Dekho Bharat ki Tasveer - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

देखो भारत की तस्वीर - 1

देखो भारत की तस्वीर 1

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

श्री गणेशाय नमः

पूर्वाभाष-

जीवन अनुनादों के संग में,धर्म धरा पर,पावन धरती।

नद-नादी संगीत सुभेरी,जीवन को अल्हादित करती।

थोड़ा सा अवलोकन कर लो,यहाँ पर आकर मेरे भाई।

भारत को ही स्वर्ग बनाती,पंचमहल की प्यारी धरती।

मस्जिद,गुरुद्वारे,गिर्जाघर,इस धऱती की आन-बान हैं।

पर्वत,खाई,द्वीप,कछारें,ऋषियों की प्यारी पहिचान हैं।

कई तरह के जीवनदायी,संगम की पहिचान बनी यह।

स्वर्ग कहीं यदि है दुनियाँ में,उसकी ही यह तान-बान है।।

भलाँ धरा लघुकाय दिख रही,पर यह तो है भारत मेरा।

सबकुछ यहाँ दिखलाता मुझको,प्यारों भरा सुबह का डेरा।

लाल किले सी कई प्राचीरें,सुबह-शाम सी बतियातीं हैं।

हैं मनमस्त धाम बैकुण्ठी,पंचमहल का गौरव मेरा।।

लोरी-

जागो-जागो मेरे वीर,

पंचमहल गौरव में,देखो भारत की तस्वीर।

मेरा भारत ग्राम प्रधानी,प्रकृति गोद है प्यारी।

बन पर्वत खाई और झरना,जिनकी शोभा न्यारी।

नदियाँ पावन जल से पूरित,हर पर्वों पर भीर।। जागो-------

कई देवों के यहाँ धाम है,तीरथ जिनको जानो।

मनोकामना पूरण होती,रातों दिन ही मानों।

श्रध्दा भावी झूला गिर रहे,मंदिर के ही तीर।। जागो--------

सुंदर मारग सुदृढ़ बने है,जग-मग विधुत होवै।

परकाशित है सारी गलियाँ,अंधकार को खोवै।

कई कारखानें,विद्यालय,बाल बालिका भीर।। जागो------

नदियों से नदियों का संगम,धरती सिंचित सारी।

कई योजनाएँ यहाँ चलती,धरा स्वर्ग सी प्यारी।

रेल मोटरें,कृषि,स्वास्थ्य घर,धरती है वे-पीर।। जागो------

मोटर,यान,रेलपथ गाड़ी,वायुयान घनघोरें।

बरस रहा धन-धान्य यहाँ पर,बोलत जीवन मोरें।

देव धाम सुंदरतम यहाँ के,बटत प्रसादी खीर।। जागो-------

गाँव गली चौराहन देखो,प्रतिमा लगीं नियारी।

राम राज्य,अनुशासित जीवन,नीति धर्म फुलवारी।

झाँख रहा यहाँ पूरा भारत,नीर लगे ज्यों क्षीर।। जागो-------

यूँ लगता है,पूरा भारत,स्वर्ग उतर यहाँ आया।

शास्त्र पुरानन वाणी गूँजत वेदों का यश छाया।

हैं मनमस्त यहाँ की धरती,पावन सरिता नीर।। जागो-------

श्री गणेशाय नमः

पंचमहल गौरव-

पंचतत्व, पंचायतन, पंचवेद पंचेश।

पंचामृत सम पंचपथ,पंचमहल परिवेश।।

पावन धरती यशमयी,मदन मधुप गुण-गान।

पंचमहल दर्शन झलक,ललक रहे भगवान।।

स्वर्ण प्रभा,रजकण दमक,सरिता पावन नीर।

पर्वत हरियाली भरे,निरमल बहत समीर।।

रवि शशि का आलोक है,धवल धरा भरिपूर।

जन जीवन उन्मुक्तमय, बजे विजय का तूर।।

पचनद सागर पूर्व में,पश्चिम साँई धाम।

उत्तर हिमगिरि पहरुआ,दक्षिण सिंधु सुनाम।।

चतुर्सीम के मध्य में,हरित धरा गुल्जार।

जन-गण-मन का गीत है,पंच महल का प्यार।।

भारत भू के मध्य में,एम.पी. ह्रदय जान।

गालव-भू प्रख्यात है,भारत के दरम्यान।।

उपरारों, अट्ठाइसी, डगासरी, बुंदेली।

खड़ी बोलि में आ मिली,बोली बन पचमेली।।

अन्य कई भाषा यहाँ,अपना क्षेत्र बनाए।

कहन लिखन बोलन पठन,भारत भू हरषाए।।

डबरा (भवभूति नगर)-

डबरा अवनि में मिले,जन जीवन रोजगार।

डबरा ही तो बन गया,पंचमहल का हार।

पंचमहल का हार, शुगर मिल यहाँ निराला।

ओवर ब्रिज को देख,अचंभा करो न लाला।

कई रोड़ है यहाँ,बहुत सकरे और चौड़े।

भारत की अनुकृति,यहाँ मनमस्त है डबरा।।1।

व्यापारिक परिक्षेत्र यह पंचमहल का एक,

भारत के व्यौपार में,डबरा शुगर विशेष।

डबरा शुगर विशेष,राइस मिल कई है भाई।

तेल मिलों को देख,बनत है यहाँ पर लाई।

मन विरमों मनमस्त,जेल और रेल मुबारक।

गाड़ी अड्डा पहुँच, बनो सच्चे व्यापारिक।।2।

बड़ा बना कालेज है,भितरवार के रोड़।

दक्षिण पश्चिम देखिए,बना हुआ बेजोड़।

बना हुआ बेजोड़,फील्ड भी बहुत बड़ा है।

शाँति आश्रम लगे,काँच चहु ओर जड़ा है।

इसी बगल में देख बड़ा गाड़ी अड्डा है।

पावर हाउस उधर लखो बहुत ही बड्डा है।।3।

शुगर गेट से यदि चलो,मिले पशु अस्पताल।

रेल क्रासिंग पुल बना,अग्रसेन चौराह हाल।

अग्रसेन चौराह हाल,बना कन्या विद्यालय।

कुछ ही आगे चलो,नगर पालिका का आलय।

जन सेवा घर यहीं,देख मनमस्त,बहुत सुघर।

मजिस्ट्रेट के कोर्ट,कचहरी लगती सुघर।।4।

स्वास्थ्य केन्द्र है यही पर,और सिंचाई गेह।

विश्राम गृह को देखिए,जनपद गृह कर नेह।

जनपद गृह कर नेह,देख इंटर विद्यालय।

स्टेडियम,पार्क और बनरक्षक आलय।

पी.डब्ल्यू.डी.कार्य,रहा है बर्धक स्वास्थ्य।

मान जाओ मनमस्त,सभी जन-जन है स्वास्थय।।5।

मुक्तेश्वर को देखिए,चुगीं का शिवधाम।

राजा राजन रोड़ के,कष्टम के हनुमान।

कष्टम के हनुमान,गायत्री पीठ देखिए।

कृष्ण आश्रम देख,संन्यासी आश्रम देखिए।

गुरुद्वारा कर दर्श,बलि बाबा है ईश्वर।

मस्जिद भी मनमस्त,जैन मंदिर मुक्तेश्वर।।6।

आश्रम राम गिरि को लखो,गाड़ी अड्डा पास।

मानस मण्डल देखिए,मानस का विश्वास।

मानस कर विश्वास,कि मस्जिद ईद मनावै।

गाड़ी अड्डा चलो रामगढ़ रोड़ बतावै।

कह मनमस्त पुकार यहाँ मजता है परिश्रम।

ठाँव-ठाँव पर लखो,यहाँ कई एक है आश्रम।।7।

प्यारी गलियाँ बहुत है,मार्केट धर ध्यान।

सिंधी,विद्या,रुकमणी,इंदिरा,नानक मान।

इंदिरा नानक मान,चलो कमला में भाई।

सुख सागर,अनमोल चलो लखमी हलवाई।

हो जाओ मनमस्त,चलो वहाँ जहाँ कलारी।

गीता से उपदेश,लगे गारी भी प्यारी।।8।

तारण सेटर बैंक है,फिर स्टेट निहार।

काप्रेट,सहकारिता,काँमर्सियल प्यार।

कामर्सियल प्यार,चलो पंजाब जहाँ पर।

सबसे है,परधान डाकघर बना यहाँ पर।

कपड़ो की दुकान,साग-सब्जी ले आना।

कह मनमस्त सुनाए,सभी अनमोल तराणा।।9।

माई डिगडिगी बज रही,कही बाँसुरी तान।

कही नगाड़ो की धमक,कही खंजरी गान।

कहीं खंजरी तान,कहीं खिचते इक तारे।

कीर्तनो की शान,कहीं रामायण प्यारे।

कहीं मनमस्त दिखाए,भाँग गाँजे में भाई।

अल्हा करना भला,मुठी चुकटा दे माई।।10।

महाते महाजन बौहरे,अपनी आसन बैठ।

गुणा भाग करते दिखे,खुशियाँ भरें समेट।

खुशियाँ भरें समेट,तिजोरी लख हरषाते।

प्लेईग कार्ड कहीं,कहीं शंतरंज बिछाते।

महनत कृषक जिए,बिचारे श्रमिक कहाते।

फिर भी रह मनमस्त,गीत खुशियों के गाते।।11।

जायी सिनेमाघर लखो,गीता पूरन दिखाए।

घर-घर से सब बालजन,रोजहि देखन जाए।

रोजहि देखन जाए,फिल्म के रटत तराने।

एक्टरों को सुमिर,रटें कई जीवन गाने।

एक फूल दो माली,हाथी मेरे साथी भाई।

राष्ट्र भावना भरी,फिल्म वहाँ देखो जायी।।12।

भारत दिखता हर कहीं,ग्राम गली कई नाम।

कृषक श्रमिक मिलजुल रहें,भलां अलग हो नाम।

भलां अलग हो नाम,देश का दर्शन होता।

खान-पान व्यवहार सभी जन मिल-जुल बोता।

कह मनमस्त निहार,नहीं कोई यहाँ आरत।

जन जीवन दरम्यान,दिखाता हैं यहाँ भारत।।13।

मौसम की सब बहारें,बरसाती है फूल।

धरती ग्राम सुहावनें जैसे सुघर दुकूल।

जैसे सुघर दुकूल,खेत खेतों से मिलते।

रेल रोड़ के खेल,देश का जामा सिलते।

लगता यहाँ मनमस्त,सभी कुछ होता है सम।

कहीं न कुछ भी अलग,दिखत भारत का मौसम।।14।

भारत आया उतर ज्यौं,पंचमहल के बीच।

नदियाँ सींचत धरा को,पावन जल लें सींच।

पावन जल से सींच,ग्रामों के नाम निराले।

नाम अलग हो भलां,सभी गोरे कई काले।

पहाड़ो के ये जाल,बताते है यह भारत।

सभी जगह लहराता,उतरा मेरा भारत।।15।

कई प्रांत दिखते यहाँ,भाषा,वेश,निवेश।

सब कुछ मिलता है यहाँ,कहीं न कुछ भी शेष।

कहीं न कुछ भी शेष,यहाँ है दिल्ली बम्बई।

काशी मथुरा यहाँ,यमुन गंगा भी यहाँ वही।

मन कहता मनमस्त,स्वर्ग सी धरती यहाँ भई।

हर मौसम को देख,प्रकृति आती है नई-नई।।16।

दिखता अंतर कही नहीं,रामेश्वर से धाम।

रुद्र प्रयागी धरा यह,बद्रीनाथ प्रणाम।

बद्रीनाथ प्रणाम,बोलते यहाँ सब तीरथ।

पर्वत खाई कछार,मान यहाँ सागर भी रत।

वायुयान की घोर,आसमां लेखा लिखता।

भारत आया यहाँ,जगह सब लगता,दिखता।।17।

पंचमहल में आ गया,भारत सुयश ललाम।

जन जीवन खुशहाल है,सबको मिलता काम।

सबको मिलता काम,पंचमहल आओ भाई।

धरा नाम कुछ अलग,सभी में भारत पाई।

देखो यहाँ की झलक,गढ़ी-गढ़ यहाँ पर टहल।।

भारत की अनुकृति,मनमस्त यही है पंचमहल।।18।

रामगढ़, डबरागाँव

राम राज्य अनुरुप है,यहाँ रामगढ़ ग्राम।

जलधारा बहे बीच में,जैसे प्रातः-शाम।

जैसे प्रातः-शाम,हर्ष-उन्माद बह रहा।

जीवन के सिद्धांत,अटल हो सदा कह रहा।

सदां रहो मनमस्त,यही जीवन के है काम।

अध्ययन प्रतिदिन करो,विद्यालय मित्र राम।।19।

मानो डबरा ग्राम को,डबरा मंडी मूल।

बसा गड़ी के चहुँ तरफ,जैसे पंखुड़ी फूल।

जैसे पंखुड़ी फूल,रम्य रसरंग भरा है।

पानी-पानीदार,सदां ही हरा भरा है।

हथ करघा का केन्द्र,ग्राम्य जन सज्जन जानो।

कर देता मनमस्त,पीठ विद्यालय मानो।।20।

माया जोरत ग्रामजन,रात दिना कर काम।

प्रभु चरणों में लीन है,वन्खंण्डेश्वर धाम।

वनखंण्डेश्वर धाम,शान्ति आश्रम है भाई।

रामायण का पाठ,यज्ञ हर वर्ष कराई।

धर्म धरा बन गई,ग्राम की प्यारी काया।

सब बिचरें मनमस्त,ब्याप्ति यहाँ न माया।।21।

बिचरत ग्राम निहारिए,खेरी के हनुमान।

रेल किनारे ब्राजते,जय घंटा आजान।

जय घंटा आजान,रेल गाड़ी जय बोले।

खेरी के हर द्वार,विजय की तूती डोले।

मानव हो मनमस्त,सुरुचि से खेती करते।

मनु कुबेर से भए,दैन्य दुख दूर बिचरते।।22।

खेरी, अमरपुरा

बहता नद है खेरी का,मिट्टी उपज महान।

जिससे खेरी की भई,शान बान पहिचान।

शान-बान पहिचान,करम पथ,घर-घर जागे।

निज करनी व्यापार,सभी करने ही लागे।

हो गए सब मनमस्त,प्यार खेरी पुल कहता।

चलकर देखो आज,कर्म का झरना बहता।।23।

डबरा से मिल अमर भा,अमर पुरा भी आज।

मनैं जयंती भीम की,भारत गौरव साज।

भारत गौरव साज,मध्य से रोड़ गया है।

निकट जेल भी देख,रेल पुल नया-नया है।

अमर बनो मनमस्त,बसो जाके अमरपुरा।

उन्नतशाली ग्राम,मिला जाता है डबरा।।24।

अर्रु, ताल सिमरिया

बारी अर्रु ग्राम पर,उम्मर रंगी लाल।

ज्ञानी-मानी अनुभवी,हर जीवन का ख्याल।

हर जीवन का ख्याल,ग्राम को धन्य बनाया।

रेल मार्ग,सुचि भूमि,पहाड़ के निकट बनाया।

नगर योजना अनुरुप,बसे यहाँ पर नर-नारी।

जन जीवन मनमस्त,उमरिया जनहित बारी।।25।

बिचरों अब मनमस्त तुम,ताल सिमिरिया रेल।

विद्यालय दश तक यहाँ,यहाँ खेलिए खेल।

यहाँ खेलिए खेल,बड़े ऊँचे है मंदिर।

बड़ी-बड़ी दालान,शान्ति का सौरभ अंदर।

पर्वत के उर बसा,ताल और पार निहारो।

हो जाओ मनमस्त,पुरातन सुयश बिचारो।।26।

गढ़ी-गढ़ी है मेख सी,पर्वत ऊपर देख।

गौरव गाते आज भी,पुरातत्व अभिलेख।

पुरातत्व अभिलेख,सुराही मानक मंदिर।

दरवाजे की झलक,बेल बूटों में सुदंर।

मन मनमस्त बनाए,यहाँ के कूप मढ़ी।

भया जीवन मनमस्त,भाग्यशाली है गढ़ी।।27।

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