आकाश तत्व की ज्ञानेन्द्री हमारे कान हैं । ध्वनि आकाश तत्व का गुण है । सुनने की क्षमता सभी जीवों मे अलग अलग हो सकती है । ध्वनि की तीव्रता को सहन करने की क्षमता भी सभी मे अलग अलग होती है । कुत्ते की सुनने की क्षमता मनुष्य से अधिक होती है । कुत्ता छोटी ध्वनि को सुन सकता है जिसे मनुष्य नही सुन पाता । मनुष्य को एक सी लगने वाली आवाज के फर्क को कुत्ता पहचान सकता है । मनुष्य के अंदर भी अद्भुत शक्ति है यह भी पास की ध्वनि व दूर की ध्वनि सुनने की क्षमता रखता है । आपने खुद ने भी अनुभव किया होगा । आप पास की ध्वनि न सुनकर दूर की सुनते है । जैसे आप समूह मे बैठे हैं किंतु समूह मे बैठे हुए भी समूह की न सुनकर दूर बात करने वाले की बात सुन रहे होते है । अर्थात हमारे अंदर परमात्मा ने दूर की ध्वनि सुनने का गुण भी दिया है । इसके साथ ही सूक्ष्म ध्वनि को सुनने की क्षमता भी हमे दी है । हम अपनी क्षमता को विकसित कर सकते हैं । आज उसी साधना को लेकर चर्चा करने वाला हूँ ।
शान्त कक्ष मे बैठ जाइए एक घड़ी लीजिए उसको उचित दूरी पर रख दीजिए । घड़ी की दूरी इतनी होनी चाहिए कि आप उसकी टिक टिक की ध्वनि आराम से सुन सके । अब अपनी आंखे बंद करके ध्यान से घड़ी की टिक टिक को सुनते रहे । जब टिक टिक की ध्वनि बिल्कुल स्पष्ट अपने पास ही सुनाई देने लगे तो घड़ी की दूरी बढ़ा दे । जहां से आप उसे अस्पष्ट सुन रहे हो । कुछ दिन के बाद घड़ी की टिक टिक स्पष्ट सुनाई देने लगेगी । जब हम कर्णेन्द्री को बार बार घड़ी की टिक टिक सुनने का ध्यान करेंगे तो टिक टिक थोड़ा ध्यान करने मात्र से सुनाई देने लगेगा ।
जब 20 फिट या उससे अधिक दूर घड़ी रखने पर भी उसकी टिक टिक स्पष्ट सुन पा रहे है तो दूसरे कमरे में घड़ी रखकर उसकी टिक टिक सुनने का प्रयास करे । फिर अपने से दूर रखी घड़ी की टिक टिक को सुनने के लिए किसी ओर से कहे । यदि वह कहता है कि मै सुन नही पा रहा तो समझे आप सही दिशा मे बढ रहे हैं । दूसरे कमरे से भी जब स्पष्ट टिक टिक सुनने लगे तो किसी ओर ध्वनि पर अभ्यास कर सकते है ।
अपने मित्र को दूरी पर खड़ा करके उसका मुख विपरीत दिशा मे करके उसे किसी शब्द को बार बार रिपीट करने को कहे जब उसका रिपीट किया शब्द सुनाई दे तो उसे बताये आपने यह शब्द कहा है । वह जब कहे कि हां मैने यही कहा था । उसे ओर धीरे बोलने को कहे ।
दूसरे शब्द को कई बार रिपीट करने को कहे ।
इस अभ्यास को 15 से 20 मिनट ही शुरू में करे ,ज्यादा करने से सिर मे भारीपन हो जाता है । ऐसा होने पर पानी पिया जा सकता है ।
कई लोगों को कान मे ओर आवाजे भी आती है जो सूक्ष्म होती है , जब कर्णेन्द्री की क्षमता विकसित होती जाती है उसे इस सृष्टि मे होने वाली बहुत सी सूक्ष्म ध्वनिया सुनाई देने लगती हैं । धीरे धीरे सूक्ष्म से सूक्ष्म सुनते सुनते उसे ऊंकार ध्वनि सुनाई देने लगती है ।
इस साधना को करने का एक तरीका ओर है जो श्रेष्ठ भी है । शान्त स्थान मे या रात्रि मे कमर सीधी करके सुखासन मे बैठ जाये ..अपने श्वासों पर ध्यान करे । श्वास आ रहे है और जा रहे हैं कुछ समय मे श्वासों पर ध्यान करते रहने से श्वास की ध्वनि सुनाई देने लगती है ,स्पष्ट होती जाती है ..धीरे धीरे अभ्यास बढाते रहे फिर शरीर के भीतर की आवाज हृदय का स्पंदन , रक्त वाहिनियो की ध्वनि भी स्पष्ट सुनाई देने लगती है ।
क्रमश -