जादुई मन - 11 - रोगी की चिकित्सा प्राण ऊर्जा द्वारा Captain Dharnidhar द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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जादुई मन - 11 - रोगी की चिकित्सा प्राण ऊर्जा द्वारा

पिछली अध्याय में प्राणाकर्षण की विधि समझी । अब उस ऊर्जा का प्रयोग करने की विधि समझेंगे ..
जिनका विश्वास आध्यात्म मे है अर्थात जो धार्मिक भावना प्रधान व्यक्ति है । वे लोग सूर्य मंत्र का जाप उक्त विधि मे सम्मिलित कर सकते हैं इससे उन्हे सफलता जल्दी मिलेगी । इसका कारण यह है कि मंत्र जाप करते रहने से भावना बलवती होगी ।
प्राण ऊर्जा का स्रोत सूर्य है । इसलिए सूर्य मंत्र जप सकते हैं ,भगवान राम सूर्य वंशी है , इसलिए इनका मंत्र जपा जा सकता है । गायत्री मंत्र का संबंध भी सूर्य से है, इसलिए यह मंत्र जपा जा सकता है । अग्नि मंत्र जपा जा सकता है । मंगल को अंगारक कहा गया है , इसका मंत्र जपा जा सकता है । शिव, हनुमान ,भैरव, गोविंद ,गणपति ,दुर्गा के मंत्र भी प्राण ऊर्जा को बढाने वाले कहे गये है । इनमे से भी किसी एक का मंत्र जपा जा सकता है ।
ध्यान रहे मंत्र जाप मे यदि असहजता होती है, ध्यान नही लगता, तो मंत्र का जाप न करे ।

अथर्व वेद मे रोग निवारण करने की पद्धति का वर्णन मिलता है । यहां उसी पद्धति का अनुसरण हम करेंगे । इस पद्धति द्वारा हम
परोक्ष से या अपरोक्ष से रोगी को लाभ पहुंचा सकते है । रोगी को बैठाकर या आराम से लिटाकर उक्त कार्यवाई की जा सकती है ।
स्त्री है तो' उसके बायी ओर स्वयं को रखना है। यदि पुरूष की चिकित्सा कर रहे है तो' खुदको उसके दाहिनी ओर रखना है । रोगी का सिर दक्षिण की ओर रहे । बैठाकर चिकित्सा कर रहे है तो' उसकी पीठ दक्षिण में रहे । यह दिशाक्रम इसलिए है, उत्तर की ओर से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बहता रहता है । तो वह चिकित्सा मे सहायक बनेगा । समय प्रातःकालीन का श्रेष्ठ है किन्तु चिकित्सा कभी भी की जा सकती है । किन्तु रात्रि मे नही करनी चाहिए। यदि रात्रि मे भी करे तो सूर्य के प्रतीक अग्नि या दीपक जलता रहे ।
रोगी को कहे की वह अपने शरीर को ढीला छोड़ दे क्योंकि ऐसा करने से उसकी ऊर्जा का खर्च जो शरीर को व्यवस्थित रखने मे हो रहा है वह नही होगा । दूसरी बात स्नायुतंत्र मे किसी प्रकार का खिंचाव होगा तो वह ठीक से प्राण ऊर्जा ग्रहण नही कर पायेगा ।

उपचार विधि - साधक पहले खुद प्राणाकर्षण विधि से स्वयं को प्राण ऊर्जा से ओतप्रोत करले । फिर नेत्र बंद कर सूर्य के प्रकाश का ध्यान करे। खुदको व रोगी का नाम लेकर उस प्रकाश जगत मे देखे । खुद मे प्रकाश भरा है ऐसी भावना करे । रोगी को अपने साथ प्रकाश मे देखने मात्र से शांति का अनुभव होने लगेगा । फिर ईश्वर से प्रार्थना करते हुए रोगी के मस्तिष्क से पांव की ओर 21 बार बिना छूये हाथ फेर देवे । इस प्रक्रिया मे रोगी को स्पर्श न करे यदि गलती से स्पर्श होगया है तो अपने हाथ धोलेवे ।

यदि रोगी उपस्थित नही है तो उसका पूरा चित्र देखकर उपरोक्त विधि से ध्यान द्वारा ऊर्जा प्रेषित कर चिकित्सा करे । लाभ अवश्य होगा ।
( अगले अध्याय मे अथर्ववेद के मंत्र व उनका अर्थ सहित चिकित्सा क्रम बताऊंगा )