देखो भारत की तस्वीर - 7 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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देखो भारत की तस्वीर - 7

देखो भारत की तस्वीर 7

(पंचमहल गौरव)

काव्य संकलन

समर्पण-

परम पूज्य उभय चाचा श्री लालजी प्रसाद तथा श्री कलियान सिंह जी एवं

उभय चाची श्री जानकी देवी एवं श्री जैवा बाई जी

के श्री चरणों में श्रद्धाभाव के साथ सादर।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

भाव सुमन-

पावन धरती की सौंधी-सौंधी गंध में,अपनी विराटता को लिए यह पंचमहली गौरव का काव्य संकलन-देखो भारत की तस्वीर के साथ महान विराट भारत को अपने आप में समाहित किए हुए भगवान राम और भगवान कृष्ण के मुखार बिन्द में जैसे-विराट स्वरुप का दर्शन हुआ था उसी प्रकार इस पंचमहल गौरव में भी विशाल भारत के दर्शन हो रहे हैं भलां ही वे संक्षिप्त रुप में ही क्यों न हों।

उक्त भाव और भावना का आनंद इस काव्य संकलन में आप सभी मनीषियों को अवश्य प्राप्त होंगे इन्हीं आशाओं के साथ संकलन ‘‘देखो भारत की तस्वीर’’ आपके कर कमलों में सादर समर्पित हैं।

वेदराम प्रजापति मनमस्त

गायत्री शक्ति पीठ रोड़ डबरा

जिला ग्वालियर (म.प्र)

मो.9981284867

जखा, छिदा, गढ़ी

नाते हैं मनमस्‍त से लगे, जावा के लोग।

दूध दही धृत पी रहे, काया बना निरोग।

काया बना निरोग शान और बानि अनौखी।

कृषि कार्य सब करैं, जिंदगी जिनकी चोखी।

मन में हो मनमस्‍त, गीत जीवन के गाते।

वसुधा एक, कुटुम्‍ब, हमारे सबके नाते।। 241।

गाता नौंन के गीत जो, छिदा करौं विश्राम।

कितना मन मोहक लगै, यह छोटा सा ग्राम।

यह छोटा सा ग्राम, दिखाता अपना साया।

हंसमुख जीवैं लोग, नाचती यहां पर माया।

नौंन नदी का नीर, पीर की पीर मिटाता।

जन जीवन मनमस्‍त, पंचमहली में गाता।। 242।

बांकी-बांकी गढ़ी है, लिखै पुराना लेख।

पच्‍चीकारी की कथा, इसका है अभिलेख।

इसका है अभिलेख, कला की कला बताता।

कितनी प्‍यारी भूमि, हमारी भारत माता।

गौरव की अनुभूति पंचमहली की झांकी।

चितवन है मनमस्‍त, जिंदगी बांकी बांधी।। 243।

ककरधा, बिलौआ, मकोड़ा

भाई-भाई मान कर, करो ककरधा बास।

अलीशान मंदिर बना, जिसमें मातु निवास।

जिसमें मातु निवास, दर्श करते नर नारी।

पूरी होती आस, भीर लगती है भारी।

धन्‍य भये जन जीव, ग्राम गौरव प्रभुताई।

इतने हैं मनमस्‍त रहैं, ज्‍यौं भाई-भाई।। 244।

बाटर आलय पालते, पनवाड़ी के पान।

मातृभूमि की लाज में, धरौ बिलौआ ध्‍यान।

धरौ विलौआ ध्‍यान, धर्म मय धरा बनाई।

रंग भेद को त्‍याग, रहें मिल भाई-भाई।

काली का स्‍थान, बुद्धि का गौरव आलय।

जन रक्षा मनमस्‍त, डांकघर, बाटर आलय।। 245।

मतबारे का मकबरा, बना मकोड़ा जान।

अबुल फजल की भूमि है, बलिदानों का मान।

बलिदानों का मान, त्‍याग की अमिट कहानी।

मातृभूमि का प्‍यार, लेख-आलेख जवानी।

ये गौरव स्‍तूप, अवनि के बने सहारे।

चिंतन कर मनमस्‍त, वीर भूमि मतबारे।। 246।

टेकनपुर, ऊदलपारा, चिरूली-भरपुरा

कहानी टेकनपुर सुनो, छवी छावनी आज।

धरती का श्रृंगार है, भरत भूमि का नाज।

भरत भूमि का नाज, महल सुन्‍दर-सा पाया।

बांध पार पर बना, साज गौरव का छाया।

पंचमहल की अंक, रंक नहीं कहीं दिखानी।

भारत रक्षा भार यहां, मनमस्‍त कहानी।। 247।

बनाया ऊदरपारे ने, ऊंदल सा दरबार।

मन भावन धरती यहां, सुमन मालती हार।

सुमन मालती हार, प्रेम की बहैं, बयारी।

उमंग भरी मन धरा, पुलक पौरूष अधिकारी।

सुख सरिता सखोर, यहां जन जीवन पाया।

उड़़े बसन्‍ती गंध, सबै मनमस्‍त बनाया।। 248।

ठीक ठिकानों चिरूली है, भटक भटपुरा जाब।

ताल कछारन की किलक, कनक कला दरसाब।

कनक कला दरबाव, पालासन पीपल छाया।

महुबा बेरी आम, नीम शीसम का साया।

आश्रम के अनुरूप, रूप इनके पहिचानो।

कितनी पावन भूमि, मस्‍त मनमस्‍त ठिकानों।। 249।

लखनपुरा-लदेरा, मसूदपुर, इकौना-मोहना

गाती धरती लखनपुरा, ललित लदेरा मान।

धरती का उन्‍माद यह, गौरव की पहिचान।

गौरव की पहिचान, शान अपनी जीते हैं।

सदां हरे और भरे, प्रेम प्‍याला पीते हैं।

जन जीवन मनमस्‍त, बहारें आतीं जाती।

क्रम परिवर्तन सदां, गीत प्रगती के गाती।। 250।

आते जाते में सदां, गौरव निरखो आज।

मस्‍त मसूदपुर हो रहा, धन धरती के काज।

धर धती के काज, नाज जीवन को देते।

मंदिर बने विशाल, ध्‍वजा नभ में यश लेते।

कूप वाटिका ताल, प्रकृति से ताल मिलाते।

कर देते मनमस्‍त, सभी को आते जाते।। 251।

म्‍हारी मानो, इकौना, मोहना मन हरषाय।

धरती के उद्गार में, जीवन स्‍वच्‍छ सुहाय।

जीवन स्‍वच्‍छ सुहाय, मृदुल मानव की बाणी।

शिर धर जहरैं चलीं, भरैं धीरज का पानी।

धरनी कर दयी धन्‍य, धन्‍य सब नर अरू नारी।

पंच महल की झलक, मस्‍त मनमस्‍त हमारी।। 252।

पठा (इकौना), सेकरा, अकवई बड़ी

रात कमाई और दिन, भरै रतन अनमोल।

हीरा मोती कहीं पर, नग पत्‍थर बे मोल।

नग पत्‍थर बे मोल, पठा प्रस्‍तर पर पाया।

सब कुछ यहां पर मिलै, रहा नहीं कोई बकाया।

रतन प्रसवनी भूमि, यहां की मेरे भाई।

जन जीवन मनमस्‍त, करैं दिन रात कमाई।। 253।

जहां बटौना बटत हैं, रंक न रहता कोय।

निश्‍चल भावों से बना, जिनका जीवन होय।

जिनका जीवन होय, सौख्‍य, सौरभ यहां छाया।

धरती मृदु श्रंगार, सेकरा सबै सुहाया।

कितना प्‍यारा गांव, बिछे मनमस्‍त विछौना।

मुक्‍त हस्‍त से अवनि, बांटती जहां बटौना।। 254।

उन्‍नति खेती अकबई, लंगी समूदन रोड़।

प्रगति क्षेत्र में देखिये, लगा रही है होड़।

लगा रही है होड़, मोड़ मन को भा जाते।

छज्जिन से बतियात, पवन के झोके आते।

रवि किरणों की चमक, दमक दम को दम देती।

कर देती मनमस्‍त, यहां की उन्‍नति खेती।। 255।

गढ़ी-खेरी, भरौली, पिछोर

भाई-भाई खेरी सब, गढ़ी-गढ़ी सी बात।

मिल जुल रहना साथियो, जैसे चन्‍दा रात।

जैसे चन्‍दा रात, गीत अपने हैं गाते।

अमृत की बरसात, पुलक जीवन में लाते।

समृद्धि सौरभ, सनी, पावनी गंध बहाई।

मन में हो मनमस्‍त, रहें मिल भाई-भाई।। 256।

पावन द्वारे लिपे-पुते, भर्रोली में जाय।

मंदिर में शिब ब्राजते, नंदी मन हरषाय।

नंदी मन हरषाय, धान्‍य का सौरभ छाया।

पीपल, महुआ, आम, धनी है जिनकी छाया।

करलो कुछ विश्राम, भजो हरिनाम पियारे।

हो जाओ मनमस्‍त, मुक्ति के पावन द्वारे।। 257।

ठीक ठिकानों से भरा, पंचमहल की शान।

किला अलीशानी बना, यह पिछोर पहिचान।

गढ़ पिछोर पहिचान, निकट कालिन्‍द्री माई।

पावनतम स्‍थान, कीर्ति शास्‍त्रों ने गाई।

पाताली हनुमान, सिद्ध बाबा को मानो।

नन्‍दीगण को पूज, सही मनमस्‍त ठिकानों।। 258।

सहौना, ऐंती, लखनौंती, इकारा-जतारा

गीता गाई सहोना, सुनकर शंख पुकार।

अलख ज्‍योति सी ध्‍वनी है, शंख नाद प्‍यार झंकार।

शंख नाद में झंकार, सहोना मन का राजा।

जन्‍म जन्‍म के साज, बजै अनहद सा बाजा।

कर्म कला की कला, यहां पूजित है भाई।

मन होता मनमस्‍त, गीत यहां के नित गाई।। 259।

बिन विश्रामा बना, लखनौती के हार।

एक दूसरे के गले, डारि रहीं ज्‍यौं हार।

डार रहीं ज्‍यों हार, प्‍यार की प्रकट कहानी।

जन जीवन में नेह, मिलैं ज्‍यों पानी-पानी।

सच मानो मनमस्‍त, बसे गौरव के ग्रामा।

प्रात: सन्‍ध्‍या सुमिर, पाउ जीवन विश्रामा।। 260।

सदां दिखाई स्‍वर्ग सी, काटे यम के फंद।

इकतारा है इकारा, बना जतारा छन्‍द।

बना जतारा छन्‍द, मधुर मधुरितु गुण गाता।

प्‍यारी पावन भूमि, सुयश का गहरा नाता।

ज्‍वार बाजरा तिली, चना गैंहूं छवि छाई।

सरसों हो मनमस्‍त, झूमती सदां दिखाई।। 261।

सेंमरा, सोंजना, जरगांव, भगे

आता जाता तोड़ता, सेम सेंमरा देख।

काशीफल, ककड़ी, मटर, गोभी के संदेश।

गोभी के संदेश, सोजना कटहल पाओ।

डलियन में भर लेउ और गाड़ी भरि लाओ।

धरती का श्रंगार, पीत नव गीत सुहाता।

सच मानो मनमस्‍त, देखता आता जाता।। 262।

घर कोठारा भरे हैं, गहन पीपरी छांव।

उन्‍नति का उद्गम बना, सच मानो जरगांव।

सच मानो जरगांव, गांव पावन है भाई।

शंख ध्‍वनी घर घोर, आरती सब मिल गाई।

धरा धर्म के रूप, सुमन जन जीवन प्‍यारा।

धन धान्‍यों से भरे, सभी के घर कोठारा।। 263।

नामी नामा भगेह के, धरती करैं पुकार।

लगे रहो दिन रात जो, तब होवैं उद्धार।

तब होवैं उद्धार, पुराना खेरा भाई।

उतना ही मिल पाया कि जितनी करो कमाई।

सदां रहो सुख चैन, करो जीवन के कामा।

हो जाओ मनमस्‍त, कमाओ जग में नामा।। 264।

घोघौ, जंगीपुर, छतरपुर

नहीं ठिकाना ठीक सा, घोघौ जैसा गांव।

श्रमिक-पथिक को दे रहा, प्‍यारी शीतल छांव।

प्‍यारी शीतल छांव, आम बगिया में जाओ।

कोयल के अनुरूप बैठ कुछ गीत सुनाओ।

पावन जल के कूप, दर्श कीजे हनुमाना।

मन में हो मनमस्‍त, न ऐसा कहीं ठिकाना।। 265।

मन भाई मनुहार को, जंगीपुर सुनलेय।

कितनी प्‍यारी भूमि है, मन में सुख भर देय।

मन में सुख भर देय, कल्‍पना करै कलोलैं।

बहैं बसन्‍ती वियार, मधुरता कानन घोलै।

फसलों के प्रतिरूप, लेय धरती अंगड़ाई।

हो जाते मनमस्‍त, सदां सबके मन भाई।। 266।

जब पानी की बात हो, छतरपुर पहिचान।

पूजन अर्चन से सदां, सबका राखे मान।

सबका राखे मान, बुद्धिजन करैं निवासा।

कर्म स्‍थली देख, सदां मन का मन हासा।

पंच महल का गान, सुनो जन जीवन बाजी।

हो जाओ मनमस्‍त, पियो यहां का जव पानी।। 267।

गोहिन्‍दा, किटौरा, मेहगांव

गानों को गाता सदां, ग्राम गोहिन्‍दा आज।

पियो नीर-सा छीर यहां, हो जाओ सरताज।

हो जाओ सरताज, करो सत जीवन कामा।

धर्म कर्म की धरा, बनी विन्‍द्रावन धामा।

गहरे मन में प्‍यार, जिंदगी के रंग छानो।

हो कर के मनमस्‍त, गीत गौरव के गानों।। 268।

आ रही कोयल कूक ने, और केकी का नाच।

चलो किटोरा देखलो, झूंठ नहीं है सांच।

झूंठ नहीं है सांच, पलाशन पुष्‍प निहारो।

कुंज करीलन बैठ, गीत वैणू गुंजारो।

घंटिन गीत मल्‍हार, सुरभि के कंठ गा रही।

चारौ दिसन बहार, आज मनमस्‍त आ रही।। 269।

सदा सुहाई है झलक, ललक भरा मेंहगांव।

मंदिर सुन्‍दर बने हैं, पीपल गहरी छांव।

गहरी पीपल छांव, सरस्‍वती मंदिर जाओ।

जन रक्षा गृह देख, स्‍वास्‍थ्‍य घर को अपनाओ।

गौरव की अनुभूति, मूर्ति यहां बन कर आईं।

सुषमा करै कलोल, सदां मनमस्‍त सुहाई।। 270।

गिजौर्रा, शुकलहारी, पुट्टी

हृद क्‍यारी उमड़ी सदां, पुलक गिजौर्रा गेह।

समय सुहावन मद भरे, बरस रहे हैं मेह।

बरस रहे हैं मेह, गहन गमुआरे भाई।

अबनी अंग सुहाय, जहां लेती अंगड़ाई।

फसलें गाती गीत, बहै मकरंद बयारी।

जन जीवन मनमस्‍त, पुलक उमड़ी हृद क्‍यारी।। 271।

गौरव पाते आ रहे, और अनूठी शान।

शुक्‍लपक्ष सी सुभ्र जो, शुक्‍लहारी को जान।

शुक्‍लहारी को जान, चहुदिसि हैं देवालय।

पाकरि, जम्‍बु, रसाल, सुहाते ऊंचे आलय।

बाग, वाटिका, कूप, बाबरी ताल सुहाते।

मन में हो मनमस्‍त, ग्राम्‍य जन गौरव पाते।। 272।

अपनाओ सब को यहां, पुट्टी कर अभिषेक।

धरती की मनुहार के, लिखै अनूठे लेख।

लिखै अनूठे लेख, धर्म-धारा जहां बहती।

जीवन का उद्दार कर्म की गाथा कहती।

मन में हो मनमस्‍त, सदां पुट्टी को जाओ।

करलो जीवन सुफल, पंचमहली अपनाओ।। 273।