Suna Aangan - Part 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सूना आँगन - भाग 2

अभी तक आपने पढ़ा वैजयंती और अभिमन्यु अपने परिवार के साथ बहुत ख़ुश थे। वैजयंती अपनी शादी की आठवीं सालगिरह की तैयारी कर रही थी; पता नहीं क्यों अभिमन्यु उससे कह रहा था कि वैजयंती यदि मुझे कुछ हो जाए तो तुम दूसरा विवाह कर लेना। अब पढ़िए आगे –

बात करते-करते दोनों घर पहुँच गए। घर पहुँच कर दोनों ने अपने माता-पिता के पाँव छूकर उनका भी आशीर्वाद ले लिया फिर सुबह का नाश्ता सबने साथ मिलकर किया। उसके बाद अभिमन्यु बैंक जाने के लिए तैयार होने लगा।

वैजयंती ने कहा, "अभि आज छुट्टी ले लो ना।" 

"नहीं वैजयंती बहुत काम है। शाम को यदि हो सका तो जल्दी आने की कोशिश करुँगा। तुम्हारे लिए कोई सुंदर सा उपहार भी तो लाना है ना। बोलो तुम्हें इस साल क्या तोहफ़ा चाहिए?"

"उपहार लेने जाओगे तो और भी ज़्यादा देर से आओगे। मुझे तो आज उपहार में चाहिए कि बस तुम जल्दी से घर आ जाओ।"

"अच्छा ठीक है चलो, आज तुम्हारे लिए हॉफ डे ले लेता हूँ। अब तो ख़ुश हो ना!"

"बिल्कुल अभि 'आई लव यू' मैं तुम्हारी पसंद का केक बना कर रखूँगी।"

"अरे-अरे केक मत बनाना।"

"क्यों? क्यों ना बनाऊँ?"

"वैजयंती तुम देखना नैना ने अब तक केक का ऑर्डर कर भी दिया होगा।" 

"हाँ तुम ठीक कह रहे हो फिर मैं तुम्हारी पसंद का खाना बनाऊँगी।"

"वह भी नहीं हो सकता" 

"क्यों?"

"क्योंकि मैंने पहले से पूरे परिवार के लिए टेबल बुक कर लिया है। तुम तो बस ख़ूब सुंदर साड़ी पहन कर तैयार रहना। वह लाल साड़ी जो मैं मुंबई से लाया था, क्या ख़ूब खिलती है वह तुम पर।"

"ठीक है, तो फिर तुम्हें भी मेरे मन पसंद कपड़े पहनने होंगे।"

"ठीक है, मुझे पता है तुम वही काला सूट पहनने को बोलोगी जो तुम्हारे पापा ने दिया था। अच्छा चलो मुझे जाने दो, देर हो रही है।"

जाते-जाते अभि ने वैजयंती को प्यार से चूम लिया और उसके बाद वह चला गया।

वैजयंती ने ख़ुशी-ख़ुशी घर का सारा काम निपटाया। उसके बाद वैजयंती ने अभिमन्यु के लिए काला सूट निकाल कर अपने हाथों से इस्त्री की। ख़ुद के लिए अभिमन्यु की पसंद की साड़ी और मैचिंग के गहने निकाल कर रख लिए। आज तो वैजयंती की निगाहें घड़ी पर ही टिकी थीं। देखते-देखते चार बज गए। वैजयंती जानती थी अभि ने भले ही कह दिया हो लेकिन वह कहाँ जल्दी आने वाला है। वह उपहार लेने भी ज़रूर जाएगा और वही शाम सात-साढ़े सात बजे ही घर आएगा। घड़ी की तरफ़ देखते-देखते आख़िरकार सात बज ही गये। वैजयंती ने वही लाल साड़ी पहनी जिसमें अभि उसे देखना चाहता था। नैना ने केक को डाइनिंग टेबल पर फूलों के गुलदस्ते के साथ सजा दिया। 

नैना ने पूछा, "भाभी केक काट कर फिर हम डिनर के लिए जाएँगे ना?" 

"हाँ नैना बिल्कुल।"

"भाभी आज की पार्टी मैं दूँगी।"

नवीन ने झुंझलाते हुए कहा, "पर भैया कब तक आएँगे यार!"  

वैजयंती को देख कर नैना ने कहा, "भाभी आप कितनी सुंदर लग रही हो। आज तो भैया आपको देखकर घायल ही हो जाएँगे।"  

नवीन फिर बोला, "अरे पर भैया घायल होने आएँगे कब?  केक देख कर मुँह में पानी आ रहा है और भूख भी लग रही है।" 

अब तक लगभग साढ़े सात बज चुके थे। तभी अभि का वीडियो कॉल आया। वैजयंती ने तुरंत ही फ़ोन उठाया। 

"अभि कहाँ हो तुम? तुमने कहा था, जल्दी आओगे। " 

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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