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प्रेत-लोक - 1

ये समूचा विश्व सिर्फ एक भावना के चलते गतिमान है वो है विश्वास, कहा जाता रहा है कि " मानो तो मैं गंगा माँ हूँ, न मानो तो बहता पानी"। पर आज यहाँ पर बात गंगा माँ को मानने या न मानने को लेकर नही है, बात है कि जैसे हम भगवान को मानते हैं, हम ये मानते हैं कि भगवान का अस्तित्व है और वो कण-कण में विराजमान है। ठीक बैसे ही हम मानें या न मानें पर एक और शक्ति भी इस संसार में है जिसके होने का हम में से कई लोगों को प्रमाण मिला भी है और हम में से कई लोग आज भी उसके बारे में सोच कर सिहर जाते हैं। जी हाँ हम बात कर रहें हैं आत्मा की जिसे सभी लोग अपने- अपने हिसाब से नाम देकर परिभाषित करते हैं, कोई इसे भूत तो कोई प्रेत तो कोई कुछ और कहता है पर हर कोई चाहे-अनचाहे इस सत्य को अवश्य मानता है कि भगवान के बाद एक और अलौकिक शक्ति इस संसार मे जरूर है।
ऐसी ही एक अ-ईश्वरीय अलौकिक शक्ति से प्रेरित घटना- घटित हुई मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में। चार दोस्त रुद्र, विकास, मनोज और सुनील अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के लिए भोपाल के सबसे व्यस्त और चहल-पहल वाले इलाके में रहते हैं। ये चारों ही एक मिडिल क्लास परिवार का हिस्सा हैं। जहाँ रुद्र और मनोज के घर का वातावरण धार्मिक है, वहीं सुनील और विकास के घर में पूजा-पाठ सिर्फ किसी बड़े त्यौहार तक ही सीमित है।
रुद्र को नई-नई जगह और पौराणिक स्थानों पर घूमना और उनके बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लगता है। आज भी ये चारों दोस्त रुद्र के बताये हुए रायसेन के किले जाने की तैयारी कर रहे हैं। सुबह 6:00 बजे दो मोटरसाइकिल पर ये चारों दोस्त अपनी मंजिल रायसेन के किले की ओर निकल गए।
भोपाल से रायसेन की दूरी लगभग 45 किलोमीटर की है, रास्ते में कई मनोरम दृश्य दिखाई देतें हैं। किले से कुछ पहले हजरत पीर फतेहउल्लाह की दरग़ाह है, जिसकी इस क्षेत्र में बहुत मान्यता है। जितना मनोरम यहां का नज़ारा दिन में होता है उतना ही ये रास्ता रात में वीरान और सुनसान हो जाता है।
किला एक ऊँची पहाड़ी पर है, जहां जाने के लिए ऊबड़-खाबड़ पथरीले रास्तों की तीन-चार पगडंडियाँ हैं। बैसे तो चढ़ाई थोड़ी कठिन है पर ये चारों नौजवान मस्ती और चुहलबाजी करते हुए आसानी से किले तक पहुंच जाते हैं।
किले को देख कर जहाँ एक ओर रुद्र का चेहरा खिल जाता है वहीं विकास और सुनील के लिए ये पत्थरों के पुराने खंडहर के अलावा कुछ भी नहीं। पर मनोज इस किले में रुचि दिखता हुआ रुद्र के पास जाकर उससे इस किले का इतिहास और इसकी विशेषता बताने को कहता है। चारों दोस्त किले के बाहर एक पत्थर पर बैठ जाते हैं और रुद्र कहना चालू करता है.....
"ये किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित है। किला बलुआ पत्थर की चट्टान पर ऊंचाई पर खड़ा है। यहां ऊंची दीवार और बुर्ज किले को और दिलचस्प बनाते हैं। किले के चारों ओर बड़ी-बड़ी चट्टानों की दीवारें हैं। इन दीवारों के नौ द्वार व तेरह बुर्ज हैं।"
रुद्र आगे कहता है "तारीखे शेरशाही में उल्लेख है कि दिल्ली का शासक शेरशाह सूरी 4 माह की घेराबंदी के बाद भी किले को नहीं जीत पाया था। तब उसने तांबे के सिक्कों को गलवा कर यहीं तोपों का निर्माण किया। इसके बाद ही शेरशाह को जीत नसीब हो सकी। जब शेरशाह ने इस किले को घेरा तब 1543 ईसवी में यहां राजा पूरनमल का शासन था। वह शेरशाह के धोखे का शिकार हुआ था। जब उसे मालूम पड़ा कि ऐसा हो गया है तो उसने अपनी पत्नी रत्नावली का सिर स्वयं काट दिया था, जिससे वह शत्रुओं के हाथ न लगे।
रायसेन के किले की चार-दीवारी में वो हर साधन और भवन हैं, जो अमूमन भारत के अन्य किलों में भी हैं। लेकिन यहां कुछ खास भी है, जो अन्य किलों पर नजर नहीं आता। किला पहाड़ी पर तत्कालीन समय का वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम और इत्र दान महल का ईको साउंड सिस्टम इसे अन्य किलों से तकनीकी मामलों में अलग करता है।
इत्रदान महल के भीतर दीवारों पर बने आले ईको साउंड सिस्टम की मिसाल हैं। एक दीवार के आले में मुंह डालकर फुसफुसाने से विपरीत दिशा की दीवार के आले में साफ आवाज सुनाई देती है। दोनो दीवारों के बीच लगभग बीस फीट की दूरी है। यह सिस्टम आज भी समझ से परे है।
किला परिसर में बने सोमेश्वर महादेव मंदिर के अलावा हवा महल, रानी महल, झांझिरी महल, वारादरी, शीलादित्य की समाधी, धोबी महल, कचहरी, चमार महल, बाला किला, हम्माम, मदागन तालाब है।
रुद्र एक साइन बोर्ड की ओर इशारा करके कहता है "किला पुरातात्विक विभाग के सर्वेक्षण का हिस्सा है, इसे क्षति पहुंचाना या इसके वास्तविक स्वरूप से छेड़छाड़ करना दण्डनीय अपराध है" ऐसा इस बोर्ड पर लिखा है, तो हम में से कोई भी यहाँ की किसी भी चीज को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, खास तौर पर तुम दोनों वो विकास और सुनील की ओर उँगली दिखा कर कहता है। दोनों ही अपनी गर्दन हिला कर रुद्र को अपनी ओर से निश्चिंत करते हैं।
सुनील और विकास किले को अब तक दो बार पूरा घूम चुके हैं। पर रुद्र और मनोज अभी केवल आधा किला ही देख पाये हैं, वो बहुत बारीकी से इस किले के भव्य इतिहास को समझते हुए इसे करीब से जानने की कोशिश कर रहे हैं। पर अब तक सुनील और विकास को भूख लग आती है और वो दोनों रुद्र और मनोज से बहुत परेशान हो बार-बार उन्हें नीचे चलने को कह रहे हैं। पर रुद्र और मनोज को तो मानो भूख और प्यास थी ही नहीं, वो सिर्फ किले को नजदीक से जानने के लिए उत्सुक हैं।
दोपहर अपने अंतिम पड़ाव पर है और शाम अपनी छटा बिखेरने को आतुर हो रही है। सुनील और विकास का सब्र अब जबाब दे चुका है और वो रुद्र से कह कर नीचे उतरने लगते हैं।
रुद्र नें भी सूरज को ढलते देख कर मनोज से कहा कि "शाम के ५:०० बजने वाले हैं अभी नीचे उतरने में भी कम से कम एक घण्टा लगेगा, चलो हम भी नीचे की ओर चलना चालू करते हैं, जिससे रात होने के पहले नीचे दरगाह तक पहुंच सकें।
रुद्र नीचे आकर देखता है कि विकास और सुनील दरगाह के सामने चाय-नाश्ते की दुकान पर चाय की चुस्की ले रहें हैं। मनोज ने भी दुकान पर आकर अपने और रुद्र के लिए दो चाय ऑर्डर कर दी और सुनील और विकास के पास जाकर बैठ जाता है। चारों इधर-उधर की बातें करते हुए चाय की चुस्की का लुत्फ उठा रहे हैं।
विकास के पेट में चूहे कूद रहे हैं पर यहां खाने के लिए कोई व्यवस्था न देख कर उसने और सुनील ने भोपाल से 20 किलोमीटर पहले पड़ने वाले एक ढाबे पर खाना-खाने का प्लान बनाया। चारों दोस्त यहां से निकलने के पहले दरगाह पर हाजिरी देते हैं। दरगाह से भोपाल की ओर निकलते-निकलते अब दिन पूरी तरह ढल चुका है, रात का अंधेरा किसी भी वक़्त अपने चरम पर पहुंचने वाला है। कहने को तो अभी सिर्फ शाम के 7:00 बजे हैं पर पहाड़ी और जंगल में अंधेरा जल्दी घिर आता है।
आज अमावस्या की काली अंधेरी रात है, और ये चारों दोस्त अपनी वर्तमान रिहाइश भोपाल की ओर अपनी मोटरसाइकिल से सफर कर रहे हैं। करीब आधे घंटे चलने के बाद सुनील की गाड़ी दो-तीन झटके के साथ बंद हो जाती है, मनोज और रुद्र अपनी गाड़ी सुनील के पास लगा कर पूछतें है "क्या हुआ"?
सुनील कहता है "पेट्रोल खत्म हो गया है, शायद जल्दबाजी में डलवाना भूल गया था।"
रुद्र चिन्तित होकर कहता है " ये तो गलत हुआ, अब इस जगह इतने बजे पेट्रोल कहाँ से मिलेगा" फिर कुछ सोच कर उसने मनोज से अपनी गाड़ी का पेट्रोल देखने के लिए कहा।
मनोज पेट्रोल टेंक को चेक करते हुए कहता है "मेरी गाड़ी में भी ज्यादा पेट्रोल नहीं है पर इतना तो है कि हम किसी सुरक्षित स्थान तक पहुंच सकें"
सुरक्षित स्थान का नाम सुनकर सुनील और विकास उन्हें उस भोपाल मोड़ पर पड़ने वाले ढाबे के बारे में बताते हैं, जिसे रुद्र और मनोज ने भी पहले से देखा हुआ है। अब चारों अंदाजा लगाते हैं कि उनकी वर्तमान स्थिति से वो ढाबा कितनी दूर है, ढाबे की दूरी का अंदाजा लगाकर मनोज अपनी गाड़ी का कुछ पेट्रोल सुनील कि गाड़ी में डाल देता है जिससे वो चारों ढाबे तक पहुंच सकें। ढाबे पर पहुंच कर कुछ न कुछ व्यवस्था कर लेंगे, ऐसा सोच कर चारों आगे निकलते हैं।
पर पेट्रोल को एक गाड़ी से निकालकर दूसरी में डालने के चक्कर में बहुत सा पेट्रोल खराब भी हो जाता है, और साथ ही रात भी काफी हो जाती है। पेट्रोल अब दोनों ही गाड़ियों में कम था और उन चारों का ढाबे की दूरी का अंदाजा भी गलत साबित हुआ। ढाबे से करीब दो किलोमीटर दूर ही, पहले एक गाड़ी का और फिर दूसरी गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो जाता है। वो चारों इस समय अमावस्या की काली रात में सुनसान सड़क पर जंगल के बीचों-बीच बिना किसी मदद की आशा लिए खड़े हुए हैं।
क्रमशः अगला भाग........"प्रेत-लोक 02"

लेखक
सतीश ठाकुर

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