प्रेत-लोक - 9 Satish Thakur द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेत-लोक - 9

प्रेत-लोक 09

रुद्र लेटे हुए सोच रहा है की आखिर किस तरह इस संघतारा प्रेत से मुक्त हुआ जाये साथ ही उसका जिज्ञासु मन तांत्रिक योगीनाथ के बारे में भी जानना चाहता है क्योंकि रुद्र तांत्रिक योगीनाथ से बहुत प्रभावित है और जानना चाहता है की वो आखिर हैं कौन एक तांत्रिक या अघोरी या एक अघोरी तांत्रिक, और वो हज़ार साल से समाधि में क्यों हैं, सोचते- सोचते उसकी कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।

अब आगे : सुबह के ८:०० बजे तांत्रिक योगीनाथ जी अपने कमरे से निकलते हैं और बाकी सभी को उठाते हैं। रुद्र और बाकी सभी नित्य क्रिया पूरी करके हॉल में जमा हो जाते हैं पर इस सब में सभी ने इस बात का पूरा ध्यान रखा की एक न एक व्यक्ति सुनील के पास जरूर मौजूद रहे। अब तांत्रिक योगीनाथ जी सभी को एक जगह बैठा कर अपनी आगे की योजना के बारे में विस्तार से बताने लगे।

योगीनाथ जी बोले “इतने समय तक ध्यान में रह कर, में संघतारा को मुक्ति दिलाने और हमेशा- हमेशा के लिए उसे अपने लोक में भेजने के लिए किसी उपाय की तलाश कर रहा था और अंत में मुझे एक अत्यंत प्राचीन और कठिन उपाय पता लगा और यही एक मात्र रास्ता है जिससे हम इस प्रेत से मुक्त हो सकते हैं”।

“परंतु ये उपाय में तुम सब को कहूँ इससे पहले तुम सब को एक बात और बताना चाहता हूँ की इस रास्ते में जान का जोखिम बहुत अधिक है पर इसके अलावा कोई और रास्ता हमारे पास नहीं है, तो अब तुम सब बताओ की क्या तुम सब इस रास्ते पर चल पाओगे क्योंकि जो इस रास्ते पर नहीं चलना चाहता उसे में ये उपाय नहीं बता सकता।“

रुद्र तुरंत हाँ में सर हिलाकर योगीनाथ जी को अपनी सहमति देता है और बाकी सभी को देखता है, विकास और मनोज भी उसी तरीके से अपनी सहमति प्रदान करते हैं और योगीनाथ जी को आगे की योजना विस्तार से कहने के लिए कहते हैं।

योगीनाथ जी बोले “मुझे तुम सब से यही उम्मीद थी, अब क्योंकि तुम सब पूर्ण रूप से इस कार्य के लिए तैयार हो तो सुनो, किन्नर जाति का होने की वजह से संघतारा को अपने जीवन काल में कभी किसी से सम्मान नहीं मिला और न ही कभी किसी ने उसे इज्जत की नज़रों से देखा, सिर्फ राजकुमार अचिंतन से उसे वो सब कुछ मिला, पर लोगों ने उसे भी उससे छीन लिया जिससे उसके मन में गुस्सा और नफरत कूट-कूट कर भर गया और अब इतने सालों बाद उसे एक शरीर मिला है जिससे वो अपने अपमान का बदला भी ले सके और इतने समय से अंदर भड़क रही क्रोध की आग को भी शांत कर सके”।

“हमें राजकुमार अचिंतन की आत्मा को किसी भी तरीके से यहाँ लेकर आना होगा और फिर प्रेत संघतारा के सामने ले जाना होगा, अगर सब कुछ सही रहा तो अचिंतन की आत्मा संघतारा को अपने साथ लेकर चली जाएगी, पर उसके लिए हमें राजकुमार अचिंतन की कोई न कोई ऐसी चीज़ की जरूरत होगी जिसे उसने अपने जीवन काल में उपयोग किया हो” इतना कह कर योगीनाथ जी ने सभी को देखा।

रुद्र जैसे तांत्रिक योगीनाथ जी के शांत होने का ही इंतज़ार कर रहा था वो बोला “योगीनाथ जी आपने जो कहा वो सुनने में तो सरल है पर वास्तविकता में अगर बात करें तो, राजकुमार अचिंतन का उपयोग किया सामान हमें कैसे मिलेगा, क्योंकि उनके खानदान को ख़त्म हुए तो सालों हो चुके हैं, और अगर मान लो की किसी तरह वो मिल भी जाये तो राजकुमार अचिंतन की आत्मा इतने सालों बाद क्या हमारे बुलाने पर आएगी और क्या भरोसा की वो संघतारा प्रेत को साथ ले जाने में सफल हो पाएगी या नहीं”।

तांत्रिक योगीनाथ जी ने रुद्र से कहा “मैंने पहले ही कहा था की ये आसान नहीं है और इसमें जान का जोखिम भी है, क्योंकि संघतारा कोई आम प्रेत नहीं है, राजकुमार अचिंतन की किसी वस्तु को पाना भी आसान काम नहीं है उसके लिए हमें रात के समय में रायसेन किले में जाना होगा, या अगर कहीं और भी जहाँ पर भी हमें कुछ मिल सके, और अचिंतन के आने के बाद भी संघतारा आसानी से उसके साथ चला जायेगा या नहीं मैं ये भी नहीं कह सकता”।

इस उपाय में खतरा बहुत अधिक है पर फिर भी सभी इसको करने के लिए तैयार हो जाते हैं और उसी शाम को रायसेन किले में जाने का तय होता है, ये भी तय होता है की रुद्र और मनोज किले में जायेंगे। विकास – सुनील के साथ रहेगा और उसका ख्याल रखेगा, योगीनाथ जी किसी एक प्रेत को इस घर की सुरक्षा में भी लगा कर जायेंगे, खुद योगीनाथ जी रुद्र और मनोज के साथ किले में रहेंगे और राजकुमार अचिंतन की किसी वस्तु की तलाश करेंगे।

रात के ११:०० बज रहे हैं इस समय नीचे से देखने पर रायसेन किले को साफ़-साफ़ देखना बहुत मुश्किल है, रुद्र और मनोज तारों की बाड़ को पार करते हुए पहाड़ी के ऊपर चढ़ना शुरू करते हैं। रात ढलती जा रही है यहाँ से देखने पर किले का नज़ारा बहुत ही भयानक दिख रहा है, आस-पास से झींगुर और बहुत से अलग-अलग कीट-पतंगों की आवाज आ रही है, कभी लगता की जैसे अभी- अभी कोई बिलकुल सामने से निकला है, पहाड़ के पत्थर और झाड़ियाँ मिलकर इस तरह से आकर बना लेती हैं जिसे देख कर ऐसा लगता है जैसे कोई बैठा हो, सच्चाई तभी पता लगती है जब आप उस जगह तक पहुँच जाते हो।

कुछ समय तक चलते रहने के बाद अचानक लगा जैसे ठंड बहुत अधिक बढ़ गई है न सिर्फ बढ़ गई है बल्कि धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है, आसमान लाल होने लगा पूरा किला धुएँ के कोहरे में कहीं गुम सा हो गया, आगे क्या है कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, और जब रुद्र ने मनोज को देखा तो वो डर से कांप गया क्योंकि मनोज बहुत ही डरावना दिखाई दे रहा है, उसके कान बहुत बड़े हैं, आंखें पुरे तरह से अंदर धसी हुई हैं, नाक की जगह पर सिर्फ दो छेद हैं, उसके होंठ नहीं है, दांत बहुत नुकीले हैं और बाहर की ओर निकले हुए है।

अगला भाग क्रमशः - प्रेत-लोक 10

सतीश ठाकुर