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प्रेत लोक - 11

प्रेत-लोक - 11

रुद्र आगे आता हुआ तांत्रिक योगीनाथ जी से बोला “पर आप तो मंत्र की शक्ति से भी इस दरवाजे को खोल सकते हो” योगीनाथ जी रुद्र की ओर देख कर बोले “नहीं कर सकता क्योंकि ये जो तुम्हें सामने दिख रहा है ये दरवाजा नहीं है ये प्रेत-जाल है जो संघतारा प्रेत ने अपनी काली शक्ति का प्रयोग करके खड़ा किया है, इसे खोलने के लिए मुझे अभिमंत्रित सिंदूर की जरूरत पड़ेगी जो मेरे कई और सिद्ध सामानों के साथ बाहर ही है, अब केवल एक ही रास्ता है, गुरुदेव वो ही कुछ कर सकते हैं”।

अब आगे:

तांत्रिक योगीनाथ जी रुद्र और मनोज को दरवाजे से दूर करके वहीं जमीन पर ध्यान की मुद्रा में बैठ गए और ध्यान करने लगे। दोनों दोस्त योगीनाथ जी के आस-पास बैठ गए और उन्हें ध्यान से देखने लगे। कुछ समय में ही एक सफ़ेद और तेज प्रकाश भूल-भुलैया के दरवाजे से छनकर अन्दर आने लगा, धीरे-धीरे उस प्रकाश ने पूरी भूल-भुलैया को अपने आगोश में ले लिया। वो प्रकाश पूरी तरह सफ़ेद है और उसमें से ॐ की धीमी पर स्पष्ट आवाज आ रही है, रुद्र और मनोज को समझ नहीं आ रहा की ये प्रकाश संघतारा के तिलिस्म का हिस्सा है या तांत्रिक योगीनाथ अपने ध्यान में किसी क्रिया को अंजाम दे रहे हैं।

लगभग १५ मिनिट तक उसी तरीके से वो प्रकाश सब कुछ अपने अन्दर लेता जा रहा था और ठीक उसी समय दरवाजा एक तेज ‘ठक’ की आवाज के साथ खुल जाता है और इसी समय तांत्रिक योगीनाथ जी भी अपने ध्यान से बाहर आ जाते हैं और कहते हैं “चलो हमें इसी समय यहाँ से निकलना होगा, गुरुदेव के प्रताप की वजह से जब तक हम इस सफ़ेद प्रकाश के साथ हैं तब तक संघतारा प्रेत हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता”। वो सभी एक-एक करके उस दरवाजे से निकल कर भूल-भुलैया से बाहर आ जाते हैं।

सभी लोग बिना कोई देर किये महल की पश्चिमी दीवार को फांद कर जल्दी-जल्दी मगर संभलकर पहाड़ी से नीचे की ओर उतरने लगते हैं, अभी तक वो सफ़ेद प्रकाश उन्हें चारों और से सुरक्षित रखे हुए है शायद इसी वजह से वो इतनी आसानी से इस अँधेरे में भी साफ़-साफ़ देख पा रहे हैं और साथ ही प्रेत संघतारा भी उन्हें परेशान नहीं कर पा रहा है। वो सभी लगातार सिर्फ चले जा रहें है एक दूसरे से बात किये बिना, क्योंकि इस समय सबसे ज्यादा जरूरी काम इस पहाड़ी और महल से जितनी दूर हो सके उतनी दूर जाना है।

सुबह के लगभग ४:०० बजे होंगे सभी लोग पहाड़ी से उतरकर नीचे झाड़ियों की ओट में रखी अपनी गाड़ियों तक पहुँच जाते हैं और बिना कुछ कहे या समय बर्बाद किये जल्दी से गाड़ी उठाकर भोपाल का सफ़र शुरू कर देते हैं, रुद्र इस समय गाड़ी को उसकी पूरी रफ्तार के साथ चला रहा है, मनोज बैग को संभाले हुए डरा हुआ रुद्र के पीछे बैठा है और अपनी गर्दन घुमा-घुमा कर चारों ओर देखता जा रहा है, वो सफ़ेद प्रकाश अब भी उनके साथ है इस वजह से डरने की बात नहीं है पर फिर भी उनके आतंकित चेहरों को देख कर कोई भी कह सकता है की वो अब तक भूल-भूलैये के वाकये से डरे हुए हैं।

सुबह करीब ५:१५ बजे वो अपने फ्लेट में प्रवेश करते ही राहत की साँस लेते हैं, अब तक तांत्रिक योगीनाथ जी भी यहाँ पहुँच चुके हैं, रुद्र जानता है की योगीनाथ जी एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए किसी वाहन की जरूरत नहीं है वो अपनी मंत्र शक्ति के दम पर कहीं भी कभी भी जा और आ सकते हैं यही वजह है की रुद्र और मनोज के इतनी रफ्तार से गाड़ी चलने के बाद भी योगीनाथ जी उनसे पहले ही घर पहुँच चुके है और अभी तक तो वो अपना पूजा काम भी चालू कर चुके हैं।

चारों दोस्तों का बीच का कमरा इस समय किसी तांत्रिक का तंत्र स्थल लग रहा है, पुरे कमरे के चारों तरफ दीवार के सहारे से सफ़ेद भस्म का एक घेरा बना हुआ है उस सफ़ेद भस्म के बाद उसी तरीके से सिंदूर का भी एक घेरा है पर वो भस्म वाले घेरे से छोटा और लगभग पाँच फिट अन्दर की ओर है। कमरे के बीचों-बीच आठ कोण वाला चौंक पूरा हुआ है जिसके बीच में एक लकड़ी की चौकी रखी हुई है जिस पर काले रंग का कपड़ा बिछा हुआ है।

वो कपड़ा लाल धागे की सहायता से चौकी पर बंधा हुआ है, उस चौंक के आठों कोनों पर एक-एक मिट्टी का दीपक रखा है जिसमें दोनों तरफ जलने के लिए के रुई की बाती लगी हुई है और दीपक राई के तेल से पुरे भरे हुए हैं। उस चौंक के चारों तरफ कुछ-कुछ दूरी पर पाँच लाल रंग के कपडे बिछे हुए हैं और इन कपड़ों के नीचे वही सफ़ेद भस्म रखी है जो कमरे के चारों और पहले सुरक्षा घेरे का काम कर रही है, ये सब इंतजाम तांत्रिक योगीनाथ ने रुद्र और मनोज के आने के पहले कर के रखे हुए हैं।

सारे सामान और वहां किये इंतज़ाम को देख रुद्र और मनोज बहुत ही आश्चर्य से तांत्रिक योगीनाथ जी को देखते हैं, उनके मन की बात को समझ कर योगीनाथ जी बोले “इसमें इतना आश्चर्य करने की क्या बात है, मैंने सोचा जब तक तुम दोनों आते हो तब तक में क्रिया का सारा इंतज़ाम कर लूं, क्योंकि अब और देर करना सही नहीं है, हमने देखा है की संघतारा प्रेत बहुत ही शक्तिशाली है और वो काले जादू में भी माहिर है जिसे उसने शायद अपनी जीवित अवस्था में ही सीखा होगा”।

“तुम दोनों जल्दी से नहाकर मेरे लाये कपडे पहनकर यहाँ आ जाओ जिससे की हम आगे की क्रिया को प्रारंभ करें” इतना कह कर योगीनाथ जी अपने पास रखे कपड़ों को उठा आकार रुद्र और मनोज को देते हैं वो इसे लेकर एक दूसरे कमरे में बने बाथरूम में चले जाते हैं, करीब १५ मिनिट बाद रुद्र और मनोज बापस उसी कमरे में आते हैं जहाँ पर तांत्रिक योगीनाथ, विकास और सुनील पहले से मौजूद हैं, चारों दोस्त इस समय योगीनाथ जी द्वारा दिए कपड़े पहने हुए हैं जो जोगिया वस्त्र हैं लाल रंग की धोती और लाल रंग का ही अंगिया है जिसे गले में डाला हुआ है, वो सभी इस समय किसी तंत्र विद्यालय के छात्र लग रहे हैं, जो तंत्र की शिक्षा पाने के लिए गुरुकुल में रहते हैं।

“रुद्र वो ईंट का टुकड़ा लाकर दो जिसे हम महल से लेकर आये थे” तांत्रिक योगीनाथ ने रुद्र से कहा।

रुद्र उस ईंट के टुकड़े को बैग से निकलता हुआ बोला “योगीनाथ जी हम महल इसलिए गए थे की जिससे हमें कोई ऐसी वस्तु मिल सके जिसे राजकुमार अचिंतन ने उपयोग किया हो पर इस ईंट को देख कर तो ऐसा कुछ नहीं लगता और सबसे बड़ी बात इसका आकर, आखिर आपने इस ईंट को इस खास आकर में काटने के लिए ही क्यों कहा?”

अगला भाग क्रमशः - प्रेत-लोक 12

सतीश ठाकुर

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