प्रेत-लोक - 17 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेत-लोक - 17

तांत्रिक योगीनाथ गंभीर होकर बोले “इस तरह के प्रेत को इतनी आसानी से वश में नहीं किया जा सकता, पर तुम परेशान मत हो उसका भी उपाय है मेरे पास और जब तक तुम ये सब करोगे तब तक में उसके आगे की क्रिया के लिए काम कर चूका रहूँगा” इतना कह कर योगीनाथ जी ने रुद्र को एक रुद्राक्ष की माला दी जिसे रुद्र ने अपने गले में पहन लिया और तालाब के अन्दर जाने के लिए आगे बढ़ा।

अब आगे

प्रेत-लोक १७

तालाब में कदम रखते ही उसे ऐसा लग मानों वो जमीन पर नहीं बल्कि बादलों पर चल रहा हो, उसका शरीर धुएँ के जैसा हल्का था और उसे अपने हाँथ, पैर रुई के सामान कोमल और हलके लग रहे थे अब ये संघतारा की माया का प्रभाव था या उस रुद्राक्ष की माला का पर इस समय रुद्र इसमें ही खो गया वो भूल गया की उसे तांत्रिक योगीनाथ ने यहाँ किस काम के लिए भेजा था।

अचानक रुद्र किसी से टकराया उसने ऊपर सर उठा कर देखा तो वहां एक विशाल स्तंभ था जिसका न कोई आदि और न ही कोई अंत था, उससे निकलने वाले प्रकाश में एक अजीब सा आकर्षण था, वो प्रकाश रुद्र को चारों ओर से घेरे हुए था, तभी जैसे किसी ने उसे नींद से उठाया हो वो अपने सपने से बाहर आया तब सब कुछ अलग था, उसके चारों ओर कंकाल थे, कुछ ही दूरी पर तांत्रिक योगीनाथ एक चबूतरे पर बैठे थे तब उसे याद आया की वो यहाँ संघतारा प्रेत का कंकाल तलाशने के लिए आया था।

रुद्र अपने चारों ओर के सभी कंकालों को ध्यान से देखता हुआ आगे बढ़ता है, इस समय उसके मन में डर के कोई भाव नहीं हैं, न जाने कहाँ से उसके अंदर अपने लक्ष्य तक पहुँचने का जनून भर है, वो एक- एक करके सभी कंकालों को बहुत ही ध्यान से देखता हुआ आगे बढ़ता जाता है, तभी उसे अपने दाहिनी ओर एक कंकाल दिखाई देता है जिसकी बाजू और पसली पर सिंदूर का निशान है अब रुद्र उसकी जंघा के निशान को तलाशने के लिए नीचे झुकता है पर तभी वो कंकाल वहां से गायब हो जाता है।

इस तरह से कई बार उसे वो कंकाल दिखता है और साथ ही वो खो जाता है, अब रुद्र अपने दिमाग का उपयोग कर घुटने के बल चलने लगता है जिससे की वो एक बार में ही उस कंकाल की बाजू, पसली और जंघा तीनों एक साथ देख सके, ठीक तभी उसकी आँखों के सामने उसे एक कंकाल की जंघा पर सिंदूर के निशान दिखाई देते हैं, वो नजर उठा कर देखता है तो फिर उसके बाजू और पसली पर भी उसे वही निशान दिखते हैं वो समय गवाएं बिना उस कंकाल के गले में रुद्राक्ष की वो माला डाल देता है जो उसे स्वयं तांत्रिक योगीनाथ जी महाराज ने दी थी।

अचानक सभी कुछ शांत हो जाता है अब तालाब में केवल एक कंकाल रहा जाता है, रुद्र उस कंकाल के साथ ही खड़ा हुआ है, रुद्राक्ष की माला डालते ही उसके ऊपर लगा सिंदूर चमकाने लगता है। तांत्रिक योगीनाथ जी रुद्र को वहां से निकलने का इशारा करते हैं और अपने आसन पर बैठ जाते हैं।

रुद्र वहाँ पहुंचकर देखता है की तांत्रिक योगीनाथ ने यहाँ पर एक अजीव तरह का चक्र बना रखा है उस चक्र के अग्र भाग में मानव खोपड़ी है और आजू- बाजू में कई और जानवरों के कंकाल हैं और उसके अंत में उल्लू का कंकाल है, उस चक्र को देख कर ही समझ आ सकता है की वो चक्र न तो किसी की मुक्ति के लिए है और न ही वो चक्र किसी देवी की उपासना के लिए बनाया गया है।

रुद्र उस चक्र को देखकर तांत्रिक योगीनाथ जी से कहता है “योगीनाथ जी आपने जैसा कहा मैंने बैसा ही किया पर ये चक्र, इस चक्र को देख कर लगता तो नहीं की आप किसी सात्विक शक्ति का आवाहन कर रहे हो, मुझे तो ये लगता है की आप केवल इन्हें अपना गुलाम बनाना चाहते हो जैसा की आपने और भी कई प्रेतों के साथ किया है पर अगर आप ऐसा कुछ भी चाहते हैं तो भूल जायें में वैसा होने नहीं दूंगा”

तांत्रिक योगीनाथ रुद्र की ओर इस तरह देखते हैं जैसे एक सिंह किसी मृग को देखता है और कहते हैं “रुद्र अब समय इन सब बातों का नहीं है क्योंकि इस प्रेत को मोक्ष दिलवाने के चक्कर में हम सब मारे जायेंगे, पर जो मैंने कहा था की राजकुमार अचिंतन और वो सब प्रेत जो मोक्ष पाना चाहते हैं उनके लिए में मोक्ष का कार्य अवश्य करूँगा पर अभी हमें संघतारा का बारे में सोचना है”

“पर जहाँ तक में जानता हूँ की वो मोक्ष नहीं चाहता और उसके रहते हुए हम किसी और को भी मोक्ष नहीं दिला सकते, इसीलिए मैंने राजकुमार अचिंतन की आत्मा को इस बात के राजी कर लिया है की वो हमें प्रेत-लोक तक का रास्ता दिखाए जिससे की हम संघतारा को उस लोक में छोड़ कर फिर बाकी सभी को मोक्ष दिलवा सकें, क्या में अब इस क्रिया को आगे ले जा सकता हूँ”

रुद्र के अन्दर ग्लानि के भाव थे की वो कैसे तांत्रिक योगीनाथ जी से इस तरह के प्रश्न कर सकता है वो वहीं खड़े होकर उनकी आगे की क्रिया विधि को ध्यान से देखने लगा।

तांत्रिक योगीनाथ जी अपने आसन पर बैठते हैं और रुद्र समेत सभी दोस्तों से कहते हैं की “तुम सब एक जगह आकर माँ त्रिपुर सुन्दरी का ध्यान करो और सब अपनी आँखें बंद रखना किसी भी परिस्थिति में आँखें मत खोलना, अगर किसी भी कारण से ये करना हो तब भी सिर्फ एक दूसरे के ऊपर विश्वास रखना और कुछ नहीं, क्योंकि अब हम जहाँ जाने वाले हैं वो कोई साधारण जगह नहीं है वो प्रेत लोक है”

इतना कह कर बिना किसी की सहमती का इंतजार किये तांत्रिक योगीनाथ राजकुमार अचिंतन की आत्मा को कुछ इशारा करते हैं और ध्यान में लीन होकर मंत्र पढ़ने लगते हैं,

“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।“

इस मंत्र का जाप करते हुए अभी कुछ ही समय बीता था की वो सभी अनंत ब्रह्माण्ड की यात्रा पर निकल जाते हैं और बहुत से अच्छे बुरे लोकों से होते हुए वो एक लोक को पहुँचते हैं जिसे प्रेत-लोक कहते हैं।

इस लोक में चारों ओर बहुत चीख पुकार है और जो भी आवाज आती है लगता है किसी अपने प्रियजन या पहचान वाले की है, शरीर इस तरह से धधकता है मानों को ज्वालामुखी के अन्दर हो, कानों वो आती करुण पुकार जो अपने किसी पहचान वाले की हो इस तरह से लगती है की ये अपने बिलकुल पास है और इसे बचाया जा सकता है।

रुद्र इस परिस्थिति को समझ कर सभी से बोला की “चाहे कुछ भी हो जाये हमें आपने आँखें नहीं खोलनी है मैं समझ सकता हूँ की हम तक जो आवाजें आ रहीं हैं वो हमारे प्रिय जनों की हैं और उन्हें नजरंदाज करना बहुत मुश्किल है पर तुम सभी जानकारी के लिए में बता दूं की में भी अपने पिता जी की आवाज सुन सकता हूँ पर मुझे पता है की वो मेरे पापा हैं यहाँ सिर्फ प्रेत हमें बहकाने की कोशिश कर रहा है, उसके किसी प्रलोभन में नहीं आना है क्योंकि ये अपना लोक नहीं हैं ये प्रेत-लोक है”

तांत्रिक योगीनाथ अपने समर्थ के आधार पर राजकुमार अचिंतन की आत्मा की सहायता और माँ त्रिपुर सुंदरी के आशीर्वाद से प्रेत संघतारा का ध्यान आकर्षित करते हैं और उसे मजबूर करते हैं की वो और भी प्रेतों की सहायता प्राप्त करने के लिए इस चक्र से बाहर जाये।

इसके लिए तांत्रिक योगीनाथ संघतारा से कहते हैं की “ लो मैं तुम्हें तुम्हारे लोक ले आया ये प्रेत-लोक है तुम अगर चाहो तो तुम्हारे साथ के प्रेतों की सहायता ले सकते हो, पर फिर भी तुम हमें हरा नहीं पाओगे”

योगीनाथ जी के इतना कहते ही संघतारा चक्र से निकलकर प्रेत-लोक में जाता है और दूसरे प्रेतों की सहायता के बारे में सोचता है ठीक तभी तांत्रिक योगीनाथ जी राजकुमार अचिंतन की आत्मा को आदेश देते हैं और वो सभी उस प्रेत-लोक से निकल कर कुछ ही समय में बापस आ जाते हैं।

यहाँ आने के बाद तांत्रिक योगीनाथ माँ त्रिपुर सुंदरी का आवाहन करके राजकुमार अचिंतन समेत कई सरे प्रेतों को मुक्त करते हैं और उन्हें मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर करते हैं साथ ही रुद्र और बाकी सभी दोस्तों को भविष्य में कभी भी इस तरह से किसी अनजान चीज को न छूने के सलाह देते हुए चले जाते हैं।

कुछ समय बाद मध्य प्रदेश के ही एक शहर नरसिंहपुर में चार दोस्त नरसिंहा मंदिर के पीछे बने तालाब के पास बैठ कर उस तालाब के पुराने रहस्य के बारे में बात कर रहे थे की तभी ...................................