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प्रेत-लोक - 3

अब तक आपने पढ़ा- चारों दोस्त रायसेन का किला देख कर भोपाल बापस जा रहें हैं पर रास्ते मे उनका पेट्रोल खत्म हो जाता है और वो एक ढाबे पर रात रुकने का सोचते हैँ पर उस ढाबे पर उनके अलावा और कोई नहीं होता है वो सभी दो भाग में बटकर खाना बनाने और ढाबे में किसी को खोजने का प्लान बनाते हैं, ढाबे में खोज करते समय उन्हें कुछ मिलता है। वो रात को सो रहे होतें हैं तब रुद्र को सपने में कुछ दिखता है जिसे देख कर वो घबरा जाता है।
अब आगे………..
रुद्र जोर से चीखा, उसके चीखने की आवाज सुन मनोज दौड़ कर उसकी खाट के पास तक पहुंच जाता है, सुनील और विकास भी रुद्र की आवाज सुनकर उठ जाते हैं। मनोज रुद्र को देख कर घबरा जाता है, रुद्र इस सर्दी में भी पशीने से भीगा हुआ है, उसकी साँस बहुत तेज चल रही है वो कानों को अपने दोनों हाँथो से बहुत जोर से बंद करने की कोशिश कर रहा है और आँखों में मानो खून उतर आया हो इस तरह लाल सुर्ख हो रहीं हैं। मनोज ने उसके कंधे पकड़ कर उसे जोर से हिलाया। रुद्र चौंक कर उठा और अपने अगल-बगल इस तरह से देखने लगा मानो किसी को ढूंढ रहा हो।
"क्या हुआ कोई बुरा सपना देखा क्या?" मनोज रुद्र को देख कर बोला।
रुद्र को तो मनोज की आवाज सुनाई ही नहीं दी उसके कानों में तो अभी भी वो आवाजें ही गूंज रहीं थीं "तुम सड़ चुके हो, तुम्हारा शरीर सड़ रहा है", "तुमने मुझे जगा कर अच्छा नहीं किया"।
मनोज ने एक बार फिर रुद्र को कंधे से पकड़ कर हिलाया, रुद्र ने एक नज़र मनोज पर डाली और फिर दौड़ता हुआ सुनील और विकास की ओर लपका पर दो कदम चलकर ही धड़ाम से दो खाटों के बीच गिर गया, वो बार-बार खड़े होने की कोशिश कर रहा है पर जैसे उसके पैरों ने जबाब दे दिया हो।
इधर सुनील और विकास की हालत भी कमोवेश वैसी ही थी जैसी रुद्र की थी, वो दोनों अपनी खाट पर बैठे हुए हैं और ऊपर की तरफ देख कर काँप रहे हैं उनके पीले पड़े चेहरे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि वो किसी भयानक चीज को देख कर डर रहें हैं। मनोज इन तीनों की ये हालात देख कर अंदर तक हिल गया, पर फिर भी उसने हिम्मत से काम लेते हुए रुद्र को खाट पर लिटाया फिर विकास और सुनील को भी लिटाया।
मनोज नें इन तीनों को इस तरह से लिटाया था कि उन तीनों की खाट एक दूसरे से बिल्कुल पास-पास और मनोज के एकदम सामने थीं। रुद्र जाग रहा था पर अभी भी उसे सुनील और विकास के ऊपर वो काले साये मंडराते नज़र आ रहे थे, ठीक ऐसे ही सुनील और विकास भी जागते हुए उन स्याह सायों को अपने ऊपर लटकते हुए मंडराते देख रहे थे। मनोज भी मंत्र-मुग्ध सा इन तीनों को सिर्फ देखे ही जा रहा था, तभी अचानक उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे जगाया हो, वो इन तीनों के सर के पास एक खाट पर आसन लगा कर बैठ जाता है और जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगता है।
कुछ समय बाद मनोज आँखे खोलता है और माहौल को बहुत ही सुखद पता है अब उसका सर भारी नहीं हो रहा था, वहां फैली उस दुर्गन्ध की जगह खुशबूदार मंद-मंद हवा बह रही थी। मनोज खाट पर लेट कर आसमान की ओर देखने लगा और सोचने लगा कि आज बहुत दिनों बाद खुले आसमान के नीचे लेटकर तारों को टिमटिमाते हुए देखने का मौका मिला।
बहुत देर बाद उन तीनों को बिना उठाये मनोज अपनी खाट से उठा और उसने रुद्र के बैग से सिगरेट का पैकेट निकाल कर उसमें से एक सिगरेट निकाल ली, रुद्र और वो दिन में एकाध बार सिगरेट पी लिया करते हैं, पहले पहल तो सिगरेट उसने मेडिकल कॉलेज में सीनियर के जोर देने पर पी थी पर फिर धीरे-धीरे ये जोर कब शौक बन गया पता ही नही चला, अब भी मनोज केवल जब रुद्र के साथ होता है तब ही एकाध सिगरेट पी लिया करता है।
मनोज सिगरेट को सुलगाकर उसे होठों में दबा टहलने लगा, वो एक के बाद एक कई बड़े कश लगाकर सड़क की ओर देख रहा था, सड़क इस समय भी किसी विधवा की माँग की तरह सुनी ही थी, माहौल मालबोरो क्लोव सिगरेट की लौंग जैसी मादक खुशबू से भर गया। तभी मनोज को किसी गाड़ी के आने की आवाज आई, वो एक मालवाहक ट्राला था जो तेजी से वहाँ से गुजर गया, कल रात से पहली बार उसने किसी गाड़ी को उस सड़क से निकलते हुए देखा था।
मनोज ने एक नज़र अपने बाएँ हाँथ की कलाई पर पहनी घड़ी पर मारी, उसके कांटे अभी सुबह के पाँच बजने का संकेत दे रहे हैं। मनोज ने सोचा अब तीनों को उठा देना चाहिए और जल्द-से-जल्द यहाँ से निकलने का प्रबंध करना चाहिए। यही सोच कर वो उन तीनों को जगाने उनकी खाट के पास जाता है।
रुद्र, सुनील और विकास भी अब तक जाग चुके थे क्योंकि गाड़ी की आवाज ने उन्हें पहले ही उठा दिया था। पर यहाँ से निकलने में सबसे बड़ी परेशानी पेट्रोल की थी, क्योंकि कल रात उनकी दोनों गाड़ियों का पेट्रोल खत्म हो चुका था। पर यहाँ और देर रुकना चारों को ही अच्छा नहीं लग रहा था। तब चारों ने रात की तरह ही जब तक पेट्रोल पंप नहीं मिल जाता तब तक गाड़ी को धक्का लगाकर चलने का सोचा और अपने वादे के मुताबिक सब्जी की टोकनी में कुछ रुपये रख कर वो गाड़ी की ओर चल पड़े।
गाड़ी को सीधा करते समय सुनील ने पेट्रोल की आवाज सुनी, उसने कोतुहल वश पेट्रोल टैंक को खोल कर देखा तो वो पेट्रोल से भरा हुआ था। उसने प्रश्नवाचक निगाह से मनोज को देखा तो मनोज का भी यही हाल था उसकी गाड़ी का टैंक भी पेट्रोल से भरा हुआ था, पर उनमें से कोई किसी से कुछ नहीं बोला, मनोज ने इग्निशन में चाबी लगाई और हमेशा की तरह गाड़ी हाफ किक में ही डरर-डरर कि आवाज के साथ चालू हो गई। वो चारों गाड़ी उठाकर वहाँ से निकल गए।
अपने रूम पर पहुँच कर सब फ्रेश हुए और अपने-अपने काम में लग गए, मनोज क्योंकि रात भर सो नहीं पाया था तो उसने कुछ नाश्ता करके सोने का सोचा। बाकी सब भी नाश्ता करके अपने आज के निर्धारित काम में लग गए। चारों में एक चीज समान थी अभी तक किसी नें भी रात की किसी घटना के बारे में एक दूसरे से कोई बात नहीं कि थी।
शाम के करीब चार बज रहे थे जब मनोज उठा, उसने उठ कर देखा तो रूम पर कोई नहीं था। बाहर जाकर बालकनी में देखा तो वहाँ रुद्र बैठ कर कुछ पढ़ रहा था, उसके एक हाँथ में उसकी फैवरेट मालबोरो सुलग रही थी। रुद्र नें मनोज को देख कर बिना कुछ कहे मालबोरो उसकी ओर बढ़ा दी, मनोज ने दो-तीन कश लेकर सिगरेट वापस की और बाथरूम की तरफ चला गया।
रात के लगभग 11:00 बज रहे हैं, चारों हॉल में बैठकर पढ़ाई कर रहें हैं। तभी सुनील बुक बंद करके सोने चला गया, उसके पीछे-पीछे विकास भी चला गया। रुद्र और मनोज दिन में सो चुके थे इस बजह से नींद अभी उनसे दूर थी।
तकरीबन एक घण्टे बाद सुनील आकर फिर से किताब खोल कर बैठ जाता है और बुदबुदाते हुए पढ़ने लगता है। धीरे-धीरे उसकी आवाज तेज होने लगती है जिसको सुनकर रुद्र और मनोज चौंक जाते है, वो किताब को अपने सामने रख कर जोर-जोर से कह रहा था "तुम सड़ चुके हो, तुम्हारा शरीर सड़ रहा है"।

क्रमशः अगला भाग..... प्रेत-लोक 4

सतीश ठाकुर

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