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विवेक

बाल कहानी- विवेक

एक नदी में मगरमच्छ रहता था, नदी में चारों तरफ़ उछाल भरता। जब उसका आहार मिल जाता तो खाने के बाद नदी में ही पड़ा रहता । शाम होने पर कोई दूसरा शिकार तलाश करता और अपनी पत्नी के लिए ले ज़ाया करता। पत्नी खाकर बहुत प्रसन्न होती ।

एक बार मगरमच्छ उछल-उछल कर देखता हुआ अपना शिकार तलाश रहा था । पूरे दिन तलाशने के बाद भी उसे शिकार नहीं मिला , वह निराश होकर लौट ही रहा था ; तभी नदी के किनारे ऊपर पेड़ पर बैठा हुआ बंदर उसे दिखाई दिया । शिकार न मिलने से थोड़ा उदास हो गया था मगरमच्छ ।

मगरमच्छ ने देखा कि बंदर पेड़ पर बैठा कुछ खा रहा है, उसने बंदर से पूछा “भाई तुम क्या खा रहे हो?”
“मैं आम के पेड़ पर बैठा हूँ,आम खा रहा हूँ , मैं तो कंदमूल, फल,फूल खाकर ही पेट भरता हूँ यही मेरा आहार है । यहाँ बहुत सारे पेड़ है जहॉं से तोड़ कर मैं अनेक प्रकार के मीठे फल खाता हूँ ।” बंदर ने बताया ।

मगरमच्छ ने बंदर से कहा “मुझे अपना दोस्त बना लो”
बंदर ने कहा “ठीक है” । इस प्रकार उन दोनों की दोस्ती हो गई । बंदर ने मगरमच्छ को पेड़ से तोड़ कर आम दिये,
उसने बड़े प्रेम से आम खाये और कुछ आम वह अपनी पत्नी के लिए लेकर गया । पत्नी ने आम खाये तो वह मीठे आम खाकर बहुत खुश हुई।

मगरमच्छ और बंदर में बहुत गहरी दोस्ती हो गई, बंदर के साथ प्रतिदिन मगरमच्छ स्वादिष्ट मीठे फल खाता और अपनी पत्नी के लिए भी ले जाता ।

दोस्ती में कभी बंदर केले खिलाता, कभी आम , कभी जामुन,कभी सेव और अन्य मीठे स्वादिष्ट फल खिलाता।
मगरमच्छ अपनी पत्नी के लिए अवश्य ले जाता ।

एक दिन मगरमच्छ की पत्नी ने पूछा “यह स्वादिष्ट फल आप कहॉं से लाते हो?”

मगरमच्छ ने बताया “यह मीठे और स्वादिष्ट फल में अपने दोस्त बंदर से लाता हूँ, उसका भोजन यही है वह प्रतिदिन यही खाता है ।

अगले दिन मगरमच्छ से पत्नी ने कहा “आप अपने दोस्त को मेरे पास लेकर आना, जो बंदर प्रतिदिन इतने मीठे और स्वादिष्ट फल खाता है ।उसका कलेजा तो बहुत मीठा और स्वादिष्ट होगा, मैं उसका कलेजा खाऊँगी ।”

मगरमच्छ ने पत्नी की बात मान ली और बंदर के पास जाकर बताया “मित्र आज तुम्हें मेरी पत्नी ने बुलाया है।”
बंदर बहुत खुश हुआ लेकिन वह बोला “मुझे तो तैरना नहीं आता तुम्हारा घर पानी में है मैं नहीं जा पाऊँगा ।”

मगरमच्छ ने कहा “मित्र मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठा कर ले जाऊँगा तुम चिंता न करो।”

मगरमच्छ की पीठ पर बंदर बैठा और दोनों चल दिए।
बंदर बहुत खुश था क्योंकि आज वह अपने मित्र के घर जा रहा था उसकी पत्नी से मिलने । बहुत देर तक बंदर मगरमच्छ की पीठ पर बैठा चलता रहा पानी की धारा का आनंद ले रहा था । इससे पहले कभी इस तरह की यात्रा उसने नहीं की थी इसलिए बहुत अच्छा लग रहा था ।

चलते -चलते दोनों नदी की बीच धारा में पहुँच गए । बंदर ने मगरमच्छ से पूछा “मित्र आज तुम्हारी पत्नी ने मुझे क्यों बुलाया है?”

मगरमच्छ ने बताया “मेरी पत्नी तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है,अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए ही मैं तुम्हें उसके पास ले जा रहा हूँ ।”

बंदर ने मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर यह बात सुनी तो वह आश्चर्य चकित होकर घबरा गया लेकिन अगले ही पल उसने अपने आप को सँभाल लिया ।उसने सोचा कि बीच मँझधार में मगरमच्छ से कुछ कहना उचित नहीं होगा क्योंकि मुझे तैराकी नहीं आती , यदि मुझे गिरा दिया तो मेरे प्राण ही निकल जायेंगे।

बंदर ने विवेक से काम लेकर,मगरमच्छ से कहा “दोस्त तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया, अपना कलेजा तो मैं पेड़ पर ही रख आया । तुम पहले बता देते तो मैं अवश्य लेकर आता ।”

मगरमच्छ बोला “चलो दोस्त मैं तुम्हें पेड़ के पास लेकर दोबारा चलता हूँ, इस बार तुम पेड़ से अपना कलेजा ले आना ।”

बंदर को पीठ पर लेकर मगरमच्छ मुड़ गया और पेड़ के पास जाकर बोला “जाओ जल्दी से कलेजा ले आओ मेरी पत्नी इंतज़ार कर रही होगी ।”

पेड़ के पास जाकर बंदर छलांग लगाकर पेड़ पर जाकर बैठ गया और मगरमच्छ से बोला “मैं मूर्खता में अपने प्राण नहीं दूँगा, तुम मूर्ख हो ; क्या कोई अपना कलेजा पेड़ पर रखता है ।मेरा कलेजा तो शरीर के अंदर है ।” इस तरह बंदर ने होशियारी से अपने प्राणों की रक्षा की । नदी के बीच में संकट आने पर बिना घबराहट के विवेक और समझदारी से मगरमच्छ से छुटकारा पा लिया।कभी मुसीबत के समय कभी घबराना नहीं चाहिए।सूझबूझ से समस्या का हल निकालना चाहिए ।

✍️ आशा सारस्वत


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