कहानियां भूत-प्रेतों वाली - 3 - पिशाच का अंत Manish Sidana द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कहानियां भूत-प्रेतों वाली - 3 - पिशाच का अंत

पिशाच का अंत

राहुल स्टेशन से बाहर निकला।गाड़ी रात 12 बजे स्टेशन पहुंचीं थी।वो स्टेशन पर उतरने वाला अकेला यात्री था। नानोता नाम के इस छोटे से स्टेशन पर इतनी रात को कौन उतरता? यहां से सब से नजदीकी गांव 3 कि मी दूर था।राहुल को बड़गांव जाना था जो कि वहां से 5 कि मी दूर था।राहुल को लेने गांव से चाचा जी आने वाले थे।उसने 20मिनट इंतज़ार किया।जब कोई नहीं आया तो उसने पैदल जाने का निश्चय किया।
राहुल जंगल में आगे बढ़ता जा रहा था। सर्दियों की रात थी।चारो और घना कोहरा था।दो हाथ की दूरी का भी दिखाई नहीं दे रहा था।राहुल के पास 1 ही बैग था।सुबह ही उसे दादा जी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो फौरन गांव के लिए चल पड़ा।थोड़ी दूर चलकर ही उसकी सांस फूलने लग गईं।
तभी उसे झाड़ियों में कुछ सरसराहट महसूस हुई।वो रुक गया।कहीं कोई चोर डाकू ना हो..उसने मन में सोचा।वो चौकन्ना हो गया।उसने अपनी कोट की जेब पर हाथ लगाया।रिवॉल्वर को स्पर्श करके उसे थोड़ी हिम्मत मिली।वो जानता था स्टेशन से घर का रास्ता जंगल से जाता है, इसलिए उसने अपनी रिवॉल्वर साथ रख ली थी।

वो कुछ देर रुका रहा।चारो तरफ शांति थी।केवल हवा चलने की सरसराहट कानों में गूंज रही थी।उसने अपना मफलर ठीक किया और बैग उठाकर चल दिया।उसने फिर महसूस किया कि कोई उसके साथ साथ चल रहा है।वो रुक गया..अंधेरे में निगाहें जमाकर देखा पर कोहरे में कुछ नजर नहीं आ रहा था।वो फिर चल पड़ा।कुछ देर में फिर उसे लगा... कोई है... जो साथ साथ चल रहा है।राहुल बिना रुके चलता रहा।दो मिनट बाद वो एकदम पलटा..
कोई झाड़ियों में घुस गया।राहुल कोहरे की वजह से ठीक से देख नहीं पाया कि कौन है ।पर उसे ये पक्का हो गया कि कोई उसके पीछे है।
राहुल कुछ कदम पीछे गया और बोला.."तुम जो भी हो सामने आओ।"
झाड़ियों में कोई हलचल नहीं हुई।राहुल ने अपनी बात दोहराई।कोई जवाब नहीं मिला।
"अगर तुम बाहर नहीं आए तो मै गोली चला दूंगा।" राहुल ने रिवॉल्वर हाथ में ले ली थी।
अब भी कोई सामने नहीं आया।
राहुल ने कुछ सेकंड्स इंतज़ार किया।फिर बिना गोली चलाए आगे चल दिया।जब कुछ दिख ही नहीं रहा तो गोली किस पर चलाए।
अब वो काफी दूर चल लिया था पर अब कोई आवाज़ नहीं थी।शायद उसकी धमकी काम कर गई थी और पीछा करने वाले ने अपना इरादा बदल दिया था।वो मन ही मन मुस्कुराया।
तभी एक बूढ़ा अचानक उसके सामने आया।राहुल का दिल जोर से धड़का और वो एक कदम पीछे हट गया। उसने सफ़ेद धोती कुर्ता पहना था।आधा सर गंजा ,पीछे पीछे सफ़ेद बाल।चेहरे पर ग्रामीणों वाली सहज मुस्कान।
सुनसान रास्ते पर एकाएक उसे देखकर राहुल डर गया।
"साहब कहां जाना है?" बूढ़े ने पूछा
"बड़गांव"...राहुल ने कहा और फिर बूढ़े से पूछा "और आपको कहा जाना है?इतनी रात को जंगल में क्या कर रहे हो?"राहुल ने एकसाथ कई सवाल किए।
"मेरा गांव तो पास ही है....बेटी से मिलने उसके गांव गया था।वापसी में कोई सवारी नहीं मिली तो पैदल ही चल दिया।"
"बेटा, तुमको इतनी रात को इस जंगल से पैदल नहीं जाना चाहिए।"
"क्यों"..राहुल ने पूछा
"बेटे इस जंगल में पिशाचों का राज़ है।वो इंसानी गंध दूर से ही सूंघ लेते है।इंसानी खून पीना उन्हे बहुत पसंद है।रात को इस इलाके में घूमना अपनी मौत को दावत देना है."...बूढ़ा रहस्यमय स्वर में बोला।
राहुल बुरी तरह कांप गया। उसने भी बचपन में पिताजी से इस इलाके में पिशाच के कई किस्से सुने थे पर वो उन्हे भूल चुका था।वरना वो रात में यहां आने का रिस्क लेता ही नहीं।सहसा उसे वो सारे किस्से याद आ गए जो पिताजी ने उसे सुनाए थे.....
"एक बहुत लंबा पिशाच होता है।जो रूप बदलने में माहिर होता है। कई बार वो अपने शिकार के रिश्तेदार का रूप बनाकर उसे जंगल में ले जाकर उसका खून पी लेता है।उसकी खोपड़ी की माला पहनता है।आंखे निकालकर अपने माथे पर लगता है...तिलक की तरह"
पिताजी की सुनाई ये बातें याद करके ही राहुल का हलक सूख गया।
"कहां खो गए साहब?"...बूढ़े की आवाज़ से राहुल का ध्यान भंग हुआ।
उसने एक बार फिर बूढ़े को घूरकर देखा।
"नहीं..नहीं...ये पिशाच नहीं हो सकता। पिशाच तो बहुत भयानक होते है"...राहुल ने मन ही मन खुद को तसल्ली दी।
"थोड़ी आगे बढ़े तो बूढ़ा बोला...साहब यहां से दाई ओर एक रास्ता जाता है...वो रास्ता छोटा है..जल्दी पहुंच जाएंगे।"
राहुल हिचकिचाया
वो कुछ कहता उस से पहले बूढ़ा उधर मुड़ गया।राहुल को अकेले जाने से बूढ़े के साथ जाना ठीक लगा।
तभी उन्हे कुछ दूर कोई साया दिखाई दिया। राहुल एकदम रुक गया और बूढ़े को भी चुप रहने का इशारा किया।बूढ़ा राहुल के कान में फुसफुसाया.."साहब,सावधान।इस जंगल में किसी पर भी भरोसा करना ठीक नहीं ।"
राहुल ने जेब में हाथ डाला और पिस्तौल को कसकर पकड़ लिया।वो दोनो धीरे धीरे आगे बढ़े।
पास पहुंचे तो देखा वो तीस बतीस साल की स्त्री थी।
वो इन दोनों को देखकर डर गई और सहमकर पीछे हटने लगी।
"घबराओ नहीं"...उसके चेहरे पर डर कि लकीरें देखकर राहुल ने कहा
"इतनी रात में यहां क्या कर रही हो?"..बूढ़े ने सख़्त आवाज़ में पूछा?
"पास वाले गांव में मेरी बहन रहती है,उसके घर जा रही थी।जिस बस से आ रही थी वो रास्ते में खराब हो गई ,इसलिए अंधेरा हो गया ।रास्ता भटक गई हूं।इसलिए यहां पेड़ के नीचे रात बीतने का इंतज़ार कर रही हूं।"
"ठीक है...आप हमारे साथ चलो।हम आपको छोड़ देंगे।"राहुल ने कहा
"साहब, यहां किसी पर विश्वास करना ठीक नहीं"...बूढ़े ने अपनी बात दोहराई।
तभी पास ही कहीं कुत्ता रोने लगा।
"वो औरत और घबरा गई और बोली...आप लोग भले आदमी है...मुझे साथ ले चलिए। मैं अकेले कैसे जाऊंगी।"
राहुल ने कुछ सोचा और कहा..."आप आइए।"
थोड़ी देर चलने के बाद बूढ़ा बोला..."एक कहानी सुनाता हूं ,साब!रास्ता आसानी से काट जायेगा"
राहुल ने हां में सिर हिलाया

बूढ़े ने कहानी सुनानी शुरू की... "एक बार मेरा एक मित्र रात को इसी जंगल से जा रहा था।उसे आधे रास्ते में अपने गांव की एक स्त्री भटकती मिली।उसने गांव जाने के लिए उसे साथ ले लिया।थोड़ी दूर जाने के बाद वो स्त्री एक भयानक पिशाच में बदल गई।उस पिशाच का रंग एकदम लाल था।उसका कद लगभग 25-30फीट था।उसकी आंखे बड़ी बड़ी थी।उसके दांत बड़े बड़े और नुकीले थे।उसके लाल चेहरे पर उसके काले दांत बड़े भयानक थे।उसके गले में खोपड़ियों की माला थी।उसके इस भयानक रूप को देखकर उसने भागना शुरू किया।पर उस पिशाच ने अपने हाथ लंबे करने शुरू किए।वो बहुत तेज़ भागा पर पिशाच के लंबे हाथो ने उसे पकड़ लिया।"

तभी उनके साथ की झाड़ियों में तेज़ हलचल हुई और कहानी अधूरी रह गई।

तभी तेज़ी से कुछ भागता हुआ उनकी और आया।राहुल का दिल तेजी से धड़क रहा था।माथे पर पसीने की कुछ बूंदे साफ दिख रही थी।औरत घबरा कर राहुल के पीछे छुप गई।
वो एक भेड़िया था।पर वो उनसे 4-5फीट दूर रुक गया।फिर उसने भयानक आवाज़ में रोना शुरू किया और तेज़ी से लौट गया।

राहुल की सांसे तेज़ चल रही थी और उस से भी तेज़ चल रहे थे उसके विचार।क्या ये बूढ़ा ये कह रहा है कि ये औरत पिशाच है।राहुल ने पलट कर औरत को ध्यान से देखा ।नहीं ..नहीं ये तो शरीफ़ घर की लगती है।पर बूढ़ा कह रहा था कि यहां किसी पर विश्वास नहीं कर सकते।अगर ऐसा ही है तो ये बूढ़ा भी तो पिशाच हो सकता है..राहुल ने सोचा।क्या करू...वो अभी यहीं सोच रहा था कि सामने से एक कार कि लाइट आती दिखाई दी।पास आकर गाड़ी रुकी तो उसमे से राहुल के चाचा जी निकले।

"माफ़ करना बेटा,गाड़ी खराब हो गई थी...इसलिए समय से स्टेशन नहीं पहुंच पाया।आओ ...गाड़ी में बैठो"..चाचा जी बोले।
"इन्हे भी उधर ही जाना है,इन्हे साथ ले लेते हैं"..राहुल ने चाचाजी के चरण छूते हुए कहा
"मैंने इन्हे पहले कभी इस इलाके में नहीं देखा...रात को जंगल में किसी अनजान पर विश्वास करना ठीक नहीं"....
राहुल के कान में ये शब्द हथौड़े की तरह बजे।
किस पर विश्वास करूं?पिशाच तो कोई भी हो सकता है...पिशाच किसी का भी रूप धरकर आ सकता है....क्या इनमे से कोई पिशाच हो सकता है?..राहुल सोचने लगा।
ये बूढ़ा...या ये औरत.....या ये चाचा जी....या फिर....या फिर तीनो।

"बस करो.....बच्चो को कभी कोई अच्छी कहानी भी सुनाया करो।लोग बच्चो को वीर महापुरुषों की कहानी सुनाते है और एक ये है बच्चो को भूत पिशाच की कथा सुना रहे है।बच्चे को जैसी कहानी सुनाओगे उस पर वैसा ही अच्छा या बुरा प्रभाव आएगा".....श्रीमतिजी ने कमरे में आते ही टोंट मारा।
"दादी, कहानी अब तो क्लाइमेक्स पर पहुंची है । आपने दादा जी को रोक दिया।दादा जी बताओ उनमें पिशाच कौन था?".... सनी ने कौतूहल से पूछा

"रात के 12बज गए है।अब कोई भूत पिशाच की बात नहीं होगी।सनी जाओ और सो जाओ...बाकी कहानी सुबह सुनना"...श्रीमतीजी ने अपना आदेश सुनाया।
सनी ने उम्मीद भरी नजरो से मेरी तरफ देखा।
"बेटा, बाकी सुबह सुनाऊंगा।"श्रीमातिजी का विरोध करने का साहस मुझ में भी नहीं था।

****************
अगले दिन सुबह होते ही सनी मेरे कमरे में आया और मेरे गले में बाहें डालकर बोला...."दादाजी आगे
सुनाइए ना ...उन तीनों में पिशाच कौन था?"
मैं हंसा....और मैंने सनी से कहा...."तुझे पता है राहुल कौन था?"
"नहीं...दादाजी....क्या मैं राहुल को जानता हूं?"
"बेटा ,इस कहानी में राहुल मै हूं।ये घटना 30साल पहले मेरे साथ हुई थी।"
सनी की आंखे हैरानी से फैल गई ...."दादाजी आप।
ये सब आपके साथ हुआ था?"
"हां बेटा"
"उन तीनों में पिशाच कौन था?"।।मुझे सारी रात नींद नहीं आई।जल्दी सस्पेंस खोलिए।"
"बेटा,अगर उन तीनों में कोई पिशाच होता तो तेरे दादा जी तुझे कहानी सुनाने के लिए जिंदा होते।"मैने हंसते हुए कहा
"हां,अच्छा हुआ ,उनमें कोई भी पिशाच नहीं था।"....राहुल ने मेरे गले लगते हुए कहा।
"क्या सच में उस जंगल में कोई पिशाच था"....उसने अगला सवाल किया।
"ये भूत - प्रेत,पिशाच कुछ नहीं होते।ये सब हमारे मन में बैठे हुए डर है,जो मनगढ़ंत किस्से सुनने की वजह से हमारे मन में बैठ जाते है"...मैने उसके बालो में हाथ फेरते हुए उत्तर दिया।

मैंने कल रात फैसला कार लिया था कि अब सनी को भूत पिशाच की कहानियां कभी नहीं सुनाऊंगा।आज से उसे सिर्फ अपने देश के महापुरुषों की कहानियां सुनाऊंगा ताकि वो भी उनकी तरह वीर बन सके।इसी लिए मैंने कहानी को एक सुखद मोड़ पर ख़तम कर दिया था।

कभी कभी बीवी की बात से सहमत होने में कोई बुराई नहीं होती।श्रीमातीजी की बात से प्रेरणा लेकर ही मैंने सनी के लिए सभी भूत प्रेतो और पिशाच का अंत कर दिया था।

वैसे... आप की क्या राय है? उन तीनो में से पिशाच कौन था? अपना उत्तर मुझे कॉमेंट में जरूर बताएं..

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लेखक - मनीष सिडाना
कृपया कहानी को उचित रेटिंग और समीक्षा दे। धन्यवाद