं । अभ्यास करते करते कुछ दिनों में उस पक्षी से तारतम्य ऐसा बन जायेगा कि उसे आंख बंद करके ही देखा जा सकता है । वह कहां है ? क्या कर रहा है ? सब बंद आंख मे अनुभव मे आजाता है । इसी तरह सम्पूर्ण स्थान विशेष को देखना फिर बंद आंखो से देखना । और बंद आंखों से उस स्थान को बारीकी से देखते रहना । कुछ समय के अभ्यास के बाद उस स्थान मे होने वाली सभी वस्तुओ को देखा जा सकता है । शुरू मे चित्रवत दृश्य दिखाई देंगे फिर लंबे अभ्यास के बाद विडियो की तरह देखा जा सकता है ।
आपने पुराणों में ऐसे बहुत ऋषियो का वर्णन सुना होगा जो नेत्र बंद कर सब जान लेते थे । अतः सतत साधना करने से वे गुण हम आप मे भी आ सकते हैं । योग्य गुरू मिल जाये तो साधना शीघ्र फलीभूत हो जाती है ।