देखो भारत की तस्वीर - 2 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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देखो भारत की तस्वीर - 2

देखो भारत की तस्वीर 2

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

खजुराई, पठापनिहार, समूदन

बाड़ी खजुराई लखो,ताल सिमिरिया पास।

यहाँ के मानव करत है,गन्ना गेहूँ खास।

गन्ना,गेहूँ खास,धान ने धनद बनाए।

धन-धान्यों को देख,सभी के मन बौराए।

रखते सब मनमस्त ट्रेक्टर ठेला गाड़ी।

सुंदर बने मकान,पाठशाला फुलवाड़ी।।28।

काम हैं पठा पनिहार से,रेल निकल गई पास।

विद्या-पंचायत भवन,यहाँ के मानो खास।

यहाँ के मानो खास,बसा आदर्श ग्राम है।

मानव जीवन जीये,कर्म और धर्म नाम है।

हिलमिल रहें मनमस्त,पठा सा बड़ा ग्राम है।

सुंदर भू पर बसा,करै सब निजी काम है।।29।

आलय विद्या रोड़ पर,ग्राम समूदन देख।

बस यहाँ पर होती खड़ी,डाक बंगला लेख।

डाक बंगला लेख,खरंजा लगा ग्राम में।

वाटर लाईन लगी,नालियाँ बनी ग्राम में।

उन्नतशाली ग्राम,और उन्नत विद्यालय।

सब रहते मनमस्त,बने सुंदर है आलय।।30।

लखिया, बेरू

हैं मन सा मनुहार ले,देखो लखिया ग्राम।

मारग जाता नहर से,कुछ करलो विश्राम।

कर लो कुछ विश्राम,शान्तिमय भूमि कहाती।

करते ही स्नान,तसल्ली दिल को आती।

करते निज व्यापार,ग्राम के सब सज्जन जन।

सच मानो मनमस्त,देख हो जाता मन-मन।।31।

न्यारे-प्यारे वृक्ष यहाँ,बदरी फल के देख।

इसीलिए बेरु कहा,ग्राम नाम अभिलेख।

ग्राम नाम अभिलेख,गढ़ी यहाँ सुरहि वाली।

बुरजे गाती गीत,समय की रीति निराली।

समय-समय की बात,बजतते यहाँ नगारें।

क्या सोचो मनमस्त,समय के लेख न्यारे।।32।

राम सहाई यहाँ के,रहा जाटो का राज।

धौंसा संग आजान था,राज रहीसी साज।

राज रहीसी साज,आज बुर्जें अरराती।

नीति रहेगी सदा,यहीं जीवन की थाती।

समय बदलता गया,ग्राम बेरु का भाई।

सदा रहो मनमस्त,सभी के राम सहाई।।33।

भरथरी, इटायल, बारौल

गाई कीरति भरथरी,यहाँ का जीवन देख।

चौपालो पर छप रहे,आल्हा के आलेख।

आल्हा के आलेख,यहाँ पानी में पानी।

ज्वानों को दो छोड़,लखो वृद्धों में सानी।

सुनो-सुनो मनमस्त,यहाँ के राम सहाई।

जय-जय दुर्गें मात,तुम्हारी कीरति गाई।।34।

मनाओ इटायल बलि को,डबरा के नजदीक।

यहाँ के मानव सभी को,सदां देत है सीख।

सदां देत है सीख,भीख नहीं माँगो भाई।

नौजवान हो,सदां करो मेहनत औ कमाई।

मन होगा मनमस्त,स्वावलम्बी बन जाओ।

बजरंग,खेरे सिद्ध,प्रातः उठ रोज मनाओ।।35।

कमाई यहाँ की देख लो,जो बारौल कहाए।

रोड़,रोड़ से गया है,मारग सुलभ बनाए।

मारग सुलभ बनाए,धनद यहाँ सभी कहाबै।

जीवन करने सफल,रोज श्रम गीता गावै।

गीता और रामायण,पाठ होते यहाँ भाई।

सब रहते मनमस्त,पाए जीवन की कमाई।।36।

सिरोही, बरोठा कंचनपुर

महान भाग्य सिरोही के,गढ़ी यहाँ दिखलाए।

मंदिर श्री भगवान का,मन को लेत चुराए।

मन को लेए चुराए,यहाँ सुंदर अबराई।

चंपा गुड़हल फूल,गंध आँगन महकाई।

मन होता मनमस्त,ग्राम के भाग्य सु-जान।

धर्म करम के सुभट बसे यहाँ सभी महान।।37।

दिखाई देता सभी को,लखो बरोठा आज।

ऊपर कोठी में छिपा,यहाँ का सारा राज।

यहाँ का सारा राज,हाई स्कूल यहाँ पर।

टी.वी. की झंकार,सभी देखत अपने घर।

सुघर बगीचा अरु मंदिर,देखो अमराई।

जन जीवन मनमस्त,शान्तिमय अवनि पाई।।38।

माया कंचन पुर घनी,मगरौरा के पास।

लंका पति नगरी नहीं,मगरौरा इतिहास।

मगरौरा इतिहास,गाँव यह नया बसा है।

जीवन का उद्गार,खेत खलिहान कसा है।

जन जीवन मनमस्त,हरित धरति की काया।

झरना के बजरंग,उन्हीं की यह सब माया।।39।

मंगरौरा, चौकी ग्राम

रेखा खींचत आसमां,किला दिख रहा एक।

मगरौरा इसको कहें,जीवन का अभिलेख।

जीवन के अभिलेख,लिखे है दीवारों पर।

प्रेमानंद दिखाए,चतुर्दिश हर द्वारे पर।

मन होता मनमस्त,प्रेम प्रेमानंद देखा।

वाणी के युग पूत,निहारी अद्भुत रेखा।।40।

बहुरंगी है सभी जन,निर्मल सबके अंग।

प्रेमानंदी बज रहे,चारो दिशन मृदंग।

चारौ दिशन मृदंग,दर्श भगवन के करलो।

सबकी सुने पुकार,प्रेम की झौली भर लो।

मगरौरा के निकट,बड़ा मंदिर बजरंगी।

मन होता मनमस्त,छोड़ दुनियाँ बहुरंगी।।41।

नाना सरगम गीत संग,नौन नदि हरषाए।

दो धारों के बीच में,चौकी ग्राम सुहाए।

चौकी ग्राम दिखाए,लगे जैसे रजधानी।

दो भागों में सरित,बह निर्मल जहाँ पानी।

मन देखो मनमस्त,सिंध और नौन मुहाना।

कल-कल,छल-छल नीर,गीत की सरगम नाना।।42।

लोहागढ़, खोड़न

सामां समैटत ही रहा,लोहागढ़ हरषाए।

गढ़ से सरिता नीर भी,करत कलोल सुहाए।

करत कलोल सुहाए,राग अनहद सा गाता।

मिलता ह्रदय सुहाए,मीत मानव बन जाता।

जन जीवन मनमस्त,चित्र कुटि सा धामा।

रामायण के पाठ होए,यहाँ प्रातःशामा।।43।

धामा है गिरिराज भी,लोहागढ़ के पास।

ताल पार अरु पहाड़ पर,फहराता विश्वास।

लहराता विश्वास,आस पूरी हो जातीं।

वीर बली बजरंग,सदां रामायण साथी।

दर्शक गढ़ मनमस्त,दर्श कर प्रातःशामा।

मन वांछित फल पाए,देख चित्रकूट सा धामा।।44।

जीवन पए,धन्य भए,खोड़न नौन के पास।

पदम नाथ जी ब्राजते,मंदिर हैं विख्यात।

मंदिर है विख्यात,ध्वजा नभ में फहराई।

नौन नदी के तीर,रहा जो है हरषाई।

सुंदर बाग,कछार,वटों की नभ तरुणाई।

मन मनमस्त बनाए,धन्य यहाँ जीवन पाई।।45।

सिद्धपुरा, लड़इयापुरा, सत्तीग्राम

पानी बाले सिद्धजन,सिद्ध पुरा शिव रुप।

पानी में मिठबास है,गहरे यहाँ के कूप।

प्यारे यहाँ के कूप,चिरैया टोर देखिए।

सिद्ध गुफा पर जाए,भाग्य के लेख लेखिए।

जो चाहो मनमस्त,करन अपनी जिंदगानी।

यहाँ रहिए हरषाए,पिओ गहराई पानी।।46।

रहते माँझी निषदजन,जैसे तमसा तीर।

सिंध नदी की रेत में उपजाते है खीर।

उपजाते है खीर,लड़ईया पुरा बनाया।

मानव का इतिहास,यहीं से चलकर आया।

खेती बाड़ी करें,सभी मनमस्त सुखी रहें।

इसी ग्राम का नाम,इमलापुरा भी कहे।।47।

आया मजरा भैंसनाई का,सत्ती बसता ग्राम।

नौन नदी के तीर पर,नित बोले श्रीराम।

नित बोले श्रीराम,लगाई विद्युत मोटर।

खेतिहर सबरे भए,खरीदें नए ट्रेक्टर।

सत्ती मंदिर पूज,बनी सत्ती की काया।

दर्शन कर मनमस्त,अलख सी माया छाया।।48।

भैंसनारी, बेरखेरा

पानी भैंसनारी पिओ गुर्जर गढ़ी के बन्‍द।

जैसे आल्‍हा के लगैं, प्‍यारे प्‍यारे छन्‍द।

प्‍यारे प्‍यारे छन्द बना मंदिर एक ऊपर।

झंडा जहां फहराय, करै रक्षा ज्‍यौं भू-पर।

देखीं पर्दा यहां, तरसतीं ज्‍यौं जिंदगानी।

कैसे जन मनमस्‍त ? भरैं नीचे से पानी।।49।

लाली सा मनहर लगे, मंदिर श्री बजरंग।

पीपल दरवाजे खड़ा, मोटा औ जबरजंग।

पीवर औ जबरजंग सामुने विद्यालय है।

वही बगल में बना,सुघर पंचायतालय है।

भू‍मी गौरव मयी- अधिक उपजाऊ बाली।

मन होता मनमस्‍त, देख कर उसकी लाली।।50।

जाई रहो वहां आज ही, बेरखेरा एक ग्राम।

नौंन नदी के तीर पर, अति पावन सा धाम।

अति पावन सा धाम, शीतला हनुमत ब्राजे।

चरण पलोटत नौंन, कीर्तियश चहुं दिस छाजे।

मन करलो मनमस्‍त, नहा लो सरित अघाई।

यह तीरथ सो धाम, दर्श करते, अघ जाई।।51।

चिटौली

विछा विछौना रेत का, नौन चिटौली ग्राम।

पर्वत पै मां अम्बिका, आशिष मयी विश्राम।

आशिशमयी विश्राम, चरन बसते जन तेरे।

ध्‍वजा रही फहराय, गगन में सुयश बिखेरे।

देव अर्चना करैं, जन्‍म इस भू पर देना।

मन होता मनमस्‍त, दूब जहां मृदुल विछौना।।52।

छानो जीवन प्रेम से, धूल भरे मग देख।

रज-रज रमता राग जुन, गढ़ी धर्म की मेख।

गढ़ी धर्म की मेख, चिटौली पुण्‍य धाम है।

सब नामों में नीक लगै ज्‍यौं राम नाम है।

चित ओली शिव-श्‍याम, चिटौली को पहिचानो।

होकर के मनमस्‍त, जिंदगी यहां पर छानो।।53।

माया शिव मंदिर लखो, नौंन नदी के तीर।

पावन, अतिप्राचीन है, गाते केकी कीर।

गाते केकी कीर, सही हर द्वार यहां हैं।

ग्ंगा सरिस प्रवाह, नौंन का प्रबल यहां है।

जय जय जय शिव धाम, चिटौली गौरव पाया।

हो जाता मनमस्‍त- अनूठी शिव की माया।।54।

काशीपुर, सालवई

माना सबने घाट को, कूप बगीचे देख।

यहीं निकट है तीर पर, राजन का अभिषेक।

राजन का अभिषेक, त्रिवेणी पिटप निहारो।

कदंब डालियां बैठ, सरित से नेह विचारो।

मन होबै मनमस्‍त, घाट पर जब स्‍नाना।

जीवन मल धुल जाय, सभी ने यह भी माना।।55।

स्‍वजन मानिए काशीपुर को रोड़ किनारे जान।

बाग सामुने लगा है, ब्राजे श्री हनुमान।

ब्राजे श्री हनुमान, नहर का जल बहता है।

हरा भरा, धन-धान्‍य, मोद जीवन रहता है।

रोड यहां से गया, सालवई ग्राम जानिये।

सव मनमस्‍त दिखांय आपने स्‍वजन मानिये।। 56।

पहिचानो गढ़ सालवई, जो ऐतिहासिक भूमि।

धन-धान्‍यों को देखकर मस्‍त हो रही झूम।

मस्‍त हो रही झूम, घूम लो गढ़ पर जाई।

जिस पर मंदिर शिव-गणपति के देखो भाई।

अति सुन्‍दर स्‍थान, बाग बालाजी जानो।

हो जाओ मनमस्‍त, सरस्‍वती मंदिर पहिचानो।। 57।

चितावनी, लिधौरा, मिलघन

हंसी बंसी चितावनी, हर्ष रहा नभ छाय।

बीर भूमि की प्रगति का, गौरव बरणन जाग।

गौरव बरण न जाय, समय का फेर मानिये।

धन-धान्‍यों से छन्‍द, सौख्‍य का सफर जानिये।

मन होता मनमस्‍त, बजै मोहन की बंशी।

बीर प्रसबनी भूमि, धन्‍य हो जाओ अंशी।। 58।

श्री रामा को रटत नित, ग्राम लिधौरा जान।

नौंन नदी के तीर पर, पावनतम स्‍थान।

पावनतम स्‍थान, पांचवे तक विद्यालय।

जीवन में सब धन्‍य, बने सब पक्‍के आलय।

कुशल यहां के लोग, करैं जीवन के कामा।

मन में हो मनमस्‍त, रटें प्रतिदिन श्री रामा।। 59।

गौरवताई नौन की, मिलत कटीला ठाम।

मेल मिलापों की कथा, मिलघन पाती नाम।

मिलघन पाती नाम, बड़ा सुन्‍दर स्‍थाना।

जल से भरा समुद्र, यहां पावस में जाना।

घन से मिलकर सजल बना मिलघन है भाई।

मन होता मनमस्‍त-देख सुन गौरवताई।। 60।

मसूदपुर, नुनहारी, सिमिरिया

जीवन धारा नौंनन नद, पुल जो बना विशाल।

बजरंगी ब्राजे जहां, कहैं मसूदपुर हाल।

कहें मसूदपुर हाल, नरसरी जहां लगाई।

मन रम जाता पथिक, देख कर सुन्‍दर ताई।

सरित कूल पर बसा, ग्राम सबको है प्‍यारा।

जीवन सरित सुहाय, सरित सी जीवन धारा।।61।

सपना सा साकार ज्‍यौं-नुनहारी सरित के तीर।

प्रतिछाया जिसकी दिखै, लहराती सी नीर।

लहराती सी नीर, पीर को मेंटत जाती।

नन हारी जो कभी, आपना गौरव गाती।

सचमानो मनमस्‍त, मार्ग बदलो तुम अपना।

होता मन संतोष, धन्‍य जीवन यह सपना।। 62।

मानो सुन्‍दर तट बना, मंदिर एक विशाल।

बजरंगी जहां ब्राजते, ध्‍वजा उड़ रही लाल।

ध्‍वजा उड़ रही लाल, ताल-सरगम ज्‍यौं देती।

ग्राम सिमिरिया जान, यहां होती है खेती।

नहर चलै जलपूर्ण, व्‍यवस्‍था अच्‍छी जानो।

करती मन मनमस्‍त, बात मेरी सच मानो।। 63।

बरौआ, जरावनी, विजकपुर

मित्र हमारे देख लो, निकट नुन्‍हारी जान।

वर के स्‍वागत में सदां, ग्राम वरआउआ मान।

ग्राम बरौआ मान, नहर के निकट बसा है।

गन्‍ना गैहूं विकट, सभीको विकट नशा है।

जब होते मनमस्‍त, न देखें अपने न्‍यारे।

बालक रहे पढ़ाय, देखलो मित्र हमारे।। 64।

समृद्ध शीला जरावनी, रखो हमेशा मेल।

जीवन का यह सार है, करना नहीं, झमेल।

करना नहीं झमेल- जरावनी देखो भाई।

सस्‍य श्‍यामल भूमि, रही मन को हरषाई।

मन होता मनमस्‍त, देख जन जीवन लीला।

उपजाऊ है भूमि, शान्ति, सुख समृद्धि शीला।। 65।

शीतल पानी पियो जा, सत्‍य विजकपुर जान।

चहुदिसि भरका भर रहे, आक ढाक की शान।

आक ढाक की शान, पुरातन गांव जानिये।

गढ़ गांजर अस पदमावति का सुयश मानिये।

खाई भरका बने, निकट बहै सिन्‍धु भवानी।

मन होता मनमस्‍त, पियें जब शीतल पानी।। 66।

पांचौर, ररूआ, जतरथी

माया नचती सामने, मन मोहन एक ग्राम।

पंचमहल आ किशौली, करलो कुछ विराम।

करलो कुछ विश्राम, क्षीर सागर-सा जानो।

गौ माता जहां चरैं, धवल धरती पहिचानो।

समृद्धि में आज किशौली अलख जगाया।

सच कहता मनमस्‍त, नचै माया की माया।। 67।

छाया झाड़ौली रही, ररूआ ग्राम निहार।

नहर भरी पानी बहै, उड़ती जहां फुहार।

उड़तीं जहां फुहार, कृषक मनमस्‍त दिखाते।

गाते गीत मल्‍हार, कहीं पर आल्‍हा गाते।

पद्मावती के निकट, खुशी का मौसम छाया।

मन करलो मनमस्‍त, बैठ आमों की छाया।। 68।

सब मन लोभा ग्राम जतरथी,नहीं जीता कोय।

आओ तुम्‍हें बताऐं हम, ग्राम जतरथी सोय।

ग्राम जतरथी होय, निकट पद्मावति माई।

आदर्शी, मनमोह, जतरथी जो कहलाई।

पार्वती के तीर कछारौं की है शोभा।

सच कहता मनमस्‍त, देख छवि सब मन लोभा।।69।