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प्रेत लोक - 8

प्रेत लोक - 08

इस बार वो एक ही झटके में उठ कर खड़ा हो गया और फिर से सर को दीवार से मारने ही वाला था की इतने में तांत्रिक योगीनाथ ने अपना हाँथ हवा में उठाया और कुछ मंत्र पढ़ कर ‘फट’ कहते हुए उसकी तरफ़ किया जिससे वो जहाँ था वहाँ पर ही रुक गया मानो किसी ने उसे पीछे से पकड़ रखा हो, पर ये दाव उसे बहुत देर तक रोक नहीं पाया और ‘हूँ’ की आवाज के साथ वो पलट गया, अब वो एकदम तांत्रिक योगीनाथ के सामने है।

अब आगे : योगीनाथ जी ने पास ही रखे सिंदूर को उठने की कोशिश करने लगे पर अपने सूक्ष्म रूप में होने की वजह से वो उस सिंदूर को नहीं उठा पाए ये देख कर प्रेत संघतारा बहुत जोर से हंसा और उड़ता हुआ सीधे कमरे की छत से सर को मार देता है, छत से टकराते ही सुनील का शरीर एक जोर कि आवाज के साथ फर्श पर आकर गिरता है, ठीक इसी समय तांत्रिक योगीनाथ रुद्र को इशारा कर के कुछ कहते हैं, और रुद्र फुर्ती से सिंदूर को उठा के सुनील के माथे पर लगा देता है और साथ ही साथ उसी सिंदूर का घेरा सुनील के चारों ओर कर देता है।

तांत्रिक योगीनाथ कुछ मंत्र पढ़ते हुए उँगली से इशारा करते हैं और सुनील के माथे का सिंदूर चमकने लगता है ठीक वैसा ही सिंदूर के घेरे के साथ होता है, उसी समय एक काला साया उस पूरे कमरे के चक्कर काटने लगता है, जोर- जोर से हँसने और रोने की आवाज आ रही है, वो काली परछाई बार- बार सुनील के पास जाने का प्रयास कर रही है पर सिंदूर के घेरे के कारण वो सुनील तक पहुँच नहीं पा रही है।

वो काली परछाई और किसी की नहीं बल्कि उसी संघतारा प्रेत की है जिसने सुनील का शरीर तब छोड़ा था जब उसने सुनील को कमरे की छत से टकराया था, उसके दर्द को देखने और उसकी चीख को सुनने के लिए उसने उसका शरीर छोड़ा था पर उसी समय योगीनाथ के इशारे पर रुद्र ने सुनील के माथे और उसके चारों और सिंदूर लगा दिया था जिसे योगीनाथ ने अपनी मंत्र शक्ति से अभिमंत्रित कर दिया था, इसी वजह से वो प्रेत अब सुनील तक नहीं पहुँच पा रहा और गुस्से में पुरे कमरे में घूम रहा है।

एक बार फिर रुद्र तांत्रिक योगीनाथ के इशारे पर वही सिंदूर सभी के माथे पर लगा देता है और न जाने क्यों पर वो उस सिंदूर को गुलाल की तरह पुरे कमरे में उड़ा भी देता है, अब तो संघतारा प्रेत की आवाज बहुत ही भयानक हो गई क्योंकि रुद्र जहाँ- जहाँ सिंदूर लगाता जा रहा था उसी समय तांत्रिक योगीनाथ भी उस सिंदूर को अभिमंत्रित करते जा रहे थे पर उन्हें भी नहीं पता था की रुद्र उस सिंदूर को कमरे में उड़ा देगा, कुछ देर और संघतारा प्रेत की डरावनी आवाज आती रही और फिर धीरे- धीरे बंद हो गई, अब वहां का वातावरण भी काफी हल्का हो गया था।

तांत्रिक योगीनाथ ने रुद्र से कहा “अभी तो वो प्रेत चला गया पर उसे हमेशा के लिए यहाँ से भेजने के लिए हमें अभी बहुत कुछ करना पड़ेगा, पर रुद्र तुम एक बात बताओ की तुम्हें वो सिंदूर उड़ाने का विचार कहाँ से आया, अगर उससे वो प्रेत और अधिक उत्तेजित हो जाता तो”।

“योगीनाथ जी मुझे नहीं पता पर मुझे उस समय ऐसा लगा की शायद इस तरह से हम उसे कमरे से बाहर कर सकते हैं क्योंकि जहाँ पर भी अभिमंत्रित सिंदूर था वहां पर वो अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर पा रहा था तो मैंने सोचा अगर पुरे कमरे में ही सिंदूर होगा तो वो शायद निकल जाये और हुआ भी वही, पर उस समय में भूल गया था की हमारे मदद के लिए जो प्रेत आया है उसे भी इस बात से परेशानी हो सकती है” रुद्र ने कहा।

योगीनाथ जी मुस्करा कर बोले “अच्छा किया ये बात तो मुझे भी नहीं सूझ पाई और रही बात उस प्रेत की तो वो तो संघतारा के आते ही चला गया था, शायद उसे संघतारा का खौफ तुम लोगों से भी ज्यादा है पर तुमने बहुत बहादुरी का काम किया”

योगीनाथ जी चेहरे को गंभीर करते हुए बोले “पर वो लोट कर जरूर आएगा वो इतनी आसानी से पीछा नहीं छोड़ेगा, वो फिर से आये उसके पहले हमें बहुत से काम करने हैं जैसे की मुझे कुछ समय के लिए ध्यान में बैठना होगा क्योंकि मुझे इसी सूक्ष्म शरीर में रहते हुए वो सारी शक्तियां भी चाहिए जो मेरे मानव शरीर में थीं वरना हम उससे लड़ नहीं पाएंगे। उसके लिए मुझे एकांत की आवश्यकता होगी, विकास वाला कमरा में अपने उपयोग में ले रहा हूँ, अब सुबह होने वाली है तो तुम सब भी थोड़ा आराम कर लो, वो तुम्हें और मुझे परेशान न करे इसके लिए में इस पुरे घर को अभिमंत्रित कर देता हूँ, रुद्र तुम्हें मेरी मदद करनी होगी”।

रुद्र की सहायता से घर को अभिमंत्रित करके योगीनाथ जी सभी को कुछ देर आराम करने का कह कर विकास के कमरे में जा कर ध्यान में लीन हो गए, यहाँ रुद्र, मनोज और विकास सुनील को उसी सुरक्षा घेरे में रहने देते हैं और हॉल में ही लेट जाते हैं, पर नींद किसको आने वाली थी, कुछ देर तक लेते रहने के बाद भी सभी जाग रहें हैं और अपने ऊपर आई इस मुसीबत के बारे में ही सोच रहें हैं।

यहाँ संघतारा प्रेत अब भी घर के पास ही एक पेड़ पर बैठकर सुरक्षा घेरे के कमजोर होने का इंतजार कर रहा है, उसकी नकारात्मक ऊर्जा की वजह से न तो कोई पक्षी और न ही कोई जानवर उस ओर आ रहा है पूरा इलाके में मनहूस और काली परछाई फैली हुई है, इस समय ऐसा लग रहा है मानो आस-पास के सभी लोग या तो मर चुके हैं या फिर वहां कोई नहीं रहता, श्मशान के जैसा सन्नाटा फैला हुआ है । सिर्फ एक घर के ऊपर इस काली परछाई का कोई असर नहीं है जहाँ तांत्रिक योगीनाथ और वो चारों दोस्त हैं इस समय।

रुद्र लेते हुए सोच रहा है की आखिर किस तरह इस संघतारा प्रेत से मुक्त हुआ जाये साथ ही उसका जिज्ञासु मन तांत्रिक योगीनाथ के बारे में भी जानना चाहता है क्योंकि रुद्र तांत्रिक योगीनाथ से बहुत प्रभावित है और जानना चाहता है की वो आखिर हैं कौन एक तांत्रिक या अघोरी या एक अघोरी तांत्रिक, और वो हज़ार साल से समाधि में क्यों हैं, सोचते- सोचते उसकी कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।

अगला भाग क्रमशः - प्रेत लोक - 09

सतीश ठाकुर

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