देखो भारत की तस्वीर - 6 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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देखो भारत की तस्वीर - 6

देखो भारत की तस्वीर 6

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

संदलपुर, जौरासी, कलियानी

पाओ ऐसी भूमि नहिं, संदलपुर सा नाम।

प्‍यारी शीतल छांह है, जीवन को आराम।

जीवन को आराम, पहाड़ में गुफा बनाई।

रेल दयी डरबाय, गाडि़यां जिस पर जाई।

पान बरेजे देख, कुटीं दण्‍डक वन जैसीं।

मन कहता मनमस्‍त, और नहीं पाओ येसीं।। 199।

हो जाना हनुमान के प्‍यारे भक्‍त विशाल।

मंदिर उस पर बना है, झण्‍डा उड़ता लाल।

झंडा उड़ता लाल, ताल सोभ को पाता।

आम्र फलों को देख, पथिक का जी ललचाता।

रोड़ ग्‍वालियर निकट, ब्राज रहे श्री हनुमान।

करो दर्श मनमस्‍त, धन्‍य जीवन हो जाता।। 200।

कलियानी जाई चहत, आत्‍म चेतो आज।

कलियानी को चल परौ, टेक तजों महाराज।

टेक तजों महाराज, बड़ा सुन्‍दर स्‍थाना।

ऊंची नीची टगर, जहां से आना जाना।

निकट मकोड़ा जान, ध्‍यान घर देखो भाई।

आत्‍म से मनमस्‍त, चले कलियानी जाई।। 201।

बझैरा, कीर्तिपुरा, लधवाया

खूब कमाई जब करो, आलस भरती देह।

चल बझैरा जाइये, मन चाटें अवलेह।

मन चाटें अवलेह, बैध विद्या के ज्ञाता।

मिटते सभी विकार, स्‍वास्‍थ्‍य के पूर्ण दाता।

अति प्रसिद्ध है ग्राम, लगै मेला यहां भाई।

यश पावैं मनमस्‍त, संग में खूब कमाई।। 202।

सुधामा देखो दिव्‍यतम, कीर्ति रहे जग छाय।

सव को सव एकीकृत करो, कीर्तिपुरा कहलाय।

कीर्तिपुरा कहलाय, जहां शिव आलय भारी।

बजरंगी रहे ब्राज, मनोरथ पूरण कारी।

नामी ग्राम कहाय, कृषि के अद्भुत कामा।

धवल-स्‍फाटिक भवन, लखो मनमस्‍त सुधामा।। 203।

डेरा डाले लक्ष्‍मी देखा, ताल विशाल।

भरा लबालब जो रहे, जिससे उपजे माल।

जिससे उपजे माल, भाल ऊंचा हो जाई।

जिसका ताल कहाय, ग्राम लधवाया भाई।

धनद यहां के लोग, रहे नहिं कोउ भुखेरा।

सच मानो मनमस्‍त, डरै लक्ष्‍मी के डेरा।। 204।

निघौना, टोड़ौ, भारस

जाने माने सब जने, बसो निघौना ग्राम।

यहां बाबरी देखलो, घोड़ा दौड़ी नाम।

घोड़ा दौड़ी नाम, अनूठी पच्‍ची कारी।

गहराई भी बहुत और चौड़ाई भारी।

युद्ध काल रजवाड़ों के विश्राम ठिकाने।

क्‍या सोचो मनमस्‍त, सभी हैं जाने माने।। 205।

कमाई करलो दौड़कर, टोड़ो ग्राम उदार।

कुअला घाटी में यहां, बहती पानी धार।

बहती पानी धार, पथिक को जीवन देती।

धन्‍य–धन्‍य यह ग्राम, यहां पर होती खेती।

सव मिल पालैं पशु, गाय भैंसों को भाई।

दूध दही को बेच करैं मनमस्‍त कमाई।। 206।

मन-बारे यहां के अलग, भारस के मैंदान।

धन धान्‍यों के रूप में, देती सबको मान।

देती सबको मान, शान इसकी है भारी।

उन्‍नति प्रिय जनजीव, नीति के जो अधिकारी।

ममता मृदुता यहां, मीत मनमस्‍त हमारे।

गौ सेवा नित करैं, स्‍वाबलम्‍बी मतवारे।। 207।

बड़ैरा, कछौआ, बर की सरांय

रंग पीला साहस भरा, सांची लीजे मान।

गौरव पा नब जांय जो, बड़ों बड़ी पहिचान।

बड़े लीजिये मान, बड़ैरा को पहिचानो।

विनयशील हैं बोल, मृदुल हासा ही मानो।

चाल-ढाल मनमस्‍त, मस्‍त जीवन की लीला।

पीपर चढ़ी दिखांय, धूल धरती रंग पीला।। 208।

वचन हमारे कुछ सुनो, ग्राम कछौआ जान।

मंदिर शिबजी का बना, कर लीजे पहिचान।

कर लीजे पहिचान, बाग में ठहरो भाई।

करो नहर स्नान, देह शीतल हो जाई।

कुछ तो राखो ठसक, अरे मनमस्‍त पियारे।

उन्‍नति कर सुख पांय, मानलो वचन हमारे।। 209।

हमारे गांव हैं मेहनती, मेहनत कर यहां आय।

कितनी मन को भा रही, देखो बर की सरांय।

देखा बर की सरांय, कहै प्राचीन कहानी।

कितनी सुन्‍दर बनी, देख मन पानी-पानी।

पानी-पानी जहां डगर मग द्वारे-द्वारे।

कितना सुन्‍दर गांव देख मनमस्‍त हमारे।। 210।

पुरी-फतेहपुर, खैरबाया, समाया

है आशामय अयोध्या, काशी,मथुरा लेख।

मनहु द्वारिका है यही, पुरी-फतेहपुर देख।

पुरी-फतेहपुर देख, पाओ जीवन विश्रामा।

चल कर करो निवास, फिरो क्‍यों ग्रामा ग्रामा।

धन्‍य–धन्‍य मनमस्‍त, करै जो पुरी निवासा।

कहीं न संसय जान, सत्‍य पूरी हो आसा।। 211।

बलिहारी इस गोद को, हीरा मोती होंय।

चलो खैरबाया चलैं, व्‍यर्थ न जीवन खोंय।

व्‍यर्थ न जीवन खोंय, मनुज जीवन पहिचानो।

करलो जीवन काम, समय का कहा ठिकानौं।

मन की सुनो पुकार, अरे मनमस्‍त हजारी।

कर्मठ जीवन जियो, साधना की बलिहारी।। 212।

लहराए समता यहां, लखो समाया ग्राम।

माया के जो सहित हो, पंचमहल सा धाम।

पंचमहल सा धाम, जहां की अद्भुत लीला।

सिद्ध गुफा जहां बड़ी, दर्श करते अघ ढीला।

सस्‍य श्‍यामलम भूमि, जलद बरसे मन गाये।

मानब मन मनमस्‍त, सदां पावस लहराये।। 213।

पिपरौ, किशनपुर (गढ़ीखेरी), कैथी

हो मनमस्‍त हमारा, पिपरौ देखो आज।

बसुन्‍धरा की गोद में, खेल रहा जो फाग।

खेल रहा जो फाग, भाग्‍य के लेख अनूठे।

कर्म करो मन लाय, नहीं जग तुमसे रूठे।

गहरी पीपल छांव, बैठ करो गहन विचारा।

निश्‍चय पावौ शान्ति, होय मनमस्‍त हमारा।। 214।

इनके बाने को लखो, यहीं किशनपुर लेख।

श्‍याम लिये गौयें सदां, यहां चराते देख।

यहां चराते देख, लखो झांकी मन भाई।

बैठ कदम की डालि, बांसुरी मधुर बजाई।

यसुदा माता लिये छांछ, ढूंढत कान्‍हा को।

मन होता मनमस्‍त, देख इनके बानों को।। 215।

मन भाया पंचमहल है, कैथी के मैदान।

धरती फूलन से सजी, जैसे नव मेहमान।

जैसे नये मेहमान, सौम्‍य, सुचि, शीतल काया।

जैसे मधुरिम, गीत, मधुर स्‍वर में हो गाया।

मन होता मनमस्‍त, सुरम्‍य धरती की काया।

भ्रमर करें गुंजार, गीत सबके मन भाया।। 216।

भैंगना, बाबूपुर-ररूआ

ताल सुहाई भैंगना, गहराई भरपूर।

पार किनारे पर खड़े, ऊंचे बहुत खजूर।

ऊंचे बहुत खजूर, खाओ मन भर के खाओ।

मिलैं पकीं जामून, खम्‍भ कदली के पाओ।

बना सिकंजी पियो, अरे नीबू की भाई।

ग्राम भेंगना गीत, सदां मनमस्‍त सुहाई।। 217।

मन से टारें नहीं टरें, बाबूसिंह सरदार।

बाबूपुर उसको कहें,टपरों पर है प्यार।

टपरों पर है प्‍यार, धान्‍य का करो न लेखा।

भूस के कूप अनेक, लेख है आंखों देखा।

कितना सुन्‍दर गांव, देख मनमस्‍त पियारे।

पंचमहल की झलक, ललक नहिं मन से टारें।। 218।

सकल पसारा चित यहां, ररूआ पहुंचो जाय।

ब्राजे जहां बजरंग जी, मंदिर अधिक सुहाय।

मंदिर अधिक सुहाय, खजूरी बंदन वारे।

बट पीपल अरू नीम, आम अमरूद नियारे।

सच मानो मनमस्‍त, ग्राम ररूआ अति प्‍यारा।

सब तज मन जहां रमें, प्‍यार का सकल पसारा।। 219।

चौमौं, खेरी, रामपुरा

गाता चौमों यौं लगे, ब्रह्म के अवतार।

चतुर्मुखी है ग्राम जो, चौमों ग्राम उदार।

चौमों ग्राम उदार, अवनि की गंध निराली।

हर्षित अरू लहराय, यहां की डाली, बाली।

नहर योजना केन्‍द्र, फसल की जीवन दाता।

मन मनमस्‍त दिखाय, गीत चौमों के गाता।। 220।

झरना चौमों-खेरी के पलक न विसरे मोय।

जिम चकोर लख चन्‍द्रकन, अपनि सुधि बुधि खोय।

आपन सुधि-बुधि खोय, अनूठी है अंबराई।

कोयल करै कलोल, कीर मन पीरन पाई।

जन्‍म–जन्‍म सुख मिले, प्‍यार खेरी से करना।

जीवन हो मनमस्‍त, बनो खेरी के झरना।। 221।

नारे सुनते राम के, रामपुरा के बीच।

कैसे गलियारे बने, मंची हुई है कीच।

मची हुई है कीच, कीच में कमल खिले हैं।

कितना जीवन सुखद, हंसत सब जीव मिले हैं।

मन में करो विचार, अजी मनमस्‍त पियारे।

रामपुरा सा पुरा स्‍वप्‍न में दीखत ना रे।। 222।

फतेपुर, अकवई, सुनवई

लेखो लेखों फतहपुर, आओ फतेपुर ग्राम।

नित नहाबैं नहर में, यहां की प्‍यारी बाम।

यहां की प्‍यारी बाम, काम सब मन के करतीं।

धरती की श्रृंगार, मानवी जीवन भरती।

बाग बगीचा बहुत, खेत गन्‍ना के देखो।

मन होता मनमस्‍त, लेख इनके ही लेखो।। 223।

आबै-जाबै अकबई, आक ढाक पहुंओर।

गिद्ध, काक, पिक, कीर संग बोल रहे हैं मोर।

बोल रहे जैं मोर, शोर होता है भारी।

धन धान्‍यों को देख, जिन्‍दगी है बलिहारी।

कितना सुन्‍दर ग्राम, कहां तक तुम्‍हे बताबैं।

मन होबै मनमस्‍त, यहां जो आबै जाबैं।। 224।

मन गीला ठेठियापुरा रहा, सुनवई सा है ग्राम।

पहाड़ किनारे पर बसा, बड़ों बड़ों में नाम।

बड़ों-बड़ों में नाम, करे उन्‍नति के कामा।

जैसे तीरथ धाम, बने इनके विश्रामा।

मान जाउ मनमस्‍त, यहां की अद्भुत लीला।

क्रोध तजा सब कोउ यहां मानव मन गीला।। 225।

ठेटियापुरा, खड़वई, पठर्रा

जानी मानी बस्‍ती है, पुरा ठेठिया जान।

मानव मन से उच्‍च है, जैसे उच्‍च मकान।

जैसे उच्‍च मकान, कूप लगते मनु मंदिर।

भूसा जिनमें भरा, लगैं ऊपर से सुन्‍दर।

हो जाते मनमस्‍त, सुनैं जब ग्राम कहानी।

प्‍यारी-प्‍यारी लगैं होंय नित जानी मानी।। 226।

जो जाता खड़बई करत, खड़बई देखो जाय।

गढ़ी पुरानी यहीं बनी, जो अर्रात दिखाय।

जो अर्रात दिखाय, कहैं प्राचीन कहानी।

कान लगा, धर ध्‍यान, सुनो मेरी जिन्‍दगानी।

सोच लेउ मनमस्‍त, किला जीवन ढह जाता।

दुनियां का क्रम रहा, सदां आता जो जाता।। 227।

जाना माना मेख सा, गढ़ा पठर्रा जान।

दूर-दूर से देख लो, ऊंची है पहिचान।

ऊंची है पहिचान, बना यहां मंदिर भारी।

अमरूदों के बाग, आम-फूलीं फुलवारी।

अमराई मनमस्‍त, करैं पिक सुन्‍दर गाना।

अपनापन यहां पाउ, लगै मनु जाना माना।। 228।

अमरौल, बड़ैरा, मद्दा

माया मोहित नित करै, बसा ग्राम अमरौल।

कितना क्‍या बतलांय, हम, इसके अद्भुत शैल।

इसके अद्भुत शैल, ललक इसकी पहिचानो।

लगा खरज्‍जा ग्राम, और विद्युत धुति मानो।

सच मानो मनमस्‍त, स्‍वर्ण नगरी सी काया।

चारौ तरफा देव, सहायक, जिनकी माया।। 229।

रखना बैठारैं साजन सदा, लखौ बड़ेरा ग्राम।

पीपल बरगद छांव में, करलो कुछ विश्राम।

करलो कुछ विश्राम, शाम का समय हो गया।

बैठ ताल की पार, प्‍यार का प्‍यार सो गया।

आओ सुनलो कथा, ग्राम मनमस्‍त पियारे।

जीवन में सौहार्द सदां-रावना बैठारे।। 230।

सदां कमाई नहीं करै, आज रहा पछिताय।

पर्वत की तलहटि मिली, मद्दा में हरषाय।

जीवन में हरषाय, कृषि का कर व्‍यापारा।

जीवन मिट्टी लाल, लाल तन भी है सारा।

कितने मेहनतवान, कृषक प्‍यारे हैं भाई।

मौसम से मनमस्‍त, करैं जो सदां कमाई।। 231।

धिरौली, बनवार, भोरी

कोई रोता यहां, कभी, मन मोहक स्‍थान।

जीवन का अनुराग सा, ग्राम धिरौली मान।

ग्राम धिरौली जान, पुलक धरती अरूणायी।

जिसकी पावन गोद, मोद जन जीवन पायी।

खेती का व्‍यापार, और पशु पालन होता।

मन में सब मनमस्‍त, दिखा यहां कोई न रोता।। 232।

द्वारे-द्वारे रसिक हैं, चलो चलैं बनबार।

गढ़ी मढ़ी प्राचीन हैं, बीती वर्ष हजार।

बीती वर्ष हजार, ताल से तुलना कीजे।

नौन नदी के तीर-बैठ जीवन रस पीजे।

पंचमहल की गोद, मोद मनमस्‍त पियारे।

धरती का उन्‍माद, देखलो द्वारे-द्वारे।। 233।

धरती भोरी सदां ही, कर लीजे पहिचान।

मन को मन सीं लगत हैं, जैसे हो मेहमान।

जैसे हो मेहमान, धन्‍य जन जीवन सारा।

मंदिर पावन तीर्थ, रामदरबार सहारा।

मन में हो मनमस्‍त, ग्राम रचना मन भाई।

कितना गौरव गांव, विशद धरती अरूणायी।। 234।

चीनौर, पिपरौआ, पुरा (बनबार)

लख आला माला यहां, चलो चलैं चीनोर।

उन्‍नति शाली ग्राम यह, दिखा न ऐहि सम और।

दिखा न ऐहि सम और, बना सिर मौर जानिये।

विद्या, स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र, विकासी ग्राम मानिये।

जन सेवा घर यहां, बीज भण्‍डारा निराला।

मन होता मनमस्‍त, ग्राम गौरव लख आला।। 235।

प्र‍तिदिन हासा, हंसमुखो, पिपरौआ सा ग्राम।

दोमट, पड़ुआ भूमि है, विद्यालय का नाम।

विद्यालय का नाम, धन्‍य जीवन हो जाता।

रामायण के पाठ, रामधुनि सब कोई गाता।

धन कुबेर सब लोग, दैन्‍य का न‍हीं निवासा।

मन में सब मनमस्‍त, हास यहां प्रतिदिन हासा।। 236।

सब सामा मृदु गोद में, लखो पुरा बनवार।

पावस-सा पाबन लगै, यहां का सब व्‍यवहार।

यहां का सब व्‍यवहार, दे रहा जीवन प्‍यारा।

गैहूं, चणक उदर, ज्‍वार जौ का भण्‍डारा।

सच जानो मनमस्‍त, पूर्ण पुण्‍यों का ग्रामा।

द्वारन-द्वारन धरे, ट्रेक्‍टर के सब सामा।। 237।

हिम्‍मतगढ़, सूरजपुर, सिमिरिया

भारत सारा हिम्‍मती चलें हिम्‍मतगढ़ आज।

नौंन नदी के नीर का, छिपा यहां पर राज।

छिपा यहां पर राज, आज उसको पहिचानो।

पंचमहल का दैन्‍य मिटाकर सुख वरसनो।

हरा-भरा कर दिया नौंन ने जीवन सारा।

जन मन सब मनमस्‍त, जपति जय भारत सारा।। 238।

मेरे भाई मन बसी, सूरजपुर की भूमि।

मौसम सब चारण बने, गीत गा रहे झूम।

गीत गा रहे झूम, फाल्‍गुन फाग सुहाबै।

पावस बहैं मल्‍हार, दिवाली दीप जलावै।

जनम जनम के फंद, कटैं सूरजपुर जाई।

जीवन हो मनमस्‍त, मानलो मेरे भाई।। 239।

सभी मानिये सिमिरिया, करो ताल स्‍नान।

ताल पार मंदिर बना, बजरंगी धर ध्‍यान।

बजरंगी धर ध्‍यान, बाग के विटप निहारो।

खग कुल कुंजन सुनो, मयूरी नृत्‍य विचारो

धान्‍य भरा भण्‍डार, जोर का जोर जानिये।

मिलो गले मनमस्‍त, आपने सभी मानिये।। 240।