Suna Aangan - Part 9 books and stories free download online pdf in Hindi

सूना आँगन- भाग 9

अभी तक आपने पढ़ा एक दिन सौरभ ने जब वैजयंती अकेली थी तब उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रख ही दिया। वैजयंती ने उसे इंकार करते हुए कहा तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की। तुम चले जाओ यहाँ से। उसके बाद वैजयंती ने सोचा कि माँ से कहकर सौरभ का घर में आना-जाना ही बंद करवा देती हूँ। अब पढ़िए आगे -

इसी बीच एक दिन वैशाली ने वह सुंदर मंगलसूत्र देख लिया जो अभि ने अपने जीवन के अंतिम पलों में वैजयंती के लिए खरीदा था।

उसने नवीन से कहा, "नवीन भाभी के पास कितना सुंदर मंगलसूत्र है, वह भी हीरे का। उनके लिए तो अब वह कुछ काम का नहीं है फिर भी उनका मन नहीं होता कि मुझे दे दें।"

"वैशाली वह भैया की दी हुई अंतिम गिफ़्ट है, निशानी है भाभी उसे कभी उनसे दूर नहीं करेंगी। रहने दो उन्हीं के पास।"

"नहीं नवीन यह तो ग़लत बात है ना। देखना किसी ना किसी दिन उस हार को वह नैना को दे देंगी।" 

हीरे का मंगलसूत्र वैशाली की आँखों में बस गया था। उसे अब वह मंगलसूत्र चाहिए था। एक दिन मौका देखकर आख़िरकार नवीन के मना करने के बाद भी उसने वैजयंती से यह कह ही दिया, " भाभी आपके पास जो हीरे का मंगलसूत्र रखा है, वह कितना सुंदर और कितना कीमती है ना। मुझे भी वह बहुत पसंद है। क्या आप मुझे वह पहनने देंगी?"

वैशाली की इस बात का वैजयंती कोई जवाब ना दे पाई। उसने हँस कर बात को अनसुना कर दिया।

कुछ ही दिनों में अशोक और ऊषा भी तीर्थ यात्रा से वापस आ गए। एक दिन वैजयंती ने ऊषा से कहा, " माँ सौरभ का यहाँ ज़्यादा आना-जाना मुझे पसंद नहीं है।"

"क्यों बेटा क्या हुआ?"

"माँ आपके जाने के बाद एक दिन दोपहर को वह तीन बजे यहाँ आया। मुझसे कहा वैजयंती एक कप चाय पिला दो। घर पर कौन बना कर देगा, कोई बनाने वाली भी तो नहीं है। माँ मैं जैसे ही चाय बनाने गई तो सौरभ भी मेरे पीछे आया और उसने … "

"यह क्या कह रही हो बेटा, कोई बदतमीजी की उसने?" 

"नहीं-नहीं माँ उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।"

"फिर-फिर क्या हुआ बेटा?"

"मां उसने कहा … "

"क्या कहा बेटा?"

उसने कहा, " क्या तुम मुझसे विवाह करोगी।"    

"क्या . . . क्या . . .,"ऊषा एकदम गुस्से में आ गई, "उसकी इतनी हिम्मत?" 

"हाँ माँ मैंने उसे कहा कि तुमने ऐसा सोचा भी कैसे? तो फिर कुछ-कुछ बोल कर मुझे समझाने लगा पर मैंने कहा प्लीज़ तुम चले जाओ यहाँ से। तब वह चला गया। अब आप लोग उसे यहाँ आने के लिए मना कर देना।"

ऊषा ने अगले ही पल सोचा कि आख़िर उसने ग़लत क्या कहा। हमें वैजयंती का विवाह कर देना चाहिए और सौरभ तो जाना पहचाना लड़का है। उससे अच्छा जीवन साथी वैजयंती के लिए नहीं मिल सकता। किंतु क्या वैजयंती मानेगी?

इसी बीच एक दिन नैना का फ़ोन आया। उसने कहा, "हैलो भाभी " 

"हैलो नैना"

"आपसे एक बहुत ज़रुरी काम है।"

"हाँ बोल ना, क्या काम है?"

"मेरी फैमिली में एक शादी है। मुझे कुछ दिनों के लिए वह मंगलसूत्र चाहिए जो भैया आपके लिए लेकर आए थे।"

काम करने की जल्दबाजी में वैजयंती ने फ़ोन स्पीकर पर रख दिया था। उस समय रसोई में वैशाली और ऊषा भी मौजूद थे। वैशाली यह सुनते ही वैजयंती की तरफ़ टकटकी लगाकर देखने लगी कि अब भाभी क्या करेंगी। वैजयंती हैरान थी, यह भी मंगलसूत्र मांग रही है और वैशाली भी।

वह कुछ कहे उससे पहले ऊषा ने वैजयंती से फ़ोन लेते हुए कहा, "नैना वह मंगलसूत्र किसी को नहीं मिलेगा। वह अभि की अंतिम निशानी है और वह केवल वैजयंती के पास ही रहेगा।" 

"लेकिन माँ अब भाभी उस मंगलसूत्र का क्या करेंगी?"

"यह मंगलसूत्र अब …," इतना कहकर ऊषा की आगे कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हुई।

लेकिन फिर भी अपने आप पर नियंत्रण करते हुए उन्होंने कहा, "किसी भी विधवा के गहने उसकी भविष्य निधि होती है, उसका सुरक्षा कवच होता है बेटा। जो उसके ही पास रहना चाहिए।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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