देखो भारत की तस्वीर - 5 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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देखो भारत की तस्वीर - 5

देखो भारत की तस्वीर 5

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

इमला डेरा, लोहारी, बामरौल और बसई

मनमस्‍त लुभाई सिंध छवि, मन सुनता मनलाय।

इमला डेरा नितप्रति, झांकी अलग दिखाय।

झांकी अलग दिखाय, सिंध से है बतियाता।

झोरिन और कछार-अपना मन बहलाता।

घनी करौदा छांव, हिंसोरा हींस मिठाई।

खिलते फूल पलास, जहां मनमस्‍त लुभाई।। 154।

बासा खासा तोय तल, सांग कटार कृपाण।

बरछी गन चाकू छुरी, लोहारी पहिचान।

लोहारी पहिचान, ढाल अरू कवच गिराके।

इस्‍पाती पिस्‍तौल, तमंचा बख्‍तर वाले।

हंसिया खुरपी फार, कुल्‍हाड़ी, पांस गड़ासा।

बना रहे मनमस्‍त, वीर भूमि का बासा।। 155।

नरनारी हैं बसाई के, बामरोल धाम।

पार्वती का जल पियो, पावन तीर्थ धाम।

पावन तीर्थ धाम, बाग और मंदिर जाओ।

खलिहानों में भरे धान्‍य के गीत सुनाओ।

हंसमुख जन खुशहाल, मातृ भूमि हितकारी।

मगन रहें मनमस्‍त यहां के नर अरू नारी।। 156।

मोहनगढ़, हथैड़ा, कैरूआ

मोहन पाई बांसुरी, मोहनगढ़ के बीच।

गलियारिन होली सदां-रंग गुलाल की कीच।

रंग गुलाल की कीच, आम बौराये बौर में।

सांबन झूला गीत-भीत से ठौर ठौर में।

दीप अबलियां सजीं, सदां दीपावलि भाई।

मन मनमस्‍त बनाय, मोहनी मोहन पाई।। 157।

नहीं आओगे लौटकर, ग्राम हथैड़ा जाय।

बना मदरस रोड़ पर, मंदिर अधिक सुहाय।

मंदिर अधिक सुहाय, निकट पर्वत हरसावै।

अंबर की अनुभूति ग्राम को रोज बतावै।

ताल, बाबरीं, कूप, हथैड़ा रमराओगे।

सच मानो मनमस्‍त, लौटकर नहीं आओगे।। 158।

जाना माना शिला शिखर धरें शिला का भार।

सिलाख् खण्‍ड का पहाड़ है, ऊपर है विस्‍तार।

ऊपर है विस्‍तार, कूप और ताल देखिये।

मंदिर बना विशाल, भाल के लेख लेखिये।

यही कैसिया ग्राम, पहन रजपूती बाना।

मन में है मनमस्‍त, सभी का जाना माना।। 159।

फूलपुर, देवगढ़, सीहौर

पापा भाई फूल सा, ग्राम फूलपुर जान।

फूले फूले सब फिरैं, इसकी यह पहिचान।

इसकी यह पहिचान, शान से जीवन जीते।

हिल मिल गावैं गीत, प्रेम के प्‍याले पीते।

कूपों पर ट्यूब वैल, करैं खेती हरषाई।

जन जीवन मनमस्‍त, यहां पर पाया भाई।। 160।

बस रही बस्‍ती मनोरम, चलो देवगढ़ आज।

इतिहास में छिपा है, इसी भूमि का राज।

इसी भूमि का राज, आज उसको पहिचानो।

कितनी गौरव भूमि, गढ़ी के देख ठिकाने।

छिपा गोद इतिहास, हास मृदु हास हंस रही।

मन में हो, मनमस्‍त, मनोरम बस्‍ती बारही।। 161।

जाई निकट से समझीलो, चल देखो सीहौर।

पहाड़ों का पर कोट है, कहीं न पाओ छोर।

कहीं न पाओ छोर, बहुत सुन्‍दर स्‍थाना।

जन जीवन में शान्ति, प्रेम का पहले बाना।

कर्म कला मनमस्‍त बृद्धि उद्योगी भाई।

पंचमहल की झलक लखो सीहौर में जाई।। 162।

नकटेरा, पटेही, गागौनी, राधा पुर, विची, कांकर

टेरे नकटेरा पटेही, गागौनी को जान।

एक मात्र सीहौर ही, इनकी है पहिचान।

इनकी है पहिचान, शान और बान अनूठी।

कर पहाड़ों से मेल, लक्ष्‍मी जिनकी मूठी।

सच मानो मनमस्‍त, आम महुआ बहुतेरे।

पड़े विकट जब धाम, छांव राही को टेरे।। 163।

विहारी देखो विची भी एक रूप दरसाय।

हाट बाट चौपाल सव राधा कृष्‍ण सुहाय।

राधा कृष्‍ण सुहाय-लगै जैसे बरसानों।

उाल पात फल फूल- राधिका को पहिचानो।

सस्‍य श्‍यामलं भूमि, झूमते जहां नरनारी।

लक्ष्‍मीपुर सा धाम देख मनमस्‍त विहारी।। 164।

सहरा किनारा एक लग, सिंधु नदी का तीर।

कांकर भी ककरेट में, गजव कर रही वीर।

गजब कर रही वीर, बना विद्यालय भारी।

जहां वीज भंडार, स्‍वास्‍थ्‍य घर रौनक न्‍यारी।

रोड मोड बेजोड़, मोहनी डैम सहारा।

बना हुआ मनमस्‍त ग्राम यह सारा-सारा।। 165।

कैथोदा, महोबा, ठाटी, मिंहारा

नामा कैथोदा दिखा, फिर दतुरा को देख।

पशु पालन अरू कृषि में लिखे अनूठे लेख।

लिखे अनूठे लेख, रम्‍य स्‍थल यहां भाई।

प्रकृति नाचती नाच, मौसमी महिमा छाई।

मन होता मनमस्‍त, देख इनके सुचि वामा।

जन्‍म-जन्‍म के पाप कटें, लो इनके नामा।। 166।

नाते महोबा से घने, ठाटी के है ठाट।

बैठक अरू चौपाल में, पड़े हुये हैं पाट।

पड़े हुये हैं पाट, कुआ के घाट सुहाये।

पनिहारिन के घड़े-तृपित की प्‍यास बुझाये।

सुनो झरोखन गीत, सजन की पीर मिटाते।

लगते हैं मनमस्‍त, पुराने जैसे नाते।। 167।

बांही पकरत सिंधु का, लो पूंछो इतिहास।

चलो मिहारे चलेंगे, जिसका है विश्‍वास।

जिसका सच विश्‍वास, लिखै जीवन इतिहासा।

वीत गये कई शतक, हुये उदगम अरू नासा।

मान लेउ मनमस्‍त, मिंहारा, हारा नहीं।

करता जीवन कार्य, पकर सिंधुल की बांही।। 168।

सिमिरिया, पारागढ़

भरते झाली जीवनी, जभी सिमिरिया जाव।

प्‍यारी पगडंडी बनी, महुअन शीतल छांव।

महुअन शीतल छांव, आम की लख अंगराई।

विन मौसम के गीत, कोकिला गावत भाई।

नृत्‍य मयूरीं करें, छलांगे हरिणा भरते।

मन होता मनमस्‍त, दृश्‍य नयनों में भरते।। 169।

भाई भगवती सिमिरिया, शिव शंकर महाराज।

लाल ध्‍वजा फहरा रही, बजरंगी की आज।

बजरंगी की आज-लग रही बगिया न्‍यारी।

जामुन कटहल आम लगीं अमरूदन क्‍यारी।

मन होता मनमस्‍त, देख धरती अरूणायी।

जन जीवन सुख चैन, बसैं सब भाई-भाई।। 170।

ग्राम लुनाई छा रही, पारागढ़ के बीच।

फागुन सी होरी खिलै, रंग रंगीली कीच।

रंग रंगीली कीच, नाचते मोहन श्‍यामा।

कुड़ता धोती पैंट और पहने पाजामा।

बिन्‍द्रावन बन गया, गांव पारागढ़ भाई।

हो जाता मनमस्‍त देखकर गांव लुनाई।। 171।

खड़उआ,खाँद की देबरी,हरसी बाँध,गड़ौली

छानो मस्‍ती प्रेम से, ग्राम खड़उआ आज।

पंचमहल की झलक में, जिसका देखो राज।

जिसका देखो राज, काज सब मन से करते।

बड़े परिश्रम जीव, धान्‍य से सब घर भरते।

लूट रहे सुख चैन, गली गलियारे जानो।

मन होता मनमस्‍त, धूलि गांबन की छानो।। 172।

माया खांद की देवरी, हरसी बांध निहार।

विन्‍ध्‍याचल सी तलहटी, सीतल बहै बयारि।

सीतल बहै बयारि, प्‍यार बौछार हो रही।

जीवन में सुख चैन, अनूठे हार पो रही।

करलो मन मनमस्‍त, धरित्री की लख काया।

विस्मित मन हो जाउ, यहां माया ही माया।। 173।

भूमि कहाती बांध की, फेर गड़ौली देख।

पहाड़ी के पूंछा बसी, गढ़ी हुई ज्‍यौं मेख।

गढ़ी हुई ज्‍यों मेख, बांध से बन्‍धन डारा।

हरा भरा कर दिया कि जिसने देस हमारा।

पारवती बे-पीर, नीर वन जहां बहाती।

सच मानो मनमस्‍त, मड़ौली भूमि कहाती।। 174।

लोह कैरूआ, हरसी, बेलगढ़ा

माया की माया खड़ी-लौह कैरूआ पार।

बरछी भाला अरू तुपक बनतीं जहां तलवार।

बनतीं जहां तलवार छुरी किरचे अरू तोपें।

सांग तमंचा तीर, सूल छाती में घोंपे।

सच जानो मनमस्‍त, लोह की बनतीत काया।

हाथ जोड़ती फिरै यहां माया की माया।। 175।

नाते हैं सब बांध के हरसी बसी दिखाय।

दो पहाड़ों की गोद में, वैभव रही लुटाय।

वैभव रही लुटाय, दिमानी यहां पर छाई।

नरवर और ग्‍वालियर की कीरति यह भाई।

गौरव के हरगीत यहां प्रस्‍तर गाते हैं।

मन को कर मनमस्‍त, प्रेम के सब नाते हैं।। 176।

पहिचानो कैनाल पर, बेलगढ़ा को मान।

विन्‍ध्‍याचल की छांव में, अपनी तानें तान।

अपनी तानें तान, विद्वजन करैं निवासा।

बने विधायक यहां, करो कुछ तो विश्‍वासा।

रोड़ किनारे लगा, पारवति नदिया जानो।

जन जीवन मनमस्‍त, आपनों को पहिचानो।। 177।

ढिकवास, पुल्‍हा, गधौटा

पहिचानो ढिकवास को, करलें कुछ विश्राम।

नीमों की छाया घनी, संध्‍या श्‍यामा श्‍याम।

संध्‍या श्‍यामा-श्‍याम, चांदनी चमक सुहाई।

शरद पूर्णिमां रात्रि, सदां मनमस्‍त बनाई।

बय सुख का संसार, सार जीवन का जानो।

जीवन के अनुकूल यहां मौसम पहिचानो।। 178।

मन भाए मन हर लगे, पुल्‍हा गांव को देख।

गीत सुनैं मन भावने, धरै अनूठे भेष।

धरें अनूठे भेष, खाओ खीरा और ककड़ी।

शीसम महुआ नीम, इमारती यहां की लकड़ी।

बने कछारन खेत, रेत के सेतु सुहाये।

मन होता मनमस्‍त ग्राम गौरव मन भाये।। 179।

गाओ पाबन गीत यहां, रस रसना सरसाय।

अमरूदों की अमरता, लखो गधोटा जाय।

लखो गधोटा जाय, रोड़ का लिये किनारा।

ईख दे रहीं सीख, सहारा लेउ हमारा।

हो जाओ मनमस्‍त, गधोटा जब जब जाओ।

कितनी प्‍यारी भूमि, गीत पावस के गाओ।। 180।

लोढ़ी, खिरिया, पलाछा

प्‍याली छलकें प्रेम की, लोढ़ी माता जान।

दरख्त पीपल के तले, बैठें सब मेहमान।

बैठें सब मेहमान, गांव लोढ़ी कहलाता।

मेहनत करैं किशान, मुख्‍य खेती से नाता।

सच मानो मनमस्‍त, दिवाली सी दिवाली।

मस्‍त हो रही भूमि, छलकती प्‍याली-प्‍याली।। 181।

जाम पीजिये प्‍यार के, लोढ़ी खिरिया धाम।

खिरकन में भैंसे बंधीं, दुहो दूध कह श्‍याम।

दुहो दूध कह श्‍याम, पियो भर गागर सागर।

वृद्धि वृद्धि विवेक बनोगे प्‍यारे नागर।

खिरिया खेरो एक हमेशा याद कीजिये।

मन होवैं मनमस्‍त, प्‍यार के जाम पीजिये।। 182।

भूमि माया भूमि की, चलो पलाछा आज।

पंचमहल के प्रेम का, छिपा यहां पर राज।

छिपा यहां पर राज, गुफा सिद्धों की देखो।

मंदिर कर विश्राम, अपनी करनी लेखो।

सच सच है मनमस्‍त, पलाछा पावन भूमि।

जहां अनेको बार देव माया भी भूमी।। 183।

खेरौ, मियांपुर, मोहनी

पाछा कभी न छोडि़ए, समुझाते सब तोय।

मन में मगन पलाछा, खेरो तजौना कोय।

खेरौ तजो न कोय, गढ़े यहां रत्‍न पाइये।

बरसाती नालों में दौड़े नित लगाइये।

सचमानो मनमस्‍त यही है प्राण पलाछा।

भूल न करना कभी गहो खेरौ को पाछा।। 184।

सारी भारत भूमि सह सब कोउ करै निवास।

चलो मियांपुर देखलो, अगर न हो विश्‍वास।

अगर न हो विश्‍वास, यहां बन्‍धुत्‍व बसेरा।

व्रत रोज सब करें, प्रेम का ईद बसेरा।

डोल ताजिये कढ़े, नाचते सब नर नारी।

दिखती है मनमस्‍त, यहां की धरती सारी।। 185।

हृदय सोहनी मोहनी चलो मोहनी आज।

हरसी बंधा थी रखी जिसने पूरी लाज।

जिसने पूरी लाज, मिला पानी में पानी।

करदी धरती हरित, देखलो इसकी सानी।

लगता है मनमस्‍त, मोहनी सत्‍य मोहिनी।

जनजीवन है धन्‍य, सभी के हृदय सोहनी।। 186।

पीपलखाड़ी, ख्‍यादा, पनघटा, भदारी

भाई पीपलखाड़ी चलो गहरी पीपल छांव।

झाड़ी में मंदिर बना पावन शीतल छांव।

पावन शीतल छांव, ग्राम का गौरव भारी।

हरियाली से भरी जहां की क्‍यारी क्‍यारी।

करलो कुछ मनमस्‍त, भरत-भू की से बधाई।

धीरज धारे धरा- रहो भाई ज्‍यौं भाई।। 187।

गारी ख्‍यादा गाइये और पनघटा प्‍यार।

पंचमहल की भूमि के बने हुए हैं हार।

बने हुए हैं हार, करै धरती की सेबा।

बहा परिश्रम नीर-दे रहे सबको मेबा।

भर-भर झोली खाय, यहां के नर और नारी।

नाच रहे मनमस्‍त, गा रहे प्‍यारी गारी।। 188।

हजारी ठाड़े पार पै, बन्‍धा देखो जाय।

ग्राम भदारी पहुंचकर, जनगणमन हरषाय।

जनगणमन हरषाय, तिरंगा सी अरूणायी।

धरती की मृदु कूंख, हरी है मेरे भाई।

कीरति गाथा कथै, गांव के सब नरनारी।

होते हैं बलिहार, सदां मनमस्‍त हजारी।। 189।

बीलौनी, मायारामपुर, देवरा, खिरिया, पनानैर, धोवट

हासा बीलौनी बड़ा गौरव उगलें खेत।

माया से भरपूर है, मायारामपुर हेत।

उपजाते धन धान्‍य, मेंटते दीन कमी को।

मन होता मनमस्‍त, करैं जब यहां निवासा।

गौरवशाली भूमि, हंसै अट्टहासा हांसा।। 190।

कमाई कीजे देबरा, जहाँ पूजो भगवान।

खिरिया खेरा सुख भरा, पनानैर को मान।

पनानैर को मान, जहां हनुमत का बासा।

देवी मंदिर देख, करो नहिं कोई हासा।

धरती देवन भरी, भरी सुख सौरभ भाई।

बड़े परिश्रमी लोग, करैं मनमस्‍त कमाई।। 191।

छानो प्‍याले प्‍यार के, धोवट पहुंचो जाय।

धरती की गंभीरता, जन-जन मन हरषाय।

जन जन मन हरषाय, करैं संस्‍कृति के कामा।

गौरव रहे कमाय, वीरता में है नामा।

नर नारी सुख चैन, जिंदगी जीते जानो।

होकर के मनमस्‍त, प्रीति प्‍याले को छानो।। 192।

बामौर, मंगरौनी

अर्ज हमारी है यही, बानमौर विनय हजार।

हम संसारी जीव है, कमियों का अधिकार।

कमियां करें अपार, हमें मारग दर साओ।

बाम ओर नहिं होउ, सदां मनमस्‍त बनाओ।

तेरे चरणों पड़े, धन्‍य प्रभु गिरवर धारी।

कर दो नइया पार, यही है अर्ज हमारी।। 193।

मन में भाई, मनबसी, मगरौनी की भूमि।

चाहे किशनपुर में रहो, रोज निजामपुर घूम।

रोज निजामपुर घूम, भूमि का गौरव देखो।

पावन है स्‍थान, लेख हृदय में लेखो।

बस अड्डा के पास, भूमि में है अरूणायी।

मन को कर मनमस्‍त, सभी के मन में भाई।। 194।

कहाती मगरौनी सदां, मिलता है इतिहास।

पोटा पिल्‍ली यहां बसे, मृगनयनी का रास।

मृगनयनी का रास, कहानी सब कह जाता।

डोल भीड को देख मानवो का मन गाता।

स्‍वर्ण भरे भगवान, स्‍वर्ण भूमि दरसाती।

मानलेउ मनमस्‍त, यही मंगरौनी कहाती।। 195।

कुढ़पार, आंतरी

कुछ सिरांय में बैठकर, बाबा कुटिया जाय।

वैभव की गाथा यहां, रहे कमूरे भाय।

रहे कंमूरे गाय, विहारी मंदिर जाओ।

दर्शन कर मनमस्‍त, आपने भाग्‍य सराओ।

पंचमहल की झलक, ललक देखो सरांय में।

मन मंगरौनी रहे, बैठलो कुछ सिरांय में।। 196।

कुढ़पार नियारा गांव है, प्‍यारी-प्‍यारी भूमि।

धरती हरियाली भरी, गाते मौसम झूम।

गाते मौसम झूम, नाचते नर अरू नारी।

कंचन उगलै धरा, हंस रही क्‍यारी-क्‍यारी।

सदां रहो मनमस्‍त, यहां का मौसम प्‍यारा।

सब गांवों में गांव एक, कुढ़पार नियारा।। 197।

पनबारी के पान को स्‍वागत करता गांव।

आत्‍म में अनुभूति ज्‍यौं, जान आंतरी नाम।

जान आंतरी ग्राम, कृषि ट्रेनिंग घर यहां पर।

विद्यालय है उच्‍च मिल रही शिक्षा घर घर।

जनसेवा ग्रह यहां, सुरक्षित सब नर नारी।

धन्‍य हुये मनमस्‍त, देख यहां के पनबारी।। 198।