जीवनधारा - 3 Shwet Kumar Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जीवनधारा - 3

घर पहुँचकर पूजा नहाधोकर कपड़े बदली और बैग से कुछ निकालने के लिए आगे बढ़ी तो ये क्या ! उसके और रूपेश के बैग की अदला-बदली हो गयी थी । ....

...तभी, पूजा के मोबाइल की घंटी बजी । देखा, तो रूपेश का ही फोन था ।

“आपका बैग गलती से मेरे पास आ गया है ।” – पूजा के फोन रिसिव करते ही रूपेश बोला । इस तरफ से पूजा ने भी यही बात दुहरायी और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ें ।

“अच्छा, ठीक है ! आप चिंता न करें । अपने घर का पता बताइये । मैं बैग लेकर आ जाऊंगा ।” – रूपेश ने दूसरी तरफ से फोन पर कहा ।

रूपेश को अपने घर का पता देकर पूजा ने मोबाइल एक किनारे रख दिया और डाइनिंग हाल में आकर नाश्ता करने लगी ।

माँ नाश्ता लगाकर पास में ही खड़ी थी ।

“क्या हुआ माँ, ऐसे क्यूँ खड़ी है ?” पूजा ने माँ को देखकर पूछा ।

“कुछ लड़कों के रिश्ते आयें हैं, तेरे लिए । उन्हे तू पसंद भी है । तू अगर हाँ कहे, तो बात चलाऊँ ? ” – माँ ने पूजा से पूछा ।

माँ की बातों का बिना कोई उत्तर दिये मुस्कुराते हुए पूजा ने नाश्ता खत्म किया और बोली कि अभी एक आदमी मेरा बैग लेकर आएगा । जब आए तो मुझे बता देना । यह बोलकर पूजा ने ट्रेन की घटना माँ को बतायी ।

“क्या तू उसे पसंद करती है ? और वह भी पसंद करता है ? पटना में कहाँ रहता है वो? तू कहे तो बात चलाऊँ ?”–एक ही सांस में माँ ने पूजा के सामने सवालों के ढेर लगा दिये।

“ऐसा कुछ भी नहीं है माँ, जैसा तू सोच रही है ।” – हँसते हुए पूजा ने माँ के कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा और अपने कमरे में चली गयी ।

दोपहर के करीब दो बजे । पूजा के घर की घंटी बजी । माँ ने दरवाजा खोला । सामने हाथों में बैग लिए रूपेश खड़ा था ।

“पूजा है क्या, आंटी ?”-नमस्ते करते हुए रूपेश ने दरवाजे पर खड़ी पूजा की माँ से पूछा ।

हाथों में बैग देख पूजा की माँ को यह समझते देर न लगा कि यह रूपेश है । उसे घर के भीतर बुलाकर सोफ़े पर बैठने को कह पूजा को बुलाने अंदर कमरे में चली गयी।

कुछ मिनटों बाद पूजा बाहर आयी । मुस्कुराते हुए रूपेश से बोली कि मेरे कारण आपको बहुत कष्ट झेलना पड़ रहा है, रूपेश जी ।

“इतनी तकल्लूफ की कोई जरूरत नहीं । लगता है, किस्मत हम दोनों को फिर से मिलाना चाहती थी । बैग तो केवल एक माध्यम है ।” –रूपेश ने मुस्कुराकर जवाब दिया ।

“पूजा जी, आप क्या करती हैं ?” – रूपेश ने उत्सुकतावश पूछा ।

“मैं रेडियो जॉकी हूँ और कंकड़बाग में मेरी ऑफिस है ।“ - पूजा ने उत्तर दिया ।

“मेरा ऑफिस भी उधर ही है ।“- रूपेश ने बताया ।

“अच्छा, अब मैं चलता हूँ। बाय पूजा। नमस्ते आंटी ।”-यह कहते हुए रूपेश सोफ़े से उठा ।

पूजा की माँ बोली – “बेटा, आते रहना । तुमसे मिलकर अच्छा लगा” ।