Jaadui Mann - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

जादुई मन - 6 - सूंघने की शक्ति को बढाने की साधना

पंचतंमात्रा साधना –
पहले बताया जा चुका है कि मन ज्ञानेन्द्रियों के जरिये रसानुभूति करता है आंख, नाक ,कान ,त्वचा, और जीभ इनसे मनको ज्ञान होता है इनके साथ संयोग कर इनके गुणों से भोग भोगता है ।
पंच तन्मात्रा साधना से पहले यह समझना भी जरूरी है कि शरीर में पांच तत्व हैं इन पांचो तत्वों की पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं – पृथ्वी तत्व की नाक है ,जल तत्व की जीभ है, अग्नि तत्व की आंखें हैं, आकाश तत्व की कान हैं, वायु तत्व की त्वचा है । इनके कार्य ही इनके गुण है जैसे – नाक का सूंघना गुण है, इनसे श्वास भी लेते है किन्तु जो गंध की अनुभूति होती है वह पृथ्वी तत्व के गुण से होती है । श्वास के लिए विकल्प मुख हो सकता है किन्तु गंध की अनुभूति नाक से ही होगी । जीभ का गुण स्वाद की अनुभूति कराना है जीभ बोलने मे सहायक हो सकती है किन्तु मुख्य गुण स्वाद है जो जल तत्व का गुण है । आंखो में देखने का गुण है ,देखने की अनुभूति आंखों से होती है, रूप का ज्ञान होना अग्नि तत्व का गुण है । आकाश तत्व का गुण सुनना है , शब्द का ज्ञान कानों से होता है ।
वायु का गुण स्पर्श है - त्वचा से इसकी अनुभूति होती है।
इन ज्ञानेन्द्रियों के गुणों को अधिक विकसित किया जा सकता है, यही तन्मात्राओं साधना है । इसमे कोई जप नही करना होता सिर्फ अभ्यास से ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति को बढाया जाता है ।
उसी पर चर्चा करूंगा । आंखों की साधना पिछले अध्यायो मे बताई जा चुकी है । त्राटक विधि से देखने की क्षमता को बढाया जा सकता है । अन्तर्त्राटक से दूर का भी देखा जा सकता है । यह अग्नि के गुण की साधना हो गयी।
पृथ्वी तत्व का गुण घ्राण शक्ति (सूंघने की शक्ति) कैसे बढे इसकी साधना विधि को सीखेंगे –
आप मन पसंद का एक फूल ले लेवे । जैसे गुलाब का फूल आपने ले लिया। फूल सुगंधित होना चाहिए ,
आजकल वर्ण शंकर फूल भी लोग तैयार कर लेते है जो वर्ण शंकर होगा उसमे सुगंध नही आयेगी , वह देखने मे अच्छा हो सकता है किन्तु वह गुण हीन होगा ।
आप शान्त स्थान पर कमर सीधी करके बैठ जायें , एकाग्रता पूर्वक वह फूल अपने हाथ मे लेवे , उसे उचित दूरी से सूंघे, फिर उसे दूर रख दे, फिर उसकी गंध का स्मरण करके उसकी सुगंध की अनुभूति करने का अभ्यास करे । दूर रखने पर सुगंध नही आ रही है तो उसे फिर सूंघे। पांच मिनट अभ्यास करे फिर सूंघे फिर दूर रख दे । शुरू में कइयों को सुगंध का अहसास नही होता, वे शुरू मे चार पांच फूलो का पुष्पगुच्छ ले सकते हैं । यह अभ्यास 15 मिनट या आधा घंटा तक कर सकते हैं । कुछ दिनों मे दूर रखने पर भी अनुभूति होने लगती है । फिर यही अभ्यास फूल के बिना करे , यदि सुगंध की अनुभूति नही होती है तो बाहर रखे फूल को नजदीक रखकर सूंघे फिर उन्हे हटा दे । जब अनुभूति होने लगे, तो बिना फूल सूंघे अनुभूति होने का अभ्यास करें । कुछ दिनो मे घ्राण शक्ति बढ जायेगी । पृथ्वी तत्व की ज्ञानेन्द्री जाग्रत हो जायेगी । फिर इस वायुमंडल मे व्याप्त उस फूल की गंध की अनुभूति होने लगेगी । एक फूल का अभ्यास होने पर दूसरे फूलो की सुगंध का अभ्यास किया जा सकता है । जैसे हमने पहले आंख की साधना की चर्चा की थी। उस साधना मे सफलता प्राप्त होने पर, दूर का देखना संभव होने लगे तो फिर, इस साधना का अभ्यास करना चाहिए। दोनो साधनाओं के सफल होने पर वहां की वायु की गंध की अनुभूति भी होने लगती है । आंख मे चुम्बकीय शक्ति विकसित हो गयी फिर नाक मे भी चुम्बकीय शक्ति विकसित हो गयी।
आपको पता होगा ऐसे जीव भी हैं जो बहुत दूर से ही अपने भोजन की गंध सूंघ लेते है । जैसे चींटी भालू कुत्ता इनमें हमारे से ज्यादा सूंघने की शक्ति होती है ।

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