देखो भारत की तस्वीर - 3 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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देखो भारत की तस्वीर - 3

देखो भारत की तस्वीर 3

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

झाड़ोली

दिखाई देते मार्ग कई, डबरा से रहे जोड़।

डम्‍बर की पाओ झलक, जो सच में बे-जोड़।

जो सच में बे-जोड़, योजनावत-सा ग्रामा।

सुयश जतरथी लिया, पंचमहली के धामा।

म‍ंदिर बना विशाल, करैं पूजा सब भाई।

पुलक-प्रफुल्‍लत गात धरा, मनमस्‍त दिखाई।। 70।

मनमस्‍त दिखाया ग्राम एक, झाड़ौली को जान।

समृद्धि भरपूर है, पावन मय स्‍थान।

पावन मय स्‍थान, सुघर, सुन्‍दर है ग्राम।

धनद बने सब लोग, भोग भोगें अभिरामा।

हरित धरा हरषाय, हर्ष का मौसम छाया।

जन जीवन खुशहाल, यहां मनमस्‍त दिखाया।। 71।

भाई गौरव भूमि है, झाड़ौली पहिचान।

आम फलों के वृक्ष पर, कोयल गाती गान।

कोयल गाती गान-धर्म का यहां बसेरा।

मंदिर बना विशाल जहां दुर्गा का डेरा।

फहराती नभ ध्‍वजा, जयति जय दुर्गे माई।

दर्शन कर मनमस्‍त, धन्‍य होते हैं भाई।। 72।

धिरौरा, सर्वा

सदां सबेरा धिरौरा, नौंन नदी के तीर।

तीन पुरा बन एक हैं, जन जीवन-वे-पीर।

जन जीवन वे-पीर, धर्म को वे पहिचानें।

रामायण अरू गीता को, हर बख्‍त बखाने।

सुन लीजे मनमस्‍त, सत्‍य का यहां बसेरा।

प्रतिदिन सूरज आय-करत है यहां सबेरा।। 73।

गाओ रामायण सदां, राम-सिया-सौमित्र।

तीन गुणों से युक्‍त है, यत्र-तत्र-सर्वत्र।

यत्र-तत्र-सर्वत्र, प्रेम जीवन का जामा।

बंधे प्रेम की डोर, निखिल संस्‍कृति के कामा।

मन होता मनमस्‍त, धिरौरा जब भी जाओ।

हरी नाम से भरे-गीत रामायण गाओ।। 74।

वचन हमारे मान लो, सर्बा सुजन, सुजान।

नौंन नदी के तट बसा-अपनी ले पहिचान।

अपनी ले पहिचान, पुरातन वैभव गाता।

जन जीवन कल्‍याण देख इसको हो जाता।

मन में करो बिचार, अरे मनमस्‍त पियारे।

सर्वा जाकर बसो, मानलो बचन हमारे।। 75।

समचौली, बन्‍हैरी, करियावटी

कबै हमारा मेल हो, समचौली से खास।

गीत गाइये प्रेम से, अपना कर विश्‍वास।

अपना कर विश्‍वास, समय से मेल मिलाओ।

सुनो समय के गीत, भूलकर कहीं न जाओ।

मन में करत विचार, सदां मनमस्‍त विचारा।

समता का संसार होयगा कबै हमारा।। 76।

विश्रामा करो आज ही, ग्राम बन्‍हैरी आप।

उन्‍नति शाली ग्राम है, पंच महल की छाप।

पंच महल की छाप, यहां स्‍वातंत्रय बसेरा।

कर्मशील है भूमि-कर्म से यहां सबेरा।

जन जीवन मनमस्‍त, करैं सब अपने कामा।

हरियल भूमि दिखाय, मनोनमय है विश्रामा।। 77।

गौरव पहिचानो सजन, करियावटी से ग्राम।

रोड़ पास विद्या भवन, पंचायत का नाम।

पंचायत का नाम, अनूठे काम यहां के।

जीवन जी-बन जाय, यहां सब सौख्‍य जहां के।

बीच ग्राम से रोड़, बहुत सुन्‍दर एच मानो।

मन होता मनमस्‍त, भूमि गौरव पहिचानो।। 78।

बागवई, भानुगढ़, छिरैंटा

गौरव के गाने सुनो, बागबई में प्रात।

उच्‍च शिखर पर देखिये, झंडा जौं फहरात।

झंडा जौं फहरात गीता गा रहा गगन से।

मौसम से कर बात, बात कर रहा सबन से।

ताल बना मनमस्‍त, बड़ा सुन्‍दर स्‍थाना।

जन जीवन में प्रेम, गीत गौरव के गाना।। 79।

अन्‍दर चलिए भानगढ़, ले मन में विश्‍वास।

मन में जागे ज्ञान धुति, यही बात है खास।

यही बात है खास, नाश अज्ञान अंधेरा।

सबसे उत्‍तम, सफल भावना का है डेरा।

रवि किरणों से करो, भावना को शुचि सुन्‍दर।

जीवन हो मनमस्‍त, भानुगढ़ के ही अन्‍दर।। 80।

प्रिय गाना गाओ यहां, बैठ छिरैंटा मान।

जन जीवन से इसी की, है गहरी पहिचान।

है गहरी पहिचान, धान्‍य भंडार यहां पै।

देखत मन हरषाय, प्रेम का कार्य यहां पै।

सच मानो मनमस्‍त, छिरैंटा भूल न जाना।

जीवन कर लो सफल, गाय हरि का प्रिय गान।। 81।

चकगांधीपुर, खिरिया

चक कहलाया गांधी का, गांधी गये सिधार।

स्‍मति का इतिहास है, चक गांधीपुर प्‍यार।

चक गांधीपुर प्‍यार, बागबई के नर नारी।

अलग बसाया ग्राम, नये जीवन की त्‍यारी।

उन्‍नति कर निज देख, देश में नाम कमाया।

सब को कर मनमस्‍त, गांधी चक कहलाया।। 82।

पैमाना यहां की झलक,अलग ललक के साथ।

आओ खिरिया की तुम्‍हें, करवा दें मुलाकात।

करवा दें मुलाकात, ताल में ग्राम बसा है।

खूब होय धन-धान्‍य, इसी का इन्‍हें नशा है।

कितना तुम्‍हें बताय, भूल खिरिया नहिं, जाना।

जीवन की लम्‍बाई, नापलो यह पैमाना।। 83।

बनाओ अपनी आज ही चलो, चितावनी आज।

कर्म-कला विख्‍यात है, छिपा नहीं है राज।

छिपा नहीं है राज, जानते सब नर नारी।

रह रह उठत‍ हिलौर रटै गोवर्धन धारी।

सुनलो नाथ पुकार, प्रेम-जीवन दे जाओ।

करते कहां अबार-कवै मनमस्‍त बनाओ।। 84।

महाराजपुर, रजियावर, लीटापुरा

नर-नारी यहां के सुमट, महाराजपुर को देख।

सिंचाई बंगला पास में, सिद्यालय का लेख।

विद्यालय का लेख, भवन के पत्‍थर पाओ।

अपने मन के कटा-छटा कर के ले जाओ।

देवों का स्‍थान लगै जहां मेला भारी।

जन जीवन मनमस्‍त, धन्‍य यहां के नर नारी।। 85।

गोरी-भोरी भूमि है, रजियाबर को जान।

विद्यालय पहले मिले, यही मुख्‍य पहिचान।

यही मुख्‍य पहिचान, पहाड़ का लिये सहारा।

विकट किये संग्राम, नहीं जीवन में हारा।

बेहद हंस मुखे लोग, प्‍यार बांटे भर झोरी।

मन होता मनमस्‍त अटारी गोरी भोरी।। 86।

लगते देश सुहावने, लीटापुरा जो कहाय।

ना जाने किस सख्‍श ने दीना नाम डुबाय।

दीना नाम डुबाय धरा जो लीटा नामा।

बुध विवेक यश पूर्ण, यहां के सबरे कामा।

निश्‍चय कर मनमस्‍त, धर्म का यहां बसेरा।

जन जीवन सुख शान्ति नीति के लगते डेरा।। 87।

गुलिहारी, गोबरा, कोसा

सुघर अटारी अटा है, गुलिहारी को जान।

गुल होता गुल्‍जार है, गुलहारी की शान।

गुलिहारी की शान, ध्‍यान से देखो भाई।

गन्‍ना, गैहूं, धान यहां की प्रमुख कमाई।

सच जानो मनमस्‍त ग्राम का गौरव भारी।

करलो कुछ विश्राम, बनीं है सुघर अटारी।। 88।

गौरव गाओ हमेशा, चलो गोबरा ग्राम।

विद्यालय सुन्‍दर बना, पावन मंदिर जान।

पावन मंदिर जान, मेंगरा बहैं पास में।

धन्‍य धान्‍यों का वेश, प्‍यार ज्‍यों कृषक रास में।

मन नहीं भरता कभी-गोबरा नित नित जाओ।

मन में हो मनमस्‍त गोबरा गौरव गाओ।। 89।

मनमस्‍त जानिए जन्‍मभर, कोसा पावन धाम।

नौन नदी के तीर पर, मन को दे विश्राम।

मन को दे विश्राम, तलहटी की हरियाई।

मन का मैल मिटाव, चढ़ी काई पै काई।

धनद यहां के लोग, बीर और हीर मानिये।

हंसमुख जीवन जियें सही मनमस्‍त जानिये।। 90।

जावल, देबरा

भाई जावल मत करो, रहो किनारे दोय।

एकै साधै सब सधे, पार पाइये सोय।

पार पाहियें सोय, करैं सरिता स्‍नाना।

जीवन सुफल बनाय, रटैं हरिनाम सुजाना।

मन होता मनमस्‍त, रहो जो जावल भाई।

करैं परिश्रम विकट, धन्‍य मेहनत कश भाई।। 91।

नौंगजिया सीना बना, चारौ तरफा देख।

देवर जो, वर मिलादे गढ़ी देवरा मेख।

गढ़ी देवरा मेख, ग्राम आदर्श कहाया।

सब सुविधायें यहां सुयश चारौ दिस छाया।

कर्मठ, कुशल, किशान, शान जीवन का जीना।

जियो सदां मनमस्‍त, बना नौंगजिया सीना।। 92।

मन भाया है पंचमहल झलक देवरा देख।

जन – जन को जागृत करें, ऐसे हैं अभिलेख।

ऐेसे हैं अभिलेख, कुतुब से ऊंचे जानो।

गहराई में इन्‍हें कपिल सागर पहिचानो।

कहां तक कहें सुनाय, ग्राम इतिहास बनाया।

सच मानो मनमस्‍त ग्राम, मन सा, मन भाया।। 93।

सैंतोल, छीमक, घरसौंदी

पहुँनाई जाकर करो, तीर मेंगरा ग्राम।

सत सैंतोल कहावती, चारौ दिस में नाम।

चारौ दिसि में नाम, सजन साजन पहिचानो।

स्‍नेही जन जीव, लगै हमखों बरसानों।

दधि-ओदन नित खांय, हमीं से कृष्‍ण कन्हाई।

धन्‍य–धन्‍य मनमस्‍त, सदां करियो पहुँनाई।। 94।

श्रीरामा रटता सदां, छीमक बसंती ग्राम।

बड़े-बड़े दिग्‍गज यहां, जन जीवन की छांव।

जन जीवन की छाव, हाई स्‍कूल यहां पर।

पावन मंदिर बने, हाट के ठाट यहां पर।

जन जन है मनमस्‍त, करैं नित उठकर कामा।

झालर शंख बजाय, ध्‍यान धरते श्री रामा।। 95।

आगे चलकर देखिये, घरसौंदी सा ग्राम।

बड़ी अनूठी झलक है, जैसा पावन नाम।

जैसा पावन नाम, शान अरू बान देखिये।

ऊंचा जीवन जियें, भवन स्‍थान देखिये।

गौरव का प्रतिरूप, लख्‍मी सुत है वर मांग।

चलो चलै मनमस्‍त, घरसौंदी आगे।। 96।

नौंन सराय, बेरखेरा, सिरसा

समधी सारे ग्राम जन है, नोन सराय कहाय।

नौंन नदी के तीर पर, ध्‍वज अपना फहराय।

ध्‍वज अपना फहराय, पुरातन ग्राम कहाया।

कृषि कला की कला, कला का कौशल छाया।

मन में करो विचार, अरे मनमस्‍त पियारे।

इसी ग्राम के निकट बसत हैं समधी-सारे।। 97।

सबका हिय हुलसाबता, बेरखेरा कहलाय।

अमराई लख आम की, ललक हिया लहराय।

ललक हिया लहराय, झलक मन को ललचावै।

नोंन नदी के तीर कृष्‍ण गोपिन संग गावै।

रमनरेति अरू कुंज, कछारों की कमनींया।

मन होता मनमस्‍त, हुलसता सबका हिया।। 98।

शामिल कमाई लेखिए, सिरसा को पहिचान।

धर्म-कर्म के बीच में, ज्‍यों जीवन की शान।

ज्‍यौं जीवन की शान, ग्राम का गौरव छाया।

कृषि कार्य सब करें, धरै धन-सुयश कमाया।

सत्‍येव की विजय, सदां से होती आई।

यह धरती मनमस्‍त, सदां क सफल कमाई।। 99।

मैना, दौनी, दौलतपुर

मनमस्‍त बखानो छोड़ छल, माया का परिवार।

मैं-मेरा, तेरा तुहीं, यह जीवन निस्‍सार।

यह जीवन निस्‍सार, सारमय इसे बनाओ।

मैंना कोई न कहै, चलो मैंना में आओ।

समता सब के बीच, ग्राम वह मैंना जानो।

मैंना जहां न, स्‍वर्ग उसे मनमस्‍त बखानो।। 100।

मन अभिलाषा रही है, दोनी ग्राम सुहाय।

बट-पीपल की छांव में, जीवन भी सुख पाय।

जीवन भी सुख पाय, बना शिव का यहां आलय।

अध्‍ययन के अनुकूल, यहां का है विद्यालय।

जनजीवन मनमस्‍त, धर्म का यहां निवासा।

सब को सब कुछ मिलै, करै जो मन अभिलाषा।। 101।

मनमस्‍त सहाई श्‍याम जहां, वहां करै विश्राम।

दौलतपुर वह ग्राम है, जिसके अदभुत काम।

जिसके अदभुत काम, नौन सरिता के तीरा।

शशि किरणों की प्रभा लगै सीपी में हीरा।

पा सरिता का नीर, पीर जन मैंट बहाई।

लक्ष्‍मी पति ही रहें सदां मनमस्‍त सहाई।। 102।

खिरिया, राघोसिंह की खिरिया, चौधरी खिरिया

जाओ-आओ पास में, खिरिया देखो जाय।

पाबल भूमि पर बसी, जन जीवन हरषाय।

जनजीवन हरषाय, सभी के सुंदर कामा।

धबल भवन बन रहे, झोंपडि़न के नहिं वामा।

सच मानो मनमस्‍त, खीर खिरिया में खाओ।

इतना प्‍यारा गांव, नित्‍त आओ और जाओ।। 103।

भाई-भाई आओ यहां, खाओ खीर सुजान।

खिरिया राधो सिंह की, चल कीजे पहिचान।

चल कीजे पहिचान, ग्राम की सुन्‍दर रचना।

जन जीवन खुशहाल, मृदुल जीवन, मृदु बचना।

मन में हो मनमस्‍त, करो यहां पर पहुनाई।

धन्‍य धनद सा ग्राम, रहें मिल भाई-भाई।। 104।

सुख सारे जहां पाइए, खिरिया चलो सुजान।

जहां चौधरी चहुधरी, चौधरी खिरिया जान।

चौधरी खिरिया जान, सरस जीवन हो जाता।

पावन हरि का गान, यहां जन जीवन गाता।

करलो आज विचार, अरे मनमस्‍त पियारे।

इसी ग्राम में रहो, मिलैं जीवन सुख सारे।। 105।