बाह्य मन की अपेक्षा अन्तर्मन अधिक शक्तिशाली होता है । मन को शक्तिशाली बनाने के लिए हम कुछ साधनाओं की चर्चा करेंगे ।
त्राटक साधना में बिंदु त्राटक से शुरुआत कर सकते हैं –
बिन्दु त्राटक - एक सफेद कागज के बीच में एक रूपये के सिक्के जितना काला बिंदु बनायें फिर काले बिंदु में पीली सरसों जितना गोल बिन्दु बनाये । फिर एकांत में अपने कमरे की दीवार पर उसे इस तरह से लगा दे कि उसमे लगा काला बिन्दु ठीक हमारी आंखों के सामने हो । कमरे में रोशनी इतनी ही हो कि हमें उसमे लगा पीला बिन्दु दिखाई देवे ।
अब साधना के लिए सुखासन में बैठ जायेंगे । रीढ हमारी सीधी रहे और काला बिन्दु जो दिवार पर लगाया है उससे हमारी दूरी कम से कम दो फिट की हो ।
अब अपलक काले बिंदु मे बने पीले बिन्दु को देखते रहें, न पलक झपके, न पुतली हिले डुले।
शुरू में बिन्दु को एक मिनट लगातार देखें आंखों में पानी आये तो उसे साफ करले फिर पुनः पलक हिलाये देखते रहें इसे पांच मिनट लगातार देखने का अभ्यास करें ।
शुरूआत में कुछ परेशानी हमें हो सकती है जैसे कि आंख मे पानी आना, आखों का दुखना, लाल हो जाना , जब ध्यान से आंखे थक जाये तो पानी से धोले या गुलाब जल की कुछ बूंद डाली जा सकती है । स्वच्छ पानी मे आंखे डुबोकर खोलना बंद करना ऐसा किया जा सकता है । पहले दिन एक मिनट फिर ध्यान को धीरे धीरे पांच मिनट तक लेकर जाना है जब ध्यान अपलक 25 मिनट का होने लगे तो हमारी आंखो में बहुत चुंबक उत्पन्न हो जायेगा ।
हमारी साधना सही चल रही है इसे जानने के लिए कुछ खेल खेले जा सकते हैं । जैसे किसी बैठे हुए व्यक्ति को बिना मुंह से बोले आदेश देवे अपना सिर खुजाओ या पीछे देखो , पहले छोटे आसान आदेश देवें जब वे सही होने लगे तो उनसे कुछ कठिन आदेश देवें जैसे कोई व्यक्ति जा रहा है उसके पीछे सिर पर ध्यान करते हुए पीछे मुड़ने का आदेश देवे जब इस तरह के आदेश सही में होने लगे तो हमारी साधना सही चल रही है यकीन मानिए यह सब तो एक सप्ताह या 10 दिन में ही होने लगता है जब हम सिर्फ पांच मिनट ही ध्यान करते होंगे ।
आंखों में उत्पन्न हुए चुंबक से व्यक्ति के मस्तिष्क के अवचेतन भाग से संबंध स्थापित कर लेता है । जब हम भावनात्मक रूप से जो आदेश प्रेषित करते हैं वह हमारी नेत्रों की तरंगों से उसके मस्तिष्क में जाता है वह वैसा करने लगता है ।
मन हमारा अकूत शक्तियों का भंडार है इसकी शक्ति बिखरी होती है इसे अभ्यास से और वैराग्य से वश में किया जा सकता है ।
अर्जुन ने भगवान कृष्ण से पूछा था, हे नारायण ! मन को वश में कैसे किया जा सकता है ? तब श्रीकृष्ण ने उसे अभ्यास और वैराग्य की बात कही थी । अभ्यास का मतलब साधनाएं और वैराग्य का मतलब हमारे अंदर इंद्रिय जनित काम क्रोध लोभ न हो । वे कार्य जिनसे बुराई का जन्म होता हो बुरी आदतों का जन्म होता हो उनसे दूरी बनाना । यह सब संसार से भाग कर नहीं संसार में रहकर करे । तब ही सिद्ध होगा कि वैराग्य हुआ या नहीं । कोई कहे कि मै तैरना जानता हूँ तो तैरना तो तब ही सिद्ध होगा जब पानी भी हो ।
क्रमशः --